ज्यों नावक के तीर (लघुकथा-संग्रह) / सरस दरबारी

ज्यों नावक के तीर (लघुकथा-संग्रह)

सरस दरबारी

प्रकाशक

वनिका पब्लिकेशन्स 

रजि. कार्यालयः एन ए-168, गली नं-6, 

विष्णु गार्डन, नई दिल्ली-110018 

मुख्य कार्यालयः सरल कुटीर, आर्य नगर, नई बस्ती, बिजनौर-246701, उ.प्र 

फोन: 09412713640

Email: Website: www.vanikaapublications.com

contact@vanikaapublications.com, vanikaa.publications@gmail.com

संस्करण : प्रथम 2023

मुखावरण : सत्यपाल ग्राफिक्स

मूल्य : दो सौ साठ रुपये $25

ISBN : 978-93-91189-91-4

प्राक्कथन

सरस दरबारी की लघुकथाएँ विस्तृत परिवेश को समेट कर चलती हैं। उन्होंने सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर अधिक कलम चलाई है उनकी चिंतनपरक लघुकथाओं में इन बातों का समावेश अधिक दिखाई देता है। वैसे स्त्री शक्ति को भी उनकी लघुकथाओं में नकारा नहीं जा सकता।

महिषासुर मर्दिनी एक कथा ही नहीं बल्कि एक संदेश है कि स्त्रियों अपनी शक्ति को पहचानो। जिस देश में महिषासुर मर्दिनी देवी के रूप में पूजी जाती है, वहाँ स्त्रियाँ असहाय क्यों?

इस संकलन में स्त्री विमर्श की लघुकथाएँ भी उभर कर आई हैं। मुझे चाँद चाहिए में लेखिका होने के बावजूद भी नायिका का लेखन पति के द्वारा दबा दिया जाता है। लेकिन पोती को जब इस बात का पता चलता है तो वह अपनी दादी को लेखन के लिए उकसाती है। पोती ने ही दादी को मंज़िल दी। और उन्हें उनके लक्ष्य तक पहुँचाया।

मोहरे लघुकथा में तलवार और कलम का महत्त्व बताया गया है। दोनों अपनी-अपनी जगह महत्त्वपूर्ण हैं।

यक्ष प्रश्न में लेखिका पाठकों को सन् 2040 की सैर कराती है जहाँ प्रदूषित वातावरण का भयावह मंज़र है। अगर समय रहते नहीं चेते तो यही हाल होगा दुनिया का। सामाजिक विद्रूपताओं, दंगे, आतंक और दहशत में निर्जीव इंसानों का मार्मिक चित्रण, यह बदनसीब बेचारे में दृष्टिगोचर होता है। इसी तरह की एक और लघुकथा है रंग। जिसमें दंगों से बिगड़ा और दुश्मनी में बदलता भाईचारा है। दंगे किसी भी समस्या का हल नहीं हैं।

सरस के पास कहन की कई दिशाएँ हैं। उन दिशाओं की पड़ताल कर वे लघुकथाओं के लिए ज़मीन तैयार करती हैं।

मेरा मानना है कि साहित्य का लेखन किसी भी विधा का हो लेखक को समाज के प्रति जागरूक, जीवन मूल्यों के प्रति सचेत और ज़मीनी सच्चाइयों से जुड़े रहकर ही लेखन करना चाहिए तभी लेखन को स्थायित्व मिलता है। सरस ने इन बातों का विशेष ध्यान रखा है फिर चाहे 'यादें' लघुकथा हो जिसमें पत्रों के बहाने अतीत को जीती नायिका है। पत्रों के महत्त्व को उजागर करती यह लघुकथा संदेश भी देती है कि यह संचार क्रांति का युग है जहाँ पत्रों का कोई मूल्य नहीं किंतु उसकी जैसी स्थायी कोई भी वस्तु नहीं है।

'संतुलन' कथा में मुझे लघुकथा के नियमों के अनुसार काल दोष दिखाई देता है जिसमें कथा का अंत अगले दिन होता है। नायक अश्विन के मन के कोहराम का बढ़िया वर्णन है। जहाँ सही-गलत के बीच संतुलन बनाना कठिन होता है।

'स्वाभिमान' कथा में बड़ी आम-सी घटना खास तब बन जाती है जब पत्नी बिना पत्नीधर्म निभाए पति से तलाक ले लेती है। पति किसी और से प्यार करता है किंतु उसने सदा अपनी पत्नी के प्रति ईमानदारी निभाई। उनकी 'मोहरे' एक मानवेतर कथा है जिसमें कलम और बंदूक के बीच का द्वंद्व उकेरा है।

इस संग्रह की सभी लघुकथाओं में विषय में वैविध्य और समसामयिकता के प्रति सरस की गंभीरता प्रशंसनीय है। इन लघुकथाओं में वर्णित विषय का प्रतिपादन एवं सुशिल्पन पाठकों को सहज आकर्षित करता है।

सरस का लेखन संभावनाओं से पूर्ण है। उनका लेखन सतत चला रहे। आमीन!

संतोष श्रीवास्तव

भोपाल

मो-9769023188

इंद्रधनुषी दृष्टि की लघुकथाएँ

एक विधा में सृजनात्मकता हमेशा शाश्वत है। उसके शिल्प, कहन, गठन और नियमों को लेकर घमासान के बीच, विजयी होती है एक लेखक की रचनात्मक दृष्टि। लघुकथा विधा में परिपक्व सोच के साथ और नवीन दृष्टि से भेंट करवाती रचनाएँ इस संग्रह के माध्यम से आपसे साक्षात्कार करती हैं।

इन रचनाओं के पात्र, सौंधी भाषा और बारीक ताने-बाने से भाव, आपको अपने प्रवाह में अनायास ही ले जाते हैं। 'काजल पारना', 'जगह पूर देना' जैसे मन में जड़े माणिकों से शब्द, एक बारीक सूत के साथ आपको इन पात्रों के जीवन का हिस्सा बना देते हैं।

सरस जी की दृष्टि दसों दिशाओं में घूमकर अपने विषय जुटाती हैं और उनका अनुभवी व्यक्तित्व गढ़ता है अपने पात्र, जो व्यवहार की भट्टी में पककर निकले होते हैं, सो कहीं से भी बनावटी नहीं लगते।

लघुकथा विधा में जिस तेज़ी से रचनाओं का उत्पादन हो रहा है, विविध प्रकार से विधा की छीछालेदार हो रही है और अपने तरीके से इसकी सार्थकता- निरर्थकता को परिभाषित करते शब्दों का आगमन हो रहा है, कई बार एक निर्वात की सी अनुभूति होती है। ऐसे में इस संग्रह की सी रचनाओं का साथ आशा जगाता है। सरस जी की जीवन दृष्टि प्रगल्भ है, उनके सृजन की दूरदर्शिता परिपक्व है और इन रचनाओं से स्पष्ट होता है कि क्यों एक साहित्यकार को एक बेहतर व्यक्तित्व का धनी होना आवश्यक है।

स्त्री विमर्श में बिना किसी खींचतान के, दिखावे से परे के सिद्धांत हैं, तो जीवन मूल्यों को लेकर धन से परे जाते पैमाने हैं। सर्वश्रेष्ठ तत्व जो इन लघुकथाओं की गूँज को लंबे समय तक प्रासंगिक बनाकर रखने में समर्थ है, वह है इनका सकारात्मक होना। अधिकांश रचनाओं में पात्रों के माध्यम से शायद हम ही अपने आप से बार-बार मिलते हैं, अपने विचार, विश्वास, व्यवहार का मंथन करते हैं और आईना भी देखते हैं।

तय है कि लघुकथा विधा सशक्त है, पाठकों की पसंद है और एक लंबी दूरी तय करने के बाद भी अभी इसे स्वयं को सिद्ध करने की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन अपने पाठक के साथ बिना किसी औपचारिकता के साथ जब रचनाएँ समानांतर होने लगें, तब सिद्ध लेखनी और परिपक्व व्यक्तित्व के लेखक की प्रतिभा का लोहा मानना आवश्यक होता है। सरस जी ने जिस आत्मीय दृष्टि से जीवन को इन लघुकथाओं के माध्यम से देखा है, ये रचनाएँ, नयनों को सुखद अनुभूति देते इंद्रधनुष-सी प्रतीत होती हैं।

एक उत्कृष्ट संग्रह के लिए लेखिका को बधाई व शुभकामनाएँ। 

अंतरा करवड़े

अनुध्वनि

117, श्री नगर एक्स्टेन्शन इंदौर-452018 म.प्र.

हमें कुछ कहना है...

भावनाओं का उत्सर्ग निकास खोजता है। माध्यम कोई भी हो सकता है। चाहे वह नृत्य हो, गायन हो, संगीत हो, अभिनय हो अथवा लेखन।

एक कलाकार अभिव्यक्ति का रास्ता खोज ही लेता है।

एक साहित्यिक परिवेश में बड़े हुए। पिताजी एक स्थापित लेखक थे, फलस्वरूप घर पर अक्सर साहित्यकारों का जमघट रहता। उनके सान्निध्य में, गोष्ठियों का आयोजन होता। लेखन में रुचि तभी से आरंभ हुई।

सबसे पहले कविताओं ने मोहा, और हमने उन्हीं का आँचल थाम लिया। वे ही अभिव्यक्ति के निकास का पहला माध्यम बनीं।

फिर एक नई विधा ने आकृष्ट किया। लघुकथा...!

गागर में सागर का अनूठा समन्वय। और देखते-ही-देखते लघुकथा लेखन के प्रति रुचि बढ़ती गई। कहीं मन में यह ख्याल था, कि नियमों में बँधकर लिखने से गुणवत्ता बाधित होती है। पर फिर यह भी एहसास हुआ, कि अनुशासन, लगाम की तरह सोच को बहकने से रोकता है। यही अनुशासन लघुकथा को उसका प्रारूप देता है।

कम शब्दों में अपनी बात कहना...!

हथौड़े की चोट सीधे कील पर करना, जिससे कथा का सार, सीधे मस्तिष्क पर प्रहार करे...!

सजगता से जीवन के कैनवास से, किसी क्षण विशेष को उठाकर कथा को विस्तार देना...!

कथा को एक वाद्य यंत्र के तारों की तरह चुस्त रखना, क्योंकि जिस प्रकार जरा-सी भी ढिलाई, वाद्य को बेसुरा कर सकती है उसी प्रकार एक कथा, ढिलाई से कमज़ोर हो सकती है...!

सीधी सपाट बयानी से बचना...!

कुछ तथ्य पाठक की कल्पनाशीलता पर भी छोड़ दिया जाना...! ऐसे अनेक नियमों में बँधकर जब लघुकथा लिखी जाती है, तब निसंदेह 'देखन में छोटी लगे, घाव करे गंभीर' की उक्ति चरितार्थ हो जाती है।

हमारे चारों तरफ असंख्य कथाएँ बिखरी पड़ी हैं, कई बार कोई घटना, किसी कथा के लिए उत्प्रेरक बन जाती है। ऐसे में उस घटना को प्रमुखता न देकर, उसमें छिपी संवेदना को चीन्हकर, उसमें कल्पना के रंग भरकर, उसे एक कथा का रूप देना होता है।

इस संग्रह में हमने अपने मन की विचलन को, परिस्थितिजन्य विवशताओं को, समय-असमय मिले घावों को, लघुकथा का जामा पहना, एक रूप देने का प्रयास किया है।

हम विशेष तौर पर आदरणीय बलराम अग्रवाल जी, आदरणीया संतोष श्रीवास्तव, एवं विदुषी सुश्री अंतरा करवड़े जी का हृदयतल से आभार प्रकट करना चाहेंगे, जिन्होंने अपनी व्यस्तता से अमूल्य समय निकालकर, इस संग्रह के लिए, अपने उद्गार व्यक्त कर, आशीष दिया।

लघुकथाओं का यह संग्रह हम आपको सौंपते हैं, इसी उम्मीद से कि आप इस संग्रह को उतना ही स्नेह देंगे, जितना आपने हमारे प्रथम काव्य संग्रह मेरे हिस्से की धूप को दिया।

वनिका पब्लिकेशंस की आदरणीया डॉ. नीरज शर्मा जी ने इस संग्रह को इतना सुंदर प्रारूप दिया उसके लिए उनका बहुत-बहुत धन्यवाद।

इसी के साथ यह लघुकथा संग्रह अब आपको सौंपते हैं।

सरस दरबारी

E-104, स्कन्द अपार्टमेंट लूकरगंज प्रयागराज-211001 

मो-8853659917

अनुक्रम 

परवरिश

प्रत्यंचा

भूख

मूर्तिकार

मोल

रस्साकशी

हींग लगे न फिटकरी

संकल्प

अंधकार

अतिक्रमण

प्रारब्ध

बदक्ल

फोल्डर

बंजर समाज

बड़ा दिल

छोटी-छोटी खुशियाँ

महामारी

ब्रह्मराक्षस

मकसद

छाले

ममता

महिषासुर मर्दिनी

मुझे चाँद चाहिए

उड़ान

मोहरे

यक्ष प्रश्न

यह बदनसीब बेचारे

यादें

रंग

संतुलन

पहल

दांपत्य

रूपांतरण

रिजेक्शन

रिहाई

रौशनी

त्राण

विजय

प्रत्यारोपण

शिकार

सक्षम

सबसे प्रिय चीज़

जेनरेशन गैप

अधिकार

मसीहा

अपनी-अपनी सीमा

अबोध

अभिप्राय

असली उजास

अहंकार

क्रेडिट कार्ड

अहम्

आखेट

चुनाव

आहूति

सात मूढ़ वाला लल्ला

सीमाएँ

स्वाभिमान

हमदर्द

चाक

गिरगिट

हार

हिफाज़त

हिम्मत-ए-मर्दा

हूक

नसीहत

सीख

जीत

मुक्ति

अहमियत

जन्मघुट्टी

क्वालिफिकेशन

ज़हर

निवाला

पहरेदार

तोहफा

सरस दरबारी

जन्मतिथि : 09 सितम्बर 1958

शिक्षा : मुंबई विश्वविद्यालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक

लेखन की विधाएँ : कविताएँ, दोहे, हाइकु, हाईगा, माहिया, गीत, छंदमुक्त रचनाएँ, कहानियाँ आलेख, लघुकथाएँ, समीक्षा, संस्मरण ।

प्रकाशित पुस्तकें : एकल काव्य संग्रह- मेरे हिस्से की धूप ।

10 साझा काव्य संग्रह व 5 लघुकथा संग्रह, साझा प्रस्तुतियाँ-ब्लॉगर्स के अधूरे सपनों की कसक, नारी विमर्श के अर्थ महिला साहित्यकारों की समस्या (अयन प्रकाशन) नहीं, अब और नहीं (सांप्रदायिक दंगों की कहानियाँ)

उपन्यास एवं काव्य व लघुकथा संग्रहों की समीक्षा, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिकाओं में कहानियाँ, आलेख व कविताएँ प्रकाशित ।

आकाशवाणी मुंबई से 'हिंदी युववाणी' व मुंबई दूरदर्शन से 'हिंदी युवदर्शन' का संचालन 'फिल्म्स डिविज़न ऑफ़ इंडिया' के पैनल पर 'अप्रूव्ड वॉइस'

सम्मान : 'मेरे हिस्से की धूप' के लिए, 'राधा अवधेश स्मृति पांडुलिपि सम्मान'

ईमेल : sarasdarbari@gmail.com

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