फ्लैट नंबर इक्कीस / राम मूरत 'राही'


लघुकथा-संग्रह : फ्लैट नंबर इक्कीस   

कथाकार  : राम मूरत 'राही'

यह पुस्तक स्वतंत्र प्रकाशन समूह की 'निःशुल्क पुस्तक प्रकाशन योजना - 2023-2024' के तहत चयनित है।

लेखक: राम मूरत 'राही' (सर्वाधिकार सुरक्षित)

पहला संस्करण : 2024

आईएसबीएन : 978-93-5986-769-4 (पेपरबैक)

अधिकतम विक्रय मूल्य (MRP)

(रुपया में)

पेपरबैक : 299/-

हार्डबाउंड : *499/-

ई-बुक : *99/-

प्रकाशक :

स्वतंत्र प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड

प्रधान कार्यालय : ए-26/ए, पहली मंजिल, पांडव नगर, दिल्ली-110092

झारखण्ड शाखा : गीता सदन, ध्रुव नगर, राँची रोड, पोस्ट मरार, जिला-रामगढ़, झारखण्ड-829117 

उत्तर प्रदेश शाखा : 1608, बी-24, इको विलेज-3, ग्रेटर नॉएडा वेस्ट, गौतमबुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश-201301

संपर्क :

मोबाइल : 9811188949, 9811168349, व्हाट्सअप 9811188949

ई-मेल : mail@swatantraprakashan.com, swatantraprakashan@gmail.com

वेबसाइट : www.swatantraprakashan.com

आत्मकथ्य 

सकारात्मक संदेश वाली लघुकथाएँ लिखीं जाएँ

आज जिस तरह से क्रिकेट में टेस्ट मैच व वन डे मैच के बजाय ट्वेंटी-ट्वेंटी मैच को दर्शकों द्वारा खूब पसंद किया जाता है, ठीक उसी तरह आज पाठकों को उपन्यास, कहानी के बनिस्बत लघुकथाएँ ज़्यादा पसंद आ रही हैं,

खासकर के वे लघुकथाएँ जो एक पेज़ से ज़्यादा बड़ी न हो, क्योंकि व्यस्तताओं के चलते पाठकों के पास इतना समय नहीं है कि वे दो-तीन पेज की लघुकथाएँ पढ़ने बैठें। इसी कारण कई ऐसी पत्र-पत्रिकाएँ हैं, जो छोटी लघुकथाओं को प्रमुखता से प्रकाशित करती हैं।

लघुकथा एक लोकप्रिय विधा होने के कारण इसे लिखने वालों की बाढ़-सी आई हुई है। रोज़ाना काफी संख्या में लघुकथाएँ लिखीं जा रही हैं और प्रकाशित भी हो रही हैं। लेकिन एक अलग पहचान उन्हीं लघुकथाकारों को मिलती है, जिनकी लघुकथाओं के विषय में नयापन होता है और जो कम शब्दों में बहुत कुछ कहने की कला जानते हैं। नये लघुकथाकारों को उनसे सीख लेना चाहिए।

लघुकथाएँ ऐसी लिखना चाहिए जो समाज को सकारात्मक संदेश दे, न कि नकारात्मक। जिसे पढ़कर पाठक न सिर्फ वाह-वाह करें बल्कि उसमें संवेदना पैदा हो और वह समाज के हित में काम करने के लिए प्रेरित हो। अगर किसी एक लघुकथा की वजह से भी किसी पाठक के जीवन में बदलाव आता है, तो ये लघुकथा लेखक के लिए बड़े गर्व की बात होगी।

बहरहाल मैं अपने उन सभी पाठकों/लेखकों एवं शुभचिंतकों का हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ, जो मेरी लघुकथाओं को न सिर्फ पसंद करते हैं बल्कि अपनी अनमोल प्रतिक्रियाओं से मुझे अवगत भी करवाते रहते हैं।

मैं वरिष्ठ लघुकथाकार आ. सन्तोष सुपेकर जी का हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ, जिन्होंने बहुत ही कम समय में मेरे इस संग्रह की भूमिका लिखी। मैं स्वतंत्र प्रकाशन नई दिल्ली का आभार प्रकट करता हूँ, जिन्होंने मेरे इस संग्रह का चयन कर, इसे प्रकाशित किया।

आशा है प्रबुद्ध पाठक मेरे इस लघुकथा संग्रह को पढ़कर अपनी अनमोल प्रतिक्रियाओं से मुझे अवश्य अवगत करायेंगे।

- राम मूरत 'राही' 

पता-168-बी, सूर्यदेव नगर, 

इंदौर-452009 (म.प्र.) 

मो.-94245 94873

भूमिका 

'राही' जी की भावात्मक शैली की लघुकथाएँ

अपने देखे, भोगे को रचनाकार जिस तरह से व्यक्त करता है वह उसके व्यक्तित्व को परिलक्षित करता है; स्टाईल इज़ द मेन हिमसेल्फ। यह तथ्य वरिष्ठ लघुकथाकार राम मूरत 'राही' जी पर लागू होता है। पिछले चालीस वर्षों में उन्होंने अपनी ग़ज़लों, बालकथाओं, व्यंग्यों और लघुकथाओं के द्वारा साहित्य जगत को जो प्रदेय दिया वह स्पृहणीय और अपूर्व है।

'राही' जी का रचना संसार विविधताओं का रचना संसार है। उनकी लघुकथाएँ आम पाठकों को सदैव आकर्षित करती आई हैं। प्रस्तुत संग्रह 'फ्लैट नंबर इक्कीस' उनका चौथा लघुकथा संग्रह है, जिसमें तकों की कसौटी पर कसकर उन विचारों को सही आकार देने की कोशिश है जो 'देखन में छोटे लगै, घाव करें गम्भीर' और यह कोशिश सरल, प्रांजल तथा बोधगम्य भाषा के माध्यम से की गई है।

'राही' जी की रचनाओं में बौद्धिकता से अधिक भावात्मकता की शैली है। करुणा, पर्यावरण संरक्षण, अपराधों से बचने की सजगता, शोमेनशिप की आडम्बर भरी खोखली दुनिया जैसे कथ्यों को विस्तार देकर अपनी कृतियों के माध्यम से वे पाठकों के बीच सराहे जाते रहे हैं। अपने कथ्यों के द्वारा वे जन-जन से जुड़े रहे हैं। किसी भी साहित्यकार की प्रतिभा, उसकी समझ, उसकी लोक संसक्ति विषयक चेतना पर निर्भर होती है। लोक संसक्ति का अर्थ अपने लोक और समाज से जुड़ना और स्पष्ट है कि अपने लोक से जुड़ने की यह प्रवृत्ति रचनाकार को अपने समय से जुड़ने को भी प्रेरित करती है।

इस संग्रह में उन्होंने आज के बदलते समय की झलक दिखलाई है 'और फोन कट गया' में। इस रचना में शातिरता एक स्त्री के मुख से बोलती है लेकिन सजग पुरुष का प्रत्युत्पन्नमतित्व उसे बचा लेता है।

मनुष्य नैतिकता छोड़ सकता है लेकिन पशु नहीं, 'एक सुर में', जानवरों और इंसानों का फर्क बताती है। 'कुछ दिनों बाद' और 'तुम्हारी तरह' पर्यावरण विनाश पर मानव को फटकारती, सचेत करती रचनाएँ हैं। बेटे की बदनीयत से आशंकित, दूरदर्शी वृद्ध चुपचाप कैसे अपने और पत्नी के बुढ़ापे की व्यवस्था कर लेता है इस कथ्य को विस्तार देती है शीर्षक लघुकथा 'फ्लैट नंबर इक्कीस'।

प्रेमचन्द जी ने कहा था-'जब तक मैं खुद भूखा न रहूँ भूख के बारे में क्या कहूँ?' इसी तथ्य को विस्तार देती है लघुकथा 'दो दिन से'। इसी कुल गोत्र की दूसरी लघुकथा है 'भूखे पेट'। अपने बच्चों की भूख मिटाने के लिए इंसान क्या नहीं करता? इसी विषय पर केन्द्रित, एक हाहाकारी चित्रण युक्त लघुकथा है 'इंतज़ाम'।

'सफलता का श्रेय' आज के महंगे स्कूलों, जहाँ पढ़ाई छोड़कर बाकी सब अच्छी तरह होता है पर करारा व्यंग्य है। 'बर्बाद नहीं कर सकता' बेटी के निर्णय को सही ठहराते समझदार पिता का चित्रण है।

फिल्मी सितारों की दिखावटी और लालच से भरी जिंदगी पर एक चमकदार फ़्लैश है, 'पढ़ेगा कौन?'

'यू अंडरस्टूड' गलती मानते बेटे का प्रायश्चित्त है। इसी तरह की रचना है 'ठिठुरते हुए'।

हर इंसान में धड़कता है दिल और उस दिल में बसती है संवेदना। इसी थीम पर आधारित है लघुकथा 'आज से पहले'। हालाँकि रचना कुछ अधिक विस्तार पा गई है। दिखावे की दुनिया में साँस लेने वाले कितने खोखले होते हैं बताती है लघुकथा 'छुपा दर्द'।

'निश्चित है' लघुकथा की पंक्ति 'शहर न जाने कितने गाँवों को खा गया' प्रभावी है और सोचने पर विवश करती है।

माँ की महिमा पर केंद्रित 'हमारी देवी' एक संदेशप्रद रचना है। 'टेस्ट' में घुमाव-फिराव के बाद भी अच्छा संदेश निकल कर आता है।

कहा गया है कि लघुकथा में शीर्षक दूर पहाड़ी पर बने मन्दिर के समान होना चाहिए। इन लघुकथाओं में मुझे प्रतीत हुआ कि इनमें शीर्षकों पर अधिक मन्थन, मनन की आवश्यकता थी। इसी तरह, कुछ लघुकथाओं में कथात्मकता के निर्वाह के साथ विचारों का समुचित पोषण हो जाता तो बेहतर।

'टाइम पास', 'सर्वोपरि', 'टेड़ी टाँग', 'अलविदा मत कहो', 'शाबाश बेटा', 'आवश्यकता है', 'काश ऐसा होता', 'सड़क के उस तरफ', 'चुपचाप से', 'जीवित मुर्दा', 'आदत', 'चल आगे जा', 'भागो' आदि लघुकथाएँ भी अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब हुई हैं।


अस्तु, विसंगतियों को न केवल इंगित करती, वरन उन पर प्रहार करती इन रचनाओं में अपने आसपास को जीवंत स्वरूप में प्रस्तुत करने के लिए, घटनाओं के वर्णन में उदात्त जीवन मूल्यों की झलक दिखलाने के लिए राम मूरत 'राही' जी को बधाई।

- सन्तोष सुपेकर

वरिष्ठ लघुकथाकार एवं साहित्य संपादक 'दैनिक जन टाइम्स'

31, सुदामा नगर, उज्जैन (म.प्र.)

9424816096

अनुक्रम

1. और फोन कट गया

2. एक सुर में

3. फर्क

4. कुछ दिनों बाद

5. फ्लैट नंबर इक्कीस

6. दो दिन से

7. रिश्ता और हिस्सा

9. आज से पहले

10. टाइम पास

11. सर्वोपरि

12. छुपा दर्द

13. पड़ोसी धर्म

14. टेड़ी टाँग

15. अलविदा मत कहो

16. शाबाश बेटा

17. इज़्ज़त

18. दर्पण

19. दिनों का फेर

20. निश्चित है

21. अदर वाइज

22. आवश्यकता है

23. इसे ले जाओ

24. डर

25. काश ऐसा होता

26. सफलता का श्रेय

27. अपनी-अपनी मजबूरी

28. शर्त

29. नया सवेरा

30. हमारा बेटू

31. सौभाग्य

32. अच्छी रकम

33. बर्बाद नहीं कर सकता

34. बुढ़ापे में

35. उसने कहा था

36. बहुत-बहुत धन्यवाद

37. काश मैं भी...

38. चारों धाम

39. पहले वो

40. शाम के समय

41. दम

42. गिरते तो तुम हो

43. इच्छा

44. जी अंकल

45. मुझे पापा चाहिए

46. असमर्थता का दर्द

47. मैं झूठ नहीं बोलता

48. मैं ही गलत क्यों

49. उसी पल से

50. टेक्निक

51. माँ हूँ कि दुश्मन

52. सरप्राइज़

53. हमारी देवी

54. कहने दे यार

55. फिर भी

56. सीख

57. फालतू की बात

58. सड़क के उस तरफ

59. लेखक नहीं

60. पढ़ेगा कौन?

61. औकात

62. यू अंडरस्टूड

63. छोटी सोच

64. आदत

65. होली के हमजोली

66. टेस्ट

67. अंकुश

68. मारे गयें गुलफाम

69. निश्चिंत

70. परवाह

71. हॉट ड्रेसेज

72. समझदार

73. जीवित मुर्दा

74. ठिठुरते हुए

75. गुरुमंत्र

76. चल आगे जा

77. भूखे पेट

78. भागो

79. इंतज़ाम

80. पसीने की महक

81. चुपचाप से

82. तुम्हारी तरह

83. चलते-फिरते कार्यालय

84. विश्वास

85. टाइम-बेटाइम

86. आश्वस्त

राम मूरत 'राही'

सम्पर्क : 168 बी, सूर्यदेव नगर, इन्दौर-452009,

चलायमान क्र. 94245-94873

ईमेल : rammooratrahi@gmail.com

योगदान : 1980 से सतत् बाल कहानियाँ, पत्र लेखन, गज़लें, कविताएँ, लघुकथाएँ, व्यंग्य, समीक्षा एवं संस्मरण लेखन में सक्रिय ।

प्रकाशित कृतियाँ : 'अंतहीन रिश्ते' (लघुकथा संग्रह, 2019), 'भूख से भरा पेट' (लघुकथा संग्रह, 2021), 'इंजेक्शन' (लघुकथा संग्रह, 2022), 'तेरे शहर में' (ग़ज़ल संग्रह-2022),

सम्पादन : 'अनाथ जीवन का दर्द' (लघुकथा संकलन) संतोष सुपेकर जी के साथ (2021),

अनुवाद : अनेक लघुकथाएँ अंग्रेजी, पंजाबी, उड़िया, गुजराती, नेपाली, बांग्ला, मराठी, उर्दू, मलयालम, असमिया, मैथिली भाषाओं तथा मालवी, गढ़वाली, भोजपुरी, अवधी बोली में अनूदित ।

विशेष : लघुकथा 'स्वाभिमानी', 'इंसान नहीं' एवं 'मेरा तीर्थ' पर लघु फिल्म निर्मित। लघुकथा 'अनोखा जवाब', 'चौथी मीटिंग' एवं 'मेरा तीर्थ' यू ट्यूब पर प्रसारित। लघुकथा 'माँ के लिए' एवं 'मेरा तीर्थ' का नेपाली भाषा में अभिनयात्मक वाचन ।

सम्मान/पुरस्कारः

अखिल भारतीय माँ शकुंतला कपूर स्मृति लघुकथा प्रतियोगिता-2018-19 का 'श्रेष्ठ लघुकथा' का पुरस्कार। कथादेश अ.भा. लघुकथा प्रतियोगिता-12, 'अटल हिन्दी सम्मान'-2020, सरल काव्यांजलि साहित्यिक संस्था उज्जैन द्वारा 'साहित्य सम्मान-2021', स्व. कमलचन्द वर्मा की स्मृति में 'मालव मयूर' सम्मान-2021', 'अहा! जिंदगी' पत्रिका (दैनिक भास्कर) में लघुकथाएँ चार बार पुरस्कृत, लघुकथा संग्रह 'भूख से भरा पेट' को क्रमशः लघुकथा शोध केन्द्र, भोपाल द्वारा 'लघुकथा श्री सम्मान-2022' एवं 'जयपुर साहित्य सम्मान-2022', लघुकथा संग्रह 'इंजेक्शन' को क्रमशः इन्दौर संभाग पुस्तकालय संघ द्वारा 'कृति कुसुम सम्मान-2023' एवं प्रज्ञा साहित्यिक मंच रोहतक (हरियाणा) द्वारा 'प्रज्ञा वैश्विक लघुकथा विशिष्ट सेवी सम्मान-2023', ग़ज़ल संग्रह 'तेरे शहर में' को क्षितिज साहित्य संस्था, इंदौर द्वारा 'क्षितिज कृति सम्मान-2023', श्रीमती निर्मला देवी भारद्वाज स्मृति लघुकथा सम्मान-2023', सिरसा (हरियाणा)।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

तपती पगडंडियों के पथिक/कमल कपूर (सं.)

आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र रचनावली,भाग-1/डाॅ. ऋचा शर्मा (सं.)

पीठ पर टिका घर (लघुकथा संग्रह) / सुधा गोयल (कथाकार)