आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र रचनावली,भाग-1/डाॅ. ऋचा शर्मा (सं.)

आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र रचनावली, भाग-1 (लघुकथाएँ-बोधकथाएँ)

संपादक : डाॅ. ऋचा शर्मा (सं.)

ISBN : 978-93-9114-83-9

देवप्रभा प्रकाशन

फ्लैट नं. जी-50, ई-ब्लॉक, गौड़ होम्स, गोविन्दपुरम, गाज़ियाबाद-201013 (उ.प्र.)

दूरभाष : 08586053956

e-mail : devprabhaprakashan@gmail.com

News Portal : DEVPRABHA NEWS

Youtube Channel : काव्य गंगा

कुल पृष्ठ : 296

मूल्य : 350.00 रुपये(हार्ड बाउंड)

प्रथम संस्करण : 2024 

@ : डॉ. ऋचा शर्मा

पृष्ठ-सज्जा : भूदेव सैनी

आवरण : हिमांशु सैनी

परिचय : आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र

जन्म : 20 जनवरी, सन् 1900;  देवबंद (सहारनपुर) उत्तर प्रदेश में।

माता : श्रीमती चमेली देवी

पिता : पं. परशुराम मिश्र

देहावसान : 29 मई, सन् 1981, सहारनपुर, उ.प्र.।

हिंदी, संस्कृत तथा आयुर्वेद के प्रकांड विद्वान, स्वतंत्रता सेनानी।

प्रमुख कृतियाँः

• 'इन्दिरा'--हिंदी का प्रथम मनोवैज्ञानिक उपन्यास जो सन् 1920-21 में लिखा गया। उत्तर प्रदेश शासन से पुरस्कृत।

'और वह हार गई' हिंदी की प्रथम पुरस्कृत पॉकेट बुक।

हाथी के दाँत-'हाथी के दाँत' समाज पर व्यंग्य है, यह 'लघु उपन्यास' आधुनिक उपन्यास कला का सफल उदाहरण कहा गया।

सीमा के पार-यह लघु उपन्यास है, उसमें मनोवैज्ञानिक आधार पर कथानक का निर्माण किया गया है।

दुर्बल के पाँव--उपन्यास ।

कहानियाँ तथा लघुकथाएँ :

'धूपदीप', 'मौत की खोज', 'मिट्टी के आदमी', पंचतत्व, खाली भरे हाथ, ऐतिहासिक लघुकथाएँ और 'जय-पराजय' कहानी, बोधकथा एवं लघुकथा संग्रह हैं। एकांकी-सम्राट डॉ. रामकुमार वर्मा के शब्दों में 'आचार्य जी की लघुकथाएँ खलील जिब्रान और रवीद्रनाथ टैगोर की टक्कर की हैं।'

लघु-नाटकः

• 'देवदूत, 'धर्मयुद्ध' तथा 'मरुस्थली के पहरेदार' लघु-नाटक राष्ट्रीय गौरव की महत्ता पर आधारित हैं।

Earth in man--('खाली भरे हाथ' का अंग्रेजी अनुवाद)

उपन्यास, कहानी, बोधकथा, लघुकथा, लघु-नाटक, एकांकी, पौराणिक एकांकी आदि अनेक विधाओं में मिश्र जी की लेखनी समान रूप से चली है।

आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र जी की लघुकथाओं के पुनर्पाठ की आवश्यकता

लघुकथा के जनक आचार्य जगदीश चन्द्र मिश्र का जन्म 20 जनवरी सन् 1900 को देवबंद (सहारनपुर) में हुआ था। बचपन में ही इनकी माँ श्रीमती चमेली देवी का देहांत हो गया था। इनका पालन-पोषण देवबन्द में इनके मामा पं.ज्योतिप्रसाद मुख्तार के यहाँ हुआ अतः यह पिता पं. परशुराम मिश्र के स्नेह से वंचित रहे। देश के प्रमुख शिक्षा केंद्रों हरिद्वार, ऋषिकेश तथा काशी में इन्होंने शिक्षा प्राप्त की। गहन अध्ययनशीलता तथा अध्यवसाय से अपने समय के श्रेष्ठ आयुर्वेद चिकित्सक, संस्कृत के प्रकांड विद्वान तथा हिंदी के रचनाकार के रूप में इन्होंने ख्याति प्राप्त की। बहुत कम उम्र में ही इनका विवाह हो गया था, इनके जीवन-संघर्ष में इनकी पत्नी श्रीमती ब्रह्मादेवी की मूक साधना शामिल है। इनके पाँच पुत्र--वैद्य शरदकुमार मिश्र 'शरद', शशिकुमार मिश्र, विजय कुमार शर्मा, प्रो. कृष्णकुमार शर्मा, डॉ. राजकुमार शर्मा, सभी शिक्षा, साहित्य तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रसिद्ध रहे हैं। तीन पुत्रियाँ थीं-विद्या, सरला और विमला। परिवार की आजीविका के लिए इन्होंने आयुर्वेद-चिकित्सक का कार्य किया। पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए यह साहित्य-रचना करते रहे परंतु इनकी कृतियाँ यथा समय प्रकाशित न हो सकीं।

मिश्र जी बहुत ही सरल स्वभाव के थे। आत्म-प्रचार से दूर, शांत भाव से अपने लेखन कार्य में लगे रहते थे। इनके सरल स्वभाव के कारण प्रयागराज (इलाहाबाद) में रहते समय श्री गणेशशंकर विद्यार्थी, डॉ. सम्पूर्णानंद, महाकवि निराला, डॉ. रामकुमार वर्मा, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, श्रीनारायण चतुर्वेदी आदि से इनका घनिष्ठ परिचय था। डॉ. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय ने (वार्षिक अधिवेशन देहरादून, स्मारिका) मिश्र जी के विषय में लिखा है--'सच तो यह है कि आचार्य जी के व्यक्तित्व और उनके साहित्य में कोई अलगाव दृष्टिगोचर नहीं होता। यही कारण है कि उनके साहित्य में सच्चाई झलकती है और वह पाठक के मन पर अपना प्रभाव छोड़ता है।'

आचार्य जगदीश चन्द्र मिश्र जी का रचनाकाल सन् 1919 से 1975-80 तक का रहा। 'धूपदीप' संग्रह (संवत् 2003 (सन् 1946) की कहानियाँ सन् 1925 से 1935 के मध्य लिखी गईं पर प्रकाशित न हो सकीं। 'जय-पराजय' (प्रथम संस्करण-1956) की रचनाएँ सन् 1921 के आसपास की लिखी हुई हैं। अपने प्रिय मित्र गणेश शंकर विद्यार्थी के देहांत के बाद कुछ वर्षों के लिए उनकी लेखनी थम गई परंतु पराधीन भारत, समाज की चिंता, स्वतंत्रता सेनानियों का संघर्ष आदि इन्हें बेचैन कर रहे थे। सन् 1950 के आस-पास इन्होंने फिर से लिखना शुरू किया। लेखन के साथ मिश्र जी राजनीति में सक्रिय रहे तथा स्वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़े रहे।

अपने चाचाजी श्री कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' के यह प्रेरणास्रोत थे। कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' इनकी प्रतिभा के कायल थे। 'धूपदीप' की भूमिका में 'प्रभाकर' जी ने लिखा है--'जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के एक आलोचक ने कहा था कि शॉ ने अपना मूल्य समझा और तब स्वयं ही उसने उसे संसार को समझाया। जगदीश जी के संबंध में यही बात यूँ कही जा सकती है कि उन्होंने अपना मूल्य नहीं समझा और संसार ने भी उन्हें ना समझने में पूरी तरह उनका साथ दिया।'

आचार्य जगदीश चन्द्र मिश्र जी की 'बूढ़ा व्यापारी' (सन् 1919) लघुकथा की गणना पहली लघुकथा के रूप में होती है। मिश्र जी मूलत: कथाकार थे। इन्होंने लगभग चालीस पुस्तकें लिखीं, जिनमें उपन्यास, लघु-उपन्यास, कहानियाँ, लघुकथाएँ, बोधकथाएँ, लघुनाटक, एकांकी आदि हैं। आचार्य जी ने अपना प्रथम उपन्यास 'इन्दिरा' सन् 1920-21 में लिखा था। मिश्र जी ने सन् 1919-20 में दो लघुकथाएँ 'अग्निमित्र की प्रेम-परीक्षा' तथा गाँधी जी पर आधारित 'बूढ़ा व्यापारी' लिखी। ये दोनों लघुकथाएँ गढ़वाल से प्रकाशित होनेवाले पत्र 'गढ़देश' में छपीं। 'धूपदीप', 'मौत की खोज' और 'जय-पराजय' इनके कहानी एवं लघुकथा-संग्रह हैं--'मिट्टी के आदमी' व्यंग्यात्मक लघुकथाओं का संग्रह है, जो उत्तर प्रदेश शासन द्वारा पुरस्कृत हुआ। 'पंचतत्व' में भावात्मक, सामाजिक, ऐतिहासिक लघुकथाएँ, लघु-लोककथाएँ तथा लघु-बोध कथाएँ संग्रहीत हैं।

मिश्र जी के साहित्य को प्रकाशित कराने का कार्य इनके पुत्रों ने किया। इनके सबसे बड़े पुत्र शरदकुमार मिश्र 'शरद' ने (संपादक-जागरण साप्ताहिक, सहारनपुर) 'जागरण' में मिश्र जी की लघुकथाएँ तथा बोकथाएँ प्रकाशित कीं तथा मिश्र जी के साहित्य पर 'जागरण' के अनेक विशेषांक भी प्रकाशित किए। प्रो. कृष्णकुमार शर्मा ने भी अपने पिताजी के साहित्य के संदर्भ में अनेक विचारात्मक लेख लिखे। सबसे छोटे पुत्र डॉ. राजकुमार शर्मा 'त्रिवेणी प्रकाशन' इलाहाबाद से 'त्रिवेणी पुस्तक माला' के अंतर्गत सन् 1950 से लेकर अनेक वर्षों तक मिश्र जी की कृतियों को प्रकाशित करवाते रहे। उस समय 'त्रिवेणी प्रकाशन' से प्रकाशित पुस्तकें भारत देश के सभी सरकारी ग्रंथालयों में भेजी जाती थीं। एक समय ऐसा भी आया जब प्रकाशन कार्य उनकी सामर्थ्य के बाहर हो गया, उसके बाद की मिश्र जी की रचनाएँ अप्रकाशित रह गईं।

इसी संदर्भ में एक प्रश्न मन में सहज ही आकार ले रहा है-यदि रचनाकार अपना साहित्य प्रकाशित करने में स्वयं समर्थ नहीं है तो क्या उसका साहित्य अप्रकाशित ही रह जाएगा? वह रचनाकार साहित्य जगत में उपेक्षित, अनजाना ही रहेगा? हमारे देश में प्रशासन या साहित्यिक संस्थाओं का इस संबंध में कोई दायित्व नहीं है?

मिश्र जी संस्कृत के विद्वान थे अतः उनकी भाषा पर संस्कृत का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगत होता है। रचनाकार कालातीत होता है। मिश्र जी की अनेक लघुकथाएँ कथ्य की दृष्टि से आज भी प्रासंगिक हैं। स्त्री विमर्श, राजनीतिक दाँव-पेंच, समाज में बुजुर्गों की स्थिति, पर्यावरण जैसे अनेक समसामयिक विषय इनकी लघुकथाओं में सहज ही मिल जाते हैं जो लेखक की दूरदृष्टि तथा उनकी गहन संवेदनशीलता के परिचायक हैं। भगीरथ परिहार लिखते हैं- "इनकी लघुकथाएँ 'स्त्री-पूजा', 'राज्याश्रय', 'गरीबी अमीरी' आदि आधुनिक लघुकथा की अवधारणा के अनुरूप हैं।" 'मिट्टी के आदमी' संग्रह में संकलित लघुकथा 'स्त्री पूजा' सन् 1967 में लिखी गई स्त्री विमर्श की सशक्त लघुकथा है। 'नींव के नायक' पुस्तक में 'स्त्री पूजा' के विषय में अशोक भाटिया लिखते हैं- " 'स्त्री पूजा' प्रगतिशील चेतना से युक्त स्त्री-विमर्श की लघुकथा है" (पृष्ठ 17)। इसी पुस्तक की भूमिका में वरिष्ठ साहित्यकार बलराम अग्रवाल लिखते हैं-"आचार्य मिश्र का कथाकार मन मात्र मनुष्यों की बात ही करता हो ऐसा नहीं है। वे दरअसल मानव धर्म-दर्शन, प्रकृति, इहलोक और परलोक सक के मध्य सेतु सरीखे कथाकार हैं।"

वर्तमान समय में जब लघुकथा साहित्याकाश पर पूरी तरह से छाई हुई है, आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र जी के व्यक्तित्व तथा उनकी लघुकथाओं के पाठ तथा पुनर्पाठ की आवश्यकता है। मिश्र जी की लघुकथाओं का पुनर्पाठ तत्कालीन संघर्षपूर्ण परिस्थितियों में गढ़ा गया इनका व्यक्तित्व, इनकी लघुकथाओं के शिल्प, कथ्य, शैली आदि की बारीकियों तथा इनकी लघुकथाओं की प्रासंगिकता को समझने में सहायक होगा। मेरा मत है कि रचनाकार और उसकी रचनाओं का पुनर्पाठ तथा उनकी पुनर्समीक्षा होनी चाहिए।

मेरे बाबा आचार्य जगदीश चन्द्र मिश्र जी के साहित्य को पुनर्प्रकाशित कराने की प्रेरणा मेरी माता जी श्रीमती सरोज शर्मा तथा पिता जी डॉ. राजकुमार शर्मा से प्राप्त हुई। 'आचार्य जगदीश चन्द्र मिश्र रचनावली भाग-एक' में 'पंचतत्व', 'खाली भरे हाथ' तथा 'उड़ने के पंख' कृतियों का समावेश है। इस पुस्तक के लिए सामग्री संकलन करने में मेरे पिताजी वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. राजकुमार शर्मा, डॉ. सुरेंद्र शर्मा, डॉ. बलराम अग्रवाल, डॉ. रामकुमार घोटड़, संजय शर्मा, परिवारजनों तथा मित्रों का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ है, मैं आप सभी के प्रति विनम्रतापूर्वक आभार व्यक्त करती हूँ। हिंदी प्रचार संस्थाओं हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयागराज तथा महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा पुणे से भी निरंतर सहयोग प्राप्त हुआ है। देवप्रभा प्रकाशन के संचालक भाई चेतन आनंद के प्रति मैं आभारी हूँ जिन्होंने बड़े ही आदर भाव से इस पुस्तक को प्रकाशित किया। प्रूफ पढ़ने में चेतन रवेलिया ने सहायता की है, वह भी धन्यवाद के पात्र हैं। विद्वानों, लघुकथाकारों तथा पाठकों के लिए 'आचार्य जगदीश चन्द्र मिश्र रचनावली भाग-एक' सादर प्रस्तुत है।

-प्रो. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष, हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज अहमदनगर महाराष्ट्र, भारत

रचना अनुक्रम 

संकलित पुस्तक                    पृष्ठ संख्या

1- पंचतत्व                            31-182

2- खाली-भरे हाथ                183-237

3-उड़ने के पंख                     238-295

संक्षिप्त परिचय : डॉ. ऋचा शर्मा

जन्मस्थान : प्रयागराज (इलाहाबाद)

शिक्षा : एम. ए. (हिंदी तथा संस्कृत), पीएच. डी. इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज 

प्रोफेसर तथा अध्यक्ष : हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर (महाराष्ट्र)

अनुवाद पदविका : सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ, पुणे

अध्यापन अनुभव : 29 वर्ष, आबासाहेब गरवारे कॉलेज, पुणे, हिंदी विभाग, सावित्रीबाई फुले पुणे, विद्यापीठ पुणे, सन् 1999 से अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर महाराष्ट्र

शोध निर्देशक : 1. सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ : पुणे

हिंदी अध्ययन मंडल सदस्य : 1. हिंदी विभाग, सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ, पुणे, 2. मॉर्डन कॉलेज, पुणे, 3. खालसा कॉलेज, मुंबई, तीन लघुशोध प्रकल्प (यूजीसी)

प्रकाशित साहित्य : 1. लघुकथा संग्रह आ अब लौट चलें, 2. काव्य संग्रह: गुलदस्तों की संस्कृति, द्रौपदी क्यों बँटी तुम?. 3. समीक्षात्मक मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासः एक अनुशीलन, हिंदी पत्रकारिता कल और आज, वैश्वीकरण के आईने में हिंदी पत्रकारिता, 4. सहसंपादक: राष्ट्रवाणी, महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे, 5. अनेक पुस्तकों तथा पाठ्यपुस्तकों का संपादन, सह-लेखन (सीताशक्ति काव्य), लगभग 50 शोध आलेखों का प्रकाशन, अनुवाद कार्य. 6. हंस, अक्षरा, साक्षात्कार, वागर्थ, वीणा, राष्ट्रवाणी, गुंजन, अनुशीलन, भाषा, संरचना आदि अनेक साहित्यिक पत्रिकाओं में लेख तथा लघुकथाएं प्रकाशित, 7. ई अभिव्यक्ति ब्लॉग साइट पर लघुकथाओं का प्रकाशन।

पुरस्कार / सम्मान : 1. बोल्ट एवार्ड : एअर इंडिया द्वारा 'सर्वश्रेष्ठ शिक्षक' पुरस्कार 2006 नागपुर, 2. साहित्य महोपाध्याय : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, 9, 10 मई 2010. आगरा में प्राप्त, 3. महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी मुंबई द्वारा वर्ष 2013: 14 का 'विधा पुरस्कार' प्राप्त, 4. महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा पुणे द्वारा 'आदर्श शिक्षक पुरस्कार' प्राप्त : 2016, 5. स्नेहालय, अहमदनगर द्वारा 'साहित्ययात्री सम्मान' 5, जनवरी सन् 2019 में प्राप्त, 6. उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा 'वैश्वीकरण और हिंदी पत्रकारिता' पुस्तक पर 'धर्मवीर भारती पुरस्कार' प्राप्त, सन् 2020, 7. लघुकथा शोध केंद्र, भोपाल द्वारा 'आ अब लौट चलें' लघुकथा संग्रह पर 'विक्रम सोनी पुरस्कार' प्राप्त, सन् 2022, 8. महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा पुणे द्वारा 'हिंदी सेवा के लिए' वर्ष 2022 में सम्मान पत्र प्रदान किया गया।

साहित्यिक तथा हिंदी प्रचार संस्थाओं से संबंद्ध : 1. महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे की हिंदी प्रचार-प्रसार की गतिविधियों में सहभागिता, 2. केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली: मार्गदर्शक साहित्यकार तथा समन्वयक : नवलेखक शिविर, 3. हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, 4. पुनरुत्थान विद्यापीठ, गुजरात के लिए पुस्तकें लिखीं, 5. संस्थापक 'हिंदी सृजन सभा'। इसके द्वारा अहमदनगर में साहित्यिक तथा सामाजिक गतिविधियों का आयोजन। संयोजक लघुकथा शोध केंद्र अहमदनगर महाराष्ट्र (भोपाल केंद्र की शाखा) 6. इलाहाबाद, लखनऊ, राजकोट, दिल्ली, पुणे, अहमदनगर आकाशवाणी केंद्रों से कविताएँ, वार्ताएँ, लघुकथाएँ आदि प्रसारित, 7. महिला सशक्तिकरण पर विभिन्न सामाजिक संस्थाओं में व्याख्यान दिए हैं।

मोबाईल : 09370288414

Email: : richasharma1168@gmail.com

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