आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र रचनावली (भाग-2) / डॉ. ऋचा शर्मा

आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र रचनावली भाग-2 (लघुकथाएँ-बोधकथाएँ)

संपादक  : डॉ. ऋचा शर्मा

ISBN 978-93-91147-63-1

देवप्रभा प्रकाशन

फ्लैट नं. जी-50, ई-ब्लॉक, गौड़ होम्स, गोविन्दपुरम, गाज़ियाबाद-201013 (उ.प्र.) दूरभाष : 08586053956 

e-mail: devprabhaprakashan@gmail.com 

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मूल्य : 275.00 रुपये

प्रथम संस्करण 2024 

@डॉ. ऋचा शर्मा

पृष्ठ-सज्जा : भूदेव सैनी

आवरण : हिमांशु सैनी

परिचय : आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र

जन्म : 20 जनवरी, सन् 1900 

जन्मस्थान :  देवबंद (सहारनपुर) उत्तर प्रदेश

माता : श्रीमती चमेली देवी

पिता : पं. परशुराम मिश्र

• देहावसान-29 मई, सन् 1981, सहारनपुर, उ.प्र.।

हिंदी, संस्कृत तथा आयुर्वेद के प्रकांड विद्वान, स्वतंत्रता सेनानी।

प्रमुख कृतियाँ :

• 'इन्दिरा' हिंदी का प्रथम मनोवैज्ञानिक उपन्यास जो सन् 1920-21 में लिखा गया। उत्तर प्रदेश शासन से पुरस्कृत।

• 'और वह हार गई' हिंदी की प्रथम पुरस्कृत पॉकेट बुक।

• 'हाथी के दाँत' समाज पर व्यंग्य है। यह 'लघु उपन्यास' आधुनिक उपन्यास कला का सफल उदाहरण कहा गया।

'सीमा के पार' यह लघु उपन्यास है, इसमें मनोवैज्ञानिक आधार पर कथानक का निर्माण किया गया है।

'दुर्बल के पाँव' उपन्यास ।

कहानियाँ तथा लघुकथाएँ :

'धूपदीप', 'मौत की खोज', 'मिट्टी के आदमी', 'पंचतत्व', 'खाली भरे हाथ', 'ऐतिहासिक लघुकथाएँ' और 'जय-पराजय' कहानी, बोधकथा एवं लघुकथा संग्रह हैं। एकांकी-सम्राट डॉ. रामकुमार वर्मा के शब्दों में-'आचार्य जी की लघुकथाएँ खलील जिब्रान और रवीद्रनाथ टैगोर की टक्कर की हैं।'

लघु-नाटक :

●'देवदूत, 'धर्मयुद्ध' तथा 'मरुस्थली के पहरेदार' लघु-नाटक राष्ट्रीय गौरव की महत्ता पर आधारित हैं।

●Earth in man-('खाली भरे हाथ' का अंग्रेजी अनुवाद)

●उपन्यास, कहानी, बोधकथा, लघुकथा, लघु-नाटक, एकांकी, पौराणिक एकांकी आदि अनेक विधाओं में मिश्र जी की लेखनी समान रूप से चली है।

लघुकथा के संक्रमण-काल का दस्तावेज़

हिंदी लघुकथाओं की पृष्ठभूमि में बोध और नीति तत्वों से सुसज्जित कथाएँ मिलती हैं, जो किन्हीं आदर्शोपदेशों को अपने चिंतन और रचना-प्रक्रिया का अंग बनाकर चलती थीं। बीसवीं सदी का पूर्वार्ध और परवर्ती कुछ वर्ष बोधकथाओं के तिरोहित होते जाने और समकालीन यथार्थ से सम्बद्ध लघुकथा-साहित्य के पल्लवन के साक्षी हैं। आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र का लघुकथा और बोधकथा का साहित्य इसी कालावधि में रचा गया। कह सकते हैं कि मिश्र जी की बोधकथाएँ और लघुकथाएँ संक्रमण-काल में अवस्थित हैं तथा हिंदी लघुकथा की संघर्ष-यात्रा की साक्षी हैं।

सन् 2010 में मैं 1970 तक की हिंदी लघुकथाओं पर केंद्रित पुस्तक 'नींव के नायक' पर काम कर रहा था, तो सबसे अधिक कठिनाई आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र के अनेकशः उल्लिखित आठ लघुकथा-बोधकथा संग्रहों को खोजने में हुई। तमाम प्रयासों के बाद केवल 'मिट्टी के आदमी' संग्रह ही प्राप्त कर पाया। यही कठिनाई इधर के वर्षों में रमेश बत्तरा और विक्रम सोनी के लघुकथा-साहित्य पर केंद्रित पुस्तकें तैयार करते समय अनुभव हुई। तात्पर्य यह कि डॉ. ऋचा शर्मा ने अपने बाबाजी के इस साहित्य को प्रकाश में लाने का निष्ठापूर्वक जो दायित्व लिया है, यह स्वयं में दुरूह और साहसिक कार्य है। वास्तव में आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र की लघुकथा-बोधकथा संबंधी रचनावली स्वयं में ऐतिहासिक दस्तावेज़ तो है ही, यह अन्य अनेक प्रश्नों का भी उत्तर सिद्ध होगी। परम्परा की नींव पर ही वर्तमान का प्रासाद शोभायमान होता है। 'नींव के नायक' (2011) में आचार्य जी की तेरह लघुकथाएँ उनकी 'मिट्टी के आदमी' (1966) नामक लघुकथा-संग्रह से दी गई हैं। यह भी आश्चर्य है कि इससे पहले के लघुकथा-संकलनों में उनकी एकमात्र रचना 'संसार की यात्रा' ही उद्धृत होती रही है।

यदि आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र (1900-1981) के साथ कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर (1906-2009), रावी (1911-1994) और विष्णु प्रभाकर (1912-2009) के लघुकथा-साहित्य का अध्ययन करें, तो इस कालखंड में हिंदी लघुकथा के बदलते स्वरूप को लेकर बहुमूल्य निष्कर्ष सामने आएँगे। किसी अनुसंधित्सु को यह कार्य निष्पन्न करना चाहिए।

'मिट्टी के आदमी' (1966) संग्रह की कुछ लघुकथाओं का विवेचन यहाँ अपेक्षित है। 'स्त्री पूजा' स्त्री-विमर्श की प्रतिमानक लघुकथा है। महामाया लक्ष्मी द्वारा पूछे गए प्रश्न आज भी पुरुष-समाज से उत्तर की प्रतीक्षा में है। प्रश्न हैं- 'सभा सोसाइटी, राज्यद्वार, सखा-सखि, मित्र-परिचित-सबके यहाँ आने-जाने में तेरी स्त्री को पूर्ण स्वतंत्रता है?' 'तेरी स्त्री को अपनी रुचि का वस्त्र, अपनी रुचि का भोजन करने की पूर्ण स्वतंत्रता है?' और 'तूने पर पुरुषों के साथ, आहार-विहार करते समय, उसका स्त्री-सुलभ स्वाभाविक संकोच भी अपने यत्न से अभी तक दूर किया या नहीं?' अभी तक क्या, यह सब इक्कीसवीं सदी में भी दूर नहीं हुआ। यह बड़े आशय की रचना है। इसके साथ ही भरपूर रोचकता की लघुकथाएँ पढ़नी हों, तो 'दो फोन : दो अदालतें', 'भाई-भाई' पढ़ जाएँ। स्वाभिमान का सर्वोपरि महत्व जानना हो तो मिश्र जी की 'राज्याश्रय' और 'मिट्टी के आदमी' लघुकथाएँ पढ़ सकते हैं, जिन्हें रचनात्मक कल्पना से प्रभावशाली बनाया गया है। 'संसार का नियम' मानवेतर शैली में मानवीय व्यवहार की श्रेष्ठ रचना है। चक्की का वक्तव्य देखें-"इस संसार में उसी की पूछ और सुनवाई होती है, जो दूसरों को पीसता भी रहे और अपने-आप चीखता भी रहे।" 'पुष्टई की दवा' सात सौ से अधिक शब्दों की लघुकथा है, जो प्रेम-संबंधों का बड़े ही सहज, रोचक और आकर्षक रूप में चित्रण करती है। लघुकथा को शब्द-सीमा और बाह्य आकार में बाँधने वाले कथित समीक्षक इस श्रेष्ठ रचना को पढ़कर अपनी धारणा पर पुनर्विचार कर सकते हैं।

अंत में, हिंदी लघुकथा के इतिहास की इस लुप्तप्राय, किंतु आवश्यक कड़ी को जोड़ने का जो महत्वपूर्ण कार्य डॉ. ऋचा शर्मा कर रही हैं, उसके लिए उन्हें बधाई, साधुवाद और शुभकामनाएँ देता हूँ। साधना ही सिद्धि का मंगल-द्वार है और यही आत्मतुष्टि का सच्चा साधन भी।

- अशोक भाटिया 

1882, सेक्टर-13 करनाल-132001 

फोन : 94161 52100 

Email: ashokbhatiahes@gmail.com

पुस्तक

मिट्टी के आदमी 

(आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र : प्रकाशन वर्ष-सन् 1967)

(व्यंग्यात्मक लघुकथाएँ)

सिनेमा स्टार 

दो फोन, दो अदालतें 

एक पोण्ड ऊन, 

एक छटाँक मलाई 

निर्वाण का परम पद 

तीन दिन का दुर्भाग्य 

तीसरे पैर का खोट 

राज्याश्रय 

घण्टे की वाणी 

धूल-मिट्टी की परत 

तृप्ति 

दृष्टि-सुख 

स्त्री-पूजा 

वनराज का पीलिया 

अमृत की घूँट 

काले परदे के पीछे 

भगवान् की चोरी 

बुद्धि की विशेषता

गरीबी-अमीरी

भेड़ियों का सह-अस्तित्व

नाचने वाले का पैर

पुष्टई की दवा 

संसार का नियम 

अमृत और विष 

नया सम्बन्ध 

अन्धों का संग 

नयी विद्या का उपदेश 

जन-हित : जन-सेवा 

आतिथ्य-लाभ

भाई-भाई 

केले और सेव की प्लेट 

मिट्टी के आदमी

पुस्तक

ऐतिहासिक लघुकथाएँ

(आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र : प्रकाशन वर्ष-सन्-1971)

भक्त को भगवान का बल 

मेवाड़ का अनुशासन 

न फूटने वाली मशक 

बलिदान के भूखे भारतीय 

भारत की वीर मृत्युंजय अबलायें

मुसलमान : कुरान 

मरकर स्वाधीन 

देश की अमानत 

राजा विक्रमादित्य 

भगवान का उपकार 

नेतृत्व

कालिदास का वाक्-चातुर्य 

मोह-विजय 

संगठन 

पाप का दंड 

बल का अहंकार 

ज्ञानोदय

पुस्तक

जय-पराजय 

(आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र : प्रकाशन वर्ष-सन्-1956 : ऐतिहासिक लघुकथाएँ)


पतिव्रता का आत्मसमर्पण 

प्रेम-परीक्षा 

राजपूतनी का विवाह 

गुजरात का वारिस 

राजपूत का वाग्दान 

वीर माँ की बाज़ी 

वीर-परीक्षा 

त्याग-वीर

संक्षिप्त परिचय : डॉ. ऋचा शर्मा

जन्म स्थानः प्रयागराज (इलाहाबाद)

शिक्षा : एम. ए. (हिंदी तथा संस्कृत), पीएच. डी. इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज 

प्रोफेसर तथा अध्यक्ष : हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर महाराष्ट्र

अनुवाद पदविका :

सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ, पुणे

अध्यापन अनुभव : 30 वर्ष, आबासाहेब गरवारे कॉलेज, पुणे, हिंदी विभाग, सावित्रीबाई फुले पुणे, विद्यापीठ पुणे, सन् 1999 से अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर महाराष्ट्र

शोध निर्देशक :

1. सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ : पुणे

हिंदी अध्ययन मंडल सदस्यः 

1. हिंदी विभाग, सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ, पुणे, 

2. मॉर्डन कॉलेज, पुणे, 

3. खालसा कॉलेज, मुंबई, तीन लघुशोध प्रकल्प (यूजीसी)

प्रकाशित साहित्य : 1. लघुकथा संग्रहः आ अब लौट चलें, 2. काव्य संग्रहः गुलदस्तों की संस्कृति, द्रौपदी क्यों बँटी तुम?, 3. समीक्षात्मक-मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासः एक अनुशीलन, हिंदी पत्रकारिता कल और आज, वैश्वीकरण के आईने में हिंदी पत्रकारिता, 4. सहसंपादक-राष्ट्रवाणी, महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे, 5. अनेक पुस्तकों तथा पाठ्यपुस्तकों का संपादन, सह-लेखन (सीताशक्ति काव्य), लगभग 50 शोध आलेखों का प्रकाशन, अनुवाद कार्य, 6. हंस, अक्षरा, साक्षात्कार, वागर्थ, वीणा, राष्ट्रवाणी, गुंजन, अनुशीलन, भाषा, संरचना आदि अनेक साहित्यिक पत्रिकाओं में लेख कविताएं तथा लघुकथाएं प्रकाशित, 7. ई अभिव्यक्ति ब्लॉग साइट पर लघुकथाओं का प्रकाशन।

पुरस्कार/सम्मान: 1. बोल्ट एवार्ड एअर इंडिया द्वारा 'सर्वश्रेष्ठ शिक्षक' पुरस्कार 2006, नागपुर, 2. साहित्य महोपाध्यायः हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, 9, 10 मई 2010, आगरा में प्राप्त, 3. महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी मुंबई द्वारा वर्ष 2013: 14 का 'विधा पुरस्कार' प्राप्त, 4. महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा पुणे द्वारा 'आदर्श शिक्षक पुरस्कार' प्राप्त: 2016, 5. स्नेहालय, अहमदनगर द्वारा 'साहित्ययात्री सम्मान', जनवरी सन् 2019 में प्राप्त, 6. उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा 'वैश्वीकरण और हिंदी पत्रकारिता' पुस्तक पर 'धर्मवीर भारती पुरस्कार' प्राप्त, सन् 2020, 7. लघुकथा शोध केंद्र, भोपाल द्वारा 'आ अब लौट चलें' लघुकथा संग्रह पर 'विक्रम सोनी पुरस्कार' प्राप्त, सन् 2022, 8. महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा पुणे द्वारा 'हिंदी सेवा के लिए' वर्ष 2022 में सम्मान पत्र प्रदान किया गया।

साहित्यिक तथा हिंदी प्रचार संस्थाओं से संबंद्धः 1. महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे की हिंदी प्रचार-प्रसार की गतिविधियों में सहभागिता, 2. केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली मार्गदर्शक साहित्यकार तथा समन्वयक नवलेखक शिविर, 3. हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, 4. पुनरुत्थान विद्यापीठ, गुजरात के लिए पुस्तकें लिखीं, 5. संस्थापक 'हिंदी सृजन सभा'। इसके द्वारा अहमदनगर में साहित्यिक तथा सामाजिक गतिविधियों का आयोजन। संयोजक : लघुकथा शोध केंद्र अहमदनगर महाराष्ट्र (भोपाल केंद्र की शाखा) 6. इलाहाबाद, लखनऊ, राजकोट, दिल्ली, पुणे, अहमदनगर आकाशवाणी केंद्रों से कविताएँ, वार्ताएँ, लघुकथाएँ आदि प्रसारित, 7. महिला सशक्तिकरण पर विभिन्न सामाजिक संस्थाओं में व्याख्यान दिए हैं।

मोबाईल : 

09370288414

Email: richasharma1168@gmail.com

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