लघुकथा-संग्रह-2011/ राजेन्द्र वामन काटदरे
लघुकथा संग्रह - 'अँधेरे के खिलाफ' का अनुक्रम
लघुकथा-संग्रह 'अंधेरे के खिलाफ' से एक लघुकथा 'जड़ में मट्ठा :
ठाकुर साहब का बंगला अब पुराना हो चला था। बंगले के आसपास काफी खुली जगह थीं। जिस पर ठाकुर साहब के पिता बड़े ठाकुर ने आम, नीम तथा जामुन बड़े चाव से लगवाये थे जो अब भी फल-फूल रहे थे। मगर ठाकुर साहब इस पुराने बंगले को तोड़कर तथा पेड़ों को कटवाकर यहाँ एक आलीशान मल्टी बनवाना चाहते थे। जिसमें सबसे उपर एक शानदार पेंट हाउस बनाने की योजना थी तथा नीचे की दुकानें तथा फ्लेट्स बेचकर इतना पैसा आ जाता कि एक-दो पीढ़ी चैन से बैठ कर खा सकती थी। हालांकि पैसे की कमी तो आज भी न थी।
इस पूरी योजना में केवल एक पेंच था कि क्या प्रशासन इन हरे-भरे फलदार पेड़ों को काटने की अनुमति देगा, इसके लिए भी ठाकुर साहब ने रास्ता खोज ही लिया। उन्होंने 'जड़ में 'मट्ठा' वाली कहावत के अनुसार तमाम पेड़ों में न जाने कौन सा रसायन, कौन-सा केमिकल डलवाया कि महीने भर में तमाम पेड़ सूख के ठूंठ हो गये।
जब बड़े ठाकुर को ठाकुर साहब की इस करतूत का पता चला तो वे दुखी स्वर में ठाकुर साहब को कोसते हुए बोले, 'इन बूढ़े पेड़ों की जड़ों में तो मट्ठा डालकर खत्म कर दिया, मैं एक बूढ़ा और बचा हूँ, डाल दे मेरी जड़ों में भी मट्ठा।'
मगर बेचारे बड़े ठाकुर को क्या पता था कि उनकी जड़ों में भी मट्ठा पड़ चुका है। ठाकुर साहब कल ही तो निकट के वृद्धाश्रम में उनका नाम दर्ज करवा आए थे।
जन्मतिथि : 18 मार्च, 1961
ईमेल -Katdare_rajendra@hotmail.com
प्रकाशक - पड़ाव प्रकाशन, भोपाल म. प्र.
प्रकाशन वर्ष - 2011
प्रस्तावना - श्री सूर्यकांत नागर
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