अंधेरों से आगे (लघुकथा-संग्रह) / विष्णु सक्सेना

अंधेरों से आगे (लघुकथा-संग्रह)

विष्णु सक्सेना

प्रकाशक : अंगूर प्रकाशन

सी-709, गणेश नगर-II, शकरपुर, दिल्ली-110092

ई-मेल : angoorprakashan@gmail.com

दूरभाष: 9810136706

प्रथम पेपरबैक संस्करण : 2023

ISBN: 978-93-95846-69-1

मूल्य ₹ : 125.00 रुपये

© विष्णु सक्सेना

आवरण : विनय माथुर

भूमिका

सकारात्मक और दिशावाही सोच से लबरेज लघुकथाएँ

बलराम अग्रवाल 

विष्णु सक्सेना जी कितने वरिष्ठ साहित्यकार हैं इस बात का अनुमान इसी तथ्य से लग जाता है कि उनकी काव्य कृति 'बैजनी हवाओं में' भाषा विभाग, हरियाणा द्वारा 1972 में पुरुस्कृत की जा चुकी थी और उनकी लघुकथाएँ 1974 में प्रकाशित 'गुफाओं से मैदान की ओर' में संकलित थीं। यह भी उल्लेखनीय है कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में उनकी कृतियों पर तीन 'एम फिल' संपन्न हो चुकी हैं। लघु कथा संग्रह 'एक कतरा सच' के बाद उनकी लघु कथाओं का यह दूसरा संग्रह है।

विष्णु सक्सेना जी की लघुकथाएँ जीवन के सकारात्मक पक्ष को प्रस्तुत करती हैं। इसीलिए वे शिक्षाप्रद भी हैं और बोधपरक भी। सकारात्मक पक्ष को प्रमुखता देने के कारण ही उनकी लघुकथाओं में मानवेतर पात्रों को भी समुचित स्थान मिलता है।

मंच सांझा करने की इच्छुक कवयित्री को किन-किन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है और कितना साहसिक कदम उठाना पड़ता है, उसकी एक झलक 'सम्मोहन किसके प्रति' में देखने को मिलती है। 'जीवन का महत्व' के केंद्र में 'लिव एन' और 'लव जिहाद' दोनों हैं। 'सामर्थ्य की अनुभूति' में विष्णु सक्सेना जी ने समूचे जीवन को ढालने का यत्न किया है। यह वस्तुतः सास बहु के संबंधों की ऐसी कथा बन गई है जिसका आधार अनबन ही है। 'जीवन एक संघर्ष' नई पीढ़ी की बहु के बर्ताव से आहत सास को प्रस्तुत करती है, तो 'नई पीढ़ी नई सोच' नई पीढ़ी की बेटी के बर्ताव से स्तंभित माँ को।

लघुकथा 'चबूतरा' राजनैतिक संरक्षण पाकर दुर्घर्ष हो उठे ठेकेदार आदि और एक ईमानदार अधिकारी के परस्पर संघर्ष का अत्यंत रोचक चित्र उपस्थित करती है। परिणाम जो भी रहा हो, लघुकथा में मूल्य स्थापना करते चरित्र का आना ही लेखन की सार्थकता को रेखांकित करता है। विष्णु सक्सेना जी इस सकारात्मकता के लिए साधुवाद के पात्र हैं।

'कभी कभी किसी की इज्जत बचाने के लिए, किसी का नुकसान किये बगैर की गई थोड़ी सी बेईमानी भी ईमानदारी कहलाती है।' यह कहना है लघुकथा 'उपकार' का और यही हमारा शास्त्र भी कहता है। लघुकथा 'जमीर' को साहसिक कथा कहा जाए तो गलत न होगा। उसी तरह 'अंधेरों से आगे' को नैतिक बल जागृत करने वाली कथा कहा जा सकता है।

'माया का खेल' में विष्णु सक्सेना जी वर्तमान में निजी अस्पतालों के आसुरी चरित्र का पर्दाफाश करते हैं। 'खूंटा' और 'कागजी रिश्ते' जैसी लघुकथाएँ पारिवारिक रिश्तों में आई जड़ता के वावजूद भारतीय त्योहारों की प्रासंगिकता को रेखांकित करती हैं।

विष्णु सक्सेना जी को लघुकथाओं के शिल्प की ओर, मुझे लगता है कि ध्यान देने की आवश्यकता है। कथ्य प्रस्तुति की दिशा में लघु कथा काव्य ही है। किसी भी तरह की असावधानी कथा रसोद्रेक में कमी लाती है।

श्रम साध्यता की दृष्टि से उनकी अनेक लघुकथाओं में बोध और दृष्टान्त शैली तथा विक्रम- बेताल शैली के भी दर्शन होते हैं, तो अनेक में मानवेतर पात्रों के माध्यम से भी उन्होंने अपनी बात कही है। मानवेतर पात्रों की लघुकथाओं में 'आईना, 'मोहभंग' आदि का उल्लेख किया जा सकता है। उनके इस दूसरे संग्रह के प्रकाशन पर मेरी ओर से बधाई और मंगल कामनाएँ।

-मो. 8826499115

रोशनी का मार्ग है सकारात्मक सोच

जीवन परिवर्तन का पर्याय है, या कहा जाए कि जहाँ परिवर्तन है, वहीं जीवन है। जीवन सुख दुःख की गहमागहमी है। इसमें अन्धेरें भी हैं रोशनी भी। अँधेरे जहाँ मन में अवसाद उत्पन्न करते हैं, वहीं व्यक्ति की सकारात्मक सोच उसे रोशनी की राह भी दिखाती है- मेरी लघु कथाएँ यही कहने का प्रयास करती हैं।

समाज की व्यवस्था कुछ नियमों पर चलती है। यह नियम कुछ मर्यादाहीन लोगों को रास नहीं आते। वह अपने आचरण को ही नियम समझने लगते हैं। यहीं एक संवेदनशील लेखक की कलम उठती है और एक सशक्त लघुकथा का सृजन होता है। जो समाज में एक सकारात्मक सन्देश देती है।

साहित्य जब वर्तमान से सम्बद्ध होता है तब वह समाज का प्रतिबिम्ब बन पाता है और तभी वह जन मानस के लिए उपयोगी व प्रेरक हो सकता है। आज के सामाजिक वातावरण में पनपती अनेक समस्याओं पर मैंने लघु कथाएँ लिखने का प्रयास किया है। अपने पहले लघु कथा संग्रह 'एक कतरा सच' में, जब मैं - एच.एम.टी में एक प्रबंधक के तौर पर था एवं सेवा निवृति के बाद एक पत्रकार के रूप में लम्बे कार्यकाल के अपने आस पास फैले परिवेश को रेखांकित करती लघु कथाएँ सम्मिलित की थीं। 'अंधेरों से आगे .......' लघु कथा संग्रह में कुछ अलग हटकर ज्यादातर ऐसी लघुकथाएँ हैं, जो संवाद शैली, नाटक शैली, तोता मैना शैली, वैताल पचीसी शैली व डायरी शैली में लिखी गई हैं। इनमें मानवीय संवेदना, मानवीय गुणों, परिवारिक परिवेश व सामाजिक परिवेश पर लघु कथाओं द्वारा एक सकारात्मक सोच प्रदान करने की कोशिश की है।


एच.एम.टी पिंजौर में प्रबंधक के पद पर कार्य करते हुए वर्ष 1995 में एच एम.टी. प्रबंधन के आग्रह पर मैंने चौपाल कथाओं की शैली में कुछ लघु कथाएँ लिखी थी, जिनके माध्यम से प्रशासक, अधिकारी एवं कर्मचारी वर्ग के बीच आपसी प्रेम और भाईचारा बढ़ाने का प्रयास किया था। इनका भरपूर स्वागत हुआ। यह 'एच.एम.टी न्यूज डाइजेस्ट 'पिंजौर व लघु पत्रिका 'कथालोक' तथा 'दैनिक अमर उजाला 'के कानपुर संस्करण में प्रकाशित हुई।

यह मेरा सौभाग्य रहा कि 1974 में प्रकाशित देश के प्रथम लघु कथा संग्रह 'गुफाओं से मैदान की ओर' जो भाई रमेश जैन व भाई भगीरथ के संपादन में निकला था, मेरी दो लघु कथाएँ 'परिवर्तन' व 'संतोष, दया, कृपा' प्रकाशित हुई थी।

इसके उपरांत मेरी लघु कथाएँ यदा कदा विभिन्न पत्र व पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। क्योकिं मेरा मुख्य लेखन, काव्य विधा की ओर मुड गया था। इस कारण 1972 में भाषा विभाग हरियाणा द्वारा मेरे काव्य संग्रह 'बैंजनी हवाओं में 'को राज्य श्रेष्ठ कृति पुरुस्कार व 1000 राशी एवं 2014 में हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा मेरे पहले खंड काव्य 'अक्षर हो तुम 'को राज्य श्रेष्ठ कृति पुरुस्कार व 21 हजार की राशी प्रदान की गई। जब कि मेरे दूसरे खंड काव्य 'सुनो राधिके सुनो 'को 2021 में उ प्र हिंदी संस्थान द्वारा खंड काव्य वर्ग में 'जय शंकर प्रसाद ' मानद पुरुस्कार व 75 हजार की राशि के साथ तथा जयपुर साहित्य संगीति ने भी श्रेष्ठ कृति पुरुस्कार व 3100 की राशी के साथ पुरुस्कृत किया गया।

समय के साथ हो रहे परिवर्तन को झेलते हुए 2018 में अपना पहला लघु कथा संकलन 'एक कतरा सच' सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया था तथा अब दूसरा लघु कथा संकलन 'अंधेरों से आगे ' प्रबुद्ध पाठकों को अर्पित है। आप सब की बहुमूल्य प्रतिक्रियाएँ मुझे आगे और अच्छा लिखने को प्रेरित करेंगी।

दिनांक : 26 जुलाई 2023।       विष्णु सक्सेना 

एस जे 41, शास्त्री नगर, 

गाजियाबाद 201002. उ.प्र. 

मो : 9896888017

अनुक्रम

सकारात्मक और दिशावाही सोच से लबरेज लघुकथाएँ 

रोशनी का मार्ग है सकारात्मक सोच

अंधेरों से आगे

चबूतरा

जमीर

स्वभाव नहीं बदलता

अहंकार

माया का खेल

खूंटा

उतरन

जागरूकता

दोगले

अपने अपने स्वार्थ

बदलते मूल्य

बदलाव

लहरों जैसा है जीवन

समझौता

कागजी रिश्ते

कब बदलेंगे?

जागृत किया विवेक 

उपहार 

उँगलियों का खेल 

विश्वास किस पर? 

उदारवादी दृष्टिकोण 

विकास का मार्ग 

योगदान 

अंधी दौड़ 

माँ हमेशा ही सुहागिन ! 

अधिकार लेना पड़ता है 

परोपकार 

संवेदना 

सीमा रेखा 

प्रेम 

आँसू 

अचूक अस्त्र 

सस्ता वाला चालान 

एक सेटिंग यह भी 

तगमे की ताकत 

मुस्कराहट के लिए 

लेन-देन

दूरदृष्टि 

सुहाग 

घर से बाहर? 

अपना अपना परिवेश 

निरीक्षण ऐसे भी 

फुटबाल बनना ही नियति 

सब कुछ बदल जाता है

सिमटते रिश्ते

उड़ते हुए लोग

ढोल तो ढोल है

मोह भंग

डर

आइना

राजनीति

कैसे-कैसे कलाकार

ऐसा भी होता है

बटवारा

व्यवहार

सौदा

उपकार

माया कहे पुकार के 

पैसा बोलता है

इच्छा का सम्मान 

भविष्य नजर आया 

भ्रष्ट हो गया तंत्र 

जीवन एक संघर्ष 

सामर्थ्य की अनुभूति 

जीवन का महत्व 

नई पीड़ी नई सोंच 

सम्मोहन किसके प्रति? 

डूबते सूरज को कौन पूजता?

विष्णु सक्सेना


माता : श्रीमती कौशिल्या देवी

पिता : स्व. महाशय विशम्भर दयाल

जन्म : 26 जनवरी, 1941, दिल्ली

शिक्षा : डी. एम. ई (आनर्स) रुडकी (1964)

संप्रति : डिप्टी चीफ इंजीनियर के पद से एच. एम. टी. पिंजौर से सेवा निवृत्त। 

प्रकाशित कृतियाँ : काव्य संग्रह-बैंजनी हवाओं में, गुलाब कारखानों में बनते हैं, धूप में बैठी लड़की, सिहरन साँसों की; खंड काव्य-अक्षर हो तुम, सुनो राधिके सुनो; कहानी संग्रह-बड़े भाई, वापसी; लघु कथा संग्रह-एक कतरा सच, अंधेरों से आगे,

श्रेष्ठ कृति सम्मान : बैंजनी हवाओं में (भाषा विभाग हरियाणा 1972), अक्षर हो तुम (हरियाणा साहित्य अकादमी 2014), सुनो राधिके सुनो (उ. प्र. हिंदी संस्थान-जय शंकर प्रसाद सम्मान 2022) व क्षेष्ठ काव्य कृति सम्मान (जयपुर साहित्य संगीति 2021)

लघु शोध : विष्णु सक्सेना-व्यक्तित्व व कृतित्व (1998), कहानीकार विष्णु सक्सेना (2004), अक्षर हो तुम में मानव मूल्य (2017) तीनों कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय हरियाणा से एम. फिल के लिए स्वीकृत।

सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी सहस्त्राब्दी सम्मान 2000 (मानव संसाधन मंत्रालय), टेगोर अवार्ड (कालका प्रशासन), साहित्य सम्मान (पंचकुला प्रशासन) व अनेकों संस्थाओं द्वारा विशिष्ट सम्मानों से सम्मानित।

संपादन : कलादीप-लघु पत्रिका हरियाणा (1973 से 1975) व चित्रांश उदगार-चंडीगढ़ (1997)

विशेष : दूरदर्शन दिल्ली व जालंधर तथा आकाशवाणी जालंधर, रोहतक व रामपुर से कविताएं, कहानियां, वार्ता तथा साक्षात्कार का प्रसारण। देश भर की प्रतिष्ठित पत्र व पत्रिकाओं में सैकड़ों लेख, कविताएं, संस्मरण, कहानियां व लघु कथाएं प्रकाशित।

संपर्क : एस. जे. 41, शास्त्री नगर, गाजियाबाद-20002

मो. : 9896888017

ई मेल : vishnusaxena26@yahoo.com

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