अन्वीक्षण / सन्तोष सुपेकर
आलोचना पुस्तक : अन्वीक्षण
(लघुकथा संबंधी समीक्षाएँ, आलेख एवं पत्र)
लेखक : सन्तोष सुपेकर
ISBN 978-81-966528-2-1
Anvikshan (Laghukatha Critique)
© लेखक सन्तोष सुपेकर
प्रथम संस्करण : 2024
मूल्य : 300/- INR
प्रकाशक : अक्षरवार्ता पब्लिकेशंस, उज्जैन (म.प्र.)
मुखपृष्ठ एवं डिजाइन- हेमन्त भोपाळे
पुरोवाक्....
पाठक को कृति के और करीब ले जाने की कोशिश- समीक्षा समालोचना अपने आप में एक शास्त्र है। रिचर्ड्स ने समालोचना को कला न मानकर शास्त्र कहा है। रिचर्ड्स के मतानुसार समालोचना मूल्यांकन ही नहीं करती, बल्कि मानदण्ड भी निर्धारित करती है। उसने समालोचना के लिए भाषा में स्पष्टता, तथ्यपरकता एवं तार्किकता को अनिवार्य माना है। काव्यात्मकता, रहस्यमयता के साथ ही अस्पष्टता को उसने समालोचना के दोष स्वीकार किया है।
समालोचक के सम्मुख एक-दो प्रश्न भी लम्बे समय से खड़े हुए हैं कि वह रचनाओं की श्रेष्ठता का मूल्यांकन कला की दृष्टि से करे, विधागत सीमाओं को देखकर करे या उस रचना की सामाजिक उपयोगिता के आधार पर करे? कैसे वह अपनी साहित्यिक प्रतिबद्धता और जन प्रतिबद्धता के मध्य एक संतुलन बनाये रखे ?
वैसे पुराने समय से यह भी कहा गया है कि किसी भी आलोचक की समीक्षा-पद्धति के अन्तर्गत मुख्य रूप से तीन बातों पर विचार किया जाता है। पहला, उसके रचना सम्बन्धी आदर्श, सिद्धान्तों या विचार। दूसरा, उसकी समीक्षा का व्यावहारिक रूप और तीसरा, उसकी समीक्षा की भाषा शैली। अन्य शब्दों में समीक्षा, समालोचना एक चिन्तक की लम्बी चिन्तन यात्रा की पगडण्डी है जिसमें रचना समीक्षा की एक पद्धति निकालने की कोशिश वह करता है। कुल मिलाकर समालोचना, समीक्षा एक ऐसी कोशिश है जो पाठक को रचना / कृति के और करीब ले जाए। हिन्दी समालोचना की शुरुआत 19 वी सदी में भारतेंदु युग से मानी जाती है। इक्कीसवीं सदी के दोनों प्रारम्भिक दशकों में लघुकथा की समीक्षा और समालोचना पर बहुत कार्य हुआ है। लघुकथा के कमजोर पक्ष पर तो बात हुई ही है साथ ही लघुकथा के प्रबल पक्ष पर भी बहुत स्तरीय लेखन हुआ है।
लघुकथा, एक ऐसी कथा जिसमें लघुता अपनी सम्पूर्णता लिए संवेदनशीलता और तीक्ष्णता के नुकीले स्पर्श के साथ विद्यमान हो। डॉ. चन्द्रेश छतलानी के शब्दों में सर्जन में जितने शब्द कम, उतना अधिक श्रम ! हाँ, एक संयम और अनुशासन हर सृजन के साथ लगा हुआ है, लघुकथा में भी है। और लघुकथाकार यानी, विचारों की भीड़ को अपनी कुशलता और कल्पना के साथ समेटकर सीमित किन्तु समग्र रूप में पाठक को प्रस्तुत करने वाला रचनाकार। अमृतराय के अनुसार सृजन का असल सुख केवल यह नहीं कि कथाकार अपने कल्पना लोक में निर्बाध विचरण कर सके बल्कि इसमें है कि वह जड़ वास्तविकता को अपनी कल्पना से स्फूर्त और स्पंदित कर सके, मूक बधिर तथ्यों को वाणी दे सके। लघुकथा में यह कथन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि लेखक के पास विचारों की उफनती नदी है जिसे एक सुन्दर शिल्प के बांध से उसे व्यवस्थित ढंग से समेटना है।
अब एक बात आज की आलोचना, समीक्षा की कुछ व्यवहारिक कठिनाइयों की।
कबीर ने कहा है -
कबीर जीवन कछु नाही, खीन खारा खीन मीठ काल्हि अल्हजा मारिया, आज मसाना दीठ !।।
अर्थात् जीवन में अनुकूलताएँ आने पर जीवन मीठा और प्रतिकूलताएँ आने पर जीवन खारा लगने लगता है।
इससे सन्दर्भित बात यहाँ यह कि लघुकथा की (या कहा जाए कि किसी भी विधा की कृति की) समीक्षा में मैंने (और शायद हर समीक्षक ने) दो-तीन अनुभव विशेष तौर से नोट किये हैं। एक तो लेखक से समीक्षक के सम्बन्ध और दूसरे लेखक का अति प्रतिष्ठित होना !
अपने संग्रह/संकलन की सिर्फ प्रशंसा लिखने पर हर लेखक खुश हो जाता है लेकिन उसी संग्रह के कमजोर पक्षों को सामने लाने पर बहुत से लेखक दुःखी, नाराज़ हो जाते हैं। समीक्षक भी व्यक्तिगत सम्बन्धों, लेखक की प्रतिष्ठा, उसकी नाराजगी को देखते हुए अक्सर ऐसे तथ्यों का उल्लेख करने से कतराते हैं।
इस प्रकार कह सकते हैं कि सैद्धांतिक, निर्णयात्मक, विश्लेषणात्मक समालोचना के साथ- साथ संबंधात्मक आलोचना (!) भी आलोचना का एक प्रकार बनता जा रहा है जो कि स्पष्ट है कि साहित्य और समालोचना के लिए घातक ही साबित हो रहा है।
और तीसरी बात, कृति, समीक्षक को सौंपते ही लेखक का समीक्षा के लिए जल्दी मचाना। जब तक समीक्षक कृति को पूरी तरह से पढ़ेगा नहीं, उसे आत्मसात करेगा नहीं लेखक के मन की थाह लेगा नहीं तब तक वह उस पर कैसे कुछ लिख सकता है?
अस्तु, प्रस्तुत संकलन पिछले कुछ वर्षों में मेरे द्वारा की गयी विभिन्न लघुकथा संग्रहों, संकलनों की समीक्षा, लिखे गए कुछ आलेखों और लघुकथा को लेकर लिखे गए कुछ पत्रों का संग्रह है, जिसमें से कई कागज पर अंकित टंकित थे और भविष्य में जिनके गुम हो जाने का भय था।
इस कृति के आकर्षक मुखपृष्ठ के लिए, सही व स्पष्ट टंकण के लिए भाई हेमन्त भोपाळे, मुद्रण के लिए श्रीजी ऑफसेट के श्री प्रमोद शर्मा और प्रकाशन के लिए अक्षरवार्ता एवं डॉ. मोहन बैरागी का आभारी हूँ। मैं उन समस्त लेखकों, सम्पादकों का भी आभारी हूँ, जिन्होंने एक सशक्त विश्वास के साथ अपनी कृति मुझे समीक्षार्थ सौंपी।
इस संकलन के द्वारा मैं कितनी गहराई में पैठा हूँ उद्भावनाओं से अपने विवेचन को कैसे और कितना विचारोत्तेजक बनाया है यह सब आप पर छोड़ता हूँ।
आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में...
1 अगस्त, 2024
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक पुण्य तिथि
- सन्तोष सुपेकर
31, सुदामा नगर,
आगर रोड, उज्जैन (म.प्र.)
मो. 9424816096
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अनुक्रमणिका
समीक्षाएँ
1. 'उस' सदी का सार्थक स्मरण, 'इस सदी की उम्र'
2. वर्तमान समय के बहुरूपियेपन का सफल चित्रण : अंधे बहरे लोग
3. रीढ़विहीन समाज का समुचित इलाज : 'सवाल -दर- सवाल'
4. लघुकथा की राह के मील के पत्थर : 'पड़ाव और पड़ताल'
5. लघुकथा संसार में नई संभावनापूर्ण दस्तक : 'साझा मन'
6. संवेदना का सटीक उपयोग : 'संकल्प और सपने'
7. रचनात्मक प्रयोजन की सार्थकता (लघुकथा : रचना पद्धति और समीक्षा)
8. अनेक रंगों से सघन होता, 'समीक्षा बिंदु'
9. पाठकीय आग्रह का सफल निर्वाह : ककुभ-2
10. लघुकथा जगत में सुखद आगमन : 'कठे जाणां'
11. जीवन्त लेखन का प्रतीक : सांझा दर्द
12. लघुकथा की परिधि को विराट करता : 'निन्यानवे का फेर'
13. घनीभूत संवेदनाओं की प्रस्तुति : रास्ते और भी हैं
14. अनुभवजन्य घटनाओं का अनुनाद : रैतीली प्रतिध्वनि
15. ऊपर उठती 'धारा'
16. नये आयाम छूने को बेताब : तीसरा पैग
17. प्रदेशवार संकलन : मध्यप्रदेश की लघुकथाएँ
18. गैर इंसानी जज्बे के विरुद्ध सशक्त अभिव्यक्ति 'लम्हों की गाथा'
19. संवेदना का मुखर स्वर : 'इंजेक्शन'
20. अपने कथ्य और उद्देश्य में सफल कृति: हिन्दी लघुकथा के सिद्धान्त
21. मन के भावों की सफल अभिव्यक्ति : 'ज़िंदा मैं'
22. प्रभावी सम्प्रेषणीयता से लबरेज लघुकथाएँ
23. 'शिखर पर बैठकर' : लघुकथा का संग्रहणीय दस्तावेज
24. लघुकथा के भीतर झाँकने का प्रयास : लघुकथा वृत्त
25. संवेदनाओं की विपुलता : भोर में भास्कर
26. सामान्य जीवनबोध को उठाती लघुकथाएँ
27. विमर्श को सघन करती कृति : हिन्दी लघुकथा : संवेदना और शिल्प
आलेख-
28. मेरी पसंद : सन्तोष सुपेकर
29. लघुकथा का मंचीय पाठ : कुछ तथ्य
30. आपदाकाल और लघुकथाएँ
31. संवेदना की सृष्टि भूमि - लघुकथा
32. लघुकथा में भाषाई सौंदर्य
33. लघुकथा और उज्जैन
34. वैश्विक परिवेश और हिन्दी लघुकथा
35. लघुकथा विषयक पत्र
36. वर्ष 2023-2024 में प्रकाशित लघुकथा विमर्श की पुस्तकों की सूची
संतोष सुपेकर
जन्म : 29 जून 1967 को उज्जैन (म.प्र.) में
मातृभाषा : मराठी
लेखन के क्षेत्र में : वर्ष 1986 से सतत् पत्र लेखन, कविता, लघुकथा, व्यंग्य, कहानी एवं समीक्षा लेखन में भी सक्रिय। आकाशवाणी एवं 40 देशों में सुने जाने वाले इंटरनेट रेडियो 'बोल हरियाणा बोल' पर कविताएँ एवं लघुकथाएं प्रसारित। विदेशों (मॉरीशस, नीदरलैंड, कैलिफोर्निया) से भी रचनाएँ प्रकाशित।
पुरस्कार एवं सम्मानः दैनिक भास्कर एवं इंडिया टुडे द्वारा (क्रमशः वर्ष 1989 एवं 2013 में) सर्वश्रेष्ठ पत्र लेखक पुरस्कार। लघुकथा लेखन के लिए कई पुरस्कार जिसमें पाँच बार कथादेश (नई दिल्ली) की अ.भा. लघुकथा प्रतियोगिता के पुरस्कार शामिल। लघुकथाएँ मराठी, बांग्ला, गुजराती, कन्नड़, सिंधी, उड़िया, संस्कृत, उर्दू (मालवी बोली) एवं पंजाबी भाषा के अतिरिक्त नेपाली भाषा में भी अनूदित। कविताएँ (मराठी, अंग्रेजी, मलयालम भाषा में) एवं लघुकथाएँ अंग्रेजी भाषा में अनूदित। रेल मंत्रालय भारत सरकार द्वारा लघुकथा संग्रह 'बंद आँखों का समाज' पर प्रेमचंद कथा सम्मान। इसी संग्रह के लिए भोपाल का अंबिका प्रसाद दिव्य रजत अलंकरण। देशभर की कई संस्थाओं एवं पत्रिकाओं द्वारा पुरस्कृत। दिशा प्रकाशन (नई दिल्ली) की लघुकथा श्रृंखला संकलन 'पड़ाव और पड़ताल' के 15वें खण्ड में लघुकथाएँ शामिल। लघुकथा पर पोस्टर निर्मित एवं अ.भा. लघुकथा प्रदर्शनी-2018 में इंदौर में प्रदर्शित। अ.भा. लघुकथा सम्मेलन, इंदौर में समीक्षक के रूप में आमंत्रित। विश्व लघुकथाकार कोष में शामिल। 1983 में स्थापित 'क्षितिज' संस्था (इंदौर) का प्रथम लघुकथा समग्र सम्मान (2018)। दिशा प्रकाशन (नई दिल्ली) द्वारा देश की चुनिंदा 66 लघुकथाओं के पात्रों की पड़ताल में रचना शामिल। श्री साहित्य मंडल नाथद्वारा (राजस्थान) द्वारा 'काव्य कलाधर' की उपाधि। कई लघुकथाओं पर ऑडियो, वीडियो एवं शॉर्ट फिल्म्स निर्मित। मध्यप्रदेश लेखक संघ भोपाल द्वारा दो बार, 2011 एवं 2023 में पुरस्कृत।
विशेष :
महाराष्ट्र राज्य शिक्षा बोर्ड के कक्षा 10वीं के पाठ्यक्रम में लघुकथाएँ शामिल। लघुकथा कलश (पटियाला) द्वारा स्वयं के लघुकथा अवदान पर आलेख। दो लघुकथाओं पर शॉर्ट फिल्मों का निर्माण। साहित्य अकादमी मप्र द्वारा लघुकथा संग्रह 'सातवें पन्ने की खबर' पर जैनेन्द्र कुमार जैन स्मृति पुरस्कार। विक्रम विवि उज्जैन में श्रीमती अनिता मेवाड़ा द्वारा 'मालवांचल की लघुकथा परम्परा और सन्तोष सुपेकर का प्रदेय' पर शोध कार्य प्रारम्भ। श्रीमती वैशाली चारथल द्वारा नागपुर के आर. टी. एम. विश्वविद्यालय में लघुकथाओं का अध्ययन।
प्रकाशित कृतियाँ:
1. साथ चलते हुए (लघुकथा संकलन) 2004
2. हाशिए का आदमी (लघुकथा संग्रह) 2007
3. बंद आँखों का समाज (लघुकथा संग्रह) मराठी संस्करण, 'डोळस पण अंध समाज' पुणे (महाराष्ट्र) से प्रकाशित 2010,
4. चेहरों के आरपार (काव्य संग्रह) 2011, अंग्रेजी संस्करण ACROSS THE FACES कोलकाता से 2019 में प्रकाशित
5. भ्रम के बाजार में (लघुकथा संग्रह) 2013
6. यथार्थ के यक्ष प्रश्न (काव्य संग्रह) 2015,
7. हंसी की चीखें (लघुकथा संग्रह) 2017,
8. नक्कारखाने की उम्मीदें (काव्य संग्रह) 2020,
9. सातवें पन्ने की खबर (लघुकथा संग्रह) 2020,
10. अपकेन्द्रीय बल (लघुकथा संग्रह) 2022,
11. प्रस्वेद का स्वर (लघुकथा संग्रह) 2024, क्षिप्रा थैके गंगा पर्यन्तो (कोलकाता से प्रकाशित संकलन में 20 लघुकथाएँ बांग्ला में अनुदित), श्रीमती कल्पना भट्ट द्वारा 56 लघुकथाओं का अंग्रेजी अनुवाद 'Selected Laghukathas of Santosh Supekar' 2022 में प्रकाशित।
सम्पादन :
शब्द सफर के साथी (लघुकथा फोल्डर-2013) एवं अविराम साहित्यिकी (बरेली, उत्तरप्रदेश) का श्रीकृष्ण 'सरल' विशेषांक (2017) अनाथ जीवन की लघुकथाएँ (2021), उत्कण्ठा के चलते (लघुकथा के साक्षात्कार-2021) सरल पथगामी (2023) प्रस्तुत संकलन- अन्वीक्षण (2024)
सम्प्रति : रेल सेवा से निवृत्ति के पश्चात स्वतन्त्र लेखन एवं दैनिक जनटाइम्स, उज्जैन में साहित्य सम्पादन।
सम्पर्क : 31, सुदामा नगर, उज्जैन (मध्यप्रदेश) 456001,
मोबाइल : 94248-16096
ई-मेल :
santoshsupekar29@gmail.com
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