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बोझ हम उठाते हैं / राम मूरत 'राही' (सम्पादक)

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बोझ हम उठाते हैं  लघुकथा-संकलन  राम मूरत 'राही'   सम्पादक ISBN 978-93-85438-74-5 © राम मूरत 'राही' (सम्पादक) प्रथम संस्करण, 2025 आवरण   सुधीर कुमार सोमानी  भावेश कानूनगो प्रकाशक   अक्षरविन्यास एफ-6/3, ऋषिनगर, उज्जैन फोन : 0734-2512591 ई-मेल: aksharvinyas@gmail.com मुद्रक   ग्राफिक्स पार्क 160, साँवेर रोड तीन बत्ती चौराहा, उज्जैन मोबाइल : 98270-70070 सम्पादकीय   तकलीफों से भरा कुली जीवन... लाल कमीज, बाजू पर बँधा नम्बर लिखा बिल्ला (बैज), यही पहचान होती है रेलवे स्टेशन के कुलियों की। सिर और कन्धों पर सामान ढोने वाले इन कुलियों का जीवन दुःख, तकलीफों से भरा होता है। चाहे कड़ाके की ठण्ड पड़े, तेज गर्मी हो या बरसात, ये हमेशा यात्रियों का सामान ढोने के लिए तैयार रहते हैं। बचपन में जब हम माता-पिता के साथ गाँव जाते थे, तब भीड़-भाड़ होने पर कुली ही हम बच्चों को खिड़की के रास्ते डिब्बे में प्रवेश करवाकर बैठने की जगह दिलवाते थे। वर्षों बाद भी आज वो दृश्य आँखों के सामने किसी चलचित्र की तरह नजर आता है। रेलवे स्टेशन पर मैं यात्रा के दौरान पुरुष कुलियों को ट्रेन क...

आईना हँसता है / दीपा मनीष व्यास (डाॅ.)

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आईना हँसता है    लघुकथा-संग्रह   कथाकार  दीपा मनीष व्यास (डाॅ.) ₹240  ISBN 978-93-48636-51-5  आईना हँसता है (लघुकथा संग्रह)  डॉ. दीपा मनीष व्यास  प्रथम संस्करण 2025 @डॉ. दीपा मनीष व्यास मुद्रक मणिपाल टेक्नोलॉजीज प्रा. लि. शिवना प्रकाशन पी. सी. लैब, सम्राट कॉम्प्लैक्स बेसमेंट बस स्टैंड, सीहोर - 466001 (म.प्र.)  फ़ोन +91-7562405545  मोबाइल +91-9806162184 (शहरयार) ईमेल shivna.prakashan@gmail.com अनुक्रम पगडंडी/17 आईना हँसता है / 18 सीख /19 दो पैसे /21 प्रेम सी नर्म जिंदगी /23 झुमरी /25 अपना गाँव / 26 सोच /27 बेबसी /28 नया बस्ता /29 मिठास /31 मिक्कू का बेट /32 मरणोपरांत /33 वरदान /34 ध्रुव तारा /35 सच्ची सेवा /36 फर्स्ट हेंड खुशियाँ /38 प्रवासी पंछी /39 बर्तन तो बजेंगे ही.../40 लांग ड्राइव /42 सन्नाटा /44 बेटे का ब्याह /45 मुँह बंद /46 आत्ममुग्धा /47 सिग्नल /48 जड़हीन /49 ग्लानि /50 मसाले वाली चाय /51 गर्माहट /53 सेतु /54 हिसाब - किताब /55 अनकहे शब्द /57 दिखावा /58 आँखे /59 कैंडल मार्च /60 मीठे भात /61 नाम.../63 स्वतंत्रता दिवस /64 छप्प...

परिंदों के दरमियां / बलराम अग्रवाल

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31 अक्टूबर, 2018 को ई-मेल से प्राप्त समीक्षा सादर प्रस्तुत।  पूर्व में भी यह प्रकाशित हो चुकी है या नहीं, याद नहीं है। यहाँ श्रीयुत् बद्री सिंह भाटिया जी  (04-7-1947 — 24-4-2021)   को श्रद्धांजलि स्वरूप...सादर🙏 विमर्श के बहाने लघुकथा की जाँच-पड़ताल   बद्री सिंह भाटिया  एक समय था जब विचार-विमर्श के लिए कोई बैठक, फोन, काफी हाऊस की मेज, किसी पार्क की बेंच या राह चलते उपयुक्त माने जाते थे। जब से सोशल मीडिया अपने ताम-झाम के साथ समाज में आया है, सार्थक संवाद के लिए किसी साक्षात् आयोजन की बजाए आभासी आयोजन से विचार-विमर्श के लिए एक खुला मंच मिला है जहाँ अपनी बात कहने के लिए किसी बारी की नहीं अपितु बीच में चार पंक्तियाँ लिख देने मात्र से मंतव्य प्रकट कर सकते हैं और उसी तरह समय रहते प्रत्युत्तर भी प्राप्त कर सकते हैं।  ऐसा ही एक संवाद ‘लघुकथा के परिंदे’ समूह के तत्वावधान में घंटां ऑन लाइन चला। यह सार्थक संवाद लघुकथा के नवोदित और संभावनाशील रचनाकारों और सुप्रसिद्ध वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ॰ बलराम अग्रवाल के मध्य हुआ। बलराम अग्रवाल जी ने रचनाशीलता के सम्बंध में किए अने...