लघुकथा-संग्रह-1987/सतीशराज पुष्करणा

लघुकथा-संग्रह 'प्रसंगवश' में संग्रहीत लघुकथाएँ

खण्ड : एक     स्वागतम 

१. कुर्बानी 

२. स्वाभिमानी 

३.इक्कीसवीं सदी 

४. सहानुभूति 

५.आकाश छूते हौसले 

६.एक और एक ग्यारह 

७.जमीर 

८.अलग-अलग दायरे 

९.बेफिक्री 

१०. ऊँचाई 

११.महानता 

खण्ड : दो       डूबते उभरते 

१२.ड्राइंग-रूम 

१३.ममत्व 

१४. अर्थपूर्ण 

१५.स्मृति 

१६.सबक 

१७.बात जरूरत-जरूरत की 

१८.अपना घर-अपना देश 

खण्ड-तीन       घर-आँगन 

१९.पत्नी की इच्छा 

२०.अपनों के हित के लिए 

२१.इन्सान

२२. क्षितिज 

२३.सुख की तलाश 

२४.शाश्वत प्रेम 

२५.पश्चाताप 

२६.क्रान्ति 

खण्ड: चार        टूटती रूढ़ियाँ

२७.ताजमहल की नींव में 

२८.मनोवृत्ति 

२९.बदलता-युग 

३०.सीमा का अतिक्रमण 

खण्ड- पाँच         हम सब एक हैं 

३१. सही दिशा 

३२.रंग 

३३.इबादत 

३४.दंगे के कारण 

खण्ड -छः         गलती जड़ें 

३५.फ़र्ज़

३६.नौकर 

३७.परिभाषा 

३८.बेबसी 

३९.हिस्सेदारी 

४०.फितरत 

खण्ड- सात    जीवन-दर्पण में समाज 

४१.प्रत्यावर्त्तन 

४२.मुक्ति 

४३.आत्महत्या 

४४.सुरसा होती रूढ़िया 

४५.अन्तर

४६.सीढ़ी

४७.सही न्याय 

४८.अपनी करनी-भरनी 

खण्ड- आठ      ऊँची दूकान, फीका पकवान 

४९.जन्म-दिन 

५०.व्यापारी 

५१.अन्याय 

५२.बिखरी हुई ममता 

५३.पुरस्कार 

खण्ड -नौ      आईना-दर-आईना 

५४.पूर्वजों की सीख 

५५.शरीफों की गिनती 

५६.तानाशाह 

५७.स्थिति 

५८.बाल्मीकि 

५९.सच्चा इतिहास 

६०.हवस 

६१.तानाशाही 

खण्ड-दस     दिखने के और, खाने के और 

६२..फुर्सत 

६३ .दो दिन का मेहमान 

६४ टेबल-टॉक 

६५.दिखावा 

६६.हीन भावना 

६७.प्रशासन 

६८.सिफारिश 

६९.मास्क लगे चेहरे 

७०.अपना-अपना चरित्र 

७१.कदाचार 

७२.संस्कार 

खण्ड- ग्यारह   सिर उठाते तिनके 

७३.बेबस विद्रोह 

७४.जागृति के बढ़ते कदम 

७५.भावी यथार्थ का एहसास 

(कल्पना भट्ट के सौजन्य से प्राप्त)

'प्रसंगवश' से पहली लघुकथा 'कुर्बानी'

दो देशों का आपसी युद्ध थम चुका था। स्वतंत्रता के लिए लड़ रहा देश पूरी तरह स्वतंत्र हो गया था। एक बुढ़िया, जिसके पांचों पुत्र अपने पिता सहित स्वतंत्रता के काम आये थे, की कुटिया में वहां के राष्ट्रपति आये और उसके पति एवं पुत्रों को श्रद्धांजलि देने के पश्चात् बोले, "मां ! आज से सरकार तुम्हारा सारा खर्च वहन करेगी, इसके अति रिक्त जो आप चाहेंगी आपकी हर बात पूरी की जायेगी ।"

बुढ़िया दहाड़ी, "बेटा ! मेरे पूरे परिवार की कुर्बानी को खरीदना चाहते हो, ताकि आने वाली पीढ़ियां उन्हें बजाए सिजदा करने के उनके नाम पर थूकें और उन्हें 'बिके हुए शहीद' कहकर सम्बोधित करें। अभी सारे देश को और कई प्रकार की कुर्बानियों की आवश्यकता है । मुझ पर किये जाने वाले खर्चे को देश की उन्नति में लगाओ। मैं जीवन पर्यन्त अपनी मेहनत से ही अपना पेट पालूंगी ।"

उस देश का राष्ट्रपति शर्म से सिर झुकाये लौट आया ।

( रचना काल : 3 अक्टूबर, 1977)

कथाकार का नाम : डॉ.सतीशराज पुष्करण 

लघुकथा-संग्रह का नाम  : प्रसंगवश 

प्रकाशक : अयन प्रकाशन, नई दिल्ली 

प्रकाशन वर्ष : १९८७

ईमेल :

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वसुधा करे पुकार / कपिल शास्त्री (संपादक)

लघुकथा ट्रेवल्स / प्रबोध कुमार गोविल (संपादक)

क्षितिज/सतीश राठी-दीपक गिरकर