ख्वाहिशों का आसमां / कंचन शर्मा 'कौशिका'
लघुकथा संग्रह : ख्वाहिशों का आसमां
कंचन शर्मा 'कौशिका' गुवाहाटी-असम
प्रथम संस्करण : जनवरी, 2022
ISBN: 978-93-93538-01-7
मूल्य : 251 रुपये
लेखक :
कंचन शर्मा 'कौशिका' 1-A, 1st Floor, Rishav Plaza, A.K. Azad Road, Rehabari, Guwahati-781008, Assam
सर्वाधिकार : लेखिकाधीन
प्रकाशक : गोपाल कृष्ण जायसवाल
प्रकाशन : नवनिर्माण साहित्य प्रकाशन
मुद्रक : पूर्वांचल प्रिंट्स भांगागढ़, गुवाहाटी-5
अनुक्रमणिका
1. शुभकामना संदेश
2. भूमिका
3. अपनी बात
4. स्वप्न
5. मुट्ठी भर गुलाल
6. ख्वाहिश
7. अमानत
8. रक्तदान
9. बेटी तो जिंदा है !!
10. भाग्यशाली
11. नये साल का जश्न
12. पतंग
13. प्लानिंग
14. हिसाब-किताब
15. पहला करवाचौथ
16. एजुकेटेड इंडियन
17. बेटी का रिश्ता
18. वैलेंटाइन डे
19. माँ सिर्फ माँ होती है !!
20. ठंडी-ठंडी बयार
21. रावण इतना भी बुरा न था !!!.
22. 'राजनीति वाली आपदा'
23. पूर्णविराम
24. जिम्मेदारी
25. मनोकामना
26. फर्स्ट हनीमून
27. तर्क की गहराई
28. इम्तिहान
29. मोह के बंधन
30. स्पर्श
31. माँ मैं हूँ ना !!
32. अनमोल दौलत
33. बड़े लोगों की बड़ी बात
34. गुरु दक्षिणा
35. 'अधूरा बचपन'
36. बेबसी
37. मेला.
38. मॉडर्न विचारधारा
39. हिचकी
40. प्रश्नचिन्ह !!
41. दुर्गा का रूप
42. रणनीति
43. कथनी और करनी.
44. पढ़ने की उम्र नहीं होती
45. आदत
46. कैक्टस के फूल
47. कुछ तो बात जरूर है
48. दर्द
49. 'संकीर्ण सोच'
50. 'हैप्पी फादर्स डे'
51. सत्संग
51. मंजिल
52. उम्मीद
53. मासूमियत
54. अकेलापन
55. कम्बल
56. रिपोर्ट
57. प्रेम प्रस्ताव
58. कर्तव्य
59. जरूरत
60. रिश्ता
61. निःशब्द
62. गुजारिश
63. सच्चाई की जीत
64. पहला प्यार
65. असली हकदार
66. ममता
67. परवरिश
68. समय
69. माँ के लिए
70. प्यार एक अहसास
71. सोच-सोच का फर्क
72. घर का चिराग
73. मुफ्त के पैसे
74. माय ड्यूटी इज माय प्राइड
75. पेट की आग
76. अपराजिता
77. ख्वाहिशों का आसमां
भूमिका
प्रिय अनुजा कंचन शर्मा 'कौशिका' मुझे पूर्वोत्तर हिंदी साहित्य अकादमी के पटल पर मिलीं। जहाँ प्रति गुरुवार को लघुकथा के समीक्षात्मक संचालन का दायित्व मुझे मिला था। प्रति गुरुवार को अनुजा कंचन शर्मा की लघुकथा अवश्य ही आती जो लघुकथा के प्रति उनके असीमित रुझान को दर्शाता। उसकी कथा पर कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर तुरंत उसका फोन मेरे पास आता और पूछती, 'दीदी आज लघुकथा ठीक नहीं लिखी है क्या ?' उसके साथ कथाओं पर काफी चर्चा होती ।
मसलन कथा में काल दोष क्या है?
लेखकीय प्रवेश क्या है?
कथा छोटी ही क्यों होनी चाहिए ?
क्या कथा को उपदेशात्मक बनाया जा सकता है ?
लघुकथा के मानदंड क्या है?
इन्हीं प्रश्नों के आधार पर मैं आप सबको लघुकथा के विषय में कुछ बताना चाहती हूँ जो कुछ मैंने अपने गुरुओं से सीखा है जिससे आप सभी को लघुकथा लिखने में सहयोग मिलेगा ।
1. पंच अर्थात चरमोत्कर्ष कथा का अंत।
2. कथ्य-पंच में से निकला वह संदेश जो चिंतन को जन्म ले।
3. लघुकथा भूमिका विहीन विधा है।
4. लघुकथा का अंत ऐसा हो जहाँ से एक नई लघुकथा जन्म ले अर्थात पाठकों को चिंतन के लिये उद्वेलित करे।
5. लघुकथा एक विसंगति पूर्ण क्षण विशेष को संदर्भित करे ।
6. लघुकथा कालखंड दोष से मुक्त हो ।
7. लघुकथा बोधकथा, नीतिकथा, प्रेरणात्मक शिक्षाप्रद कथा ना हों। केवल उपयुक्त संदेश देती हुई होनी चाहिए।
8. लघुकथा के आकार-प्रकार पर पैनी नजर, क्योंकि शब्दों की मितव्ययिता इस विधा की पहली शर्त है ।
9. लघुकथा एकहरी विधा है। अतः कई भावों व अनेक पात्रों का उलझाव का बोझ नहीं उठा सकती है।
10. लघुकथा में कथ्य यानि संदेश का होना अत्यंत आवश्यक है।
11. लघुकथा महज चुटकुला ना हो।
12. लेखन शैली
13. लेखन का सामाजिक महत्व
14. लेखक जो कुछ कहना चाहता हो उसे पात्रों के माध्यम से कहलवाए न कि स्वयं उसमें समाहित हो जाये।
सभी बातों का सारांश ये है कि इन उपरोक्त बातों को ध्यान में रख कर ही लघुकथा लिखी जानी चाहिए। अर्थात एक लघुकथाकार को इन मानकों को साधना आना ही चाहिए !
कंचन की कथाओं में ज्यादातर नारी सशक्तिकरण की बात कही गयी है इसके अतिरिक्त सामाजिक सरोकार, रोमांस, शिक्षा इत्यादि विषयों को भी चुना, बुना और गुना गया है। लघुकथा स्वप्न में उन्होंने व्यक्ति को पानी की महत्ता समझाने के लिए स्वप्न के माध्यम से बहुत बड़ी बात कहलवाई है। वहीं मुठ्ठी भर गुलाल में विधवा जीवन को नया रंग देने की कोशिश का दृश्य नजर आता है। ख्वाहिश बेहद चुलबुली कथा है अंत तक बांधे रखती है। अमानत के माध्यम से अंगदान की महत्ता का चित्रण बखूबी किया है। रक्तदान के माध्यम से जातिवादिता का दृश्यांकन किया है। बेटी तो जिंदा है में आज के समय में बेटियों पर हो रहे अमानुषीय अत्याचार की कहानी कह रही हैं कंचन । रावण इतना भी बुरा न था में रावण की अच्छाइयों को दिखाने की कोशिश की है किन्तु उस काल में सीता माता का हरण कर लिया जाना ही बहुत बड़ी बात थी कारण कोई भी रहा हो किन्तु रावण तो रावण ही था। इसके अतिरिक्त अन्य तमाम कथाएँ इम्तहान, ख्वाहिशों का आसमाँ, अनमोल दौलत, स्पर्श, माँ मैं हूँन, गुरु दक्षिणा, दुर्गा का रूप, प्रश्न चिन्ह, स्पर्श, मोह के बंधन, पढ़ने की उम्र नही होती, संकीर्ण सोच, जरूरत, रिपोर्ट, कर्तव्य, रिश्ता, सोच सोच का फर्क, माय ड्यूटी इज माय प्राइड, पेट की आग, अपराजिता इत्यादि प्रशंसनीय लघुकथाएँ हैं। आप सभी को पसंद आएंगी।
प्रिय कंचन के साथ आत्मीय लगाव हो गया है। उसकी प्रथम कृति ख्वाहिशों का आसमां का आप सबके समक्ष आना मुझे भी आल्हादित कर रहा है। मैं अनुजा कंचन शर्मा को हृदय से शुभकामनाएं और शुभाशीष देती हूँ कि उसकी पुस्तक को असीमित आसमां मिले। इन्हीं कामनाओं के साथ।
शुभेच्छु
डॉ. अन्नपूर्णा बाजपेयी 'आर्या'
278, प्रभांजलि, विराट नगर,
जी टी रोड, अहिरवां, कानपुर (उ.प्र.)
मो.8299807829
अपनी बात
भगवान श्री गणेश व माँ शारदे की कृपा से मेरा लघुकथा संग्रह 'ख्वाहिशों को आसमां' आप सबके समक्ष है। जैसा कि हम जानते हैं लघुकथा साहित्य का इतिहास बहुत पुराना है। वर्तमान समय में साहित्य जगत में अगर किसी विधा ने साहित्यकारों को सर्वाधिक आकर्षित किया है तो वह विधा लघुकथा है। निसंदेह यह कहा जा सकता है कि लघुकथा अपने लघु रूप के कारण साहित्यकारों एवं पाठकों की सबसे प्रिय विधा बन गई है। लघुकथा ने आज लुप्त होते जा रहे पाठकों को साहित्य की ओर मोड़ा है। कम शब्दों में अपनी बात कहती विधा को सभी ने पसंद किया है। एक अच्छी और प्रभावी लघुकथा जहां खत्म होती है, वहीं से उसका अगला भाग पाठकों के मन मस्तिष्क में आकार लेने लगता है।
लघुकथा अपने आप में स्वतंत्र पूर्ण विधा है जो क्षण विशेष की घटना को अभिव्यक्त करती है। मेरा प्रथम प्रयास 'ख्वाहिशों का आसमां' में कुल 75 लघुकथाओं का संकलन है। मैंने भरकस प्रयास किया है कि मेरी लघुकथाएं पाठकों और समाज को एक सार्थक संदेश दे। मुट्ठी भर गुलाल, इम्तिहान, अपराजिता, दर्द, अधूरा बचपन, ख्वाहिश, आदि कुछ कथाओं के जरिए नारी मन की भावनाओं को टटोल कर उन्हें लघुकथा का रुप दिया है। इसके अतिरिक्त इस संग्रह में सामाज के अनेक पहलुओं को लघुकथा के रूप में पाठकों के समक्ष रखने का प्रयास किया है।
लघुकथा के इस सफर में मैं अपने प्रियजनों-परिजनों को धन्यवाद देना चाहती हूँ जिन्होंने मेरा सदैव मनोबल बढ़या हैं। आ. अन्नपूर्णा बाजपेई जी, जो मेरी लघुकथा की गुरु भी हैं उनका हृदय से आभार करना चाहूंगी। आपने बहुत ही सुंदर शब्दों में लघुकथा संग्रह 'ख्वाहिशों का आसमां' की भूमिका लिखी है। मैं आ. ममता गिनोड़िया जी, आ. डॉ. रूनू बरुवा रागिनी जी, आ. डॉ. अनीता पांडा जी, आ. कांता अग्रवाल जी, आ बीजेंद्र जैमिनी जी का हृदय तल से आभार करती हूँ जिन्होंने इतने सुंदर शब्दों में मुझे शुभकामना एवं शुभाशीष दी है।
अंततः मेरी लघुकथाओं का संग्रह 'ख्वाहिशों का आसमां' प्रिय पाठकों को सादर सप्रेम समर्पित है।
- कंचन शर्मा 'कौशिका'
कंचन शर्मा 'कौशिका'
जन्मतिथि : 14 अक्टूबरशिक्षा : स्नातक (राजनितिक शास्त्र)
माता : श्रीमती विमला देवी शर्मा
पिता : स्व. मुरलीधर शर्मा
पति : श्री विश्वंभर शर्मा (अधिवक्ता)
रुचि : लेखन, संगीत, समाज सेवा (खासकर नारी शिक्षा को बढ़ावा देना तथा पिछड़े वर्गों में शिक्षा के महत्व को जगाना)
संस्थाओं से संबंद्धता : पूर्वाशा हिंदी अकादमी जोरहाट, पूर्वोत्तर हिंदी साहित्य अकादमी तेजपुर, साहित्य संगम संस्थान, महिला काव्य मंच कामरूप शाखा सहित कई सामाजिक संस्थाएं।
सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन, कई मंचों से जुड़कर साहित्य सेवा
प्रकाशन : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं, लेख, कहानी, लघुकथाएं आदि प्रकाशित * काव्य सग्रह-ब्रह्मपुत्र के तीरे-तीरे, * दो सांझा संकलन
सम्मान : जैमिनी अकादमी के द्वारा 2021- लघुकथा रत्न सम्मान
राष्ट्रीय शौर्य सम्मान, लघुकथा रत्न सम्मान, शब्द शिल्पी अलंकरण सम्मान 2001, एवं 100 से भी ज्यादा डिजिटल सम्मान
ईमेल -kanchankanu2002@gmail.com
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