देवनागरी हिन्दी में प्रकाशित निजी व संपादित लघुकथा संग्रहों, संकलनों, आलोचना व समीक्षा की पुस्तकों तथा विशेषांकों में प्रकाशित लघुकथा साहित्य का संक्षिप्त परिचय। उल्लेखनीय लघुकथाओं एवं लेखों का लिखित पाठ भी।
लघुकथा पत्रिका-1975/जगदीश कश्यप (सं.)
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मिनीयुग का यह अंक अक्टूबर-नवंबर 1975 में प्रकाशित हुआ था। तब तक लघुकथा को मिलाकर लिखने की परंपरा का सूत्रपात नहीं हुआ था।
पीठ पर टिका घर (लघुकथा संग्रह) कथाकार : सुधा गोयल पहला संस्करण : 2024 ISBN: 978-93-95356-40-4 नमन प्रकाशन 4231/1, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-110002 फोन : 8750551515, 9350551515 चिन्तन लघुकथा आकार में लघु किन्तु अपनी गहन अर्थी गम्भीर शैली द्वारा समाज व्यवस्था के व्यापक सन्दर्भों से जुड़ी ऐसी कथा है जिसकी सघन सम्वेदना चेतना को एकदम स्पन्दित कर देती है। जैसे महाकाव्य के आंशिक गुणों से युक्त काव्य को खंडकाव्य अथवा गीतिकाव्य कहा जाता है। उसी प्रकार कथाशिल्प में आरम्भ से चरम बिन्दु तथा अनेक तत्वों को प्रभावशाली ढंग से आत्मसात् कर जो विधा प्रकाश में आई उसे हम लघुकथा कहते हैं। लघुकथाओं का जन्म कब, कहाँ और कैसे हुआ, इसका आदि प्रणेता कौन था, यह बता पाना बेहद मुश्किल है। लघुकथाओं की परम्परा ढूंढ़ी जा सकती है पर कोई निश्चित इतिहास निर्धारित नहीं किया जा सकता। शायद मानव जाति के आविर्भाव के साथ ही लघुकथाओं का आविर्भाव हुआ। आदि मानव जाति ने जब आपसी सुरक्षा के लिए ग्रुप बनाकर रहना शुरू किया तो जंगली जानवरों से रक्षा के लिए आग जलाकर उसके चारों तरफ बैठकर वक...
बची खुची सम्पत्ति (छोटी कहानियों का संग्रह) कथाकार : भवभूति मिश्र सम्पादक : ईशान कुमार मिश्र सह-सम्पादक : सितांशु शेखर वितरण-प्रबन्धक : अंगीरा मिश्र प्रथम संस्करण : सम्वत् 2011(सन् 1954) तृतीय संस्करण : सम्वत् 2045 (महाशिवरात्रि) (C) प्रकाशकाधीन मूल्य : रुपये 25/- मात्र प्रकाशक : विभूति प्रकाशन, 'भवतारिणी', इन्द्रपुरी-1, रातू रोड, रांची-834005 (शाखा - दिल्ली) समर्पण आज 34 वर्षों के बाद इस पुस्तक का पुनः प्रकाशन मुझमें एक अज्ञात खुशी और चेतना का संचार कर रहा है। समय साक्षी है कि इन वर्षों में हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में आंदोलनात्मक परिवर्तन आए हैं। नये-नये प्रयोग , नये-नये उपचार। पर आज यह देखकर और भी आश्चर्य होता है कि कैसे इतने वर्षों पहले एक भविष्यद्रष्टा की तरह उन्होंने सब कुछ देख लिया था ! प्रयोग होते रहे हैं , होते रहेंगे पर साहित्य की वह शाश्वत धारा अबाध गति से चलती रहेगी जो साहित्य की संजीवनी है। इस विधा का रूप आज कुछ विकृत हो चला है। चुटकुले और साधारण व्यंग्य भी आज इसी श्रेणी में रक्खे जाने लगे हैं। तब ‘ बची खुची सम्पत्ति ’ का प्रकाशन नितांत ही आवश्यक हो उठा है...
अतीत की विशेष उपलब्धि जो इतिहास समृद्ध करेगी ।
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