लघुकथा : सृजन और रचना कौशल / सुकेश साहनी

लघुकथा  सृजन और रचना कौशल / सुकेश साहनी


(उमेश महादोषी द्वारा प्रस्तुत)

यह पुस्तक वरिष्ठ लघुकथाकार श्री सुकेश साहनी जी के लघुकथा विषयक आलेखों का संकलन है। इसमें लघुकथा के सन्दर्भ में विभिन्न अवसरों पर लिखे गये साहनी जी के 19 आलेख शामिल हैं। पहला आलेख उनके लघुकथा संग्रह- ‘ठंडी रजाई’ की भूमिका है। दूसरा आलेख कोटकपूरा, पंजाब में आयोजित लघुकथा सम्मेलन में पढ़ा गया आलेख है। इसके बाद पाँच आलेख साहनी जी द्वारा संपादित महत्वपूर्ण लघुकथा संकलनों क्रमशः ‘स्त्री-पुरुष संबन्धों की लघुकथाएँ’, ‘महानगर की लघुकथाएँ’, ‘खलील जिब्रान की लघुकथाएँ’, ‘देह-व्यापार पर केन्द्रित लघुकथाएँ’ एवं ‘बाल मनोवैज्ञानिक लघुकथाएँ’ के संपादकीय हैं। पुस्तक में शामिल नौ आलेख विभिन्न वषों में आयोजित कथादेश अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिताओं में बतौर निर्णायक टिप्पणियों के रूप में लिखे गये आलेख हैं। शेष तीन आलेख क्रमशः राजेन्द्र यादव, रामेश्वर काम्बोज हिमांशु एवं डॉ. श्याम सुन्दर ‘दीप्ति’ की लघुकथाओं पर समीक्षात्मक आलेख हैं। इस प्रकार विभिन्न अवसरों पर साहनी जी ने पाठकों, श्रोताओं और साथी लघुकथाकारों से अपनी बात कहने के लिए जो महत्वपूर्ण संवाद किया है, वह इस पुस्तक में एक साथ संकलित होकर सामने आया है। पुस्तक की भूमिका सुप्रसिद्ध कवि-लघुकथाकार श्री रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ द्वारा लिखी गयी है। मुद्रित पृष्ठों की संख्या 150 है।

‘लघुकथा  सृजन और रचना कौशल’ पुस्तक के अध्यायों के शीर्षक-

01. लघुकथा : रचना-प्रक्रिया 

02. कहानी का बीज रूप नहीं है लघुकथा  

03. भारतीय लघुकथाओं में स्त्री-पुरुष सम्बन्ध  

04. महानगर की लघुकथाएँ  

05. खलील जिब्रान : कालजयी लघुकथाएँ 

06. देह व्यापार पर केन्द्रित लघुकथाएँ 

07. बाल मनोविज्ञान पर आधारित लघुकथाएँ  

08. सशक्त लघुकथाओं की तलाश 

09. लघुकथा: विधा के जोखिम 

10. सृजन के आलोक में लघुकथाओं की तलाश 

11. हिन्दी लघुकथा का वर्तमान परिदृश्य: पड़ताल 

12. लघुकथा के निकष पर पुरस्कृत लघुकथाएँ 

13. लेखकीय दायित्वबोध और अनुशासन 

14. लघुकथा की विधागत शास्त्रीयता

15. लघुकथा का गुण धर्म और पुरस्कृत लघुकथाएँ 

16. रचनात्मकता की ऊष्मा से अनुस्यूत लघुकथाएँ 

17. राजेन्द्र यादव की लघुकथाएँ 

18. रामेश्वर काम्बोज की अर्थगर्भी लघुकथाएँ 

19. डॉ. श्याम सुन्दर ‘दीप्ति’ की लघुकथाएँ 

पुस्तक में व्यक्त लेखक की कुछ मान्यताएँ, तथ्य और कथन :

01. लघुकथा की रचना प्रक्रिया के सन्दर्भ में साहनी जी का यह कथन दृष्टव्य है- ‘‘...आज लिखी जा रही बहुत-सी लघुकथाओं में सिर्फ विषयवस्तु, घटना या एहसास का ब्यौरा मात्र होता है। लघुकथा का भाग बनने के लिए जरूरी है कि इस घटना, एहसास या विचार को दिशा और दृष्टि मिले, लेखक उस पर मनन करे, उससे सम्बन्धित विचार भी उसमें जन्म लें। कोई स्थिति, घटना, एहसास या विचार ही हमें लिखने के लिए प्रेरित करते हैं। इसे हम किसी रचना के लिए कच्चा माल भी कह सकते हैं। वस्तुतः कच्चे माल के पकने की प्रक्रिया ही विषयवस्तु या घटना को दृष्टि मिलना है। लेखक के भीतर किसी रचना के लिए आवश्यक कच्चे माल के पकने की प्रक्रिया ही लेखक की रचना-प्रक्रिया है। लघुकथा की रचना-प्रक्रिया में उपन्यास एवं कहानी की भाँति बरसों भी लग सकते हैं।’’ (पृष्ठ 13) 

     अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने यह भी कहा है- ‘‘लघुकथा का समापन-बिन्दु कहानी एवं उपन्यास की तुलना में अतिरिक्त श्रम एवं रचना-कौशल की माँग करता है। लघुकथा के समापन-बिन्दु को उस बिन्दु के रूप में समझा जा सकता है, जहाँ रचना अपने कलेवर के मूल स्वर को कैरी करते हुए पूर्णता को प्राप्त होती है।’’ (पृष्ठ 13)

02. जीवन की व्याख्या एवं सृजन के विषयों के सन्दर्भ में उपन्यास और कहानी के सापेक्ष लघुकथा की शक्ति को स्पष्ट करते हुए साहनी जी ने लिखा है- ‘‘लघुकथा भी साहित्य की दूसरी विधाओ की भाँति किसी भी विषय पर लिखी जा सकती है। भ्रम की स्थिति वहाँ उत्पन्न होती है जहाँ विषय को लघुकथा के कथ्य के साथ गड्ड-मड्ड करके देखा जाता है। लघुकथा भी अन्य विधाओं की भाँति किसी विषय विशेष को रेशे-रेशे की पड़ताल करने में सक्षम है।’’ (पृष्ठ 16)

     अपनी इस बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने यह भी कहा है- ‘‘लघुकथा में लेखक सम्बन्धित विषय का मूल स्वर पकड़ता है। यहाँ यह स्पष्ट करना जरूरी है कि मूल स्वर का अभिप्राय मोटी बात से नहीं बल्कि इसका तात्पर्य रचना में सम्बन्धित विषय और कथ्य के मूल (सूक्ष्म) स्वर से है। यही बिन्दु लघुकथा को कहानी से अलग करता है।’’ (पृष्ठ 17)

03. ‘‘लघुकथा के लिए कथ्य-चयन, कथ्य-विकास, भाषा-शैली का निरूपण कहानी की तुलना में अतिरिक्त अनुशासन की माँग करता है। यह कथ्य ही है; जो रचना-प्रंिक्रया के दौरान लेखक को बेहतर अभिव्यक्ति के लिए विधा (लघुकथा/कहानी/कविता) के चयन के लिए विवश करता है।’’ (पृष्ठ 76)

04. ‘कालदोष’ के सन्दर्भ में साहनी जी का कथन है- ‘‘पता नहीं कब और क्यों लघुकथा के विद्वानों ने इस शब्द का आविष्कार किया था। हो सकता है उनका उद्देश्य पवित्र रहा हो, लेकिन यह भ्रमित ही अधिक करता है। लेखक को बिना किसी बन्धन के स्वतंत्र रूप से लिखना चाहिए। बाद में यदि कथा-प्रवाह बाधित हो रहा हो, तो उसको अन्य तरीकों से साधने का प्रयास करना चाहिए।’’ (पृष्ठ 114)


जन्मतिथि : 05.09.1956, जन्मस्थान : लखनऊ, उ.प्र.

 पता- 185, उत्सव पार्ट 2, महानगर, बरेली-243006, उ.प्र./मो. 09634258583

प्रकाशक : अयन प्रकाशन, दिल्ली

प्रकाशक का ई मेल : ayanprakashan@rediffmail.com

पुस्तक का आईएसबीएन : 978-93-88471-71-8

प्रकाशन वर्ष : 2019

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