लघुकथा-संग्रह-2021/ अश्विनी कुमार आलोक
लघुकथा-संग्रह 'जलती हुई नदी' का अनुक्रम :
भूमिका / जितेन्द्र 'जीतू'
लघुकथा से पहले / अश्विनी कुमार आलोक
लघुकथाएँ
जलती हुई नदी, ऊँट और पहाड़, पत्नी, जुलूस, अपने-अपने राम, मनुआ तो पंछी भया, छोटे-छोटे श्रीनिवास, बेटी, गंध, ततः किम्, कुरु कुरु स्वाहा, जरूरत, मर्द, नेता, पद्धति, गिरी हुई ऊँचाई, जहाज का पंछी, खौफ, जनतंत्र, आदमी और कुत्ता, आदमी और जानवर, धूप का चश्मा, दृष्टिकोण, नींव, औकात, बेटी का बाप, मातृत्व, सिलवटें, अपराध बोध, विकल्प, वेदना, भीतर की आग, दूसरा गौतम, एक पहचान यह भी, आत्मबोध, प्रतिकार, दूसरा द्रोण, पितृभक्ति, ओहदा, समाधान, निर्णय, बेबस विद्रोह, पेट के लिए, मुट्ठी भर आक्रोश, टूटता विरोध, शब्द-दंश, क्रान्तिमन्यु, मापदण्ड, आरक्षण, युगबोध, घाव, थोड़ा लिखा, पेट का अनुभव, तीर्थयात्रा, पेट का सामान, जागरण, संस्कार, घर, घर की देवी, हार, बेहयाई बेपर्द, जीवन दर्शन, सबसे बड़ा डॉक्टर नाथ आजु कछु काह न पावा, कालभेद, चूहों की सल्तनत, अर्थात्, बोझ, संबंधों का गणित, गुमशुदा, एतद्धि रामायणम्, मधुमेह, प्रेम न बाड़ी ऊपजै, आपद्धर्म, सहिष्णुता, खिचड़ीवाली, स्वप्नभंग, शुभकामनाएँ, मज़ाख़ोर, माँ बैकुंठ जायेगी
मेरी रचना प्रक्रिया / अश्विनी कुमार आलोक
लघुकथा-संग्रह 'जलती हुई नदी' से लघुकथा 'युगबोध' :
सुबह सुबह डॉ. विजय के यहाँ दारोगाजी का पदार्पण हुआ, तो वे असमंजस में पड़ गये। शीघ्र ही डॉक्टर ने हिम्मत की और उनसे आने का कारण पूछ लिया। दारोगाजी जैसे इसी सवाल की ताक में थे, पुलिसिया लहजे में बोलते चले गये, "डाक्टर साहब! क्या आप अपना कर्त्तव्य भूल गए? कल रात एक आदमी आपको बुलाने आया था। पेशेन्ट से अधिक आपको अपनी नींद की परवाह रहती है। जानते हैं - बेचारे की पत्नी आपकी लापरवाही के कारण मर गयी ।"
"बोलिए, क्या यह अच्छा हुआ?"
“दारोगाजी! आपको याद है एक-डेढ़ महीने पहले ही मुझे इसी तरह एक आदमी बहाना बनाकर ले गया था कि उसका छोटा भाई बीमार है। और इस तरह मेरा अपहरण कर लिया गया था। ?"
"डेढ़ लाख फिरौती चुकाकर जब मैं उनके चंगुल से बचकर आया, तो आप ही ने कहा था न कि हम लोग अपनी सुरक्षा के प्रति लापरवाह रहते हैं तथा पुलिस को तंग करते रहते हैं, नाक में दम करते रहते हैं। बताइये, इतनी जल्दी मैं फिर प्रशासन को तंग करने का साहस कैसे कर सकता हूँ? रोज-रोज डेढ़ लाख रुपये का प्रबंध करने का दम है मुझमे ?" एक-एक शब्द को लगभग चबाते हुए से डाक्टर बोल गये । दारोगाजी की नजरें झुक सी गई।
कथाकार-अश्विनी कुमार आलोक
मो.: 8789335785
प्रथम प्रकाशन-2021
इंक पब्लिकेशन, प्रयागराज-211016
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