लघुकथा समालोचना-2016 / कमल किशोर गोयनका
(उमेश महादोषी द्वारा प्रस्तुत)
लघुकथा का समय / डॉ. कमल किशोर गोयनका
‘लघुकथा का समय’ ग्रंथ के अध्यायों के शीर्षक-
लेख
01. लघुकथा की आवश्यकता और प्रासंगिकता
02. लघुकथा का आंदोलन और उसका महत्व
03. विधा-उपविधा प्रसंग एवं अनैतिकता का संकट
04. लघुकथाकार और सृजन-प्रक्रिया का सवाल
05. लघुकथा जीवन की आलोचना है
06. हिन्दी की पहली लघुकथा: एक टोकरी-भर मिट्टी
07. लघुकथा की राजनीति
08. लघुकथा और सतीश दुबे
09. लघुकथा और विक्रम सोनी
10. लघुकथा और कमल चौपड़ा
11. लघुकथा और बलराम अग्रवाल
12. लघुकथा और मधुदीप
13. लघुकथा में खरपतवार साफ करने का कर्तव्य
14. साहित्य का मंदिर सबके लिए खुला है
15. लघुकथा के सम्राटों और पैगम्बरों पर दया आती है
16. लघुकथा: बहस के मुद्दे और ‘लेखकविहीन विधा’ होने का सवाल
17. लघुकथा: कुछ विचारणीय प्रश्न
18. लघुकथा और लघु व्यंग्य
19. लघुकथा में नया उन्मेष: चैतन्य त्रिवेदी के ‘उल्लास’ में इक्कीसवीं सदी का चेहरा
साक्षात्कार
साक्षात्कार : एक : जगदीश कश्यप एवं विक्रम सोनी
साक्षात्कार : दो : सुरेश जांगिड़ /
साक्षात्कार : तीन : विक्रम सोनी
साक्षात्कार : चार : अशोक लव
साक्षात्कार : पाँच : डॉ. सतीश दुबे
साक्षात्कार : छह : मुकेश शर्मा
साक्षात्कार : सात : राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ‘बंधु’
साक्षात्कार : आठ : जगदीश कश्यप
साक्षात्कार : नौ राजेन्द्र परदेसी
साक्षात्कार : दस : बलराम अग्रवाल एवं कुलदीप जैन साक्षात्कार : ग्यारह : कमलेश भट्ट ‘कमल’
पत्र
पारस दोसोत को लिखे पत्र /
बलराम अग्रवाल को लिखा पत्र /
संपादक, ‘नई सदी पाइंट’ को लिखा पत्र /
संपादक, ‘अवध पुष्पांजलि’ को लिखा पत्र /
संपादक, ‘रविवारीय आवाज’ को लिखा पत्र /
डॉ. शिवनारायण को लिखा पत्र
विशेष
लघुकथा की वृहत् शृंखला: पड़ाव आौर पड़ताल
ग्रंथ में व्यक्त लेखक की कुछ मान्यताएँ, तथ्य और कथन :
01. विधा-उपविधा के प्रसंग में स्वाभाविक लेखन पर जोर देता गोयनका साहब का यह कथन विचारणीय है- ‘‘यह तो ठीक है कि समीक्षा-शास्त्र में विधा का स्वरूप और उसका रचना-विधान महत्वपूर्ण प्रश्न है, पर रचनाकार के लिए यह कोई बड़ा प्रश्न नहीं है। उसके सामने बड़ी समस्या होती है- अनुभूतियों का गहन संवेदनात्मक रूप लेना तथा इतना आवेगमय बनना कि वे स्वतः अभिव्यक्ति का मार्ग ग्रहण कर लें। ऐसी आवेगजन्य संवेदनात्मक अनुभूतियाँ अपनी अभिव्यक्ति का मार्ग तथा उसका विधात्मक ढाँचा स्वयं ही तय करती हैं और उसके लिए लेखक को किसी अतिरिक्त प्रयास अथवा विधा की शास्त्रीय जानकारी की आवश्यकता नहीं होती।’’ (पृष्ठ 19-20)
02. विक्रम सोनी द्वारा उठाये गये ‘यथार्थ की पहचान’ के महत्वपूर्ण प्रश्न के सन्दर्भ में गोयनका साहब का कथन दृष्टव्य है- ‘‘कोई भी साहित्य-सृष्टि स्रष्टा की दृष्टि और उसकी अभिव्यक्ति-क्षमता का परिणाम है। ... रचनाकार की शिक्षा-दीक्षा, उसके संस्कार, उसके संघर्ष और तनाव, उसकी सफलता-असफलता आदि अनेक परिस्थितियाँ एवं स्थितियाँ उसकी प्रतिभा में घुल-मिलकर उसे एक रचना-दृष्टि देती हैं, जो एक विशिष्ट रूप लेती है, जो किसी भी दूसरे रचनाकार की दृष्टि से भिन्न होती है .... लघुकथा में भी रचनाकार की इसी रचना-दृष्टि का महत्व है, क्योंकि यह प्रत्येक रचना को दूसरी से भिन्न ही नहीं बनाती, बल्कि विशिष्ट भी बनाती है। इसलिए मैं विक्रम सोनी के इस मत से सहमत नहीं हूँ कि ‘सृजन-प्रक्रिया में एक कथाकार को स्वयं के संस्कारों से मुक्त’ होना होगा। किसी भी कथाकार का यह संस्कार, उसकी यह निजता उससे मुक्त हो सकती है? क्या व्यक्ति को उसके व्यक्तित्व से अलग कर सकते हैं? यह संभव नहीं है, और न ही हमें इसकी माँग करनी चाहिए, क्योंकि वास्तव में हम वह चीज माँग रहे हैं जो रचना को रचना बनाती है। रचनाकार की निजता, उसका रचनात्मक संसार, उसकी रचना-दृष्टि, उसकी अपनी प्रतिभा ही तो शब्द को जीवन देती है, उनमें अर्थ भरती है...’’ (पृष्ठ 57) इसी सन्दर्भ में उनका यह कथन भी प्रासंगिक है- ‘‘जो लोग लघुकथा को जीवन के यथार्थ के रूप में देखना चाहते हैं, वे कई बार उसे संघर्ष, विद्रोह, ध्वंस के सीमित यथार्थ में ही देखना और दिखलाना चाहते हैं और उसे ही जीवन का संपूर्ण यथार्थ बताकर उसे लघुकथा के लिए अनिवार्य घोषित करते हैं। मेरे विचार में यह उनकी अनधिकार चेष्टा है... मानव-जीवन बहुरूपी एवं बहुरंगी है। उसका कोई भी रूप और रंग लघुकथा में अभिव्यक्त हो सकता है। ... लघुकथा जीवन के एक पक्ष, एक प्रवृत्ति की नहीं, सम्पूर्ण जीवन के सत्य की वाहक है।’’ (पृष्ठ 59)
03. लघुकथा के रचनात्मक संसार के संदर्भ में गोयनका साहब का एक और कथन प्रासंगिक है- ‘‘एक सजीव भारत व एक जीवंत भारतीयता हिंदी की लघुकथा में पूरी प्रामाणिकता के साथ अवतरित हो रही है। लघुकथा की यह भारतीयता अपनी सामयिकता के साथ परंपरागत नैतिकता, वैचारिकता तथा समाजनिष्ठता के साथ संश्लिष्ट होकर अपनी विशिष्ट पहचान बना रही है। लघुकथा में आधुनिक चेतना का अभाव नहीं है। उसमें संघर्ष की तथा शोषण के प्रति विद्रोह की, साम्प्रदायिक सद्भाव की तथा सहअस्तित्व की चेतना पूरी ताकत के साथ विद्यमान है परन्तु भारत की जातीय चेतना तथा जातीय संस्कृति की प्रवृत्तियों को भी सामाजिक संदर्भो में स्वीकृति मिल रही है। यही वह सच्ची भारतीयता है, जो लघुकथा में अपनी पहचान बनाती जा रही है।’’ (पृष्ठ 64-65)
04. वरिष्ठ लेखकों से लघुकथा सृजन की माँग के प्रश्न पर गोयनका जी कहते हैं- ‘‘मैं यही माँग लघुकथाकारों से करना चाहता हूँ कि उन्हें लघुकथा तक सीमित न रहकर अन्य विधाओं में भी कलम उठानी चाहिए, क्योंकि काव्य, नाटक, उपन्यास आदि विधाओं में रचना करके वे जीवन को भिन्न एवं व्यापक दृष्टिकोंण से न केवल ग्रहण करेंगे, बल्कि अभिव्यक्ति की भिन्न-भिन्न शैलियों से अवगत होकर लघुकथा में उनका सफल प्रयोग कर सकेंगे।’’ (पृष्ठ 124)
जन्मतिथि : 11.10.1938, जन्मस्थान : बुलन्दशहर, उ.प्र.। पता : ए-98, अशोक विहार फेज-1, दिल्ली-110052
प्रकाशक : दिशा प्रकाशन, दिल्ली-35
प्रकाशक का ई मेल : dishaprakashan1@gmail.com @ madhudeep01@gmail.com
पुस्तक का आईएसबीएन : 978-93-84713-24-9
आवरण चित्र : बलराम अग्रवाल
प्रकाशन वर्ष : 2016
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