मधुदीप की 66 लघुकथाएँ और उनकी पड़ताल / उमेश महादोषी (सं.)
'पड़ाव और पड़ताल, खंड-16 से खंड-25 तक एक ही कथाकार की 66 लघुकथाओं पर केन्द्रित हैं। प्रस्तुत खंड-19 के अतिरिक्त शेष सभी खंडों की रचनाओं का चयन और सम्पादन मधुदीप ने किया है; जबकि उनकी स्वयं की लघुकथाओं पर केन्द्रित होने के कारण खंड 19 के लिए रचना-चयन व सम्पादन का दायित्व डॉ॰ उमेश महादोषी को सौंपा गया था।
खंड-16 से खंड-25 तक की महत्त्वाकांक्षी एकल लघुकथाकार योजना में आधार लेख उक्त लघुकथाकार का तथा चयनित 66 लघुकथाओं पर 4 अलग-अलग आलोचकों द्वारा समीक्षात्मक टिप्पणी को स्थान दिया गया। अन्त में, धरोहर के रूप में पूर्व-लिखित कोई भी सामग्री।
इसमें आधार लेख के रूप में मधुदीप द्वारा लिखित 'मेरी लघुकथा यात्रा' है तथा धरोहर के रूप में उनका आलेख 'लघुकथा;एक विहंगम दृष्टि'।
इन लघुकथाओं के समीक्षक हैं--डॉ॰ पुरुषोत्तम दुबे, डॉ॰ ध्रुवकुमार, डॉ॰ जितेन्द्र 'जीतू' तथा डॉ॰ खेमकरण 'सोमन'।
'मधुदीप की 66 लघुकथाएँ और उनकी पड़ताल (पड़ाव और पड़ताल, खंड-19)' में संग्रहीत लघुकथाओं के शीर्षक :
हिस्से का दूध / तनी हुई मुट्ठियाँ / शासन / अस्तित्वहीन नहीं / अपनी-अपनी मौत / नियति / नरभक्षी / ऐसे / ओवरटाइम / भय / खुरण्ड / ऐलान-ए-बगावत / गंदगी / सफेद चोर / एहसास / विवश मुट्ठी / ममता / पूंजीनिवेश /अबाउट टर्न / अवाक / आधी सदी के बाद भी / ऑल आउट / उनकी अपनी जिंदगी / उसके बाद... / एकतंत्र / किस्सा इतना ही है / चिड़िया की आँख कहीं और थी / चैटकथा / छोटा / बहुत छोटा / टोपी / ठक-ठक... ठक-ठक / तुम इतना चुप क्यों हो दोस्त! / तुम तो सड़कों पर नहीं थे / दौड़ / पिंजरे में टाइगर / मकान घर नहीं होता / मज़हब / मसालेदार भोजन की तीखी सुगंध / महल में तो राजा रहता है / महानगर का प्रेम-संवाद / मुआवजा / मुक्त्ति / मेड इन चाइना / मेरा बयान / राजनीति / रात की परछाइयाँ / वजूद की तलाश / विषपायी / शोक-उत्सव / सन्नाटों का प्रकाशपर्व / समय का पहिया घूम रहा है / साठ या सत्तर से नहीं / हड़कम्प / हाँ, मैं जीतना चाहता हूँ / उजबक की कदमताल / जनपथ का चौराहा / तुम बहरे क्यों हो गए हो / धर्म / पागल / महानायक / विकल्प / वे दोनों / सन्यास / समय बहुत बेरहम होता है / हेकड़ /डायरी का एक पन्ना।
उस रात कड़ाके की सर्दी थी। सड़क के दोनों ओर की बत्तियों के आसपास कोहरा पसर गया था।
रोज क्लब के निकास-द्वार को पाँव से धकेलते हुए वह लड़खड़ाता हुआ बाहर निकला। झट दोनों हाथ गर्म पतलून की जेबों के अस्तर छूने लगे।
बरामदे में रिक्शा खड़ी थी। उसकी डबल सीट पर पतली-सी चादर मुँह तक ढाँपे, चालक गठरी-सा बना लेटा था । घुटने पेट में घुसे थे । रिक्शा देखकर उसका चेहरा चमक उठा | “खारी बावली चलेगा..." वह रिक्शावाले के समीप पहुँचा ।
उधर से चुप्पी रही ।
“चल, दो रुपए दे देंगे।” युवक ने उसके अन्तस् को कुरेदा | “दो रुपैया से जियादा आराम की जरूरत है हमका । " “साले! पेट भर गया लगता है... ।” नशे में बुदबुदाता हुआ जैसे ही वह युवक आगे बढ़ा...
...तड़ाकऽऽऽ... रिक्शावाले का भारी हाथ उसके गाल पर पड़ा । क्षणभर को युवक का नशा हिरन हो गया । वह अवाक्-सा खड़ा उसके मुँह की ओर देख रहा था । रिक्शावाला छाती फुलाए उसके सामने खड़ा था । •
उमेश महादोषी (सम्पादक)जन्मस्थान : ग्राम दौलपुरा जिला एटा, उ. प्र.
आईएसबीएन : 978-93-84713-18-8
प्रकाशन वर्ष : 2016
शानदार लघुकथा
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लघु कथा।मनुष्य को उसकी औकात दिखाती हुई।
जवाब देंहटाएं