लघुकथा-संग्रह-2018/कुसुम जोशी

लघुकथा-संग्रह 'उसके हिस्से का चांद' में संग्रहीत लघुकथाओं के शीर्षक

1कुछ कहना था, 2ईमान, 3इति प्रेमकथा, 4भटकाव, 5पलायन, 6उजाले की ओर, 7चाय पार्टी, 8बदलने का सच, 9द्वन्द्व, 10 हम कौन, 11गेरुआ बाना, 12मैं ऐना नही, 13अजीब लोग, 14अपेक्षाएं, 15सब कुछ ठीक होगा, 16गेम प्लान, 17अतीत की परछाई, 18शर्मिन्दगी, 19दूध का धुला, 20प्रार्थना पत्र, 21कहानी का पात्र, 22प्रायश्चित, 23कहां ले जाऊं, 24अनर्थ, 25और भी है जहां, 26मन, 27पहली उड़ान, 28बाजीगर, 29टाईम पास, 30ये वो ही है, 31विरासत, 32शहर का लड्डू, 33मै भी हिस्सा हूं, 34ये क्या होता है, 35सबसे बड़ा रुपय्या, 36अजन्मे, 37मैं ना रही तो, 38मैं हूँ ना तेरी साथ, 39बन्द दरवाजा, 40मन बावरा, 41गर्म आँसू, 42अवलम्ब, 43दिग्भ्रमित, 44मन ही तो है, 45अनजाना भय, 46अब कभी नही, 47दुनिया बड़ी..., 48गुप्तमनी, 49उनकी जिन्दगी, 50दांव का घोड़ा, 51किनारे कभी मिलते नही, 52लम्बी चुप्पी, 53स्वर्णा, 54उसके हिस्से का चाँद, 55अब और नही, 56अन्तहीन, 57अखबार-एक दुखद आत्मकथा, 58जंगल देवता, 59और फिर मीतू मर गई, 60आत्मविश्वास, 61ऐमीली, 62गूलूबन्द, 63प्रमोशन, 64इज्जत, 65फुटबॉल, 66विदूषक, 68यादों के साये, 69मलाल, 70वो जिन्दा है, 71चेहरे गुम होते हैं, 72ये प्यार नही, 73मरी आत्मा के लोग, 74लौट आओ, 75तुम आजाद हो, 76जमीर, 77अँधकार, 78श्राप मुक्ति, 79निर्णय, 80तू भी आ जा, 81संयोग, 82गण, 83सकीना बी, 84मन न भये दस बीस, 85विस्ना, 86रफा दफा, 87याद नही आती। 

लघुकथा-संग्रह 'उसके हिस्से का चाँद' से एक लघुकथा :

वो जिन्दा है? / (उऋण)

चौराहे पर वो बूढ़ा सफेद दाढ़ी वाला अक्सर भीख मांगता हुआ दिखता है, मलय का हाथ स्वत:अपने वॉलेट की और बढ़ जाता ,बूढ़ा अक्सर गाड़ी पहचान लेता और जब भी रेड लाईट होती तो  तेजी से चला आता , तेजी से डॉलर लपकता , हल्की सी मुस्कान के साथ थैंक्स कहता।

 रंजन अक्सर मलय को टोकता "हिन्दुस्तान में तू भिखारी को देखते ही टोकता है कि "काम के न काज के दुश्मन अनाज के",  पर इस गोरे को इतनी भीख! क्या बात है, इस देश का  कर्ज उतार रहा है इस भीख के बहाने।

   "हाँ यही समझ ले यार" मलय गहरी आवाज में कहता ,"पर आँखो में पिता का क्रूर चेहरा झिलमिलाता, पिटती हुई मां याद आती , जोर जोर से रोती दीदी का चेहरा याद करता,और घबराया सा दरवाजे के ओट में छुपा अपने बचपन का मन याद आता ,कैसे धक धक करत था दिल , दाँत भींच के रूलाई रोकता", इन यादों के साथ मन भीग आता ।

       कई साल हो गये ऐसे पिता से नाता तोड़े हुये ,और ऐसे पति से मां को भी निजात दिलवाये हुये , माँ को फोन करता , फिर भी कभी कभी पूछता "वो बूढ़ा क्या अभी भी जिन्दा है"?

     "सुना बहुत बूढ़ा हो गया है , दिमाग भी ठिकाने नही अब.. अक्सर भीख मांग कर गुजर करता है , अपने कर्मों की सजा पा रहा है वह ..तुझे उसके लिये सोचने की जरुरत नही", माँ कड़े शब्दों में दिलासा देती,  

    पर मलय को  धुंधली सी यादों की दस्तक महसूस होती  "जब कभी   पिता ने उसे गोद में उठा के चूमा था", आज भी ऋण महसूस करता ,

   उस गोरे बूढे को पांच दस डॉलर देने के बाद एक सूकून महसूस करता।  उऋण होने का भान देर तक बना रहता।

(लेखिका की ओर से नोट : सर, यह कथा संग्रह में 'वो जिन्दा है?' शीर्षक से गई थी। मधुदीप सर ने इसे 'उऋण' नाम से छापा, 'लघुकथा कलश' में और पंजाबी अनुवाद भी 'उऋण' नाम से छपा है।)

कथाकार : डॉ.कुसुम जोशी

(वनिका पब्लिकेशन्स, बिजनौर)

प्रकाशन वर्ष -2018

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