लघुकथा-संग्रह-2020 / मुज़फ़्फ़र इक़बाल सिद्दीक़ी
'अम्मा अभी जिन्दा हैं' में संग्रहीत लघुकथाओं के शीर्षक (क्रमशः)-
प्रस्तुत संग्रह से एक लघुकथा 'फालतू' :
दीपक को ऑफिस से घर लौटने में देर हो गई थी। ये रोज़-रोज़ की समीक्षा बैठकों से तो खुद भी तंग आ चुका था। सीमा ने तो शाम को ही मैसेज किया था।
"कब तक आओगे ?"
"बस आधा घंटा बाद।"
ये आधा घंटे करते-करते रात नौ बज गए। जैसे ही घर में प्रवेश किया तो सीमा ने बहुत ही फीकी सी मुस्कान से स्वागत किया। ये तो अच्छा रहा। कहा कुछ नहीं। शायद कुछ कहते-कहते, उसके कुछ कहने की सीमा भी समाप्त हो चुकी थी।
जैसे-जैसे मेरे प्रोमोशन होते गए। बैठकों का समय भी बढ़ता गया। और साथ ही घर लौटने का भी।
"चाय लेंगे या ... ... ... ।”
“नहीं आज ऑफ़िस में बहुत चाय हो गईं।”
"तो फिर, ... "
"हाँ, ... "
समझ गया था उसका मतलब। कुछ डरा था। जानता था। जब भी सीमा बहुत सीमित शब्दों से काम चलाती है न तो समझ लो, "उसके अंदर शब्दों का एक ज्वालामुखी सा दहक रहा होता है। ये कब फटेगा? पता नहीं।"
चुपचाप फ्रेश होकर, डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गया। तब तक खाना भी लग चुका था। सीमा भी रोटी बेल रही थी। जैसे ही पहली रोटी परोसी, लगा सब कुछ ठीक है। सीमा का गुस्सा भी अब शांत हो गया। पहला नुवाला उठाते ही पूछ लिया।
आज बच्चों से बात हुई कि नहीं ?
- हाँ, ... हुई नहीं हुई, सब बराबर है ?
- मतलब ?
- विशाल को मुंबई में कोई प्रोजेक्ट मिला है। तो बॉस ने पुणे से मुंबई ही ट्रांसफर कर दिया। बहुत व्यस्त है। बोल रहा था। मैं बाद में कॉल करता हूँ।
- और राखी ?
- राखी को असाइनमेन्ट सबमिट करना है बिलकुल फुर्सत नहीं है। जब से छुट्टियों के बाद बैंगलोर गई है, बहुत काम पेंडिंग है।'
- सब बहुत बिजी हैं, इस घर में।
“… .. .. फालतू तो एक मैं ही हूँ।”
कथाकार - मुज़फ़्फ़र इक़बाल सिद्दीक़ी
जन्मतिथि - 28 मई 1963
जन्मस्थान - राहतगढ़ , जिला सागर
शुभकामना सन्देश - अशोक भाटिया
भूमिका - कान्ता रॉय
समीक्षा - घनश्याम मैथिल 'अमृत'
संग्रह का नाम - अम्मा अभी ज़िन्दा हैं
प्रकाशन वर्ष - प्रथम संस्करण - 2020
ISBN न0 - 978-81-943408-8-1
कुल पेज संख्या - 192
प्रकाशक - अपना प्रकाशन, 21/सी सुभाष कॉलोनी, गोविन्द पुरा, भोपाल म प्र - 462023
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