नौ-रत्नी लघुकथाएँ / डॉ. रामकुमार घोटड़

नौ-रत्नी लघुकथाएँ 

डाॅ. रामकुमार घोटड़


ISBN: 978-93-92930-96-6

संस्करण : 2024

मूल्य : 450.00

© डॉ. रामकुमार घोटड़

प्रकाशक

नवशिला प्रकाशन 7/12, श्रीराम कॉलोनी, निलोठी एक्सटेंशन, नांगलोई, 

नयी दिल्ली-110041 

दूरभाष: 09582969313 

ई-मेल : navshilaprakashan@gmail.com

प्राक्कथन  

बतौर लेखकीय दो शब्द

लघुकथा लेखन के सन्दर्भ में मैं अपने लघुकथा लेखन के बारे मे सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि मेरे को लघुकथा लेखन करते हुए चार दशक बीत गये। मैंने अपने जीवन के चौथे दशक में लघुकथा लिखना शुरू किया था। यूँ तो मैंने सन् 1973 में 'एक और आदर्श' शीर्षक से एक लघु-आकारीय रचना विद्यार्थी जीवन में लोहिया महाविद्यालय चूरू (राज.) वार्षिक पत्रिका के लिए लिखी थी जो 1973-74 में कॉलेज पत्रिका 'आलोक' में प्रकाशित हुई थी, लेकिन लघुकथा लेखन की मानसिकता लेकर मैंने सन् 1984 में 'जिन्दगी' शीर्षक से लघुकथा लिखी जिसे मैं अपनी प्रथम लघुकथा होने का दर्जा देते आया हूँ। अगर 'एक और आदर्श' (1973) को भी लघुकथा की श्रेणी में स्वीकार कर लिया जाय तो कोई असामान्य निर्णय नहीं होगा।

इन चार दशकों में मैंने लगभग एक हजार चार सौ लघुकथाएँ लिखी है जो मेरे एकल लघुकथा संग्रहों, लघुकथा-संकलनों व विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई है। यह 'नौ-रत्नी लघुकथाएँ' मेरा उन्नीसवाँ एकल लघुकथा संग्रह है। भारतीय समाज, सनातन धर्म में अंक 'नौ' का एक विशेष महत्त्व है। उसी अंक 'नौ' की महिमा को श्रद्धेय दृष्टि से स्वीकारते हुए मैंने इस पुस्तक का शीर्षक 'नौ' अंक से शुरुआत कर 'नौ-रत्नी लघुकथाएँ' रखा है। इसे मैने 'नौ' खण्डों में वर्गीकृत करते हुए प्रत्येक खण्ड में विषय-विशेष सन्दर्भित नौ- नौ लघुकथाएँ संगृहीत की है, जिनमें से बहुत कुछ नई और कुछ पूर्व प्रकाशित लघुकथाएँ संकलित है।

अंक 'नौ' का महातम्य

हिन्दू समाज में अंक 'नौ' को एक शुभ एवं फलदायी अंक के रूप में स्वीकारा गया है। उदाहरण के तौर पर 'नौरत्न', 'नौरता', 'नौ ग्रह' व 'नौबत बाजा' जैसे शब्दों को लिया जा सकता है जिनकी महत्त्वपूर्ण विशेषताओं को मैं कुछ विस्तारपूर्वक यहाँ रख रहा हूँ-

1. नौरत्न-

प्राप्त आकलन के अनुसार नौ रत्नों के अध्ययनीय सार को दो सन्दर्भों में रखा जाना चाहिये (1) प्राकृतिक सन्दर्भ, (2) ऐतिहासिक सन्दर्भ ।

(अ) प्राकृतिक सन्दर्भ-ये प्रकृतिजन्य उपहार है, कुदरत की एक अनमोल विरासत। आध्यात्मिक, ज्योतिष एवं श्रृंगार की दृष्टि से नौ रत्नों का एक विशेष महत्त्व है। पुराणानुसार ये नौ रत्न अलग-अलग एक ग्रह दोषों की शान्ति के लिए उपकारी है। इन नौ रत्नों के नाम मोती, मूंगा, मानिक, पन्ना, गोमेद, हीरा, लहसुनिया, पद्मराग और नीलम है।

(आ) ऐतिहासिक सन्दर्भ-ये प्रकृतिजन्य जवाहिर नहीं है, ये मानव है, इतिहास पुरुष। इनके गुण, ख्याति एवं व्यक्तित्व की चमक किसी हीरे, मोती, जवाहिर से कम नहीं, यानी ये प्रतीकात्मक रत्न है। ये अपने आकाओं के शाही दरबार में एक विलक्षण प्रतिभा के रूप में रहे और उनके विद्वत्ता की सुगंध युगों-युगों तक मानव के मन-मस्तिष्क में फैलती रही है। अब तक इतिहास में दो ही शासक ऐसे रहे हैं, जिनके दरबार में अपने-अपने क्षेत्र के मनीषियों को नौ रत्न की उपाधि से विभूषित किया गया है ये शासक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (द्वितीय) और बादशाह अकबर हैं।

राजा विक्रमादित्य (101 ई.पू.-15 ई.)-इन्होंने अपने दरबार के विद्वत पुरुषों को दरबारी रत्न की उपाधि दी थी वे संख्या में नौ थे, जो निम्न है- नरसिम्हा (संस्कृत कोशकार), धन्वंतरी (चिकित्सक), हरिसेन (कवि), कालीदास (कवि एवं नाटककार), कहापनका (ज्योतिषी), सकूं (वास्तुकार), वररुचि (व्याकरणिक संस्कृत), बेतल भट्ट (जादुगर) और वराहमिहिर (खगोलविद) ।

बादशाह अकबर (1542-1605 ई.)-अकबर के दरबार में विभिन्न विषयों के पारंगत शख्सियत, जिन्हें 'दरबारी नौ रत्न' की उपाधियों से अलंकृत किया गया था वे नौ रत्न अपनी विशेषताओं अनुसार है- सर्वश्री बीरबल (पाण्डित्य, विद्वान्, पारखी) तानसेन (संगीतकार), फैजी (दरबारी कवि), राजा मानसिंह (प्रमुख सेनापति), राजा टोडरमल (राजस्व विशेषज्ञ), मुल्ला दो-पियाजा (सलाहकार), अब्दुल रहीम खान-ए-खाना (कवि एवं ज्योतिषी), फकीर अजुद्दीन (धार्मिक मामलात-सलाहकार) और अबुल फजल (लेखक)।

सनातन धर्म में इन नौ रत्नों को आध्यात्मिक, ज्योतिष एवं ऐतिहासिक बोधदृष्टि से सुकूनमय माना जाता है।

2. नौरता

यह नवरात्रा उत्सव का एक आम प्रचलन शब्द है, जिसमें प्रतिदिन एक विशेष देवी की पूजा होती है, जो हर छः माह बाद चैत्र व शारदीय नवरात्रा नामित, एक श्रद्धेय दृष्टि से पूज्यनीय महोत्सव के रूप में प्रथम दिन नवरात्रा स्थापना दिवस से शुरू होकर आठवें दिन कन्या पूजन के उपरान्त नौवें दिन रामनवमी पर देवी प्रतिमा विसर्जन के साथ समापन होता है। दिन के क्रमानुसार इन नौ देवियों की पूजा-अर्चना भी की जाया करती है-शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्माण्डा, सिद्धिदात्री, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि और महागौरी। ये भारतीय हिन्दू समाज की नौ आराध्य देवियाँ हैं।

3. नौग्रह

सौरमण्डल में ग्रहों की संख्या भी नौ ही है। इन नौ ग्रहों की महिमा समझने-जानने के लिए हमें इनके सैद्धान्तिक पक्ष से गुजरना होगा।

सैद्धान्तिक पक्ष- सैद्धान्तिक पक्ष के लिए विवेचनात्मक अध्ययन के दौरान दो अवधारणाएँ हमारे सामने आती है एक है- ज्योतिषीय अवधारणा और दूसरी है-खगोलीय अवधारणा ।

ज्योतिषीय अवधारणा- भारतीय ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में वर्णित ये नौ ग्रह हैं-सूर्य, चन्द्र, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि, राहु और केतु। ज्योतिष मान्यतानुसार मानव की राशि यथासमय घट रहे क्षणों की पुलघड़ी के अनुसार इन ग्रहों का दोष मानव काया में होता रहता है तथा इस दोष निवारण हेतु विधि-विधानपूर्वक सम्बन्धित ग्रह की पूजा-अर्चना एवं दान-दक्षिणा किया जाना उपकारी होता है।

खगोलीय अवधारणा - खगोलशास्त्रीय अध्ययन के अनुसार सौरमण्डल में सूर्य से दूरी के क्रम में ये नौ ग्रह- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेपच्यून तथा प्लूटो है।

खगोलविदों के अनुसार, इन ग्रहों में असामान्य परिस्थितिवश दोष व विकार पनपने पर ब्रह्माण्ड में जीव-जन्तु व वनस्पति जगत् का जीवन सामान्य रह पाना दुष्कर हो जाता है, अतः पर्यावरणीय दोष निवारण ही मानव स्वस्थ जीवन का एक सुखद पहलू है।

4. नौबतबाजा-

एक वाद्ययंत्रों का समूह जिसमें नौ वाद्ययंत्र होते हैं, जिनका मानव जीवन में मनोरजन का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। विशेषकर मांगलिक उत्सवों पर इनका बजाया जाना भारतीय परम्परा में शुभ माना जाता है। इस समूह के नौ वाद्ययंत्रों के नाम है-दो बड़े गैदांग, एक घंटा, एक नफीरी, दो सेरूनाई, तैम्बाला के दो-सेग-सेग और एक खंजरी।

नौ रत्न, नौ ग्रह, नौरता व नौबत बाजा के अतिरिक्त नौरंग, नौरस, नौलखा, नौकरी, नौटंकी, नौजवान, नौनिहाल, नौमण तेल और नौसेना जैसे कुछ और शब्द है जिनकी शुरुआत 'नौ' अक्षर से होती है जो हमारे आम प्रचलन में उपयोग होते रहते हैं।

'नौ' अंक की विशेषताओं और भारतीय जनमानस में इस अंक के प्रति श्रद्धेय भाव को मद्देनजर रखते हुए मैंने इस पुस्तक का नाम भी 'नौ' अंक के शुरुआती अक्षर के शब्द से रखते हुए शीर्षक रखा है-'नौ-रत्नी लघुकथाएँ'। इस संग्रह का प्रत्येक खण्ड एक-एक रत्न का प्रतिनिधित्व करने जैसा एहसास करायेगा तथा खण्ड की प्रत्येक लघुकथा रत्न जैसी चमक, आकर्षण एवं सुगंध का मनभावन रसास्वादन करायेगी, ऐसा मेरा विश्वास है।

पुस्तक का प्रारूप तैयार करने में श्रीमान् लोकेश जैन, दुर्गापुरा, शान्ति नगर, जयपुर और नवशिला प्रकाशन संस्था के प्रकाशक श्रीमान् नन्दकिशोर श्रीवास्तव, दिल्ली का मैं तहेदिल से आभार व्यक्त करता हूँ कि इतने अल्प समय में ही मेरी इन इक्यासी लघुकथाओं को सुन्दर साज-सज्जा से सज्जित पुस्तकीय लड़ीमाला में पिरोते हुए अनमोल रत्नजड़ित 'मोतियों का हार' का रूप दे दिया।

और अन्ततः आप सभी माननीय पाठकगण से सिर्फ इतना निवेदन करना चाहूँगा कि इस लघुकथा-संग्रह के पठनोपरान्त अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया से अवगत करायें, ताकि जान सकूँ कि मैं अपनी लगन, मेहनत और लेखकीय रचनात्मक कौशल में कितना सफल रहा हूँ।

आपके समीक्षात्मक टिप्पणीय सहयोग की अपेक्षा सहित...

शारदीय नवरात्रा।         डॉ. रामकुमार घोटड़

2023।                         सादुलपुर (राजगढ़)

                                      चूरू, राजस्थान 

                              मो. : 9414086800

अनुक्रमणिका

प्राक्कथन : बतौर लेखकीय दो शब्द

भाग-प्रथम

लघुकथाएँ

खण्ड-एक 

कन्या भ्रूण-हत्या विषयक लघुकथाएँ (पृष्ठ 11)

खण्ड-दो 

बाल मनोविज्ञान की लघुकथाएँ (पृष्ठ 21)

खण्ड-तीन

बुजुर्ग जीवन-शैली की लघुकथाएँ (पृष्ठ 31)

खण्ड-चार 

दलित समाज की लघुकथाएँ (पृष्ठ 43)

खण्ड-पाँच 

राजनैतिक सन्दर्भ की लघुकथाएँ (पृष्ठ 55)

खण्ड-छः 

नारी सशक्तीकरण की लघुकथाएँ (पृष्ठ 67)

खण्ड-सात 

शिक्षा जगत् की लघुकथाएँ (पृष्ठ 77)

खण्ड-आठ 

प्रतीकात्मक शैली की लघुकथाएँ (पृष्ठ 87)

खण्ड-नौ 

किन्नर विमर्श की लघुकथाएँ (पृष्ठ 97)

भाग-द्वितीय 

आलेख

मेरा लघुकथा लेखन (पृष्ठ 107)

डॉक्टर रामकुमार घोटड़



जन्म- 02 दिसम्बर, 1951 गाँव- भैंसली, तहसील- राजगढ़, चूरू (राज.)

शिक्षा- एम.बी.बी.एस., एम.एस. (प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ)

सम्प्रति - राजस्थान सरकार से सेवानिवृत्त, चिकित्सक

प्रकाशित पुस्तकें - एकल-लघुकथा-संग्रह: 1. तिनके तिनके (1989), 2. प्रेरणा (1994), 3. क्रमश: (2002), 4. रूबरू (2006), 5. आधी दुनिया की लघुकथाएँ (2009), 6. मेरी श्रेष्ठ लघुकथाएँ (2009), 7. संसारनामा (2012), 8. रजत कण (2014), 9. दर्पण के उस पार (2015), 10. सामाजिक सरोकार की लघुकथाएँ (2017), 11. प्रजातंत्र के सारथी (2018), 12. मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ (2019), 13. बुजुर्ग जीवन शैली की लघुकथाएँ (2019), 14. मेरी बीसवीं सदी की हिन्दी लघुकथाएँ (2021), 15.70 लघुकथाएँ (2022), 16. संवादात्मक लघुकथा (2023), 17. नई सदी की मेरी लघुकथाएँ (2023), 18. बाल मन की दस्तावेजी डॉ. रामकुमार घोटड़ लघुकथाएँ (2024), 19. नौ-रत्नी लघुकथाएँ (2024)

सम्पादित लघुकथा संकलन : प्रतीकात्मक लघुकथाएँ (2006), पौराणिक संदर्भ की लघुकथाएँ (2006), अपठनीय लघुकथाएँ (2006), दलित समाज की लघुकथाएँ (2008), लघुकथा-विमर्श (2009), भारतीय हिन्दी लघुकथाएँ (2010), देश-विदेश की लघुकथाएँ (2010), राजस्थान के लघुकथाकार (2010), भारत का हिन्दी लघुकथा संसार (2011), कुखी पुकारे (2011), एक सौ इक्कीस लघुकथाएँ (2011), हिन्दी की समकालीन लघुकथाएँ (2012), किसको पुकारू (2012), आजाद भारत की लघुकथाएँ (2012), गुलाम भारत की लघुकथाएँ (2014), लघुकथा पड़ाव और पड़ताल खण्ड-12 (2015), हिन्दी की प्रतिनिधि लघुकथाएँ (2016), दलित जीवन की लघुकथाएँ (2017), स्मृति-शेष लघुकथाकार (2018), लघुकथा सप्तक (2018), प्रतिनिधि हिन्दी लघुकथाकार (2019), लघुकथा सप्तक-2 (2019), किन्नर समाज की लघुकथाएँ (2019), लघुकथा सप्तक-3 (2019), लघुकथा सप्तक-4 (2019), लघुकथा सप्तक-5 (2020), दलित सन्दर्भ की लघुकथाएँ (2020), लघुकथा सप्तक-6 (2020), आधुनिक हिन्दी लघुकथा का पूर्वार्द्ध-काल (1971-1990) (2020), लघुकथा सप्तक-7 (2021), हिन्दीत्तर लघुकथाएँ (2021), बीसवीं सदी का हिन्दी लघुकथा इतिहास (2021), विभाजन त्रासदी की लघुकथाएँ (2021), राजस्थान का हिन्दी लघुकथा साहित्य (2023)

अन्य प्रकाशित पुस्तकें : कहानी संग्रह-3, व्यंग्य संकलन-3, बाल साहित्य-3, विविध साहित्य-10, राजस्थानी भाषा में-8 अन्य भाषा में अनुवादित पुस्तकें: 1. डॉ. रामकुमार घोटड़ दी लघुकथावां (पंजाबी-2016) अनुवादः जगदीश राय कुलरियां।

2. डॉ. रामकुमार घोटड़ेर लघुकथा (बंगाली-2023) अनुवादः बेबी कारफार्मा।

3. डॉ. रामकुमार घोटड़'स 80 शोर्ट स्टोरीज (अंग्रेजी-2023) अनुवाद : अशोक कुमार मंगलेश।

सम्मान एवं पुरस्कार- डॉ. अम्बेडकर फैलोशिप (1987), डॉ. परमेश्वर गोयल लघुकथा शिखर सम्मान (2006) एवं राजस्थान साहित्य अकादमी विशिष्ट साहित्यकार सम्मान (2023) सहित राष्ट्रीय स्तर की दर्जन भर विभिन्न साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित एवं पुरस्कृत।

विशेष - डॉ. घोटड़ के लघुकथा साहित्य पर एक शोधार्थी द्वारा पीएच. डी. एवं चार शोधार्थियों द्वारा एम. फिल. शोध किया गया। हिन्दी की प्रतिनिधि लघुकथाएँ (1875-2015) लघुकथा-संकलन, उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगाँव के स्नातक कक्षा के पाठ्यक्रम में स्वीकृत।

सम्पर्क सूत्र - निराला अस्पताल सादुलपुर (राजगढ़), जिला- चूरू (राज.)-331023 

मो.- 9414086800




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