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परिंदों के दरमियां / बलराम अग्रवाल

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31 अक्टूबर, 2018 को ई-मेल से प्राप्त समीक्षा सादर प्रस्तुत।  पूर्व में भी यह प्रकाशित हो चुकी है या नहीं, याद नहीं है। यहाँ श्रीयुत् बद्री सिंह भाटिया जी  (04-7-1947 — 24-4-2021)   को श्रद्धांजलि स्वरूप...सादर🙏 विमर्श के बहाने लघुकथा की जाँच-पड़ताल   बद्री सिंह भाटिया  एक समय था जब विचार-विमर्श के लिए कोई बैठक, फोन, काफी हाऊस की मेज, किसी पार्क की बेंच या राह चलते उपयुक्त माने जाते थे। जब से सोशल मीडिया अपने ताम-झाम के साथ समाज में आया है, सार्थक संवाद के लिए किसी साक्षात् आयोजन की बजाए आभासी आयोजन से विचार-विमर्श के लिए एक खुला मंच मिला है जहाँ अपनी बात कहने के लिए किसी बारी की नहीं अपितु बीच में चार पंक्तियाँ लिख देने मात्र से मंतव्य प्रकट कर सकते हैं और उसी तरह समय रहते प्रत्युत्तर भी प्राप्त कर सकते हैं।  ऐसा ही एक संवाद ‘लघुकथा के परिंदे’ समूह के तत्वावधान में घंटां ऑन लाइन चला। यह सार्थक संवाद लघुकथा के नवोदित और संभावनाशील रचनाकारों और सुप्रसिद्ध वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ॰ बलराम अग्रवाल के मध्य हुआ। बलराम अग्रवाल जी ने रचनाशीलता के सम्बंध में किए अने...