ठूँठ / गोविन्द शर्मा

ठूंठ (सौ लघुकथाएँ)

कथाकार : गोविन्द शर्मा

© : लेखकाधीन

प्रकाशक

साहित्यागार,

धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर

फोन :0141-2310785, 4022382, 2322382, Mob.: 9314202010

e-mail: sahityagar@gmail.com

website: sahityagar.com

webmail: mail@sahityagar.com

प्रथम संस्करण : 2024

ISBN: 978-93-5947-463-2

मूल्य : दो सौ पच्चीस रुपये मात्र

फ्लैप-1 व 2

आधुनिक हिंदी लघुकथा के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में झाँककर देखें तो इसने पाँच दशक पूर्ण कर लिए हैं। प्रारंभिक दौर के लघुकथा मनीषियों ने आधुनिक हिंदी लघुकथा का रचना विधान तैयार कर इसे परिभाषित ही नहीं किया बल्कि विधागत सम्मान दिलाते हुए हिंदी साहित्य में एक उचित स्थान दिलाया। इन पाँच दशकों में सैकड़ों लघुकथाकार आए और अपने ज्ञान विवेक व अनुभव सहित हजारों लघुकथाएँ लिखी ।

इन्हीं शुरुआती दौर के लघुकथा रचनाधर्मियों में एक है- राजस्थान से श्रीमान् गोविंद शर्मा, जो राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय लघुकथाकारों की अग्रिम पंक्ति में खड़े दिखाई देते हैं। श्रीमान् गोविंद शर्मा मूल रूप से बाल साहित्यकार हैं। मगर लघुकथा एवं व्यंग्य लेखन में भी अच्छी पकड़ है। पिछले पचास वर्षों से साहित्य लेखन में रत हैं। परंतु लघुकथा लेखन में पिछले चार दशकों से निरंतरता बनाए हुए हैं। इन 40-42 वर्षों में इन्होंने एक हजार के लगभग लघुकथाएँ रच डाली। गोविंद जी का प्रथम एकल लघुकथा संग्रह 'रामदीन का चिराग' सन् 2014 में प्रकाशित होकर आया। तब से अब तक दस वर्षों में प्रकाशित होने वाली उनकी यह पाँचवीं लघुकथा पुस्तक है। स्वयं की पुस्तकों के अलावा लघुकथा संकलनों तथा सारिका, हंस, शुभ तारिका, सरिता, मुक्ता, मिनीयुग, नवभारत टाइम्स, साप्ताहिक हिंदुस्तान, धर्मयुग, मधुमती, राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, पंजाब केसरी, नवज्योति, जलते दीप जैसे राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में इनकी अनेक लघुकथाएँ समय-समय पर प्रकाशित होती रही है।

गोविंद जी ने हिंदी लघुकथा साहित्य को बेहतरीन लघुकथाएँ दी है। इनकी लघुकथाएँ सामाजिक सरोकारों से सरोबार मानवीय मूल्यों की पक्षधर होती है। इनकी लघुकथाओं में नकारात्मक दशा का कोई स्थान नहीं दिखाई देता। हाँ, लघुकथाएँ व्यंग्य प्रधान जरूर है। वह भी समसामयिक विचारित परिस्थितियों पर व्यंग्यात्मक लहजे में जागृति की ओर इशारा करती है। सकारात्मक सोच लिए होती है ।

गोविंद जी के लघुकथा सागर में डुबकी लगाकर गहराई में जाएँ तो हमें समाज में विलुप्त होते रस्म-रिवाज, परिवार में बनते- बिगड़ते टूटते संबंध, राजनीति में भाई- भतीजावाद, कुर्सी-मोह, पुलिसिया अमानवीय व्यवहार, कार्यालय में भ्रष्टाचार से परिपूर्ण कार्यशैली, मानव का दोगला व्यवहार व स्वार्थी सोचरूपी अनेक मोती झिलमिलाते दिखाई देंगे। इन चमकते मोतियों के प्रकाश में पाठक को अपने आपको इन समस्याओं से निजात पाने की भी कहीं ना कहीं दिशा दिखाई देती है। श्रीमान् गोविंद शर्मा जी की लघुकथाएँ आधुनिक हिंदी लघुकथा साहित्य के बेजोड़ नमूने हैं जो पठनोपरांत पाठक को संतुष्टि प्रदान करती है।

मैं गोविंद जी का लघुकथा लेखन में निरंतरता, लगन व इनके लघुकथा विधा के प्रति समर्पण भाव को नमन करता हूँ। शुभकामनाएँ। 

25.2.2024।        - डॉ. राम कुमार घोटड़

                             मो.: 94140 86800

भूमिका

रोचक, पठनीय और विचारशील लघुकथाओं का संग्रह 'ठूंठ'

गोविन्द शर्मा हमारे समय के प्रतिष्ठित वरिष्ठ साहित्यकार हैं। बाल साहित्य और लघुकथा लेखन में वे लगातार सक्रिय हैं। उनकी लघुकथाओं के अनेक एकल संग्रह अब तक प्रकाशित, प्रशंसित और सम्मानित हो चुके हैं। मैंने जितनी भी उनकी लघुकथाएँ इससे पूर्व पढ़ी हैं, उनमें से अधिकतर में सहज व्यंग्य का पुट पाया है। सहज इस अर्थ में कि उनके पात्र अपनी बात कहकर किसी प्रतिक्रिया का इंतजार नहीं करते, बल्कि बात कहकर या तो चुप हो जाते हैं या आगे बढ़ जाते हैं; यानी बात को कन्वे करना ही उनके पात्रों का अथवा नैरेटर्स का उद्देश्य रहता है, उसका परिणाम जानना नहीं। उनके पात्रों अथवा नैरेटर्स का ऐसा चरित्र लघुकथा लेखन के सिद्धान्त के सर्वथा अनुकूल है। कहा यही जाता है कि लघुकथाकार सिर्फ डाइग्नोस करता है, ट्रीटमेंट नहीं देता। जहाँ तक व्यंग्य का सवाल है, समय कुछ ऐसा है कि लघुकथा के पाठ में यदि बुद्धि का सुचारु और सुसंगत ढंग से उपयोग किया जाए तो कलम से व्यंग्य की धारा अनायास ही निःसृत होती है। गोविन्द शर्मा की अधिकतर व्यंग्य लघुकथाओं पर यह बात लागू होती है।

कथा-रचना के तौर पर लघुकथा के पाठ का एक लाभ यह है कि लघुकथाकार अपनी सामर्थ्य के अनुरूप अपने मन्तव्य को पाठक के मन-मस्तिष्क में उतारने में पूरी छूट ले सकता है, अपनी लेखकीय सामर्थ्य का पूरा लाभ उठा सकता है। भाषा, शैली और कथ्य के स्तर पर लघुकथाकार को इतना सक्षम होना चाहिए कि पाठक उसके नियन्त्रण में रहे, लघुकथा के पाठ को बीच में छोड़कर उठ भागने को उद्यत न हो पाये, अपने थके होने का बहाना न बना पाये। लघुकथा के पाठ का एक ज यह भी है कि पाठक को वह कुछ भूल जाने का अवसर नहीं देता। ये सब के सब नहीं तो इनमें से अधिकतर गुण गोविन्द शर्माजी की लघुकथाओं में मिलते हैं।

-बलराम अग्रवाल /8826499115

अनुक्रम 

1. ठूंठ

2. पराया धन

3. अनुभव

4. बराबरी

5. ऑक्सीजन

6. इमारत

7. मुँहबदी

8. चश्मा

9. सास विचार

10. उपलब्धि

11. दो बूँद खून की

12. लिपस्टिक

13. आनलाइन सच

14. गुड़िया

15. नंगे

16. आज तक

17. परहेज

18. बच्चे

19. रोटी पर हक

20. आ-आदमी

21. लव स्टोरी

22. पत्थर

23. पढ़ाया आपने

24. फुटपाथ पर

25. हवा हवाई

26. खुशी

27. क्रियान्वयन

28. नियति

29. शहर गाँव

30. तरकीब

31. सूरज की समझ

32. धरती जरूरी

33. कचरार्थी

34. तूफान

35. चोर सिपाही

36. बरसात

37. माँ की चिंता

38. अच्छी आदत

39. वजह

40. भूख का कष्ट

41. सांड सुरक्षा

42. धमाका

43. न्यूज चैनल

44. बेवकूफ

45. मैं पा...

46. चादर

47. भूत

48. रिक्शा

49. खुराक

50. अच्छी बातों की रोशनी

51. घाव

52. श्रेय

53. दुश्मन

54. बोझ

55. अनावश्यक

56. रंग बदलू

57. जूतों का मजा

58. बहाना

59. रक्षक

60. चिड़िया उदास

61. थकान

62. विकास

63. शहीद

64. दयाशील

65. मूर्तिकार

66. प्रशिक्षित

67. प्रवक्ता

68. ज्ञापनबाजी

69. भूख

70. अपनी बात भी नहीं सुनी

71. ओवरटाइम

72. चलन जलन

73. घुसपैठ

74. खुशबू

75. जिन्न

76. दयालु

77. सोच का वक्त

78. ऐसे बनी बात

79. हल

80. मुखौटा

81. शुरुआत नई कहानी की

82. सजा

83. अभिशाप

84. सच

85. छाया कट गई

86. अच्छी बातें

87. अपराध बोध

88. रैम्प

89. अपना अपना दुख

90. पानी की बूँदें

91. खटकू

92. नामकरण

93. वृक्षारोपण

94. आज के बंदर

95. खतरा

96. महक

97. घोषणा पत्र

98. ईमानदार

99. सौतेला

100. उच्चस्तरीय जाँच

गोविंद शर्मा

जन्म  4 जून 1946

लेखन प्रारम्भ - 1971-72

प्रारंभ हुआ बालकथा और व्यंग्य से। सन् 1980 के आसपास लघुकथा लेखन शुरू किया। अब तक 55 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है, जिनमें सर्वाधिक बाल साहित्य की है। लघुकथा के पूर्व में चार संग्रह (एक) रामदीन का चिराग (दो) एक वह कोना (तीन) खेल नंबरों का (चार) खाली चम्मच।

यह पाँचवाँ लघुकथा संग्रह' ठूंठ' आपके हाथों में है। मेरी कई रचनाओं के हिंदी से अन्य प्रादेशिक भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। प्रकाशन विभाग भारत सरकार, केंद्रीय साहित्य अकादमी, राजस्थान साहित्य अकादमी से पुरस्कारों सहित कई प्रदेशों की प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। लघुकथा, व्यंग्य एवं बालकथा विधाओं में सतत लेखन जारी है।

मोबाइल:9414482280

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