बॉस का डिनर (लघुकथा संग्रह) / डाॅ. महेन्द्र कुमार ठाकुर
बॉस का डिनर (लघुकथा संग्रह)
डाॅ. महेन्द्र कुमार ठाकुर
ISBN: 978-81-970626-3-6
प्रथम संस्करण : 2024
प्रकाशक : अद्विक पब्लिकेशन 41 हसनपुर, आई. पी. एक्सटेंशन पटपड़गंज, दिल्ली 110092
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© स्वत्वाधिकार : डॉ. महेन्द्र कुमार ठाकुर
आवरण : संजय भारद्वाज
पुस्तक सज्जा : बिपिन राजभर
मूल्य : 240/-
लघुकथा का विराट संसार
लघुकथा जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह लघु कथा है। लघु अर्थात् छोटी कथा अर्थात् कहानी की कोमलता युक्त कथारस। अर्थात् लघु आकार की कथा यानी कहानी नहीं। वर्तमान में लघुकथा की यह विधा अत्यंत लोकप्रिय हो चुकी है। इसका भविष्य अत्यधिक उज्जवल है।
लघुकथा की परिभाषा जो मैंने अपने पूर्ववर्ती लघुकथा संग्रह में दी थीः-
लघु आकार का कथात्मकता से युक्त वह गद्यात्मक कथ्य जिसमें स्वयं को लघुतम आकार में अपनी विराटता को व्यक्त करने का सामर्थ्य, कथ्यानुरूप पाठकीय संवेदना को जगाने की क्षमता, विसंगतियों व सामाजिक बुराइयों पर तीक्ष्ण प्रहार करने की सामर्थ्य एवं विराट अनुभूति के दिव्यतम व्यक्तीकरण की योग्यता हो, जिसका आधार जगत व प्रकृति की चिरंतन सत्यता, उद्देश्य की शिवत्वता व प्रस्तुतिकरण की दिव्यतम सुन्दरता हो, लघुकथा है।
स्पष्ट है कि लघुकथा में व्यंग्य का होना अनिवार्य नहीं है। व्यंग्य की पैठ इस विधा में भी उसी सीमा तक है जितनी साहित्य की किसी अन्य विधा में। यह तथ्य अब सर्वमान्य हो चुका है।
लघुकथा व लघु कहानी परस्पर इतने निकट हैं कि इनमें भेद करना अत्यंत कठिन कार्य है। वस्तुतः हिन्दी में लघुकथा प्राचीन वैदिक साहित्य, पंचतंत्र, जातक कथा आदि विदेशों में शार्ट स्टोरीज के रूप में गई, वहाँ से वह पुनः परिष्कृत व परिमार्जित होकर हिन्दी में नये ही स्वरूप में आई हैं। लघुकथा का मूल बीज अंकुरण से अब तक इतिहास सैकड़ो वर्षों की यात्रा कर चुका है। बावजूद हिन्दी की लघुकथा अपनी इस ऊँचाई को अब तक प्राप्त नहीं कर सकी है जिसकी अपेक्षा एक विधा से की जाती है।
कहानी शब्द कहन से बना है। कहन से आशय कहने की क्षमता से है, जबकि कथ्य की व्युत्पति कथारस अर्थात् कथा के रस से हुई है। कहानी पुरुष है यानी जवार जबकि कथा परष है यानी कोमल। कथा में स्त्रैण गुण है। निश्चित रूप से एक सुंदर नारी किसी कठोर पुरुष की तुलना में अधिक आकर्षक होती है। कथा प्राचीन प्रचलित शब्द है. कहानी आज के संदर्भों की उपज है। कथा में कहानी का संदर्भ तत्व स्त्रीत्व के साथ अपने लघु आकार में समाहित होकर आता है तब लघु कहानी न होकर लघुकथा हो जाती है। लघुकथा का क्षेत्र सीमित है, लघुकहानी का व्यापक। लघुकथा में सर्वाधिक धनत्व है, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कविता में मुक्तक। लघुकथा में लघुकहानी की तुलना में बौद्धिकता की अपेक्षा कुछ अधिक होती है।
लघुकथा भले ही कोमल हो, पर उसकी धार उतनी ही पैनी व तीखी होती है। जिस प्रकार एक पुरुष को कोई कठोर वचन कहे तो उसका उतना व्यापक प्रभाव नहीं हो पाता है, परंतु यदि एक सुन्दर नारी किसी युवा पुरुष को कठोर वचन कहे तो उसका प्रभाव ज्यादा घातक होता है। लघुकथा की मार को यहाँ इन संदर्भों में किसी रसलोलुप युवा पुरुष को युवा नारी के कठोर वचनों की मार कहा जा सकता है। लेकिन वही नारी सीधे लट्ठ मार दे तो वह व्यंग्य या लघुकहानी ही कहा जा सकता है। शब्दों की मार तक ही हिन्दी की लघुकथा सीमित है।
लघुकथा अत्यंत महत्वपूर्ण व सर्वाधिक लोकप्रिय विधा है। इसमें साहित्य के सामाजिक दायित्व निर्वाह का जो दायित्व है वह इस विधा में उतना ही है। लघुकथा अपनी कथा की कसावट, लघु आकार व अपने कथ्य के आधार पर अपने सामाजिक दायित्व का निर्वाह अन्य विधाओं की तुलना में अधिक सक्षमता से करती है। व्यंग्य से भी अधिक। लघुकथा की यही विराटता है।
लघुकथा के विराट व सक्रिय हस्ताक्षरी कथा बलराम, बलराम अग्रवाल, जगदीश कश्यप, सतीश राज पुष्करणा, सुभाष चंदर, सतीश राठी जैसे बड़े लघुकथा लेखकों से (विस्तार मय से अन्य नामों का उल्लेख नहीं कर रहा हूँ) मेरा निवेदन है कि वे केवल लघुकथा उसके शिल्प उसके तेवर, तीखेपन, पौरुष व पुरुषता को पूरे समर्पण के साथ निखारने का प्रयास करें। उसे विधा का दर्जा दिलाने का प्रयास न करें।
जैसे कविता को साहित्य बनाकर जनता से काट दिया गया। कविता कोमा में चली गई। व्यंग्य को निखारने के चक्कर में अनेक तथाकथित व्यंग्यकार स्वयं निखर गये किन्तु व्यंग्य मृतप्राय हो गया। उसी प्रकार लघुकथा को साहित्य की विधा की मान्यता देकर उसे भी जनता से न काटें। यही लघुकथा के प्रति उनका उपकार होगा।
मेरा यह दावा है कि लघुकथा को "सर्वजन प्रिय विधा" के रूप में अवश्य ही स्वीकार किया जावेगा।
मैं अंत में लघुकथा के पुराने सक्रिय व निष्क्रिय तथा कतिपय दिवंगत लघुकथाकारों के प्रतिप्रणमय निवेदन करता हूँ जिन्होंने लघुकथा को दिव्य ऊंचाई का सिंहासन प्रदान करने में अपना समर्थ योगदान दिया। डॉ. बालेन्दु शेखर तिवारी, डॉ. शंकर पुणतांबेकर, जगदीश कश्यप, ओमप्रकाश कश्यप, विक्रम सोनी, डॉ. महेन्द्र ठाकुर, डॉ. सतीश दुबे, आदि अनेक नाम हैं जिन्होंने लघुकथा की ऊंचाई तक पहुंचाने में लघुकथा की ठोस नींव तैयार की।
मेरे दो पूर्व लघुकथा संग्रहों में कहता हूँ आंखिन देखी (1984) व इक्कीसवीं सदी का महाभारत (1997) को आपने सराहा व अपना प्रेम दिया।
इस संग्रह में मेरी अब तक की लिखी हुई कुछ चुनिन्दा लघुकथायें हैं। विश्वास है आपको यह संग्रह भी रुचिकर प्रतीत होगा।
संग्रह आपके प्रेम व आशीर्वाद व प्रतीक्षा में आपको समर्पित है।
8.1.2024। आप का अपना
डॉ. महेन्द्र कुमार ठाकुर
अनुक्रम
1. अफसर
2. दमदारी
3. गंगाजल की कसम
4. वरिष्ठ नागरिक नहीं वरिष्ठ युवा
5. बॉस का डिनर
6. संस्कारों का सुख
7. इण्डिया बनाम भारत
8. एक कट्टर ईमानदार
9. 21 वीं सदी का द्रोणाचार्य
10. एक और महाभारत
11. वन्य प्राणी संरक्षण
12. अभिशप्त पीढ़ी
13. अतिथि कौन
14. भस्मासुर और नाग
15. गैस पीड़ित
16. आज़ादी
17. संस्कार
18. संस्कृति
19. राष्ट्रीयता
20. अयोध्या
21. डाकू
22. विकास ही विकास
23. 21 वीं सदी का एकलव्य
24. आतंक के खिलाफ
25. गांधारी का संदेश
26. पराजय
27. कोरोना षड्यंत्र
28. अथ द्रोणाचार्य भारत भूमि कथा
29. भविष्य
30. व्यंग्यकार विश्वामित्र और मेनका
31. मेनका हँसी ! विश्वामित्र ! मैं और व्यंग्य ।
32. वहमपंथी/कट्टरपंथी
33. गंगाजल
34. कामर्शियल प्लाट
35. किसान और अलगाववादी षड्यंत्र
36. आज़ादी की आस
37. नर पिशाच
38. कोरोना मसिजीवी, राजनीतिजीवी
39. अन्र्तराष्ट्रीय मसिजीवी
40. रिश्ते की तलाश
41. आस्तीन का साँप
42. बड़ी मछली
43. इज्जत
44. बूढ़ी आँखों का सपना
45. शिक्षा प्रणाली
46. बलिदान
47. साक्षर
48. कार्यकुशलता
49. अपना अपना तरीका
50. मौत
51. माँ
52. ममता
53. अपना घर
54. आँसू
55. सम्मान
56. निश्चिन्तता
57. अपनी अपनी तड़प
58. गवाही
59. भूदान यज्ञ
60. संचार व्यवस्था
61. निष्ठावान
62. एक्जीक्यूटिव
63. बोतल का जिन्न
64. अजनबी
65. मुक्ति प्रमाण पत्र
66. सरकारी आदमी
67. पंद्रह अगस्त
68. हृदय परिवर्तन
69. विकलांग
70. शवयात्रा
71. लोकप्रियता
72. आशीर्वाद
73. सूंड की तलाश
74. दाग
75. दहेज
76. समझौता
77. मनोकामना
78. रक्तदान
79. लाशों का व्यापार
80. प्रजातंत्र
81. विजयी मुस्कान
82. राष्ट्रभाषा प्रेम
83. भूकंप-पीड़ित
84. तत्परता
85. मैं भी बैल हूँ
86. नेत्रदान
87. सरकारी
88. मुक्ति
89. आदर्श ग्राम
90. शरणस्थली
91. चिंतामुक्त
92. संकल्प
93. काम
94. इमेज
95. समर्पण
96. मेरा भारत महान
97. एक और धनुर्विद्या प्रतियोगिता
98. साहब की पदोन्नति
99. भरोसे की सरकार
100. निगेटिव नहीं पोजीटिव हूँ डॉक्टर
101. फास्ट बॉलर की खोज
डॉ. महेन्द्र कुमार ठाकुर
जन्म तिथि : 29.10.1949पिता : स्व. त्र्यम्बक नाथ ठाकुर
पत्नी : डॉ. माया ठाकुर
शिक्षा- एम.ए. अर्थशास्त्र, एम.ए. हिंदी (प्रावीण्य) पत्रकारिता उपाधि (प्रावीण्य) एल एल.बी, पी.एच.डी. (हिंदी)
मानद उपाधि - डी.लिट् (हिंदी) ज्योतिष महाचार्य, डॉक्टर ऑफ एस्ट्रालाजी, दैवज्ञ रत्न, ज्योतिष शास्त्रार्थ रत्न, ज्योतिष सम्राट, ज्योतिष मार्तण्ड, ज्योतिष महर्षि । काशी ज्योतिष विभूति आदि।
संप्रति - एडीशनल कमिश्नर सेल्स टैक्स (रि.), अध्यक्ष, माता कौशल्या ज्योतिष साहित्य संस्कृति शोधपीठ छत्तीसगढ़। 19/3 गीतांजली नगर, रायपुर (छ.ग.) 492007, मो. 94255-03229, संरक्षक / अध्यक्ष डॉ. माया ठाकुर फाउन्डेशन रायपुर
सम्मान- विश्व हिन्दी सम्मेलन नई दिल्ली में राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्त्राब्दी सम्मान। सांप्रदायिक सद्भावना लेखन हेतु कौमी एकता पदक (नई दिल्ली), जबलपुर में लघुकथा 'रास बिहारी पाण्डे स्मृति लघुकथा सम्मान' । अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन द्वारा 'श्रेष्ठ व्यंग्यकार सम्मान' । 2009 में मारीशस, 2017 में कार्वी थाइलैण्ड में भारत भास्कर अवार्ड (हिंदी)। 2014 में छ.ग. हिन्दी साहित्य मंडल द्वारा 'सारस्वत सम्मान'। कबीर साहित्य सम्मान। छ.ग. नवरत्न सम्मान। अखिल भारतीय मैथिल विभूति, 'मैथिल गौरव सम्मान' । ब्राम्हण अन्तर्राष्ट्रीय महासंघ द्वारा 'राष्ट्र गौरव सम्मान। अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में शताधिक बार सहभागिता। ज्योतिष के क्षेत्र में एशिया का सर्वोच्च सम्मान 'केसर रत्न' 02.02.2020, एवं पुनः दिनांक 11.12.2022 को अगरतला में दिव्य ज्योतिष रत्न एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ज्योतिष के क्षेत्र में बांगला देश व भारत में छह बार लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड । 29.10.2023 को इंदौर में क्षितिज साहित्य भूषण सम्मान, व्यंग्यम जबलपुर द्वारा सम्मान, दि. 17. 12.2023 को वाराणसी में "काशी ज्योतिष विभूति" सम्मान, दि. 21.01.2024 को 31 वें एशियन एस्ट्रोलॉजी कॉन्फ्रेंस में महर्षि जैमिनी अवार्ड जमशेदपुर झारखंड में सम्मानित । चरित्र एवं संवाद विहीन नाटक के प्रवर्तक, (विश्व स्तर पर नया प्रयोग)
प्रकाशित कृतियाँ- सुबह अवश्य आयेगी (व्यंग्य कविताएँ), मध्यकालीन स्वच्छन्तादावादी काव्य (समीक्षा), मैं कहता हूँ आंखिन देखी (लघुकथाएँ), 21 वीं सदी का महाभारत (लघुकथा), बॉस का डिनर (लघुकथा संग्रह), लाल सूरज की दस्तक (नई कविताएँ), आजादी नहीं, आज आदी हम जिसके पांच दशक से (व्यंग्य ग़ज़लें), आँखों में नमी होने के बावजूद (कविताएँ), झर गया हरसिंगार (प्रेम कविताएँ), बॉस चालीसा (व्यंग्य), एक डिप्टी कमिश्नर की डायरी (व्यंग्य उपन्यास), मेरे व्यंग्यकार होने की व्यंग्य कथा (व्यंग्य संग्रह), लाकडाउन की लव स्टोरी (व्यंग्य उपन्यास), इसके अलावा अनेक साझा संकलनों में कविताए, लघुकथा व व्यंग्य संग्रहित। एक बटे ग्याराह, मानचित्र, झितिज, आतंक, सबूत दर सबूत, इंद्रावती, आदि ।
15 अगस्त 1967 को पहला व्यंग्य व कविता नई दुनिया रायपुर में प्रकाशित तब से निरंतर प्रकाशन।
शीघ्र प्रकाश्य- नरेन्द्र मोदी-हाइकू और दोहो में, (हाइकू दोहे) तेरा तुझको सौपता (आध्यात्मिक दोहे) संविधान सर्वोपरि है, (व्यंग्य नाटकों का संग्रह) नेताजी घूंघट के सामने (व्यंग्य क्षणिकायें), इसके ऊपर भी एक अदालत है (व्यंग्य गजले), एक दिन का एडीशनल कमिश्नर (व्यंग्य उपन्यास), नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि (व्यंग्य उपन्यास) आदि।
विशेष :- 1981-82 में जगदलपुर में लघुकथा पाठ, लघुकथा चित्र प्रदर्शनी, लघुकथा पोस्टर, लघुकथा विमर्श, लघुकथा मंथन का राष्ट्रीय स्तर पर आयोजन।
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