ज़िन्दगी कुछ कहती है / सुशील चावला

लघुकथा-संग्रह  : ज़िन्दगी कुछ कहती है

कथाकार  : सुशील चावला

प्रकाशक :

बोधि प्रकाशन

सी-46, सुदर्शनपुरा इंडस्ट्रियल एरिया एक्सटेंशन, नाला रोड, 22, गोदाम, जयपुर-302006 

फोन : 0141-2213700, 9829018087 

ई-मेल : bodhiprakashan@gmail.com

कॉपीराइट © सुशील चावला

प्रथम संस्करण: 2023

ISBN: 978-93-5536-413-5

कम्प्यूटर ग्राफिक्स : बनवारी कुमावत

आवरण संयोजन : बोधि टीम

मुद्रक : तरु ऑफसेट, जयपुर

मूल्य: ₹150/- (पेपरबैक)

कुल पृष्ठ  :  124

अनुक्रम

मूक विद्रोह

ममत्व

आखिरी पत्र

मेहमान

चादर से बाहर

क्या पाया

अनाथाश्रम

संवेदनहीन

वनिता

सबसे बड़ी भूल

पर्ची

ऊँची नाक

दब्बू

मर्दानगी

बेरोज़गार

अनवरत लेखनी

कैसा बुद्धिजीवी

एक शरीफ़ आदमी

शेरनी

मशीनी ज़िन्दगी

सबक

संवेदना

लिव इन रिलेशनशिप

टालमटोल

स्वर्ग नरक

सन्नाटा

बेकार

यक्ष प्रश्न

उलझन

अपना खाना

बलिदान

कैसा प्रेम

पितर पूजा

गोद

शासन

पतली गली का रास्ता

एक अलग-सा आदमी

टार्गेट

राजधर्म

दोहरा चरित्र

बत्तीस गुण

घर

किसका दोष

माँ भी औरत है

कोठी

पाकिस्तान

घाटा पूर्ति

जीवन से समझौता

मेहनत

उसका धर्म

मजबूर

चुनाव

प्रसाद

अकड़ी हुई गर्दन

मरने के बाद

कैसा रिश्ता

वास्तविकता

बड़ा कौन

नेतागिरी

दर्द पहाड़ों का

मुल्ला नसरुद्दीन का तीसरा विवाह

इज़्ज़त का फॉर्मूला

पहल

औरत का डर

प्रस्तावना


बचपन में सबसे पहले कहानियों से मेरा परिचय, 'रूसी लोककथायें' तथा रूस की कुछ अन्य पुस्तकों से हुआ जो मेरे स्वर्गीय पिता को कोई उनकी दुकान पर बेच गया था। उसके बाद हर महीने एक रूसी पत्रिका आने लगी थी। उस पत्रिका में भी कहानियां होती थी। इस तरह से कहानियों के प्रति मेरा रुझान बढ़ने लगा था। उसके बाद यह रुझान चंदामामा, पराग, नन्दन चंपक आदि से होता हुआ सरिता, मुक्ता, धर्मयुग, हँस कादम्बिनी आदि तक पहुंच गया था। इस दौरान मैं कहानियां लिखने लगा था जो कॉलेज की पत्रिकाओं में, कुछ अपने कुछ दूसरों के नाम से छपने लगी थी।


पहले शादी फिर बैंक में नौकरी के साथ सब कुछ बदलने लगा था। मैं ज्यादा से ज्यादा अपने जीवन में उलझता चला गया। पढ़ाई के शौक में डिग्रियां और डिप्लोमा इकट्ठा करने में लग गया था। साथ ही मैं अपने उदगार कहानियों और कविताओं के माध्यम से कागज़ पर उतारता रहता था। उस दौरान कुछ कविताएं और कहानियां प्रकाशित भी हुई लेकिन बैंक की नौकरी में सीढ़ियां चढ़ने के साथ समय की कमी रहने लगी थी।

बैंक से रिटायर होने के बाद मैं दोबारा लेखन की तरफ मुड़ गया। इसका श्रेय मुख्य रूप से मेरे मित्र व वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अशोक भाटिया जी के प्रोत्साहन और दिशा निर्देशन को जाता है। उनकी वजह से ही मैं लघुकथाएं प्रकाशन के लिए भेजने लगा और वे प्रकाशित भी होने लगी। इससे मेरा हौंसला बढ़ा, मेरी मेहनत और भाटिया जी के प्रोत्साहन का नतीजा यह पुस्तक है। मुझे पूरी आशा है यह पुस्तक आपको पसंद आएगी। आपका सहयोग व आपकी टिप्पणियां अपेक्षित हैं।

- सुशील चावला

जन्म तिथि : 7 अक्तूबर 1954

जन्म स्थान : कैथल (हरियाणा)

शिक्षा : एम कॉम, सी ए आई आई बी, सार्वजनिक उद्यम में स्नाकोत्तर, डिप्लोमा मार्केटिंग मैनेजमेंट में एडवांस डिप्लोमा।

सम्प्रति : बैंक से वरिष्ठ प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्ति के बाद स्वतंत्र लेखन ।

लेखन विधाएं: लघुकथा, कहानी, कविता तथा गजल ।

प्रकाशित : दैनिक ट्रिब्यून, नवसमाचार आदि समाचार पत्रों तथा दृष्टि, लघुकथा कलश, संरचना, साहित्य त्रिवेणी, अभिनव इमरोज आदि पत्रिकाओं तथा अनेक लघुकथा संग्रहों में रचनाएं प्रकाशित ।

सम्पर्क :

द्वारा चावला डेन्टल क्लीनिक, 1871 सेक्टर 6 हाउसिंग बोर्ड, करनाल-132001 (हरियाणा)

मो : 99965-48555

ई-मेल: chawlask999@gmail.com

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