लघुकथा संग्रह-2017/डॉ. सतीश दुबे
(डाॅ. उमेश महादोषी के सौजन्य से)
नोट : लघुकथा संग्रह ‘प्रेम के रंग’ सुप्रसिद्ध लघुकथाकार डॉ. सतीश दुबे का उनके जीवन-काल में तैयार और लगभग छप चुका अंतिम लघुकथा संग्रह है। इस संग्रह में उनकी प्रेम विषयक 55 लघुकथाएँ संग्रहीत हैं। इसकी भूमिका स्वयं लेखक द्वारा लिखी गयी है, तदापि फ्लैप डॉ. प्रेमलता चुटैल ने लिखा है। संग्रह में मुद्रित पृष्ठों की संख्या 86 है।
फेसबुक फ्रेंड्स / रूह रूमानी / तुम्हारी देन / क्रूज पर एक शाम / अननोन मैसेज / इनर्जी / फिर!! / आओ लौट चलें / स्पर्श स्पंदन / तट / एक रोटी मोहब्बत / सेल्फी / प्रतीक्षारत / पूर्णमासी तक पहुँचा चाँद / निकटता बोध / हमदर्द / तुमने कहा था ना /मोक्ष श्लोक / सुकूनी बयार / दाम्पत्य प्रेम दिवस / संकल्प / कैसे होंगे आप? / ब्लेंक लिफ्ट में? / यही प्यार है? / बीच बाजार में / सरेराह / बालत्व / वापसी / प्रेम चिकित्सा केन्द्र / पान की बीड़ा / मुंडेर पर दीप / बटवारा / टेली पैथी / कद / पराकाष्ठा / सर्वाधिक प्रिय / प्रेम प्रेम अरमान / मनुहार / तिल से ताड़ / बिछोह / स्वागत सज्जा / गिफ्ट / रिश्तों के रहनुमा / आंगन का दरख्त / पहला पैकेज / शर्त / अक्षरों के आर्कीटेक्ट / तंगदिली के बीच / जंगल की प्रेमकथा / इदं आग्नेय / मिलन के क्षण / प्रेम शतक / स्टोरी डे / प्रेमेश्वर महादेव / सरप्राइज।
उक्त संग्रह से दो लघुकथाएँ :
01. पूर्णमासी तक पहुँचा चाँद
दस्तक के रिस्पांस में कंधे पर बैग, बालों पर गॉगल चढ़ाए रूपांशी को सामने देख रोहिता भौचक्क रह गई- ‘‘वाट्स ए सरप्राइज, एकदम कैसे यार....!’’
‘‘क्यों अचानक आ नहीं सकती क्या? यहीं सब निबटा लोगी या अंदर आने को भी कहोगी?’’
‘‘दिल के अंदर बैठे हुए को, घर के अंदर आने को कैसे कहा जा सकता है! बहरहाल, प्लीज कम...।’’
‘‘पूणे से कल ही आए हैं हम लोग, आठ-दस दिनों का स्टे तो तय है, फिर आगे जैसा जम जाय।’’ इसके बाद दोनों कॉलेज के दिनों से उम्र के वर्तमान अधेड़ पड़ाव तक के विभिन्न मुद्दों, बहस चर्चा, पसंदीदा नाश्ता आदि में ऐसी व्यस्त हो गईं कि समय भी उनके साथ हँसता-खिलखिलाता रहा।
‘‘अरे रोहिता इस खुशी की एकदम होने वाली बारिश में मैं तुमसे फार्मली भी यह पूछना तो भूल ही गई कि बिना टाइम लिए या दिए तुम फ्लैट पर कैसे मिल गई?’’
‘‘अच्छा हुआ, तुमने पूछ लिया। अपनी बात तुम्हारे साथ शेअर करने में मुझे राहत मिलेगी। बात ये है यार, इन दिनों मैं गायकनोलॉजिकल प्राब्लेम के कारण अनइजी फील कर रही हूँ। कॉलेज से ब्रेक लेकर चैकअप के लिए गई थी। डॉक्टर ने बताया कि यह मोनोपॉज के सिमटम्स हैं।’’
‘‘तो इसे इतना सीरियसली क्यों ले रही हो, यह तो नेचुरल है। बात सुनकर पहली बार मालूम हुआ कि तुम एकदम बुद्धू बक्सा हो।’’
‘‘अरे यार, वो बात नहीं है, बात ये है कि कॉलेज स्टॉफ की कुलिग्ज ने बताया कि इसके बाद ग्लैमर खत्म हो जाता है और हसबैंड....’’ बात पूरी नहीं हो पाई थी कि डोर बैल की रिंग टोन के साथ साहब अंदर दाखिल हो गए तथा रूपांशी की ओर देखकर हँसते हुए बोले- बाहर से ही समझ में आ गया था कि अंदर रूप की खुशबू फैली हुई है।’’
‘‘आगे से ऐसा कहना मत, नहीं तो मैडम अंदर नहीं आने देगी?’’
‘‘मुझे या अपनी बेस्ट फ्रेंड रूपांशी को?’’
साहब ने इत्मीनान से बैठकर रूपांशी के आगमन से अब तक की पूरी कथा सुनकर प्रश्न किया अब ये बताइए कि चर्चा का वह छोर क्या था, जिसे इस नाचीज ने डिस्टर्ब करने की जुर्रत की...।’’
रूपांशी ने मुस्कराते हुए उसकी ओर देखकर कहा- ‘‘वह छोर इस जिज्ञासा से भरा था कि उम्र ढलने वाले दिनों हम आप लोगों को कैसी लगती हैं? चलिए आप ही फैसला कीजिए।’’
‘‘रूपांशी, पेचीदा केस का जज बनाकर आपने तो लफड़े में फंसा दिया। बहरहाल सुनिए, औरत पहली बात तो ढलती ही नहीं। उम्र के पकने पर बॉडी में वह फलों की तरह परिपक्व, रसदार और लुक-कोड में कहा जाय तो गुलाब, कमल, मोगरा या चम्पा जैसा महकदार फूल या प्रतिपदा से पूर्णमासी तक पहुँचा चाँद... हाँ, यह जजमेंट किसको ध्यान में रखकर दे रहा हूँ, समझ गई ना?’’ और रोहिता की ओर देखकर कहा- ‘‘इनको!’’
रूपांशी किलकारी के साथ अपनी जगह से खड़ी होकर रोहिता को झकझोर कर बोली- ‘‘खुश, हो गया ना सब कुछ क्लीअर...?’’ और बैग उठाकर संवाद का वादा कर बाहर निकल गई।
02. सरप्राइज
तन्वी का आकस्मिक रूप से मिलना और उसके साथ बिताए चौबीस घंटों की यादें, वह कुछ भी समझे किंतु मैं मानता हूँ इसे अपनी किस्मत की भेंट ही। जहाँ हम लोग ठहरे थे, जहाँ रहकर निर्द्वन्द्व रूप से जीवन के क्षणों को प्यार के साथ परिभाषित किया था, वह कोई जगह नहीं स्वर्ग या जन्नत का ऐसा हिस्सा था, जो हर किसी को नसीब नहीं होता। उसने इसे ही अपने भावविभोर शब्दों में कहा था, ‘‘प्रेम ऐसा उपहार है, जिसके प्राप्त होने पर पूरा संसार सुंदर दिखाई देता है।’’
तन्वी ने कितने आत्मीय और निजीपन का एहसास कराते हुए मेरी दोनों हथेलियों को दबा तथा चेहरे को आँखों की गिरफ्त में लेकर कहा था, ‘‘मैं ऐसा क्यों सोच रही हूँ कि उम्र के पच्चीस साल जिसे मैं तलाश रही थी, वह मेरे सामने है। अपने को तुममें ऐसा खो दिया है कि मैं स्वयं समझ नहीं पा रही हूँ कि मेरा भी कोई अस्तित्व है या नहीं।’’
उन चौबीस घंटों के मिलन-सानिध्य और दिलों के लैब से निकले परीक्षण-परिणाम को ‘एवरीथिंग ओ. के.’ करार देकर ‘नो फर्दर ट्रीटमेंट’ की ध्वनि इस प्रकार गुँजाई थी कि उसमें मेरे सहमति-स्वर सायास जुड़ गये थे। उस गूँज को संभवतः मेरी तरह वह भी अब तक महसूस कर रही होगी।
अंत में अपने कांटेक्ट नम्बर आदान-प्रदान करने की अपेक्षा, तन्वी ने कितने आत्मविश्वास के साथ कहा था, ‘‘ऐसे ही आकस्मिक रूप से फिर मिलेंगे।’’ और बिछुड़ते हुए ऐसा लग रहा था, मानो वह पुनर्मिलन का संकेत हो।
जन्मतिथि: 12.11.1940, जन्मस्थान: इन्दौर,
देहावसान: 25.12.2016
पता- श्रीमती मीना दुबे 766, सुदामा नगर, इन्दौर 452009 (म.प्र.)/मो. 09617597211
पुस्तक का आईएसबीएन - 981-93-82119-98-1
प्रकाशक: नवभारत प्रकाशन, दिल्ली।
ई मेल: fatehchand058@gmail.com
प्रकाशन वर्ष- 2017
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