लघुकथा के विविध आयाम / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

लघुकथा के विविध आयाम : कथ्य और शिल्प 

लेखक : रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

ISBN 978-81-969712-6-7

पहला संस्करण : 2024 (शक 1945)

© लेखकाधीन

Laghukatha Ke vividh aayam : kathya aur shilp (Hindi Original)

₹ 310.00

पी. पी. पब्लिशिंग प्रा. लि. भारत 

3/186 राजेंद्र नगर, सेक्टर-2, साहिबाबाद, गाजियाबाद 201005 द्वारा प्रकाशित । 

टाईपसेटिंग - नूतन ग्राफिक्स, साहिबाबाद 

आमुख पृष्ठ - नरेंद्र त्यागी

www.pppublishingindia.press

अनुक्रम

भूमिका

1. लघुकथा के विविध आयाम (विमर्श)

2. कथ्य एवं शिल्प : सन्दर्भित लघुकथाकार


1. अनिता ललित

2. अपराजिता जग्गी

3. अरुण अभिषेक

4. अर्चना राय

5. डॉ. अशोक भाटिया

6. आनन्द हर्षल

7. डॉ. उपमा शर्मा

8. डॉ. उपेन्द्र प्रसाद राय

9. डॉ. उमेश महादोषी

10. उर्मि कृष्ण

11. डॉ. उषा लाल

12. ऋता शेखर 'मधु'

13. कपिल शास्त्रीव

14. कमल कपूर

15. डॉ. कमल चोपड़ा

16. कमलेश भारतीय

17. डॉ. कविता भट्ट

18. कृष्णा वर्मा

19. चन्द्रेश कुमार छतलानी

20. चित्रेश

21. डॉ. जेन्नी शबनम

22. ज्ञानदेव मुकेश

23. निर्देश निधि

24. पवन जैन

25. प्रियंका गुप्ता

26. प्रेम गुप्ता मानी

27. डॉ. बलराम अग्रवाल

28. भावना सक्सैना

29. डॉ. मधु सन्धु

30. महेश शर्मा

31. मीनू खरे

32. मृणाल आशुतोष

33. योगराज प्रभाकर

34. रतन चंद 'रत्नेश'

35. रमेश गौतम

36. रामकरन

37. रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

38. शशि पाधा

39. शशि बंसल

40. डॉ. श्याम सुन्दर 'दीप्ति'

41. डॉ. सतीशराज पुष्करणा

42. सत्या शर्मा

43. सविता मिश्रा 'अक्षजा'

44. सारिका भूषण

45. सीमा वर्मा

46. सीमा सिंह

47. सुकेश साहनी

48. सुदर्शन रत्नाकर

49. सुभाष नीरव

50. सुरेश सौरभ

51. डॉ. सुषमा गुप्ता

52. सूर्यकान्त नागर

53. हरभगवान चावला

भूमिका

सहृदय पाठकों से संवाद

लघुकथा के विविध आयाम (कथ्य एवं शिल्प), लघुकथाओं में सामाजिक सरोकार (विमर्श एवं सूजन) की दूसरी शृंखला के रूप में प्रस्तुत है। इस शृंखला का उद्देश्य है, लघुकथा में अनवरत हो रहे कार्य से सहृदय पाठकों को जोड़ना। संक्रमण काल के इस दौर में नवीनता, परिवर्तन और विकास के रूप में कुछ ऐसी अपरिहार्य स्थितियाँ भी हमारे सामने हैं, जिनके सदा वांछित परिणाम नहीं हो सकते। विकास की अन्धी दौड़ हमारे प्राकृतिक संसाधनों को छीन रही है। भरपूर साधनों के होने पर भी, वह सुख या भाव हमारे मन से कोसों दूर है, जो भौतिक अभावों के होते हुए भी हमारे पास था।

हमारे आत्मीय सम्बन्ध पता नहीं कहाँ बिला गए हैं। अपनों से दूरियाँ बढ़ती चली जा रही हैं। रोटी- रोज़ी के जुगाड़ में हम अपनों से ही नहीं, अपने से भी दूर होते जा रहे हैं। अहमन्यता के कारण हम अपने ही कवच में क़ैद होकर रह गए हैं। धनार्जन की हड़क से निकटम सम्बन्ध भी प्रभावित हुए हैं। अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए किसी का चरित्र हनन भी करना पड़े, तो इसे अनैतिक न मानना, हद दर्जे की क्रूरता है। जो इंसान एक ॥ दूसरे के साथ प्रेमपूर्वक रह सकता था, साम्प्रदायिकता और संकीर्णता के अंधत्व ने उसको विवेकशून्य तो बनाया ही, दिग्भ्रमित भी किया है। इतना विस्फोटक परिवर्तन होने पर भी लघुकथाकार के हृदय में एक सरस कोना है, जहाँ रचनात्मकता की सुरभि से सिक्त नए-पुराने लेखकों की लघुकथाएँ हमें आश्वस्त करती हैं।

स्थापित और नवोदित सभी लेखकों ने कथ्य और शिल्प के रूपाकर पर ध्यान दिया है। कुछ ने केवल गिनी-चुनी लघुकथाएँ रची हैं, लेकिन अपनी रचनाधर्मिता के कारण पाठकों को प्रभावित किया है। 'सहज पके, सो मीठा होय' अर्थात् कथ्य को सहज रूप में परिपक्व होने दिया जाए एवं शिल्प का अधिकतम परिमार्जन किया जाए। छपास के उतावलेपन में किसी लघुकथा को गर्दनियाँ देना, अधीर रचनाकार की प्रवृत्ति हो सकती है, जागरूक रचनाकार की नहीं।

विभिन्न शैलियों का लघुकथा में व्यवहार करना शुभ संकेत है; लेकिन प्रयोग से पहले उस शैली की विशेषताएँ एवं शास्त्रीय पक्ष की जानकारी होनी चाहिए। भेड़ियाधसान की प्रवृत्ति से बचना चहिए। सम्पादन के समय कुछ भाषिक अवरोध भी आए, जिनका उल्लेख करना आवश्यक है। उदाहरणार्थ-अलग-अलग व्यक्तियों के संवाद, अलग पंक्ति से शुरू होने चाहिए। यदि कोई संवाद आधी पंक्ति तक सीमित है, तो उसके तुरन्त बाद दूसरे व्यक्ति का संवाद लिखने से कथ्य उलझ जाता है। उद्धरण चिह्नों को वाक्य के आदि या अन्त में बिना किसी अन्तराल (स्पेस) के जोड़ना चाहिए। जितने भी विराम चिह्न हैं (अल्पविराम, अर्धविराम, पूर्णविराम, आश्चर्यसूचक, प्रश्नसूचक आदि), वे वाक्य/ उपवाक्य / शब्द के अन्त में बिना अन्तराल के लगाए जाएँ। विराम के बाद एक अन्तराल दिया जाए। ऐसा न करने पर, जब कोई सामग्री प्रकाशन के लिए किसी फ़ोण्ट में तैयार की जाती है, तो फोण्ट परिवर्तन के बाद त्रुटियों की भरमार हो जाती है। कुछ लेखक यूनिकोड में पूर्णविराम कैपिटल आई, स्माल एस (I, 1 या बड़े कोष्ठक के सामने वाले | इस चिह्न) का प्रयोग करते हैं। फ़ोण्ट बदलने पर इनके स्थान पर क्रमशः प्, स और द्य बन जाते हैं। कई हज़ार पूर्ण विराम ठीक करने में कितनी असुविधा होगी! में, मैं, हैं के स्थान पर मे, मै, है लिखने वाले भी हैं। वर्तनी की शुद्धता पर ध्यान देना अनिवार्य है।

आशा करता हूँ मेरा यह छोटा-सा प्रयास आपको पसन्द आएगा।

रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

14 जनवरी 2024

रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'


जन्म: 19 मार्च, 1949, हरिपुर, जिला-सहारनपुर शिक्षा : एम. ए. बी. एड्.

प्रकाशित रचनाएँ: माटी-पानी और हवा, अँजुरी भर आसीस, कुकहूँ कूँ, हुआ सवेरा, मैं घर लौटा, तुम सर्दी की धूप, बनजारा मन, साँझ हो गई, दूधिया धूप, भोर के अधर, मैं लहर तुम्हारी (काव्य-संग्रह), तुम हो मुझमें (नवगीत-संग्रह), मेरे सात जनम, माटी की नाव, बन्द कर लो द्वार (हाइकु-संग्रह), मिले किनारे (ताँका और चोका संग्रह संयुक्त रूप से डॉ हरदीप सन्धु के साथ), झरे हरसिंगार (ताँका-संग्रह), तीसरा पहर (ताँका, सेदोका, चोका), पंच पल्लव (हाइकु, सेदोका, ताँका, माहिया, क्षणिका), धरती के आँसू (उपन्यास), दीपा, दूसरा सवेरा (लघु उपन्यास), असभ्य नगर (लघुकथा-संग्रह-उड़िया में अनुवाद भी), खूँटी पर टँगी आत्मा (व्यंग्य- संग्रह), भाषा-चन्द्रिका (व्याकरण), लघुकथा का वर्तमान परिदृश्य (लघुकथा -समालोचना), सह-अनुभूति एवं काव्य-शिल्प (काव्य-समालोचना), हाइकु आदि काव्य-धारा (जापानी काव्यविधाओं की समालोचना), छन्द- विधान एवं सृजन, गद्य की विभिन्न विधाएँ (रचनात्मक लेखन), लघुकथाओं में सामाजिक सरोकार (विमर्श एवं सृजन), फुलिया और मुनिया (बालकथा हिन्दी और अंग्रेज़ी), राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा हरियाली और पानी (बालकथा) का नौ बोली-भाषा में अनुवाद झरना, सोनमछरिया, कुआँ (पोस्टर बाल कविताएँ), रोचक बाल कथाएँ। लोकल कवि का चक्कर (2005 में आकाशवाणी जबलपुर से नाटक का प्रसारण) । 'ऊँचाई' लघुकथा पर हिन्दी और पंजाबी में लघु फ़िल्म। नेपाली, पंजाबी, अंग्रेज़ी, उर्दू, मराठी, गुजराती, संस्कृत, बांग्ला, उड़िया में अनूदित कुछ रचनाएँ।

अन्यः एम. फिल. मेरे सात जनम (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से राजेश ढल द्वारा), असभ्य नगर एवं अन्य लघुकथाएँः विविध आयाम (उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, विश्वविद्यालय विभाग, द.हि.प्र.स. मद्रास से कविता सालोदिया द्वारा), मोनिका बहन कान्तिभाई प्रजापति (सरदार पटेल विश्वविद्यालय वल्लभ विद्यानगर- गुजरात)

अनुवादः राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के लिए 2 पुस्तकों का अंग्रेज़ी से हिन्दी में ।

सम्पादन : 42 सम्पादित पुस्तकें।

laghukatha.com, www.hindihaiku.wordpress.com तथा 

http://www.trivenii.com के सहयोगी सम्पादक । हिन्दी चेतना के सम्पादक।

प्रसारण: रेडियो सीलोन, आकाशवाणी गुवाहाटी, रामपुर, नज़ीबाबाद, अम्बिकापुर एवं जबलपुर, दूरदर्शन हिसार, टैग टी.वी. और सी. एन. (कैनेडा) से।

सम्प्रतिः केन्द्रीय विद्यालय के प्राचार्य-पद से सेवानिवृत्त।

टिप्पणियाँ

  1. पुस्तक लघुकथा के विविध आयाम : कथ्य और शिल्प में लेखक ने वर्तमान में लिखे जा रहे लघुकथाओं पर सटीक टिप्पणी करते हुए बहुत ही सटीक और सीधे शब्दों में कहा है कि लघुकथाकार को कोई भी
    प्रयोग से पहले उस शैली की विशेषताएँ एवं शास्त्रीय पक्ष की जानकारी होनी चाहिए। भेड़ियाधसान की प्रवृत्ति से बचना चहिए।
    नए रचनाकरों के लिए यह पुस्तक मार्गदर्शन का काम करेगी l
    लेखक को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ l

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