लघुकथा--चिन्तन और चुनौतियाँ / नेतराम भारती (सं॰)

25 लघुकथाकारों की विधा धारणा पर केन्द्रित 

पुस्तक  : लघुकथा--चिन्तन और चुनौतियाँ

परिकल्पना, संयोजन 

और सम्पादन  :  नेतराम भारती

ISBN: 978-81-19299-96-6

प्रकाशक :

अयन प्रकाशन

जे-19/39, राजापुरी, उत्तम नगर, 

नई दिल्ली-110059

मोबाइल : 9211312372

e-mail: ayanprakashan@gmail.com

website: www.ayanprakashan.com

© : नेतराम भारती

प्रथम संस्करण : 2024

मूल्य : 850.00 रुपये

लघुकथा पर सार्थक सामूहिक विचार

-- महेश दर्पण 

‘लघुकथा’ विधा के प्रति इधर पाठकों-लेखकों में आकर्षण बढ़ा है। इसके कारण विविध हैं। नेतराम भारती भी इस विधा पर विचार को लेकर अपने स्तर पर सक्रिय हैं। अच्छी बात यह है कि उनकी विचार-प्रक्रिया इकहरी या अराज़क नहीं है। वे लघुकथा पर अपनी जिज्ञासाएं, चिंताएं और मान्यताएँ अन्य लघुकथा विशेषज्ञों के सम्मुख रख उनके उत्तरों व समाधानों के सहारे एक वातावरण निर्मित करना चाहते हैं ताकि एक सामूहिक राय कायम की जा सके। ‘लघुकथाः चिन्तन और चुनौतियाँ' शीर्षक उनके द्वारा संपादित यह पुस्तक रूपी आयोजन इसका प्रमाण है।

उनकी मान्यता है कि लघुकथा एक ऐसी रोचक विधा है, जो साहित्यकारों को  सर्वाधिक आकर्षित कर रही है। उसमें उन्हें वह शक्ति नज़र आती है जो विलुप्त हो रहे पाठकों को साहित्य से जोड़ सके। वे लघुकथा को एक स्वतंत्र विधा तो मानते ही हैं, एक प्रकार से उसे परिभाषित भी करने की सफल चेष्टा यह कहते हुए करते हैं कि ‘किसी विसंगतिपूर्ण क्षण-विशेष के प्रसंग या घटना या प्रभाव को कम से कम शब्दों में प्रभावी ढंग से कहना लघुकथा है, जिसमें लेखक को अनावश्यक प्रवेश की अनुमति नहीं है।’ वे इसमें कालखंड बदलने की बहस की अपेक्षा सम्प्रेषणीयता को महत्त्व देने के साथ ही, उपदेश की छूट भी स्वीकार नहीं करते। हां, उस अनकहे की छूट अवश्य देते हैं, जो लघुकथा में कहा नहीं गया किंतु प्रतिध्वनित है। कम शब्दों में समाधान (यदि संभव हो तो), संवेदना को झंकृत करना, सांकेतिकता, ध्वन्यात्मकता, बिम्बात्मकता, प्रतीकात्मकता, और सबसे महत्वपूर्ण और प्राथमिक सम्प्रेषणीयता आदि वे इस विधा के प्रमुख तत्व मानते हैं। सुखद यह है कि विधा के उज्ज्वल भविष्य के प्रति तो वे आशान्वित हैं ही, आज भी स्वयं को लघुकथा का एक विद्यार्थी ही मानते हैं। संभवतः इसी कारण उन्होंने पच्चीस लघुकथा संपादकों, विवेचकों,शोधकर्ताओं,आलोचकों व रचनाकारों से एक वृहद प्रश्नावली भेजकर उनके उत्तर जानने चाहे और ईमेल तथा वाट्सएप पर लगातार उनके संपर्क में रहे। इन उत्तरों के आलोक में कह सकते हैं कि यह पुस्तक विधा हित में एक महत्वपूर्ण पुस्तक साबित होगी।

इन प्रश्नों में वे उनसे उनके अनुसार लघुकथा की परिभाषा और तत्व तो जानना चाहते ही हैं, इस विधा की अब तक की यात्रा के प्रति भी जिज्ञासु हैं। उन्हें लघुकथा के प्रति अनेक सर्जकों के बर्ताव पर चिंता भी है, तो वहीं सहज भाषा के प्रति आग्रह भी है। उनका प्रश्नांकन लघुकथा के आकार, भाषा, सतहीपन और घटनाप्रधान होने, विषयानुरूप सावधानियां, ख़ेमेबाज़ी, प्रसार-प्रभाव, कमियाँ, पुन:प्रकाशन, कालखंड दोष, रुचि परिष्कार, रचनाकार की पृष्ठभूमि व अनावश्यक प्रयोगों के प्रभाव-कुप्रभाव, रचना में लेखक की उपस्थिति, जल्दबाज़ी, लघुकथा-पठन की आवश्यकता, समकाल से विधा के संबंध, इतिहास और लघुकथा के भविष्य को लेकर भी है। 

प्रश्नों के उत्तरदाताओं ने अपने विवेक के दायरे में प्रश्नकर्ता की जिज्ञासाओं, उलझनों और प्रश्नांकित स्थापनाओं का उत्तर अपनी सीमा में दिया भी है।

उदाहरण के लिए बलराम अग्रवाल, अशोक भाटिया, कांता राय, रामेश्वर कंबोज,कमल चोपड़ा,सतीश राठी,उमेश महादोषी,डॉ.पुरुषोत्तम दूबे लघुकथा में शब्द-सीमा के बंधन को अस्वीकार करते हैं, तो यह ठीक भी प्रतीत होता है। कथ्य, संवेदना और शिल्प उनकी दृष्टि में शब्द सीमा से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। बलराम अग्रवाल को कथ्य की सतह पर ठहर जाना ठीक नहीं लगता। वह अकादमिक क्षेत्रों से अधिक लघुकथा के प्रति समर्पित लोगों के लघुकथा विमर्श को फिलहाल उल्लेखनीय मानते हैं। लघुकथा के इतिहास के साथ ही उसके विकास-क्रम पर भी उनकी पैनी नज़र बनी रहती है। प्रारंभिक लघुकथाओं की उनके द्वारा दी गई सूची आश्वस्तिकारक है।

लेखन को सामाजिक कर्म मानने वाले अशोक भाटिया साहित्य द्वारा लेखक को भी रचे जाने की ज़रूरी बात की ओर संकेत करते दीखते हैं तो बेहतर रचनाओं तक पहुंच न होने को भी रेखांकित करते हैं। वे सतही लेखन को प्रोत्साहित न करने पर ज़ोर देते हैं क्योंकि उसी के कारण गंभीर लघुकथा की धारा उभर नहीं पाती। वे अच्छी आलोचना के लिए समृद्ध रचना-संसार की ज़रूरत पर बल देते हैं तो आलोचना से यह अपेक्षा भी रखते हैं कि वह अच्छी रचना की सराहना करे। गुटबाज़ी और निजी स्वार्थ को वे इस विधा के लिए हानिकारक ठीक ही समझते हैं। उनकी दृष्टि में स्वस्थ वातावरण ज़रूरी है। और वे मानते हैं-वह बनेगा समावेशी भाव से किए गए काम से।

श्यामसुंदर दीप्ति ने लघुकथा लेखन में प्रयोग को महत्वपूर्ण माना है। सृजन में उन्हें रचनाकार का रचना पर हुआ श्रम देखने की ललक है। पठन-पाठन को वे तरजीह देते हैं। रचना के मूल भाव तत्व वे सत्य और शिव को मानते हैं। रचना और आलोचना के कार्य क्षेत्र उनकी दृष्टि में ठीक ही अलग-अलग हैं।

कांता राॅय लघुकथा को सतही होने से बचाने की रचनात्मक राह सुझाती हैं और मनन पर ज़ोर देती हैं। मिलजुल कर समावेशी भाव से काम करना उन्हें भाता है। विधा के विकास में वे साथी बनाने पर यकीन रखती हैं, शिष्य नहीं।

सुकेश साहनी का यह कहना सही है कि कथ्य के संप्रेषण को बाधित होने से बचाना आवश्यक है। वे पढ़ने पर बल देते हैं और कथ्य के दोहराव से बचने को कहते हैं। सकारात्मक उद्देश्य उनके लिए महत्वपूर्ण है। वे टार्गेट रीडरशिप को समझने की ज़रूरत पर जोर देते हैं और कहते हैं कि पाठकों में आम व खास दोनों किस्म के लोग रहते हैं। सहज संवाद करने वाली लघुकथा उन्हें पसंद आती है।

रामेश्वर कम्बोज अच्छी लघुकथा को पाठक के हृदय में रहने वाली बताते हैं। कालखंड दोष उनकी दृष्टि में बेमानी है। वे रचना की शक्ति पर भरोसा करते दीखते हैं।

भगीरथ परिहार की मान्यता ठीक लगती है कि लघुकथाकारों को जीवन के हर क्षेत्र पर रचनाएं देनी चाहिए। वे ठीक ही अनुवाद के माध्यम से इस विधा के प्रसार का मार्ग प्रशस्त होते देखना चाहते हैं।

संतोष सुपेकर अब लघुकथा को नए कलेवर- फ्लेवर के साथ- साथ नए तौर- तरीके अपनाते हुए अद्यतन सोच के साथ आगे बढ़ते रहने की बात कहते हैं l सम्भवतः वे विषयों के दोहराव और एकरसता को छोड़ने की बात कह रहे हैं l 

प्रबोध गोविल विधा को मजबूती प्रदान करने वाले लघुकथाकारों की जरूरत को रेखांकित करते हैं। रचना की सार्थकता उनके लिए महत्व की चीज़ है। अंतरा करवड़े की दृष्टि में आत्मयात्रा रचना के लिए आवश्यक है।

लघुकथा संप्रति एक विकासशील विधा है। इस पर रचना, आलोचना और इतिहास की दृष्टि से गंभीर अध्ययन की दरकार है। इस पुस्तक की विचार-भूमि का आधार भी यही प्रतीत होता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यहाँ प्रकाशित अनेक रचनाकारों, लघुकथा इतिहासकारों, सौंदर्यशास्त्रियों, आलोचकों, संपादकों और शोधकर्ताओं के विचार मिलकर एक दिशा दे सकेंगे। आज जबकि हिन्दी लघुकथा पत्र-पत्रिकाओं एवं प्रसार माध्यमों के जरिए अपनी पहुंच और प्रभाव बनाकर मुख्यधारा के साहित्य में सम्मानित स्थान बनाने की प्रक्रिया में नज़र आ रही है, देश-विदेश के पाठ्यक्रमों और शोधार्थियों को आकर्षित कर रही है, उसके सौंदर्य शास्त्र पर काम हो रहा है, स्वतन्त्र गद्य विधा के रूप में विश्वविद्यालय के कोर्स में पठन -हेतु सम्मिलित हो रही है,विविध भाषाओं में अनूदित होकर सम्मान पा रही है, तब लघुकथा से जुड़े साहित्य समाज का यह दायित्व और बड़ा हो जाता है कि वे इस विधा के प्रति समर्पण के साथ ही विवेकपूर्ण आलोचनात्मक रुख भी अख्तियार करें।

अनुक्रमणिका

1. डॉ. अशोक भाटिया

2. अंतरा करवड़े

3. डॉ. उमेश महादोषी

4. डॉ. कमल चोपड़ा

5. कांता रॉय

6. डॉ. कुमार सम्भव जोशी

7. डॉ. खेमकरण सोमन

8. डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

9. डॉ. पुरुषोत्तम दूबे

10. प्रताप सिंह सोढ़ी

11. प्रबोध कुमार गोविल

12. डॉ. बलराम अग्रवाल

13. बी.एल आच्छा

14. भगीरथ परिहार

15. माधव नागदा

16. डॉ. रामकुमार घोटड़

17. रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

18. प्रो. रूप देवगुण

19. सतीश राठी

20. सिद्धेश्वर

21. सुकेश साहनी

22. सूर्यकांत नागर

23. संतोष सुपेकर

24. डॉ. श्याम सुन्दर 'दीप्ति'

25. डॉ. शील कौशिक

नेतराम भारती

शिक्षा : बी.ए. (हिंदी), एम.ए. (हिंदी), दिल्ली विश्वविद्यालय, बी.एड. (हिंदी) महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, रोहतक, हरियाणा।

मूल निवासी : दौसा, राजस्थान

वर्तमान पताः राजनगर एक्सटेंशन, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश-201017

लेखन : सन 1992 से गद्य-पद्य दोनों विधाओं में समान अधिकार के साथ अनवरत।

प्रकाशित पुस्तकें : अँधेरों में परछाइयाँ (गजल संग्रह), अपराजिता (उपन्यास), ब्रीफकेस (लघुकथा संग्रह, पुरस्कृत), उड़न-तस्तरी (लघुकथा-संग्रह) सभी अयन प्रकाशन, दिल्ली। 'लघुकथा चिन्तन और चुनौतियाँ' (आलोचना), मुक्तक शतक (साझा मुक्तक संग्रह), हाल-ए-वबा (साझा गज़ल संग्रह), गीतिका गौरव (साझा गीतिका संग्रह)।

पुरस्कार/सम्मान : देश के प्रतिष्ठित नामी-गिरामी साहित्यिक प्रतिष्ठानों व संस्थाओं से सौ से अधिक सम्मान से सम्मानित तथा पुरस्कृत। जिनमें उल्लेखनीय हैं- 'डॉ. सतीश दूबे स्मृति सम्मान' (क्षितिज, इंदौर, मध्यप्रदेश), 'लघुकथा सेवी सम्मान' (हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच, सिरसा, हरियाणा), 'लघुकथा रत्न' (लघुकथालोक, लखनऊ), 'मुंशी प्रेमचंद सम्मान' (वर्तमान अंकुर, नोएडा), 'लघुकथा श्री' (लघुकथा शोध केंद्र, भोपाल), 'स्वर्ण कलम लेखक सम्मान' (नई दिल्ली), 'कथा शिल्पी सम्मान' 'कहानी कला मंच', (गुरुग्राम हरियाणा), 'गाँधी शांति सम्मान', 'छंद श्री', 'गीत श्री', 'मुक्तक श्री', 'गीतिका श्री', 'वाग्देवी हिंदी सेवी सम्मान' (मुक्तकलोक, लखनऊ), 'उत्तर प्रदेश आर्य चिंतक सम्मान' (साहित्य संगम संस्थान), 'सर्वोत्तम रचना सम्मान' (तार शतक, भीलवाड़ा, राजस्थान), 'कमल शब्द रत्न', 'सर्वश्रेष्ठ लेखक सम्मान' (कथा दर्पण साहित्य मंच, इंदौर, मध्यप्रदेश), 'दोहा भूषण', 'दोहा धुरंधर सम्मान' (प्रयागराज, उत्तर प्रदेश), 'उत्तर प्रदेश काव्य गौरव सम्मान', 'मुक्तकमणि' (सृजन सरोवर, झारखंड) आदि आदि।

अप्रकाशित साहित्य : सौ से अधिक नुक्कड़ नाटकों का लेखन-निर्देशन। दिल्ली दूरदर्शन पर दो बार प्रसारित, आठ नृत्य नाटिकाएं लेखन व निर्देशन, देश के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय व क्षेत्रीय पत्र-पत्रिकाओं में काव्य और लघुकथाओं, कहानियों और पुस्तक समीक्षाओं का अनवरत प्रकाशन जारी, दो बार डी.ए.वी. स्कूल में 'बेस्ट टीचर अवार्ड', दो कहानियों का नाट्य रूपांतरण कर ऑनलाइन मंचन ('बहू की विदा' ईश्वर सिंह) और 'बूढ़ी काकी' (प्रेमचंद), 'यूट्यूब पर सुस्थापित यू ट्यूब चौनल का नाम-'The rachyita' नए-पुराने लेखकों की लघुकथाओं व कहानियों का वाचन जारी।

संप्रति : हिंदी शिक्षक, डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल, नई दिल्ली।

मोबाइल नं. : 9871579114

E-mail: netram10@gmail.com


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