लघुकथा-संग्रह-2021/सरिता बघेला 'अनामिका'

(संग्रह पर प्रकाशन संबंधी जानकारी नहीं छपी है।)

लघुकथा-संग्रह 'काला कौआ' की अनुक्रमणिका :

काला कौआ

धरती आकाश

अंतिम संस्कार

गिद्ध

नशे की लत

फालूदा

मेरी बेटियां 

आस्था में दिखावा

मकान

कर्मों का हिसाब

स्वाभिमान

जिम्मेदारी का बोझ

बुढ़ापे की जरूरत 

लालबत्ती

सुबह का भूला 

नदी का दर्द

पिंजर

एक और एक ग्यारह

अनकहे रिश्ते

डायरी

भ्रम

कमल दल फूले 

वे हमारे लिए कब थे

पेट की आग

झील के किनारे 

यादों के साथ

सपनों का प्रतिबिंब 

विचारों का आंधी तूफान

शोर

अपना आसमां

ममता की बेबस छाया

आकार

जाने के बाद कद्र

क्षमा

बुढापे की लाठी

मीठे फल

प्रेम विश्वास का घर

गोलू की खुशी 

असलियत

पाषाण

मिस यू मम्मी-पापा

स्वालंबी

आत्मनिर्भर

घेराबंदी

गणतंत्र दिवस

बुढ़ापे का इनाम

निर्दोष

प्रसव

सीता की परीक्षा कब तक

चित्रगुप्त 

लॉकडाउन के दौरान लघुकथाएं

लॉकडाउन

जरुरत

अपना अपना फायदा 

जीवन की आस

आत्मविश्वास

भविष्य योजना

मुक्ति का इंतजार

विडंबना

लघुकथा-संग्रह 'काला कौआ' से एक लघुकथा :

आत्मनिर्भर

"लो पिंकी यह मिठाई खा लो मेरी चौथी छोटी बेटी की भी सरकारी डिपार्टमेंट में नौकरी लग गई है, आज उसकी भी मेहनत सफल हुई।" सुधा खुश होते हुए बोली ।

"आंटी जी बहुत बहुत बधाई हो | यह आपकी मेहनत का परिणाम है बच्चें तो मेहनत करते हैं पर आपने भी दिन-रात उनके साथ मेहनत की है । " सुधा की पड़ोसन बोली ।

"क्या बताऊं बहन जब मुझे एक के बाद एक... छः लड़कियां हुई, मुझे क्या क्या ना सुनना पड़ा पर,,, बहुत आज मैं गर्व महसूस करती हूं था 6 में से 4 लड़कियां तो आत्मनिर्भर बन गई है, मैंने अपने आप को इनकी जीवन के लिए निछावर कर दिया है । यही मेरे लड़के भी हैं और लड़कियां भी है, और तो और बहना अभी जिसकी जॉब लगी है, वह अपने डिपार्टमेंट की अफसर बनकर गई है सबके ऊपर काम करेगी मेरी लड़की ।"

सुधा मुस्कुराते हुए कह रही थी ।

"सही है बहना हम बच्चों को यदि सही शिक्षा-दीक्षा दें, तो वह बहुत कुछ कर सकते हैं आप ने यह साबित कर दिया है । आज भी हमारे समाज की सोच को बदलने की आवश्यकता है।"


सरिता बघेला 'अनामिका' (लेखिका)
57, सूरज नगर पितांबर होम्स के पास ऋषिपुरम फेस वन बरखेड़ा भेल, भोपाल पिन: 462021 मोबाइल : 9977093888

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