सूली ऊपर सेज/बलराम अग्रवाल
सूली ऊपर सेज (चुनी हुई व्यंग्य लघुकथाएँ)
बलराम अग्रवाल
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कॉपीराइट : बलराम अग्रवाल
प्रथम संस्करण: 2025
ISBN: 978-93-48283-18-4 मूल्यः रुः 225.00/- (पेपरबैक)
ई-मेल: indianetbooks@gmail.com
website: www.indianetbooks.com
प्रथम संस्करण की भूमिका
दृष्टिबाधित विचारधारा के विरोध में
कभी सतसइया के दोहों के बारे में कहा गया था कि देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर। कबीर की सखियाँ विसंगतिपूर्ण समाज के विरुद्ध नावक के तीर बनी थीं। गद्य-युग में यही भूमिका लघु-व्यंग्य निभा रहे हैं। व्यंग्यकार शब्द प्रयोग में बेहद कंजूस होता है। वह ऐसा धनुर्धर है जो आसपास के पेड़ नहीं देखता, चिड़िया की आँख देखता है। वह व्यंग्य जैसे विवशताजन्य हथियार का प्रयोग एक सैनिक की तरह करता है। सार्थक लघुकथा में व्यंग्य एक उत्प्रेरक का काम करता है। व्यंग्य की प्रखरता, लक्ष्यबेधक दृष्टि, आलोचनात्मक प्रवृत्ति आदि लघुकथा को एक मारक रचना-शक्ति प्रदान करती हैं। पर लघुकथा को यह शक्ति तभी मिलती है जब उसका प्रयोगकर्ता इसके टूल्स का सावधानी से प्रयोग करता है। किसी भी अच्छी रचना के लिए उसके टूल्स का प्रयोग सावधानी से करना अनिवार्य तत्व है।
बलराम अग्रवाल को मैं वर्षों से पढ़ता रहा हूँ। उनकी रचनात्मक दृष्टि दलबद्ध नहीं है। इस कारण वे विचार का प्रयोग अपने विवेक से करते हैं। इस संकलन में भी उन्होंने व्यंग्य दृष्टि के प्रयोग द्वारा अपने सामाजिक सरकारों को रेखांकित किया है। वे अपनी मानवीय सोच के कारण मनुष्य को जाति, धर्म आदि से देखने वाली दृष्टिबाधित विचारधारा के विरोध में दिखाई देते हैं। इन रचनाओं में उन्होंने संकुचित दृष्टि के कारण उपजी विसंगतियों पर निर्भीक प्रहार किए हैं। बहुत कुछ ऐसे ही प्रहारों का अनुभव हम सबने मंटो को पढ़ते हुए किया था।
मैंने इस संकलन को जब पढ़ा तो मेरे लिए यह मंटो के पुनर्पाठ जैसा था। आरम्भ से ही यह संकलन अंतर्भूत करुणा के साथ दंश देता है। बलराम अग्रवाल कुछ शब्दों में बात कहते हैं, पर मेरी विवेक बुद्धि ने उसके अन्यार्थ ग्रहण किये और एक विस्तृत विसंगति से मेरा सामना हुआ। आप जब 'अपने अपने आग्रह', 'अपने अपने सकून', 'आदाब', 'पाकिस्तान', 'कुर्बानी', 'मज़हब', 'मजहबी किताबें' आदि पढ़ेंगे तो चाहे मेरे कितने ही विरोधी हों, कम से कम अंतर्मन से मेरे पक्षधर हो जाएँगे। कह सकता है कि यह किताब अपने समय की ताजातरीन राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक आदि विसंगतियों को समझने की एक पाठशाला जैसी है।
प्रेम जनमेजय
संपादक 'व्यंग्य यात्रा'
73, साक्षर अपार्टमेंट्स, ए-3, पश्चिम विहार, नई दिल्ली-110063
+91 98111 54440
ई-मेल : premjanmejai@gmail.com
अनुक्रम
दृष्टिबाधित विचारधारा के विरोध में/ व्यंग्य : सफर शैली से विधा तक/
1. अपने-अपने आग्रह
2. अपने-अपने सुकून.
3. आदाब..
4. एक राजनीतिक संवाद.
5. कुर्बानी.
6. परदादारी.
7. पाकिस्तान..
8. पाखण्ड.
9. पुरातन इतिहास..
10. समझदारी..
11. बकरा और बादाम.
12. बदबू..
13. बन्दरों की नयी खेप.
14. भरोसा और ईमानदारी.
15. भुट्टा और कलम.
16. मजहबी किताबें,
17. मजहब
18. मध्यमार्गी.
19. मुर्दों के महारथी.
20. मरा हुआ मर्द.
21. मौसम की मार.
22. दौलतखाने में दलित.
23. मीडिया इन दिनों.
24. रचनाशील विपक्ष....
25. मेरे मेहमां (मंटो साहब को याद रखते हुए..
26. व्यवसायी.
27. जोस्सी और जजमान..
28. ये दुकानवालियाँ..
29. सेक्युलर.1.
30. बेचारा पत्थरबाज..
31. बड़े लोग.
32. नए रहनुमा.
33. चुप ही बेहतर.
34. लेखक. प्रकाशक संवाद.
35. व्यावसायिक सम्बन्ध..
36. शह और मात.
37. कुंडली.
38. ब्रह्म. सरोवर के कीड़े.
39. पूजावाली जगह..
40. अथ ध्यानम्..
41. नाटक..
42. मान. अपमान.
43. अगर तू खुदा है..
44. लानत
45. सरकारी अमला..
46. सेक्युलर.2.
47. संकट. मोचन..
48. संसद पर हमला.
49. अंधी दौड़.
50. एक और देवदास..
51. नागपूजा.
52. कामरेड कबूतर.
53. बदलेराम.
54. युद्धखोर मुर्द.
55. आम आदमी.
56. बातचीत एक देशभक्त से.........
57. विलाप.
58. दाँव पर देश.
59. कुत्ते नर्क में नहीं जाते.
60. लालची लोमड़
61. माँ. बेटा संवाद
62. बड़ी खबर.
63. वनिता वार्ता..
64. पलायनवादी..
65. मानस जात
66. मलाई. वंचित होने पर.
67. कहानी पुरानी..
68. फलसफा.
69. गंगा में गंदगी.
70. गधों की घर. वापसी..
71. चैट : सानिया विद शमीम..
72. बिके हुए लोग.
73. चौराहे पर राजाराम.
74. तलाश........
75. अधजल गगरी..
76. तीसरा आदमी..
77. वन्दे मातरम्..
78. नया विधान.
79. मुर्दे बतियाते हैं
80. घोड़ों के व्यापारी.
81. दो जिद्दी
82. सुरंग में लड़कियाँ.
83. नरवाहन
84. जीवन-2...
85. पालनहार...
86. दो सखियाँ
87. वसुदेव कुटुम्बकम्
88. जुड़ाव.
89. गुरुमंत्र..
डॉ. बलराम अग्रवाल
जन्म : 26 नवंबर 1952 (बुलन्दशहर, उ.प्र., भारत)
शिक्षा : एम.ए., पी-एच.डी (हिन्दी), अनुवाद में स्नातकोत्तर डिप्लोमा।
6 लघुकथा संग्रह, 2 कहानी संग्रह, आलोचना की 6 व बाल साहित्य की 15 पुस्तकें प्रकाशित।
प्रेमचंद, प्रसाद, टैगोर, शरत् चन्द्र, बालशोरि रेड्डी की कहानियों के 24 संग्रह संपादित । 1993 से 1995 तक 'वर्तमान जनगाथा' का तथा अनेक पत्रिकाओं के विशेषांकों का संपादन।
'लघुकथा : इतिहास, स्वरूप और सम्भावना' विषय पर संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अन्तर्गत सीनियर फैलोशिप।
अनेक बाल नाटक केरल, हिमाचल प्रदेश, मुम्बई आदि के शिक्षा विभाग, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस (हिन्दी प्रभाग) एवं अन्य प्रकाशकों द्वारा विभिन्न कक्षाओं के पाठ्यक्रम में 2014 से सम्मिलित।
अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित व पुरस्कृत।
ई-मेल : balram.agarwal1152@gmail.com
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