आईना हँसता है / दीपा मनीष व्यास (डाॅ.)
आईना हँसता है
लघुकथा-संग्रह
कथाकार
दीपा मनीष व्यास (डाॅ.)
₹240
ISBN 978-93-48636-51-5
आईना हँसता है (लघुकथा संग्रह)
डॉ. दीपा मनीष व्यास
प्रथम संस्करण 2025
@डॉ. दीपा मनीष व्यास
मुद्रक मणिपाल टेक्नोलॉजीज प्रा. लि.
शिवना प्रकाशन
पी. सी. लैब, सम्राट कॉम्प्लैक्स बेसमेंट बस स्टैंड, सीहोर - 466001 (म.प्र.)
फ़ोन +91-7562405545
मोबाइल +91-9806162184 (शहरयार) ईमेल shivna.prakashan@gmail.com
अनुक्रम
पगडंडी/17
आईना हँसता है / 18
सीख /19
दो पैसे /21
प्रेम सी नर्म जिंदगी /23
झुमरी /25
अपना गाँव / 26
सोच /27
बेबसी /28
नया बस्ता /29
मिठास /31
मिक्कू का बेट /32
मरणोपरांत /33
वरदान /34
ध्रुव तारा /35
सच्ची सेवा /36
फर्स्ट हेंड खुशियाँ /38
प्रवासी पंछी /39
बर्तन तो बजेंगे ही.../40
लांग ड्राइव /42
सन्नाटा /44
बेटे का ब्याह /45
मुँह बंद /46
आत्ममुग्धा /47
सिग्नल /48
जड़हीन /49
ग्लानि /50
मसाले वाली चाय /51
गर्माहट /53
सेतु /54
हिसाब - किताब /55
अनकहे शब्द /57
दिखावा /58
आँखे /59
कैंडल मार्च /60
मीठे भात /61
नाम.../63
स्वतंत्रता दिवस /64
छप्पन भोग /65
अहसास /66
वृक्षपात /67
सफेद ड्रेस /68
सरपंच पत्नी /69
जीवन दर्शन /71
आराम कुर्सी /73
अमीर आदमी /74
कतार /76
राम जैसा चरित्र /77
जीजी बाई /78
साँवली सलोनी /79
सर्वश्रेष्ठ अभिनेता /80
वापसी /82
शक्ति प्रदर्शन /83
हार नहीं मानेंगे /84
अपने वाले /86
खिचड़ी /87
भगवान की इच्छा /89
उपहार /90
मुँह मीठा हो गया /91
दो पहिये /92
जीत पक्की है /93
राष्ट्र सेवा /94
आओ साथ चले /95
कठपुतली /96
बरसात के वो दिन /98
स्टैण्डर्ड /100
जयकारा /101
सिर्फ तुम... /102
सच्चा सम्मान /104
लाचारी /106
मजबूरी /108
भाईचारा /109
उत्तराधिकारी /110
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता /111
देश प्रेम /112
समर केम्प /113
तो क्या हुआ... /115
विशेष योग्यता /116
असली कमाई /117
मैं हूँ ना... /119
मी टाइम /120
ब्राह्मण भोज /122
भूमिका
लघुकथाओं में भावात्मक तरलता सहज वेग से बही है। रचना में आने वाला भाव तत्व ही रचना को विशिष्टता प्रदान करता है। रचना की भावानुभूति ही तो पाठक के हृदय को प्रभावित करती है और इसलिए रचना पन्ने पर खत्म हो जाने के बाद भी पाठक के दिमाग में घूमती रहती है। साहित्य में आज इस भाव तत्व की कमी दृष्टिगोचर हो रही है. जो सोच का विषय है। संप्रेषणीयता, कथा तत्व की कमी से रचना एक विशिष्ट प्रकार के पाठकों को तो खुश कर सकती है, परंतु आम जन उससे दूर हो जाता है। दरअसल साहित्य में जैसे जैसे रागतत्व में कमी आती गई. वह आम जन से दूर होता गया। भाव, विचार और कला का समन्वय ही तो रचना को उत्कृष्टता प्रदान करता है। कहानी में जैसे व्यक्तिवाद, यथार्थवाद, आधुनिकतावाद आया उसी तरह लघुकथा भी प्रभावित होती रही। जीवन, समाज, राष्ट्र के विशाल परिवेश से अलग हो कर यदि हम लेखन कर रहे, तो हम साहित्य का अभीष्ट नहीं प्राप्त कर पाएंगे। साहित्य मनुष्य के लिए अलौकिक आनंद की सृष्टि करता है। यदि हमारी रचना में उपयुक्त विशेषताएं नहीं हैं तो रचनाधर्मी को अपने सृजन को ठीक करना जरूरी है। "सर्वजन हितार्थ चिंता" तथा "विश्व बंधुत्व की भावना" ही तो साहित्य का आधार है। लेखिका डॉ. दीपा मनीष व्यास का व्यक्तित्व जैसा सहज, विनम्र, निराभिमानी, स्नेहशील और शालीन है, वैसी ही उनकी रचनाएं हैं। प्रायः सभी रचनाओं में भारतीय संस्कृति के प्रति अनुराग दिखाई देता है। उनकी रचनाओं में उपलब्धि पूर्ण वर्तमान तो है ही, साथ ही हमारे जीवन मूल्यों के क्षरण से पीड़ित वर्तमान भी नजर आता है। सामान्य जन से लेकर विशिष्ट जन तक को नई दिशा देने का उन्होंने एक विनम्र प्रयास किया है।
डॉ. दीपा मनीष व्यास की लघुकथाएँ एक ओर तो समाज की यथार्थ स्थिति को प्रकाश में लाती हैं, साथ ही वह बदलते समय और विषयों की और भी पाठक का ध्यान आकर्षित करती हैं। वह मानव मन की पर्तों को खोलती हैं। पाठक के हृदय को उद्वेलित करती हैं। उनकी रचनाएं सहजग्राह्य हैं और सदाचार जैसे मानवीय गुणों का संदेश देती हैं। अनेक लघुकथाएं मानवीय कुंठाओं पर भी प्रहार करती हैं। समाज में आज जो वैचारिक विकृति छाई हुई है, लेखिका ने अपने पात्रों द्वारा उसका विरोध भी किया है। रचनाओं में नारी पुरुषों के विभिन्न रूप, उनकी सम विषम परिस्थिति और मनःस्थिति का चित्रण दिखाई देता है। इन लघुकथाओं में मानव और राजनीति की कुटिल चाल भी हैं और कर्तव्यनिष्ठा, समाजसेवा का संदेश भी है। सामाजिक कुरीतियों के प्रति असंतोष है और सामान्य जनजीवन का रागात्मक चित्रण भी।
'आईना हँसता है' की लघुकथाओं में भावात्मक तरलता है जो सहज वेग से बही है। शैली में सहजता, स्वाभाविकता और रोचकता है इसलिए कहा जा सकता है कि वे संप्रेषणीय है। जनसाधारण के जीवन की मनोवृतियों, समस्याओं को लेखिका ने अपने तरीके से प्रस्तुत किया है। समाज की अस्वस्थता और भ्रष्टाचार से मुक्ति की छटपटाहट, उनकी लघु कथाओं में विद्यमान है। 'आईना हँसता है' की लघुकथाओं के शीर्षक रचना को प्रभावपूर्ण बनाते हैं। रचनाओं के अधिकांश शीर्षक घटना प्रधान हैं। लेखिका का विश्वास है कि, सबसे पहले हम परिवार में सौहार्द्रता लाएँ फिर समाज को सुधार ने की बात करें। भले ही समीक्षकों को उनमें अधिक कलात्मकता ना नजर आए परंतु इतना तो कहना ही होगा कि उनमें सामाजिकता है, हृदय को शांति प्रदान करने की शक्ति है और वे मस्तिष्क को भी कुरेदती हैं। ईश्वर उनके लेखन को अक्षुण्ण बनाए। मेरी ओर से उन्हें शुभकामनाएं और आशीर्वाद।
- डॉ. योगेन्द्र नाथ शुक्ल
(पूर्व प्राचार्य एवं साहित्यकार)
आशीर्वचन
लघुकथा का लयबद्ध जयकारा
साहित्यिक सन्दर्भ को लेकर चर्चा करें तो तुलनात्मक दृष्टि से वर्तमान में जिस गति से लघुकथा लेखन हो रहा है, इतने बड़े पैमाने पर साहित्य की अन्यान्य विधाओं में नहीं देखा गया है। विगत सदी के सातवें दशक से समकालीन लघुकथाओं का आविर्भाव हुआ और आधुनिक सदी के इन दो-ढ़ाई दशक में ही लघुकथा लेखन विचारात्मक एवं कलात्मक आशय से चरम पर आ पहुँचा है। लघुकथा लेखन के क्षेत्र में लघुकथाकारों की गुणात्मक आमद बढ़ी है। इसका सुफल यह हुआ है कि प्रायः आज का हर लघुकथाकार सामाजिक विसंगतियों को परखने में दृष्टि संपन्न हो चुका है। यही वजह है कि आधुनिक लघुकथाएँ आलोचनात्मक सहमति की हकदार भी होती जा रही है।
समृद्ध लेखनी के नपे-तुले कदमों के साथ डॉ. दीपा मनीष व्यास ने लघुकथा की जमीन पर मुस्तैदी के साथ प्रवेश लिया और अपनी लेखन-साधना से अनुस्यूत होकर लघुकथाकारों की सिद्धहस्त कतार में खड़ी नजर आने लगी है। वस्तुतः लघुकथा जगत में डॉ. दीपा व्यास जैसी नवागन्तुक लघुकथाकारों की आवश्यकता इसलिए है कि वर्तमान समय की सामाजिक विसंगतियों को जिस चश्में से आगन्तुक यानी नई पीढ़ी के लघुकथाकार देख पा रहे हैं, लघुकथाओं में उनकी विवेचनाओं के उत्तर न केवल लघुकथाओं को बहुआयामी बना रहे है अपितु बहुउद्देशीय निरूपित करते हुए उनकी पाठकीय उपयोगिता को भी सिद्ध कर रहे हैं।
डॉ. दीपा व्यास के व्यक्तित्व एवं कृर्तृत्व में लघुकथा विषयक समझ के बीज उनके परास्नातक शिक्षा काल के समय में ही पड़ चुके थे। लगभग कोई तीस बरस पहले दीपा ने मेरे मार्गदर्शन में देश के विख्यात लघुकथाकार सतीश दुबे की लघुकथाओं पर शोधकार्य किया है। किसी भी विषय का गंभीर अध्ययन चिंतन को गहराई देता है। विचार चिन्तन से ही जन्म लेते हैं। लघुकथा का दूसरा नाम विचार ही तो है ? दीपा की विचारजन्य लघुकथाएँ आज के समाज का आईना बनकर सामने आती है। दीपा व्यास का नवीनतम अपितु प्रथम लघुकथा संग्रह 'आईना हँसता है' जो उनके हृदय में समाज के तह से विचारों का उठा समुच्चय है।
सामाजिक विसंगतियों का चित्रोपम रूप प्रस्तुत करना आज के साहित्य की सबसे बड़ी माँग है। बल्कि मैं कहूँ कि साहित्य सर्जना का पहला उद्देश्य है मनुष्य को लक्ष्य में रखकर उसको उसकी तमाम अनुकूल और प्रतिकूल स्थितियों के साथ विवेचित करना। वैसे भी साहित्य का पाठक प्रक्ष्यतः अनुपम है जो साहित्य के समीप इसलिए आया है कि उसको पढ़कर वह जीवन विषयक जटिलताओं से निदान पा सके।
दीपा व्यास की लघुकथाएँ इसी आशय से समाज का स्पर्श करती है कि वह लघुकथाओं के जरिए समाज में व्याप्त विसंगतियों को रेखांकित करते हुए अपनी लघुकथाओं के कथ्य के माध्यम से समाज में बह रही 'पीब' को बुहार सके।
'आईना हँसता है' दीपा व्यास का प्रस्तुत लघुकथा संग्रह कुल बयासी लघुकथाओं के विभिन्न कथ्यों पर आधारित है। संग्रह की पहली लघुकथा 'पगडंडी' है, जो एक जमाने में गाँव का पता दिया करती थी। वर्तमान में विकसित होते शहर गाँव तो गाँव अपितु गाँव तक ले जाने वाली पगडन्डियों का अता-पता भी निगल चुके है। प्रस्तुत लघुकथा अपने गाँव की सुवास से जुड़े हुओं के मर्म को कुरेद कर गाँव के प्रति उनके रागात्मक सम्वेदन का गला घोटती प्रतीत होती है। लघुकथा 'आईना हँसता है' में अभावग्रस्त ज़िन्दगी को छोटी-छोटी खुशियाँ मिलने का अवसर सौंपती है। लघुकथा 'बेबसी' एक असहाय औरत के बेबस लड़के की दुर्भाग्यभरी गाथा है, जो निरपराध होकर भी आतंकवादी करार दिया जा चुका है। लघुकथा 'फर्स्ट हेंड ख़ुशियाँ' हैसियत के हिसाब से खरीदी गई खुशी का इजहार करती है। लघुकथा 'शक्ति प्रदर्शन' में नेता द्वारा अन्य नेताओं की तुलना में प्रतिस्पर्धात्मक भीड़ जोड़ने के संदर्भ में सभा स्थल पर लोगों की भीड़ का रास्ता देखने की एवज में भीड़ बढ़ाने के अर्थ में सभा स्थल पर लोगों को उठा-उठाकर बलपूर्वक लाने का मनसूबा बनाया जाता है।
लघुकथाकार दीपा व्यास की और भी बहुतेरी लघुकथाएँ हैं, जिनको लिया जा सकता है और जिनमें वैचारिक तथ्यों का अच्छा समावेशन देखने को मिलता है। ऐसी लघुकथाओं में उपहार, जीत पक्की है, बरसात के वो दिन, मजदूरी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, असली कमाई।
लघुकथा की संरचना में केवल विचार सन्दर्भित कथ्य ही आवश्यक नहीं होता अपितु भाषा शैली, शिल्प से नियोजित सम्प्रेषण कथा में वाचालता लाने वाले पात्र उनके बीच पारस्परिक सम्वाद, परिवेश एवं लघुकथा पर चढ़ाया गया एक अर्थसम्पन्न शीर्षक भी लघुकथा को लघुकथा कहलाने की परिभाषा में रंग पैदा करता है। यह सब मिलकर एक लघुकथा को पुख्ता लघुकथा में प्रस्तुत करते हैं। दीपा व्यास की लघुकथाओं में भाषा विषयक अनुशासन, सम्प्रेषण विषयक परिमार्जन और पाठक वर्ग से तादात्म्य हेतु रागात्मक सम्वेदन सभी की योजनाएँ प्रवीणतापूर्वक स्थापित हुई मिलती है।
'आईना हँसता है' लघुकथा संग्रह डॉ. दीपा मनीष व्यास के लोककीय मनोबल की बानगी है। अपनी इस प्रथम प्रतिश्रुति के माध्यम से दीपा ने लघुकथा की जमीन पर अपने गहराते संकल्प न केवल बोंए हैं वरन् आगे चलकर अपने ही बोए हुए बीजों के पल्लवित, पुष्पित और गंधित हो चुकने के उपरान्त इन्हीं भण्डारण से आगे के आने वाले दिनों में और... और बीज बटोरकर लघुकथाएँ लेखन का सतत क्रम अनवरत रखेगी।
इसी शुभेच्छा के साथ..........
डॉ. पुरुषोत्तम दुबे
'शशीपुष्प' 74 जे/ए, स्कीम नं. 71,
इंदौर (म.प्र.)
मो. 9329581414
मनोगत
क्या लिखूँ? कहाँ से शुरू करूँ? यही होता है न सबके साथ जब भावनाएं लहरों की भाँति उछल कूद करती है, तो बस मेरे साथ भी यही हो रहा है।
कहते हैं जीवन आश्चर्यों से भरा होता है। हर पल एक नया रंग देखने को मिलता है। कभी श्वेत रंग तो कभी श्याम पर इन दोनों के बीच खूब सारे रंग होते हैं जो अचंभित करते हैं और वो रंग होते हैं उन रिश्तों के जो उस ईश्वर ने हमको उपहार स्वरूप दिए होते हैं।
मैं बहुत सौभाग्यशाली हूँ कि अब तक के मेरे जीवन में सारे प्यारे लोग आए, प्यारे रिश्ते बनें। बिल्कुल भी अतिशयोक्ति नहीं होगी यह कहने में कि अभी तक कोई कटु अनुभव नहीं हुआ। हाँ हल्का फुल्का मोड़ आया पर आप सबके साथ और स्नेह ने उसे आसान बना दिया।
शुरू से ही मुझे कभी कोई आशा अपेक्षा रही ही नहीं। प्रारंभिक दौर में पढ़ाई में औसत छात्रा रही जो बस जैसे तैसे पास हो जाती और फिर पढ़ाई से भागने के रास्ते भी ढूँढती। असफलता भी देखी और जब असफल हुई तो स्वयं को एक नई ऊर्जा दी और सफलता की ओर कदम भी बढ़ाए। उस असफलता के समय में ईश्वर के सारे दूत जैसे मेरे दर्दू-बई, पापा-मम्मी, मेरे दोनों भाई और साथ ही मेरे सारे शिक्षक, मेरे आसपास रहकर मेरा मनोबल बढ़ाया और मैंने कुछ कर दिखाने का ठान ही लिया। ऐसे सबके आशीर्वाद से एम.ए. (हिंदी साहित्य) प्रावीण्य सूची में स्थान प्राप्त कर उत्तीर्ण कर लिया।
जब स्नातक कर रही थी तो बस कक्षा में बैठती ही थी बस अध्ययन करना और कुछ नहीं।
यहाँ फिर ईश्वर डॉ. उषा तिवारी मेडम के रूप में आए। डॉ. उषा तिवारी मेडम ने मुझे जिस तरह से संभाला, तराशा है वो शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल है। जो लड़की कभी किसी से ज्यादा बात नहीं करती थी, अपनी ही दुनिया में रहती थी ऐसी औसत छात्रा को वाद-विवाद प्रतियोगिता के लिए तैयार करना आसान नहीं था। मुझ पर मेडम का विश्वास अडिग था वो मुझ पर मेहनत करती रही और फिर दो या तीन असफलताओं के बाद वाद-विवाद ही नहीं महाविद्यालय की हर प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
महाविद्यालय की बहमुखी प्रतिभा संपन्न सर्वश्रेष्ठ छात्रा का सम्मान और प्रमाणपत्र मिला। महाविद्यालय छात्र परिषद की अध्यक्ष बनी तो समझिए लेखन कार्य यहीं से प्रारंभ हो गया। भाषण देना, संचालन करना है तो लिखना है बस लिखना शुरू कर दिया। जीवन का स्वर्णिम समय प्रारंभ हुआ और फिर स्नातकोत्तर तक महाविद्यालय की सर्वश्रेष्ठ छात्रा रही।
यहाँ तक के पड़ाव तक दादाजी बई, माँ पापा और गुरुजन की छत्रछाया में जीवन को समझा और सीखा।
विवाहोपरांत भी ईश्वर अपने होने की अनुभूति करवाते रहे।
नया परिवार, नए लोग सब कुछ नया। रीति रिवाज नए, काम करने के तरीके नए पर सब कुछ आसान लगा। मैंने कहा न कि सारे रिश्ते बहुत ही खूबसूरत मिले। ससुराल में जब पीएचडी करने की इच्छा बताई तो सहर्ष स्वीकृति मिल गई।
डॉ. पुरुषोत्तम दुबे सर से भेंट की और विषय पर विचार शुरू हुआ। विलास गुप्ते अंकल जी व डॉ. पुरुषोत्तम दुबे सर ने लघुकथा के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. सतीश दुबे के साहित्य पर शोधकार्य करने का कहा।
बस फिर, डॉ. सतीश दुबे जी से भेंट की और जीवन साथी मनीष जी के साथ से शोधकार्य के साथ ही थोड़ा थोड़ा लेखन भी प्रारंभ हुआ। संचालन, समीक्षक और चर्चाकार के रूप में साहित्य जगत में कदम रखा।
डॉ. सतीश दुबे जी के निवास पर होने वाली लगभग सभी गोष्ठियों में, मैं भी उपस्थित रहती। बहुत कुछ सीखा वहां से। शोधकार्य के दौरान लघुकथा को जाना, समझा, उसके मर्म से परिचित हुई लेकिन कभी लघुकथा लिखने की ओर ध्यान नहीं दिया।
महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्य प्रारंभ किया और तब कविताओं में रुचि जागी। कुछ कविताएं लिखी पर संतुष्टि नहीं मिली। कहानियाँ, उपन्यास पढ़ने में बचपन से बड़ा आनंद आता था, तो बस कहानी लेखन प्रारंभ किया। वर्ष 2012 में पहली कहानी 'बार्बी क्लब' नईदुनिया नायिका में प्रकाशित हुई। बुजुर्गों के जीवन पर आधारित इस कहानी के प्रकाशित होते ही न केवल इंदौर से बल्कि भारत के कई शहरों से मेरे पास बुजुर्गों के फोन आए। सभी ने उस कहानी से खुद को जोड़ लिया था जैसे। इंदौर में मेरी इस कहानी के पाठकों ने भारत और विदेशों में रहने वाले अपने परिचितों को वह कहानी भेजी। सबने प्रशंसा की तब लगा कि अच्छा लिखो तो दूर तक पढ़ा जाता है।
बस यहीं से कहानी लेखन प्रारंभ किया। कई कहानियाँ लिखी जो नईदुनिया, पत्रिका जैसे प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई और सराही गई।
साथ ही साथ कई व्यंग्य भी लिखे, आलेख भी लिखे, संस्मरण भी लिखे।
कहानियाँ लिखती रही लेकिन एक बात से हमेशा निराश हो जाती कि मेरे विद्यार्थी मेरी लिखी कहानियां पढ़ते तो थे पर उतनी गंभीरता से नहीं। जब उनसे बात की तो लगा कि उन्हें छोटी कहानियाँ पढ़ना अच्छा लगता है, जिनमें समय कम देना पड़े क्योंकि अध्ययन के दौरान उनके पास उतना समय नहीं होता कि वे बड़ी कहानियाँ पढ़ सके।
उन्हें क्लिष्ट हिंदी भी समझ नहीं आती थी। सामान्य बोलचाल की हिंदी ही उन्हें अच्छी लगती तो बस यहीं से लघुकथा लेखन प्रारंभ किया।
कहानी लेखन को कुछ समय के लिए मैंने विराम दिया क्योंकि मुझे युवाओं को साहित्य से हिंदी से जोड़ना था तो उनके लिए मैंने सामान्य हिंदी में सरल रूप से लेखन प्रारंभ किया। कई लघुकथाएँ लिखी जो प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई। सबसे अधिक प्रसन्नता तब हुई जब मेरे विद्यार्थी प्रकाशित लघुकथाओं को पढ़कर उस पर अपनी टिप्पणी देने लगे, कक्षा में विचार विमर्श करने लगे। सच कहूँ तो तब लगा कि लेखन सफल हुआ।
आप, हम तो सब पढ़े हुए हैं। हम गहन, गंभीर विषयों से आसानी से जुड़ जाते हैं पर जब युवा वर्ग जुड़ने लगता है, तो एक अलग ही खुशी होती है। जब मेरे सारे बच्चे साहित्य से जुड़ने लगे, हिंदी को सम्मान देने लगे तो मैं संतुष्ट हुई और लघुकथाएं लिखने लगी। मेरी लघुकथाओं में आसपास घूमने वाले पात्र और घटनाक्रम ज्यादा है क्योंकि मुझे हमेशा से ही पारिवारिक मूल्य, हल्की फुल्की प्रेम कहानियाँ, सामाजिक विषय ही पसंद आते हैं, तो बस इन्हीं को लेकर कुल बयासी लघुकथाएं लिखी हैं। मैंने प्रयास किया है अब उसमें कितनी सफल हुई हूँ ये तो आप सब ही बता पाएंगे।
इस प्रयास में मेरे जीवनसाथी मनीष जी और बेटी तनिष्का का विशेष सहयोग है। ये दोनों मेरे कभी सरल तो कभी बड़े ही क्रूर समीक्षक बने। मेरी हर लघुकथा सबसे पहले ये दोनों ही पढ़ते। कभी तो सहर्ष स्वीकृत करते पर कभी कभी बड़ी ही शिद्दत से इन्होंने नकारा भी है। तो ये मेरे सच्चे समीक्षक जब आलोचक की भूमिका में होते तो मेरे लिए लिखना आसान होता जाता।
मैं इन दोनों के लिए अगर लिखने बैठूं तो उपन्यास के कई पार्ट लिखने पड़ेंगे फिर भी खत्म न होगा। इनको मैं धन्यवाद भी नहीं दे सकती पर यही कहूँगी कि ऐसे ही मेरी रचनाओं के प्रथम पाठक, समीक्षक, आलोचक बने रहना।
मेरे दादाजी स्व. श्री दामोदरप्रसाद दुबे व दादी स्व. श्रीमती अहिल्या दुबे जी को मैं अपना आदर्श मानती हूँ। दादाजी और बाई दोनों ही हम बच्चों को प्रेरणादायी कहानियां सुनाते थे। अखंड ज्योति, कल्याण पढ़ने की प्रेरणा उनसे ही मिली। दादाजी स्वयं बहुत अच्छा लिखते थे तो मैं उनसे हर विषय पर चर्चा करती। आज उनका सपना पूरा करने का यह प्रयास है मेरा कि मेरा लघुकथा संग्रह उनके चरणों में अर्पित कर रही हूँ।
मेरे पापा श्री मदनलाल दुबे और मम्मी शीला दुबे के लिए क्या लिखूँ? उनकी वजह से मैं हूँ, हमारा परिवार है। उनकी प्रेरणा हमेशा रहती है। सारी सकारात्मकता मुझे मेरे पापा, मेरे जीवन साथी मनीष जी और मेरी बेटी तनिष्का से मिली है।
मेरे ससुर जी श्री सतीश व्यास जी व सासु जी श्रीमती शारदा व्यास जी ने सदा ही मुझे प्रोत्साहित किया।
विशेषकर मेरे ससुर जी ने मुझे लिखने और पढ़ने के लिए प्रेरित किया। वो स्वयं भी उपन्यास, कहानी, लेख पढ़ने में रुचि रखते हैं। मेरे लेखन के दौरान उन्होंने न केवल मेरा उत्साह बढ़ाया बल्कि मुझे कई ऐतिहासिक उपन्यासों के बारे में बताया। जब वो मुझसे किसी किताब या लेखक पर चर्चा करते तो मैं आश्चर्य से भर उठती कि पापाजी को कितना ज्ञान है हर विषय की कितनी वृहद जानकारी है। इसलिए जब उन्हें मेरा लिखा पसंद आता और वो प्रशंसा करते तो मैं एक नई ऊर्जा से भर जाती। आप दोनों को प्रणाम।
मेरी बुआ सास आदरणीय पुष्पलता पाठक जी हमेशा पूछते कि -थारी किताब कदे आयेगी? म्हारे थारो लिखियो अच्छो लगे। वो खुश होते तो मुझे लगता उनका आशीर्वाद मिलता जा रहा है। प्रणाम बुआजी।
स्व. सतीश दुबे जी की प्रेरणा और आशीर्वाद तो रहें ही पर उनकी जीवन संगिनी आदरणीय मीना दुबे जी का आशीर्वाद भी सदा मुझ पर रहा। कई विषयों को लेकर उनकी मेरी बातचीत होती और फिर उन विषयों से ही लघुकथा निकल आती। मैं उन दोनों को प्रणाम करती हूँ।
मैं मेरे दोनों भाइयों डॉ. संजय डॉ. गरिमा व अमित-शिवानी को बहुत स्नेह प्रेषित करती हूँ कि उनके प्यार से मैं यहाँ तक पहुँची।
मैं तनिष्का, अनुष्का, अथर्व, शिवेन के साथ ही मेरे परिवार के सभी बच्चों को स्नेहाशीष देती हूँ।
मेरे दोनों देवर-देवरानी, जेठ-जेठानी, ननद-नंदोई सबको प्रणाम करती हूँ।
मैं आभार और धन्यवाद की इस श्रृंखला में सर्वप्रथम मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद्, भोपाल का हृदय से धन्यवाद करती हूँ कि उन्होंने मेरे लघुकथा संग्रह की पांडुलिपि का चयन कर मुझे अनुग्रहित किया।
साहित्य अकादमी के निदेशक आदरणीय डॉ. विकास दवे को प्रणाम करती हूँ।
मैं भूमिका लिखने के लिए डॉ योगेंद्रनाथ शुक्ल सर को प्रणाम करती हूँ। जब मैंने लेखन प्रारंभ ही किया था तभी उन्होंने कह दिया था कि पुस्तक की भूमिका मैं लिखूंगा तुम बस लघुकथाएं लिखो।
मैं डॉ पुरुषोत्तम दुबे सर को प्रणाम करती हूँ उन्होंने मेरे विद्यार्थी जीवन से आज तक मुझ पर अपना आशीर्वाद बनाए रखा। मेरे शोधकार्य निदेशक से लेकर आज मेरी पुस्तक प्रकाशन तक उनका अप्रतिम स्नेह और आशीर्वाद मुझे मिलता रहा है।
अब बात उनकी जिन्होंने मुझे लगातार प्रेरणा दी। जी हाँ, ज्योति जैन का कॉल आ जाता, डाँट लगाती और फिर स्नेह से समझाती कि बेटा जी की बात कर रही हैं। मैं लिखने में लापरवाही करती तो ज्योति भाभी लिख ले। तेरी रचनाएँ पढ़ना है। किताब कब निकाल रही? मैं मदद करती हूँ। तू बस लिख, पुस्तक प्रकाशित करवा।
विगत बारह तेरह वर्षों में बमुश्किल पाँच या छह महीने ऐसे रहे होंगे जब ज्योति भाभी ने मुझे पुस्तक प्रकाशित करवाने के लिए न कहा हो। प्रणाम करती हूँ आपको।
आदरणीय सुषमा दुबे दीदी, आदरणीय अर्चना मंडलोई दीदी को धन्यवाद देती हूँ उन्होंने मुझे लगातार प्रोत्साहन दिया।
मैं सभी समाचारपत्रों के संपादकों को धन्यवाद देती हैं, जिन्होंने मेरी रचनाओं को समाचार पत्र में स्थान दिया और मेरा मनोबल बढ़ाया।
मैं सृजन संवाद साहित्य संस्था, वामा साहित्य मंच, क्षितिज साहित्य संस्था, विचार प्रवाह साहित्य मंच के साथ ही इंदौर की समस्त साहित्य संस्थाओं की आभारी हूँ। कि मुझे मंच प्रदान कर लेखन के लिए प्रेरित किया। भारत विकास परिषद् और सभी सामाजिक संस्थाओं को धन्यवाद देती हूँ।
एक विशेष धन्यवाद आलोक जोशी को देना चाहती हूँ। कि उन्होंने बहुत ही अल्प समय में मेरे लघुकथा संग्रह की पांडुलिपि तैयार की। आलोक भैया के कारण ही मैं समय पर पांडुलिपि संस्कृति परिषद् भोपाल भेज सकी।
मैं आभारी हूँ शिवना प्रकाशन के भाई शहरयार और आदरणीय पंकज सुबीर जी की। जिन्होंने अल्प समय में मेरी पुस्तक को सुंदर रूप देकर प्रकाशित किया। मैं मेरा यह प्रथम लघुकथा संग्रह मेरे इंदौर को समर्पित कर रही हूँ। मैं किन-किन नामों का उल्लेख करूँ? जब मेरा पूरा शहर मुझे प्रेरणा देता रहा है।
ये पुस्तक आपकी है, आप सबकी। मैं अपना लघुकथा संग्रह 'आईना हँसता है' आप सभी को समर्पित करती हूँ।
- डॉ. दीपा मनीष व्यास
परिचय : डॉ. दीपा मनीष व्यास
जन्म दिनांक : 30.6.1975एम.ए. पीएच डी हिंदी साहित्य में
विगत 18 वर्षों से महाविद्यालय में अध्यापन कार्य कर अब साहित्य साधना के साथ सांस्कृतिक सामाजिक क्षेत्र में भूमिका का निर्वहन। साहित्यिक संस्था 'सृजन संवाद' में अध्यक्ष पद पर। विचार प्रवाह साहित्य मंच में साहित्य सचिव। वामा साहित्य मंच की सदस्य। क्षितिज द्वारा पारस दासोत स्मृति लघुकथा सम्मान। दीवाज़ ऑफ इंदौर सम्मान। श्री श्री साहित्य सभा द्वारा 'काव्य सुरभि' सम्मान। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा 'अखिल भारतीय संचेतना लघुकथाकार' सम्मान।
श्री श्रीगौड़ ब्राह्मण समाज द्वारा बतौर अतिथि व अभिनन्दन समाज की प्रतिभा सम्मान। श्री श्रीगौड़ युवा परिषद द्वारा प्रतिभा सम्मान सामाजिक पंचायत द्वारा प्रतिभा सम्मान। मालव मयूर अलंकरण समारोह के मंच से श्रेष्ठ अभिनन्दन पत्र वाचन के लिए सम्मान। सेंटपॉल इंस्टिट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज में बतौर रिसोर्स पर्सन आमंत्रित। मोटिवेशनल स्पीकर की भूमिका का निर्वहन जत्रा संस्कार महोत्सव में पाँच दिवसीय संचालन हेतु सम्मान। नौ दिवसीय राम जन्मोत्सव दशहरा मैदान में संचालन। लोक संस्कृति मंच के ग्रामीण गौरव सम्मान में बतौर ज्यूरी मेम्बर व संचालन। जनजातीय मेले में नौ दिवसीय संचालन। डॉ एस. एन. तिवारी स्मृति सम्मान विविध लेख लिखने हेतु। जिला स्तरीय कहानी उत्सव प्रतियोगिता में विशिष्ट अतिथि सम्मान। श्री चैतन्य मण्डल इंदौर द्वारा मुख्य अतिथि सम्मान। आकाशवाणी से कविताओं का प्रसारण। विभिन्न साहित्यिक गोष्ठियों में बतौर मुख्य अतिथि, चर्चाकार, समीक्षक, व निर्णायक की भूमिका का निर्वाह। साहित्यिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में संचालनकर्ता, सूत्रधार की भूमिका। नई दुनिया, दैनिक भास्कर, पत्रिका समाचार पत्र में कविता, लघुकथाएं व कहानियां प्रकाशित। नई दुनिया के अधबीच कॉलम में व्यंग्य प्रकाशित। नईदुनिया के अपन इंदौरी व यात्रा कॉलम में संस्मरण। अक्षरविश्व में व्यंग्य। सुबह सवेरे ई समाचार पत्र, 6pm में कई आलेख प्रकाशित। प. बंगाल, उड़ीसा, राजस्थान, कोलकाता के प्रसिद्ध समाचार पत्र 'समाज्ञा' में कविता व व्यंग्य प्रकाशित।
संपर्क : डी-15, सुंदर विहार, स्कीम 103, इंदौर (म.प्र.) 452012
ईमेल- deepavyas3006@gmail.com
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें