पाँचवाँ सत्यवादी / कृष्ण मनु
1.'पाँचवाँ सत्यवादी' में संग्रहीत लघुकथाओं के शीर्षक :
अभिनय / अधिकार / आत्मा का बयान /अपाहिज / अपना-अपना स्वार्थ / अनुत्तरित प्रश्न / उसकी मुसीबत / उसका चेहरा / एहसानमंद / एक और पांच परमेश्वर / कीमत अलग अलग / कला / कमजोरी / गलती / गलत पहचान / गुलाम / घर / छोटा आदमी / जादुई कुर्सी / जमींदार और पेड़ / जांच आयोग / जंगल और आबादी / डबल बेनीफिट / ढाल / तमाशबीन / तिजोरी में बंद किस्मत / दुखड़ा / दोहरा व्यक्तित्व / दो पाटन के बीच / नया पापा / नाम / पांचवां सत्यवादी / पर्यावरण / पहचान / प्रबंध / प्रतिफल / फ्रीजिंग पॉइंट / बड़प्पन का बोझ / बड़ी जगह / बिना हाथ वाले लोग / बिफना का स्कूल / बजट / बौने लोग / बेशर्म / भगवान के नाम पर / भरोसा / मारे हुए कुत्ते का शोक / मृगतृष्णा / मैनेजमेन्ट / मजूरी / मजाक / मजहब / मातम / मारा गया मोतीचूर / राजनीति / रिश्तों की चिंदियां / लोग-बाग / लोकतंत्र / वह सिर्फ आदमी था / वितृष्णा / विपरीत धारा / साजिश / सिफारिश दर सिफारिश / संकल्प / संपोला / सच्ची बात / शिकायत / शुभ-अशुभ / हादसा / हसरत
1. लघुकथा संग्रह : पांचवां सत्यवादी
पसंद की एक लघुकथा : पांचवां सत्यवादी
कुल पृष्ठ संख्या : 96
आईएसबीएन : 81-86739-00-3
प्रथम संस्करण : 1997
ईमेल : kballabhroy@gmail.com
2. 'मुट्ठी में आक्रोश' में संग्रहीत लघुकथाओं के शीर्षक :पनाह / स्वाद / दृढ़ निश्चय / कहानीकार / सौतन / धारणा
/ देवता / शीर्षकहीन / विश्वास / संरक्षण / परिस्थितियाँ / आम आदमी / दृष्टिकोण / दोष
स्वीकार / मूल्यांकन / देख सरस्वती रोयी / उसका तर्क / विडंबना / अनफिट / नया
प्रबंधक / ये मानमर्दक लोग / दूसरी मौत / दूसरा रुख / अनुभव / तिजारत / आस्था / मास्टर
हरभजन का दुख / आपसी समझ / शुरुआत / आश्चर्य / आशंका / आरती / अकर्मण्य / आरोप / प्रतिप्रश्न
/ आदेश / गेटपास / मरहम / प्रत्यक्षदर्शी / ओवरएक्टिंग / ईश्वर के बहाने / टेक इट
ईजी / उपहास / गठबंधन / ममता की जीत / बड़ी बुआ / पत्थर का चेहरा / सम्मान के हकदार
/ मुझे दोनों चाहिए / पाठ / संस्कार / संगम स्नान / परख / घटना का सच / टेढ़ी उंगली
/ कथनी मीठी खांड-एक / कथनी मीठी खांड-दो / कथनी मीठी खांड-तीन / लेन-दे / दिवा
स्वप्न / नेपथ्य गीत / रेट, डरपोक / खबर / अब क्या करेगा पंडित / बेचारा / बंद जुबान / स्पर्श-गंध / अंग्रेजों
के जनमे / नेता शरणम / कहाँ भूखा है इण्डिया / संकेत / मन की साध / मूर्खों का शहर
/ बोए पेड़ बबूल / हिंदी अधिकारी / अर्धांगिनी / दर की वजह / छुपा सच / नियमों से
परे / छोटे लोग / छोटी समस्या / फैशन / समझदार / मूल्य / मैं जिंदा रहूँगा / आकलन
/ शास्त्री जी की मुस्कान / पश्चाताप / दुबारा नहीं / कुपात्र / सपने की हत्या / विश्वास
की हत्या / सफेद लुटेरे / कांटे / पानी-पानी / मुखौटा / ताकि इंसानियत बची रहे / प्रत्युन्मत्ति
/ सहम सुख / मुट्ठी में आक्रोश / जमाना शुभ लाभ का
2. लघुकथा संग्रह : मुट्ठी में आक्रोश
पसंद की एक लघुकथा : स्पर्श-गंध
कुल पृष्ठ संख्या : 144
आईएसबीएन : 978-81-938610-5-9
प्रथम संस्करण : 2020
ईमेल : kballabhroy@gmail.com
लघुकथा संग्रह 'मुट्ठी में आक्रोश' से एक लघुकथा 'स्पर्श-गंध'
'अब आए हो बाबू, जब सब कुछ खत्म हो गया। ऐसा विदेशी बने कि घर-परिवार, रिश्ता-नाता भी भूल गए।'
अंग्रेज से दिखने वाले अंकित डबडबाई आंखों से अभी-अभी आए आगंतुक को देखकर पहचानने का प्रयास करने लगा।
'पहचाना मुझे ? कहां पहचानोगे बेटे। तब तुम इत्ते से थे जब तुम्हारे पिता ने तुम्हे देहरादून के किसी स्कूल के बोर्डिंग में डाल दिया था। कितनी बार मेरी धोती गीली कर दी थी तुमने।'
अंकित के जेहन में एक जवान आदमी की धुंधली आकृति उभरी। उसने चुपचाप उस बुजुर्ग को हाथ जोड़ दिए। फिर कमरे में इधर-उधर देखने लगा। बाबा का वजूद अब भी कमरे में पड़े सामान में लिपटा हुआ था। सिहर उठा वह। बाबा इतने वर्षों तक नितांत अकेले कैसे रहते होंगे यहां!
"मरते दम तक तुम्हारे बाबा ने इन्तजार किया, फिर भी न तुम आये न तुम्हारा कोई पत्र। अरे, रेल दुर्घटना में बेटा-बहू खोने के बाद एक तुम्हीं तो थे उनका सहारा।'
पत्र की बात पर अंकित ने धीमी आवाज में कहा-'मैं बराबर 'ई-मेल' करता था बाबा को। प्रपोज भी किया कि अमेरिका चले आइए मेरे पास लेकिन....।'
'ई-मेल ?' क्या कहते हो बेटा, तुम्हारे बाबा हमेशा कहते थे-'ई-मेल' बनावटी होता है, एकदम मरा हुआ, बेजान। धड़कन का एहसास नहीं जगाता। यह संवेदनहीन लोगों के लिए है जो केवल कारोबारी होते हैं। लेकिन पत्र जीवंत होता है-लिखने वाले की संवेदना से लबरेज। स्नेह-प्यार से पगा हुआ। पत्र की लिखावट से उठ रहे लेखक की स्पर्श-गंध महसूस कर पत्र पढ़ने वाला रोमांचित हो उठता है। इसी स्पर्श-गंध को पाने के लिए तुम्हारे बाबा रोज पोस्ट ऑफिस जाया करते थे। रात-रात भर बैठकर चिट्ठियां लिखा करते थे तुम्हारे नाम। लेकिन तुम्हारे पास इतनी फुर्सत कहां थी बेटे कि अपने हाथ से पत्र लिखते।'
खामोश कमरे में अंकित की सिसकियां तैरती रहीं। सिसकियों से अविचलित उस बुजुर्ग का चेहरा कठोर बना रहा-'लो बेटा, अपनी अमानत संभालो। मरते वक्त तुम्हारे बाबा ने मुझ पर यह जिम्मेवारी सौंपी थी। तुम्हें सौंपकर मैं मुक्त हुआ।'
अंकित ने अनमने ढंग से सौंपे उस बड़े लिफाफे को देखा। उसके भीतर कई पत्र बाबा की लिखावट समेटे पड़े थे। उसने विह्वल होकर उस लिफाफे को अपनी छलछलाती आंखों से लगा लिया।
लेखक का नाम : कृष्ण मनु
जन्मतिथि : 04-6-1953
जन्मस्थान : बारहमोरिया, गया, बिहार
ईमेल : kballabhroy@gmail.com
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