धारदार कलम / सुरेंद्र कुमार अरोड़ा

धारदार कलम  

सुरेंद्र कुमार अरोड़ा

प्रकाशक : परिंदे प्रकाशन 79ए, दिलशाद गार्डन (नियर पोस्ट ऑफिस), दिल्ली-110095

दूरभाष : 9810636082

ई-मेल : parindeprakashan@gmail.com

प्रथम संस्करण : 2023

ISBN : 978-81-961775-3-9

सर्वाधिकार : लेखक

मूल्य : 250/- (PB)

भूमिका

लघुकथा साहित्य को धारदार बनाता एक मुक्कमल संग्रह 

अंजु खरबंदा

प्रसिद्ध लघुकथाकार रमेश बत्तरा जी ने लिखा है, में जाकर बटन दबाते ही कमरे में रोशनी हो जाती है और सब कुछ साफ दिखाई देने लगता है। ऐसे ही लघुकथा को पढ़ते ही विषय ऐसा हो कि पाठक को प्रभावित कर जाये।"

सुरेंद्र कुमार अरोड़ा जी के लघुकथा संग्रह “धारदार कलम" को पढ़ते हुए उपर्युक्त कथन बिलकुल सटीक बैठता है। उनकी लघुकथाओं का फ़लक बेहद विस्तृत है तथा विषयों की विविधता से समृद्ध है। सुरेंद्र अरोड़ा जी एक लम्बे अरसे से लघुकथा लेखन से जुड़े हैं, उन्होंने बदलते दौर के लगभग सभी पड़ावों को अपनी लघुकथाओं में बेहद सूक्ष्मता से उकेरा है। उनके इस नवीनतम लघुकथा संग्रह “धारदार कलम” की लघुकथाएं भी संवेदनाओं की उसी सूक्ष्मता से अंगीकृत हैं।

किसी विसंगतिपूर्ण क्षण को कैसे कम से कम शब्दों में लघुकथा में ढालना है, यह सुरेंद्र जी बखूबी जानते हैं। उन्होंने न तो किसी लघुकथा को अति विस्तार दिया है और न ही किसी लघुकथा को खत्म करने में जल्दबाजी की है।

लघुकथा में शिप्रता होना जरूरी है, यह गुण लघुकथा को गति के साथ मंजिल तक ले जाता है। सुरेंद्र जी की लघुकथाओं में यह गुण पूर्ण रूप से विद्यमान है। उनकी लघुकथाओं में कहे हुए से इतर 'अनकहा' अधिक प्रभावित करता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का मत था “किसी रचना को सामाजिक सार्थकता और साहित्यिकता-दोनों कसौटियों पर खरा उतरना चाहिए। उनकी दृष्टि में साहित्यिक दृष्टि से वही कृति श्रेष्ठ हो सकती है, जो सामाजिक रूप से सार्थक हो और सामाजिक रूप से सार्थक वही कृति हो सकती है, जो साहित्यिक दृष्टि से श्रेष्ठ हो। इनमें कोई एक धरातल कमजोर हुआ, तो रचना का प्रभाव और श्रेष्ठता क्षिण हो जाएगी।" सौभाग्य से सुरेंद्र जी की लघुकथाएं इस कसौटी पर खरी उतरती है।

लघुकथाओं के कथानक की बात की जाए तो कथानक किसी भी लघुकथा का बीज होता है। सुरेंद्र जी की लघुकथाओं का कथानक स्वाभाविक, सुरुचिपूर्ण, यथार्थपरक व इकहरा है जो देर तक पाठक पर अपना प्रभाव छोड़ने में सफल सिद्ध होता है। सभी लघुकथाएं अलग -अलग कलेवर में सजी बरबस ही दिल में घर कर जाती हैं और देर तक आप उन्हीं में खोए रहते हैं।

"माँ ने कहा था" लघुकथा पढ़ते हुए मन भावुक हो उठा। एक माँ अपनी बेटी के उज्ज्वल भविष्य के लिए बेटी को समझाती है, उस वक्त भले ही बेटी को माँ अपनी सबसे बड़ी दुश्मन नजर आए पर देर-सवेर बेटी ये जरूर समझती है कि माँ ने जो भी निर्णय लिया वह उसके भले के लिए ही था।

"बिजनेस" लघुकथा पढ़ते हुए यह जानने की तीव्र इच्छा जागृत होती है कि आशुतोष का क्या हुआ? जैसे-जैसे लघुकथा आगे बढ़ती है बिजनेस की असलियत जान पाठक ठगा सा रह जाता है। आज के आधुनिक युग में विकास के नाम पर पैसा ही सब कुछ रह गया है जैसे। पैसे के सामने बूढ़े माता-पिता की कोई वुक्कत नहीं है तभी तो ऐसे बिजनेस समाज में तेजी से अपनी जगह बना रहे हैं।

"गुमशुदगी" लघुकथा पढ़ते हुए प्रेमिल जोड़ा आँखों के आगे आन खड़ा हुआ। सच! कभी-कभी खुद से बतियाना कितना अच्छा लगता है। बस! मैं और मेरी तन्हाई! युवती जब युवक से खुद में खोए रहने का कारण पूछती है तो वह कहता है आपस की बात है! युवती इसरार करती है पर अंततः मान जाती है। यहाँ प्रेम के साथ सामंजस्य का उजला रूप दिखलाई पड़ता है जो बरबस ही मन को मोह लेता है।

"हॅप्पी न्यू ईयर” लघुकथा एक सार्थक संदेश देती हुई सुंदर लघुकथा है। मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। यह लोकोक्ति यहाँ बिलकुल फिट बैठती है। सर्दी का सोचकर रजाई में घुसे रहना, चाय पर चाय पीकर भी सर्दी वहीं की वहीं। लेकिन लघुशंका ने रजाई से निकलने पर मजबूर कर ही दिया। खटर-पटर की आवाज सुन झांका तो मजदूरिन को सिर पर ईंटो का ढेर उठाए देख, सारी सर्दी हवा हो गई। हमारे लिए सारी सुविधाएँ है, इसलिए सर्दी भी ज्यादा लगती है और गर्मी भी लेकिन मजदूर वर्ग के लिए न सर्दी मायने रखती है न गर्मी! रोटी की जरूरत सारी सर्दी, सारी गर्मी लुप्त कर देती है।

"बेस्ट फ्रेंड” लघुकथा का कथ्य बाल मन के मनोविज्ञान से जुड़ा है। कहा जाता है माता-पिता पहला बच्चा अपने लिए पैदा करते हैं और दूसरा बच्चा पहले बच्चे के लिए! कार्तिक का इकलौता होना उसके लिए गहन उदासी का सबब बन जाता है। स्कूल की बेस्ट फ्रेंड को बहन बनाने व राखी बंधवाने की उसकी सोच मन को गहरे तक छू जाती है। इसलिये वह उसके लिए ड्राइंग बनाता है और उस ड्राइंग में उसकी पसंद के रंग भरता है। यह एक बेहद भावपूर्ण लघुकथा है।

"तब और अब" लघुकथा का प्लॉट कहानी विधा की ओर संकेत करता है। इस कथ्य को कहानी के रूप में आगे बढ़ाया जा सकता है। नायिका का ये कहना "मन पानी की वो धारा है जो कभी नहीं रूकती। इस पर कोई बाँध नहीं बाँधा जा सकता। जो इसे स्वीकार नहीं करता, वो झूठ बोलता है, अपने साथ भी और अपनों के साथ भी।" यह वाक्य गहरे तक और देर तक सोचने को बाध्य कर देता है।

"बारिश" लघुकथा मन के महीन तारों से बुनी खूबसूरत लघुकथा है। जिंदगी बहुत इम्तिहान लेती है। यहाँ नायक और नायिका तयशुदा मापदंडो को निबाहते हुए जिंदगी का सफर तय कर रहे हैं परन्तु बारिश इन मापदंडो के बाँध को तोड़ आगे की राह पकड़ती है। जीवन की जद्दोजहद से जूझते हुए दो प्रेमी फिर से एक मंजिल की ओर कदम बढ़ाते दिखते है।

संग्रह की शीर्षक लघुकथा "धारदार कलम" रोंगटे खड़े कर देने वाली लघुकथा है। लेखक को बहुत दिनों से कोई शानदार विषय नहीं मिल रहा था जिस की वजह से वह परेशान था। इधर-उधर नजर दौड़ाने पर जो विषय दिखे वे घिसे पिटे लगे। लेखक को चिंता हुई यदि वह कुछ दिनों तक नहीं लिखेगा तो लोग उसे भूल ही जाएंगे। कहते है न! जो दिखता है वही बिकता है! लेखक की परेशानी कुछ और बढ़ी ही थी कि अचानक उसकी नजर अखबार के एक कॉलम पर पड़ी और वह खुशी से उछल पड़ा। उसे ताजगी भरा विषय मिल गया-कोख से छुटकारा पाती मजदूर औरतें! लेखक को दमदार कहानी का प्लॉट मिलते ही पुरस्कार, शराब और शबाब दिखने लगे। यह लघुकथा आज के समाज पर करारा तमाचा है। समाज में व्याप्त विसंगतियों में लेखक को अपना उजला भविष्य दिखता है। संवेदना के स्वर अब जैसे संवेदनाशून्य हो चले है। यह लघुकथा देर तक पाठक को सोचने पर विवश करती है।

"यात्रा" लघुकथा भावविहल कर देने वाली लघुकथा है। हवाई यात्रा के दौरान होने वाली परेशानियों से व्यथित नायक जब एयर होस्टेस को बेटा कहकर सम्बोधित करता है तो एक तरह की सकारात्मकता उन दोनों के बीच पनपती है। दस घंटे की लम्बी यात्रा में वह युवती एक बेटी की तरह उनका ध्यान रखती है। यात्रा समाप्ति पर जब नायक युवती को आशीर्वाद देते हुए, उसके पिता के बारे में बात करता है तब यह लघुकथा अपने चरम को छूती है। युवती द्वारा दिया गया उत्तर मन के तारों को झनझना देता है। पाठक स्वयं को उससे जुड़ा पाता है। यही इस लघुकथा की सबसे बड़ी उपलब्धि है।

सुरेंद्र अरोड़ा जी ने सामाजिक जीवन की विसंगतियों के छुए अनछुए सभी पहलुओं को इस संग्रह में समेटा है। बहुत सी लघुकथाएं कटु सत्य को आपके सामने पेश करती है जो गहरे तक झकझोर कर रख देती है। उनकी लघुकथाएं पाठक के हृदय को गहरे तक छूती है क्योंकि उनमें मौलिकता के साथ-साथ नवीनता व प्रभाव उत्पन्न करने की शक्ति है। उनकी कहन शैली सुरुचिपूर्ण व पैनापन लिए है। उनकी लघुकथाओं की क्षिप्रता पाठक को बांधे रखती है।

लघुकथाओं में आए संवाद प्रवाहपूर्ण है। उनका रचनात्मक कौशल उनकी लघुकथाओं को और अधिक प्रखर करता है। जहाँ कई लघुकथाओं में आत्मकथात्मक शैली दिखलाई पड़ती है, वहीं अन्य शैलियाँ भी प्रयोग की गई हैं। जहाँ कुछ लघुकथाओं का अंत गुदगुदाता है, वहीं कुछ लघुकथाओं का अंत देर तक स्तब्धता की स्थिति पैदा करने की योग्यता रखता है। लघुकथा पढ़ते हुए उनके सभी पात्र संजीव होकर आसपास टहलते हुए जान पड़ते हैं।

लघुकथा की असली शक्ति शीर्षक में समाई होती है। कहा जाता है कि शीर्षक लघुकथा का प्रवेश द्वार होता है इसलिये इसे आकर्षक होना चाहिए ताकि वह सहजता से पाठक को खींचने कि सामर्थ्य रखता हो। संग्रह के सभी शीर्षक लघुकथाओं के अनुकूल है। कुल मिलाकर कहा जाए तो सुरेंद्र अरोड़ा जी प्रयोगधर्मी लघुकथाकार है, जो नये-नये प्रयोग करने में जरा भी हिचकिचाते नहीं हैं। उनकी यही क्वालिटी उन्हें बाकियों से अलग करती है।

इन लघुकथाओं पर अभी और भी बहुत कुछ लिखे जाने की गुंजाईश है। मुझे आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि यह लघुकथा संग्रह आपको पठनीय व रुचिकर लगेगा। यह संग्रह गुणवत्ता की दृष्टि से अपनी पहचान स्थापित करेगा, ऐसा मेरा विश्वास है।

सुरेंद्र अरोड़ा जी की 'धारदार कलम' सतत चलती रहे, कोई भी अवरोध उनकी कलम को अवरुद्ध न कर पाए, ईश्वर से सदैव यही प्रार्थना है।

मो: 95824 04164

अनुक्रम 

समर्पण 

भूमिका

अपनी बात

1. माँ ने कहा था

2. बिजनेस

3. डोर

4. पीजा

5. गुमशुदगी

6. बेस्ट फ्रेंड

7. तब और अब

8. बद्दुआ

9. हैप्पी न्यू ईयर

10. चांद की लकीरें

11. बारिश

12. धारदार कलम

13. दहेज

14. बदला

15. यात्रा

16. बंटवारा

17. दाने मीठे हैं

18. खुशी

19. समाधान

20. प्रश्नोत्तरी

21. बेटी

22. रेट में इज़ाफ़ा

23. बोलो न प्लीज़

24. चुस्कियां प्यार की

25. उदासी

26. दोस्ती

27. वजीफ़ा

28. चौकीदार

29. तिरंगा

30. उसकी कहानी

31. पूर्णता

32. सिलसिला

33. संकट

34. मंथन

35. पढ़ाई

36. मुमताज

37. रिमूवल

38. डिबिया

39. स्वाद

40. एक कप जिंदगी का

41. नतीजे

42. अध्यापक

43. शरारत

44. मैनेजमेंट

45. अंगद का पांव

46. व्यंग

47. यादों की रंगत

48. हुनर

49. डिप्राइवड केटेगरी

50. आजादी

51. शैंपेन

52. चपरासी

53. ससुराल

54. मन्त्र

55. बेगैरत

56. अस्तित्व

57. फोन नंबर

58. बदलाव

59. वंचित तबका

60. बोझ और मुस्कान

61. कष्ट

62. कबाब, शोरबा और फितरत 

63. परीक्षा

64. उत्कृष्ट रचना

65. शिशु

66. रुकी हुई फाइल

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

जन्म तिथि : 9 नवम्बर, 1951

माता : (स्वर्गीय) श्रीमती धर्मवन्ती (जमनी बाई)

पिता : (स्वर्गीय) श्री मोहन लाल

गुरुदेव : (स्वर्गीय) श्री सेवक वात्स्यायन (कानपुर विश्वविद्यालय)

पत्नी : श्रीमती कृष्णा कुमारी

जन्म-स्थान : जगाधरी (यमुना नगर-हरियाणा)

शिक्षा : स्नातकोत्तर (प्राणी-विज्ञान) कानपुर, बी. एड. (हिसार-हरियाणा)

लेखन विधा : लघुकथा, कहानी, बाल-कथा, काव्य, बाल-कविता, पत्र-लेखन, डायरी-लेखन, सामयिक विषय आदि।

प्रथम प्रकाशित रचना : कहानी: "लाखों रूपये"-क्राईस चर्च कालेज, पत्रिका-कानपुर (वर्ष-1971)

अन्य प्रकाशनः 1. देश की बहुत सी साहित्यिक पत्रिकाओं में सभी विधाओं में निरन्तर प्रकाशन, 2. सात लघुकथा संग्रहः ।. आजादी (1999), I. विष-कन्या (2008), II. "तीसरा पैग" (2014), IV. "सफर-एक यात्रा" (2019), V. "उतरन" (2019), VI. "दीवारे बोलती हैं" (2022), VII. "धारदार कलम" (2023) 3. दो कहानी संग्रह । बन्धन मुक्त तथा अन्य कहानियां (2014), II. "मुमताज तथा अन्य कहानियां" (2021) 4. दो काव्य संग्रह । मेरे देश कि बात (2014), II. सपने और पेड़ से टूटे पत्ते (2019) 5. एक बाल-कथा-संग्रह "बर्थ-डे, नन्हें चाचा का" (2014), 6. तीन ई-लघुकथा संग्रह “रुखसाना" (2018) अमेजॉन पर उपलब्ध-वर्जिन स्टुडिओ, "शंकर की वापसी" अमेजॉन पर उपलब्ध-वर्जिन स्टुडिओ (2018), "थ्रेडिंग" (2022), पॅन मेन-गजिआबाद, बहुत से सामूहिक लघुकथा, कहानी एवं काव्य संग्रहों में प्रतिष्ठित रचनाकारों के साथ सहभागिता।

सम्पादन : 1. "मृग मरीचिका" (लघुकथा एवं काव्य पर आधारित अनियमित पत्रिका) 2. "तैरते-पत्थर डूबते कागज" (लघुकथा-संग्रह), वर्ष-2004, 3. "दरकते किनारे" (लघुकथा-संग्रह), वर्ष-2004, 4. इकरा एक संघर्ष (लघुकथा-संग्रह), वर्ष 2021, 6. अपूर्णा तथा अन्य कहानियां (कहानी-संगृह), वर्ष-2004, 7. लघुकथा मंजूषा (ई-लघुकथा संग्रह-अमेजॉन पर उपलब्ध-वर्जिन स्टुडिओ), वर्ष-2018, 8. "इकरा-एक संघर्ष" (लघुकथा-संग्रह), वर्ष 2021, 9. कहानी संग्रह "बेबसी तथा अन्य कहानियां" वर्ष-2021

पुरस्कारः ।, हिंदी-अकादमी (दिल्ली), दैनिक हिंदुस्तान (दिल्ली) से पुरुस्कृत 2. भगवती-प्रसाद न्यास, गाजियाबाद से कहानी बिटिया पुरुस्कृत 3. "अनुराग सेवा संस्थान" लाल-सोट (दौसा-राजस्थान) द्वारा लघुकथा- संगृह "विष- कन्या" को वर्ष 2009 में स्वर्गीय गोपाल प्रसाद पाखंला स्मृति-साहित्य सम्मान 4. लघुकथा "शंकर की वापसी" दिनांक 11 जनवरी 2019 को पुरुस्कृत (मातृभारती, काम द्वारा) 5. मातृभाषा. कॉम द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में लघुकथा "धारदार कलम" प्रथम घोषित।

आजीविकाः शिक्षा निदेशालय, दिल्ली के अंतर्गत 32 वर्ष तक जीव-विज्ञानं के प्रवक्ता पद पर सेवा कार्य करने के पश्चात नवम्बर 2011 में अवकाश प्राप्ति।

सम्पर्क : डी-184, श्याम पार्क एक्सटेंशन साहिबाबाद, (उत्तरप्रदेश)-201005, 

मो.: 09911127277. 

E.Mail: surendrakarora1951@gmail.com

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