कैक्टस एवं अन्य लघुकथाएँ/डाॅ. उपमा शर्मा
कैक्टस एवं अन्य लघुकथाएँ
डाॅ. उपमा शर्मा
ISBN 978-93-88984-41-6
प्रकाशक • ज्ञान विज्ञान एजूकेयर
3639, प्रथम तल
नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज
नई दिल्ली-110002
सर्वाधिकार • सुरक्षित
संस्करण • प्रथम, 2023
मूल्य • तीन सौ रुपए
मेरी लेखन-यात्रा
साहित्य चर्चा से सामाजिक बोध का निर्माण होता है और मानव निर्माण के प्रकल्प को भी बल मिलता है। हित का साथ होना ही साहित्य है। भाषा के माध्यम से अपने अंतरंग की अनुभूति, अभिव्यक्ति करानेवाली कला साहित्य कहलाती है।
कथा-सृजन के कई मानक होते हैं और कथाकारों की कई श्रेणियाँ। साहित्य के रूप केवल रूप नहीं हैं; बल्कि जीवन को समझने के विभिन्न माध्यम भी हैं। एक माध्यम जब चुकता दिखाई पड़ता है, तो दूसरे माध्यम का निर्माण किया जाता है। अपनी इसी यात्रा में मानव ने समय-समय पर नए-नए कला स्तरों की सृष्टि की। अपने मन के अनुसार सृष्टि करना मानव स्वभाव का अंग है। उसकी रचना के रूप अलग हो सकते हैं, पर ज्यों-ज्यों वह बड़ा होता है, उसकी रचनाधर्मिता की दिशाएँ भी बदल जाती हैं।
रचनात्मकता सबसे पहले आत्माभिव्यक्ति है। इस अभिव्यक्ति के माध्यम कई हो सकते हैं। जब-जब विचारों की कौंध होती है-कोमल, संवेदनशील हृदय उसे अभिव्यक्त करने के लिए व्याकुल हो उठता है और जब उस विचार या अनुभव को लिखित अभिव्यक्ति दे देता है, तो शब्दों के मोती ढुलकना शुरू कर देते हैं। उनकी लड़ियाँ अपने आप बनने लगती हैं।
जब मन में भाव की चुभन होने लगती है और अनुभव की पीड़ा बहुत सघन होती है, तब वह कागज पर उतरे बिना नहीं रहते। मेरा लेखन सायास नहीं रहा। जब-जब भावों ने मन को विह्वल किया, रचना कागज पर अपने आप उतर आई। कुछ भाव मन में घुमड़ते रहे, मेरी कुछ ऐसी लघुकथाओं ने बहुत समय लिया। कुछ लघुकथाएँ सालों बाद पन्नों पर आई हैं।
जब-जब समाज में होनेवाली घटनाओं ने मेरे मन को उद्वेलित किया, मैं बिना लिखे रह ही नहीं पाई।मैं दंत चिकित्सक हूँ। लेखन मैंने कभी शौक के लिए नहीं किया। जब-जब समाज की विसंगतियों से मेरा मन विचलित हुआ, मैंने तब-तब लिखा।
मेरा लघुकथा-लेखन अनायास ही हुआ। पापा प्रधानाचार्य रहे। इस कारण घर में प्रारंभ से ही अध्ययन का माहौल देखा। मम्मी की साहित्य में बेहद रुचि रही है। अपने घर में मैंने मम्मी की छोटी सी लाइब्रेरी शुरू से देखी। मेरे दोनों भाई पत्र-पत्रिका पठन-पाठन में बेहद रुचि रखते हैं। छुटपन से ही मैंने अपने दोनों भाइयों को कविता लिखते देखा। मैंने भी अपने घर में रखी पत्र-पत्रिकाओं में छोटी कहानी के रूप में लघुकथाएँ पढ़ीं। 'नंदन', 'चंपक', 'सुमन सौरभ' पढ़कर ही मेरा बचपन बीता है। कुछ बड़े होने पर जैसे बच्चा आड़ी-टेढ़ी रेखाएँ खींचकर चित्रकारी की डगर पर चल देता है, वैसे ही मैंने चार पंक्ति की तुकांत रचना लिखकर अपने लेखन के पथ पर अपने नन्हे पग धर दिए थे। धीरे-धीरे ये तुकांत पंक्तियाँ बढ़ने लगीं। मम्मी-पापा और परिचितों के सराहना के स्वर सुनकर मेरा साहस बढ़ने लगा। तुकांत, अतुकांत कविता, गीत खूब लिखे। अपने स्वयं की लिखी सरस्वती वंदना गाकर स्कूल में अपने सहपाठियों की सराहना ली। मेरे लेखन के बीज को संभवतः वहीं से खाद-पानी मिला।
विज्ञान-वर्ग की छात्रा रही, छोटे से ही चिकित्सक बनने के अंकुर मन में बैठे हुए थे। प्रतियोगिता क्वालीफाई करने का प्रेशर और सपना दोनों थे; इसलिए लिखना कहीं पीछे छूट गया। दंत-प्रशिक्षु के अध्ययन के अंतिम वर्ष में ही मेरा विवाह हो गया। क्लीनिक और घर-गृहस्थी में व्यस्त हो गई। एक दिन मेरी लिखी कुछ कविताएँ मेरे जीवनसाथी के हाथ लग गईं। उन्होंने न सिर्फ सराहा, अपितु फिर से लिखने के लिए प्रेरित भी किया। छूटी हुई कलम फिर से थाम ली। अपनी लिखी एक कविता 'बिंदिया' पत्रिका में भेज दी। वहाँ से कविता छपने की स्वीकृति आ गई। उसके बाद फेसबुक पर कुछ समूहों से जुड़ गई। वहाँ जीवन की पहली लघुकथा लिखी। वहीं से मेरी लेखन-यात्रा के नन्हे कदम चल पड़े। कम शब्दों में बड़ी बात कहनेवाली यह विधा मुझे बहुत अच्छी लगी; अतः मेरा इस विधा से जुड़ाव बढ़ता गया।
यह मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे लघुकथा लेखन के शुरुआती दौर में ही लघुकथा से जुड़े मनीषी मिल गए। मुझे रामेश्वर काम्बोज हिमांशुजी, सुकेश साहनीजी, श्याम सुंदर अग्रवालजी, बलराम अग्रवालजी सरीखे अपने वरिष्ठों का भरपूर सहयोग और पथ-प्रदर्शन मिला। अपने लेखन के शुरुआती दौर में ही लघुकथा डॉट कॉम, जनगाथा ब्लॉग, पंजाब की प्रतिष्ठित पत्रिका मिन्नी और गुसईंया में मेरी लघुकथाओं को स्थान मिला, तब से मेरी लघुकथा की लेखन-यात्रा अनवरत चलने लगी। अशोक भाटियाजी, भगीरथ परिहारजी, उमेश महादोषीजी, अशोक जैनजी, योगराज प्रभाकरजी, रवि प्रभाकरजी, कांता रॉयजी-इन सबने समय-समय पर मेरी लघुकथाओं को विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में स्थान दिया।
मेरे लघुकथा-लेखन में रवि प्रभाकरजी का विशेष योगदान रहा। उन्होंने न सिर्फ पढ़ने पर विशेष जोर दिया, अपितु वे स्वयं भी जो पढ़ते, मुझे अवश्य बता देते। लघुकथा की बारीकी सिखाने और मेरी रुचि लघुकथा में जगाने के लिए उनका विशेष योगदान रहा है।
मैं अपने सभी वरिष्ठ लघुकथाकारों की हृदय से आभारी हूँ, जिनके पथ- प्रदर्शन के कारण मैं अपना पहला लघुकथा-संग्रह लाने में सफल हुई हूँ। मैं अपने समकालीन साथियों की विशेष रूप से आभारी हूँ, जिन्होंने समय-समय पर मेरा साहस बढ़ाया।
अंततः अपने मम्मी-पापा के कर कमलों में यह संग्रह सौंपकर मेरी कलम धन्य हुई।
महाशिवरात्रि -डॉ. उपमा शर्मा
18 फरवरी, 2023
अनुक्रम
भूमिका : लेखन से सृजन तक
मेरी लेखन-यात्रा
1. बदलते दृष्टिकोण
2. चयन
3. अंतर्दृष्टि
4. खूबसूरती
5. गिद्ध
6. बोनसाई
7. तलाश
8. हिजड़ा
9. सूतक
10. स्त्रीत्व
11. पूजा
12. उम्मीद
13. परिवर्तन
14. प्रेम-प्यार
15. बंद मर्तबान
16. घरौंदा
17. हनीट्रैप
18. गुरु
19. परीक्षा
20. बचपन
21. नीम का पेड़
22. कच्ची नींव
23. आशीर्वाद
24. इतिहास
25. सीता न बनना
26. सजा
27. प्रतिकार
28. उसहित
29. भँवर
30. गरीब की पीड़ा
31. कैक्टस
32. तरकीब
33. खुशी
34. पलकों के ख्वाब
35. फादर्स-डे
36. पहचान
37. बौनी व्यवस्था
38. अस्तित्व
39. जननी
40. ओढ़नी
41. हैसियत
42. ममता
43. माँ
44. रिप्ले
45. आगाह
46. मकड़जाल
47. बोझ
48. दंश
49. मिट्टी
50. फर्ज
51. टीस
52. सिलसिला
53. कायदा
54. उचित निर्णय
55. बहन-बेटी
56. सुख
57. अधूरी ख्वाहिशें
58. नया सबक
59. तहजीब
60. दीवार
61. यथार्थ
62. अलविदा
63. सूर्योदय
64. शापित देवी
65. पैट
66. बीया
67. अनावरण
68. भविष्य
69. धर्म
70. अनाथ बच्चा
71. हार
72. संकल्प
73. आकांक्षा
74. मूल्यांकन
75. विडंबना
76. तितली
77. अहिल्या
78. हूर्छन
79. गर्भपात
80. कायजा
81. 360 डिग्री टर्न
82. पहचान
83. अभिमन्यु नहीं मैं
डॉ. उपमा शर्मा
जन्म : 5 सितंबर, 1979 को रामपुर (उ.प्र.) में।शिक्षा : बी.डी.एस. ।
प्रकाशन : हिंदी की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं विभिन्न संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित ।
संपादन : लघुकथा संकलन 'आसपास से गुजरते हुए', 'महिला लघुकथाकार', 'सहोदरी लघुकथा'।
सम्मान : सत्य की मशाल द्वारा 'साहित्य शिरोमणि सम्मान' । प्रेरणा अंशु अखिल भारतीय - लघुकथा प्रतियोगिता में 'लघुकथा लेखन सम्मान' । हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच गुरुग्राम लघुकथा प्रतियोगिता में 'लघुकथा मणि सम्मान' । कुसुमाकर दुबे लघुकथा प्रतियोगिता में 'लघुकथा सम्मान'। श्री कमलचंद्र वर्मा स्मृति राष्ट्रीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में 'लघुकथा सम्मान'। लघुकथा शोधकेंद्र भोपाल के दिल्ली अधिवेशन में 'लघुकथा श्री सम्मान' एवं 'प्रतिलिपि सम्मान'।
संप्रति : दंत चिकित्सक
संपर्क : बी-1/248, यमुना विहार, दिल्ली-110053
मो. : 08826270597
ई-मेल : dr.upma0509@gmail.com
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