मैदान से वितान की ओर / भगीरथ परिहार (सम्पादक)

'मैदान से वितान की ओर' में संकलित कथाकार और उनकी लघुकथा का शीर्षक :

अंजना अनिल/हींग लगी न फिटकरी 2. अन्तरा करवड़े/मानसिक व्यभिचार 3. अपराजिता अनामिका/तगमा 4. अभिमन्यु अनत/पाठ 5. अमर गोस्वामी/स्त्री का दर्द 6. अर्चना तिवारी/सेल्फी 7. अरुण कुमार/स्कूल 8. अवधेश कुमार/नोट 9. अविनाश/कर्ज 10. अशोक जैन/जिन्दा मैं 11. अशोक भाटिया / सपना 12. अशोक लव/अपना घर 13. असगर वजाहत/लुटेरा 14. अशोक वर्मा/स्वप्न भंग 15. आनन्द/भूमंडलीकरण 16. आभा सिंह/दर्पण के अक्स 17.उर्मिकृष्ण / नई औरत 18. उमेश महादोषी/जब समय एक बिंदु होगा 19. एन उन्नी/सर्कस 20. कमल चोपड़ा/इतनी दूर 21. कमलेश भारतीय/किसान 22. कल्पना मिश्रा/आलू टमाटर की सब्जी 23. कान्तारॉय/अस्तित्व की यात्रा 24. कुलदीप जैन/ला-इलाज 25. कुणालशर्मा/अटूट बंधन 25. गोविन्द शर्मा/दूर होती दुनिया 26. चंद्रभूषण सिंह ”चंद्र’/हमका नहीं पढ़ाना 27. चंद्रेश कुमार छतलानी/भयभीत दर्पण 28. चित्रा राणा राघव/छुपा शैतान  29. चित्रा मुद्गल/बयान30. चौतन्य त्रिवेदी/जूते और कालीन 31. छवि निगम/लिहाफ 32. जगदीश कश्यप/ब्लैक हॉर्स 33. जसवीर चावला लस्से 34. तारा निगम/माँ मैं गुडिया नहीं लूँगी 35. तारिक असलम ”तस्नीम’/सिर उठाते तिनके 36. दामोदर दीक्षित/व्यापारिक बुद्धि 37. दीपक मशाल/ठेस 38. धर्मपाल साहिल/औरत से औरत तक 39. नीरज सुधांशु/पिन ड्राप साइलेंस 40. पवन शर्मा यह पारी ही तो है। 41. पारस दासोत/भूख 42. पूनम डोगरा/समझदार 43. पूरन मुद्गल/अबीज 44 पूरन सिंह/अहं शूद्रास्मि  45. पृथ्वीराज अरोड़ा/पढाई 46. प्रमोद रॉय/फ्री चिप्स 47. प्रियंका गुप्ता/भेड़िए48. प्रेमकुमार मणि/ब्लैक होल 49. प्रेमचंद बाबाजी का भोग  50. बलराम/बहू का सवाल 51. बलराम अग्रवाल/बिना नाल का घोड़ा 52. बाबू गौतम/लूसिना का बलिदान 53. भगीरथ/फूली 54. मधुकांत/शुरुआत 55. मधुदीप/जनपथ का चौराहा  56. मनोज सोनकर/बाप 57. महेन्द्र सिंह महलान/थूक सने चेहरे  58. महै।श दर्पण/मुहल्ले का फर्ज 59.  महेश शर्मा/सॉरी डियर चे 60. माधव नागदा/आग 61. मालती बसंत/अदला-बदली 62. मुकेश शर्मा/सारी रात 63. मुरलीधर वैष्णव/एग्रीमेंट 64. मोहन राजेश/अंतरात्मा 65. योगराज प्रभाकर/तापमान 66. युगल/पेट का कछुआ 67. रतनकुमार सांभरिया / पराकाष्ठा  68. रमेश बतरा/शीशा 69. प्रवीन्द्र वर्मा/चिड़िया 70. राजकुमार गौतम/बाजार में प्रेरणा बहन 71. राजेन्द्र कुमार कनौजिया/घरौंदा 72. रामकुमार आत्रोय/इक्कीस जूते 73. प्रेमकुमार घोटड/एक युद्ध यह भी 74. प्रामेश्वर काम्बोज ”हिमांशु’/कटे हुए पंख 75. रंगनाथ दिवाकर/गुरु दक्षिणा 76. रामनिवास मानव चयन प्रक्रिया 77. रामप्रसाद विद्यार्थी ”रावीश’/प्रेम की जीत 78. रामयतन यादव जिन्दगी 71. राधेश्याम भारतीय/मुआवजा80. रोहित शर्मा/ऑटोमन के आँसू 81. रूपदेवगुण जगमगाहट 82. लता अग्रवाल/घरानों की परंपरा 83. विभा रश्मि/अर्थ- अनर्थ 84. विक्रम सोनी/जूते की जात 85. विष्णु प्रभाकर/फर्क 86. शंकर पुणताम्बेकर/प्यासी बुढ़िया 87. शकुंतला किरण/तार 88. शरद जोशी/मैं वही भगीरथ हूँ 89. शोभना श्याम/ताबीज  90. शोभा रस्तोगी/गंदा आदमी 91. श्याम सुन्दर अग्रवाल/माँ का कमरा 92. श्याम सुन्दर दीप्ति/हद 93. संतोष सुपेकर आर्द्रता 94. संतोष श्रीवास्तव/मंगल सूत्रा 95. संध्या तिवारी/कविता 96. सतीश दुबे चौखट 97. सतीश राठी/जिस्मों का तिलिस्म 98. सतीशराज पुष्करणा/मन के सांप 99. सपना मांगलिक/अपना घर 100. सविता इन्द्र गुप्ता/पूर्वाग्रह 101. साधना सोलंकी मृगतृष्णा 102. सिमर सदोष/देश 103. सीमा जैन/पानी 104. स्नेह गोस्वामी वह जो नहीं कहा गया 105. सुभाष नीरव/कमरा 106. सुधा अरोड़ा छोटी हत्या, बड़ी हत्या 107. सुकेश साहनी/कम्प्यूटर 108. सुरेन्द्र मंथन/राजनीति 109. सुरेश शर्मा/राजा नंगा है। 110. सूर्यकांत नागर/फल   111. हरनाम शर्मा/अब नाहीं 112. हरिशंकर परसाई/जाति 113. हसन जमाल/प्रत्याक्रमण 114. हेमंत राणा / दो टिकिट
भूमिका : बलराम अग्रवाल 

समीक्षा :  'मैदान से वितान की ओर' 

लघुकथा साहित्यकार बनने का 'शॉर्टकट' है ? 

समीक्षक : मुकेश शर्मा

'लघुकथा साहित्यकार बनने का 'शॉर्टकट' है ।’
यह जुमला या ऐसा ही अर्थ रखने वाली बातें आपने भी सुनी होंगी । इस तरह की टिप्पणियों से लघुकथा को खारिज़ करने के प्रयास किये जाते रहे हैं । यह एक विचित्र स्थिति हो सकती है, किंतु निराश करने वाली बिल्कुल नहीं है । ग़ज़ल का स्वरूप बदलने पर और गीत जैसी विधाओं के साथ भी यह स्थिति रही थी, लेकिन आज इन दोनों ही विधाओं में सार्थक लेखन हो रहा है ।
जो लोग लघुकथा को एक आसान विधा मानते हैं, उन्हीं के लिए है भगीरथ परिहार द्वारा तैयार किया गया अनूठा लघुकथा-संकलन 'मैदान से वितान की ओर' । प्रस्तुत संकलन में 1971 से 2019 तक के कालखंड की भगीरथ परिहार द्वारा चयनित विभिन्न लेखकों की 116 लघुकथाएँ हैं । ये लघुकथाएँ किताब छापने के लिए नहीं मंगवाईं गई थी, बल्कि वे अपनी पसन्द की लघुकथाओं को चिन्हित करके फोल्डर में रखते रहे और ऐसी लघुकथाओं का पूरा संग्रह तैयार कर लिया गया ।

कमजोर रचनाओं को निकालने और नयी रचनाओं को जोड़ने का काम डॉ. बलराम अग्रवाल, डॉ. अशोक भाटिया जैसे साथियों को दिया गया, तब हुईं स्क्रूटनी के बाद प्रस्तुत संकलन तैयार किया गया और भगीरथ परिहार की 1974 में प्रकाशित पुस्तक 'गुफाओं से मैदान की ओर' की तर्ज पर इसे नाम दिया गया-'मैदान से वितान की ओर' । इस संकलन की काफी लघुकथाएँ धारावाहिक रूप में ब्लॉग 'जनगाथा' (बलराम अग्रवाल) और न्यूज़ीलैंड के पहले हिंदी अखबार 'अपना भारत', ऑकलैंड (सं.- मुकेश शर्मा) में शामिल की गई, जिससे लघुकथा विधा की लोकप्रियता का संकेत मिलता है ।

प्रस्तुत संकलन में लघुकथा को ऐसे विषय मिले हैं, जिन पर प्रायः कम लिखा गया या पुराने विषयों में नया एंगल । मध्यप्रदेश की लेखिका अंतरा करवड़े ने अपनी लघुकथा 'मानसिक व्यभिचार' में ऑनलाइन शुरु हुई तथाकथित मोहब्बत जैसे नये विषय पर लघुकथा प्रस्तुत की, वहीं असगर वजाहत की लघुकथा 'लुटेरा' में अनूठी फिलॉसफी है, जिसमें एक लुटेरा लघुकथा के किरदार का पर्स, घड़ी लूटने की बजाय उसकी बुद्धि लूट लेता है । इस संकलन की लघुकथाएँ उन लोगों के लिए एक जबरदस्त जवाब है, जो लघुकथा को सरल विधा मानकर इसे साहित्यकार बनने का 'शॉर्टकट' मानने का भ्रम पाल बैठे हैं ।

अभिमन्यु अनत की लघुकथा 'पाठ' में रंगभेद से अनजान सात वर्ष का बच्चा अपनी दोस्ती के प्रवाह में यह देखना ही भूल जाता है कि उसके दोस्त का रंग गोरा है या काला? इसी तरह अशोक भाटिया की लघुकथा 'सपना' में स्कूल और होमवर्क के बोझ से परेशान एक छोटा बच्चा अपनी माँ से कहता है- "माँ, जब मैं यूनिवर्सिटी पढ़ लूंगा, उसके बाद मैं खूब खेलूंगा.... कोई काम नहीं करूंगा ।"

लघुकथा 'जब समय केवल एक बिन्दु होगा' (उमेश महादोषी) में अंग्रेज लोगों की उस वैवाहिक व्यवस्था पर कटाक्ष है, जहाँ यह ही पता नहीं चल पाता कि कौन, किसका पिता या पुत्र है? जबकि एन. उन्नी की 'सर्कस' के बंधुआ मज़दूर जब सर्कस के शेर को दहाड़ते हुए देखते हैं तो उन्हें अपने अस्तित्व का आभास होने लगता है कि एक जानवर भी गुलामी से नफरत करता है, जबकि वे तो इन्सान हैं । कमल चोपड़ा की 'इतनी दूर', कमलेश भारतीय की लघुकथा 'किसान' भी इसी तरह के मानवीय सरोकारों से जुड़ी हैं ।
चित्रा मुदगल की चर्चित लघुकथा 'बयान' दंगा पीड़ित औरत के दर्द का बयान है, जो बताती है कि  पुलिस के संवेदनशील न होने के कारण न्याय नहीं हो पाता । चैतन्य त्रिवेदी की लघुकथा 'जूते और कालीन' में कारिगर अपने साथियों की तकलीफ बताते हुए कहता है- "बात पैसों की नहीं है । जिस कालीन को बुनने के लिए उन लोगों ने क्या-क्या नहीं बिछा दिया, उस पर पैर तो रख लें, लेकिन जूते न रखें श्रीमान ।" इस कथन और अन्य संवादों के साथ लघुकथा पाठकों को कालीन बुनने वाले कारीगरों के दर्द से वाकिफ करा देती है ।

छवि निगम की लघुकथा 'लिहाफ' आँखें खोल देने वाली रचना है । निकट रिश्तेदार ही बच्चियों को अपना शिकार बना लेते हैं, इसका प्रभावी संकेत प्रस्तुत लघुकथा में है । प्रियंका गुप्ता की 'भेड़िये' भी इसी कलेवर की रचना है । जगदीश कश्यप की 'ब्लैक हॉर्स' में बेटा अपने बॉस के लिए शराब खरीदने के लिए अपने पिता को ही ठेके पर भेज देता है और परिस्थितियों के सामने पिता भी घुटने टेक देता है । प्रभावशाली प्रस्तुति ।

बलराम की लघुकथा 'बहू का सवाल' में उठा सवाल मात्र परिवार से ही नहीं, बल्कि पूरे समाज से है कि यदि पत्नी में कोई 'कमी' है तो संतान-उत्पत्ति के लिए दूसरी शादी का मार्ग खुला है, लेकिन यदि पति में ही 'कमी' हो तो....? रचना के पात्रों द्वारा अपनी स्थानीय भाषा में बातचीत करने से लघुकथा सहज, स्वाभाविक सत्यकथा जैसी लगती है । लघुकथा में स्थानीय भाषा के प्रयोग का एक अन्य उदाहरण है भगीरथ की लघुकथा 'फूली'। इस लघुकथा का विषय तो कुछ हटकर है ही, साथ-साथ फूली नाम के किरदार को यादगार बनाने का मार्ग भी प्रशस्त करती है । गाँव की अनपढ़ फूली किस तरह अपने दकियानूसी पति को सबक सिखाती है, इसका प्रभावी चित्रण है ।

जबकि बलराम अग्रवाल की लघुकथा 'बिना नाल का घोड़ा' काम से लदे प्राइवेट कर्मचारी की दर्द की व्यथा है । इसी कलेवर में कुछ और नया जोड़ने वाली रचना है योगराज प्रभाकर की 'तापमान' । इन दोनों ही लघुकथाओं में प्राइवेट नौकरियों में काम और तनाव से लदे कर्मचारियों का दर्द व्यक्त किया गया है ।  सरकारी प्रश्रय में चल रहे जाति आधारित आरक्षण और जातिप्रथा पर कड़ा प्रहार करने वाली रचना है मालती बसन्त की 'अदला-बदली' । मुकेश शर्मा की लघुकथा 'सारी रात' में सतबीर सिपाही अपने लम्पट थानेदार से किस तरह अपनी पत्नी की रक्षा करता है, इसका मार्मिक चित्रण है । जिस कारण भगीरथ की 'फूली' की तरह सतबीर सिपाही का किरदार भी याद रह जाता है । 

राजकुमार गौतम की 'बाजार में प्रेरणा बहन', रामकुमार आत्रेय की 'इक्कीस जूते', रामकुमार घोटड़ की 'एक युद्ध यह भी', रामनिवास मानव की 'चयन-प्रक्रिया', रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' की रचना 'कटे हुए पंख', मधुदीप की 'जनपथ का चौराहा', विष्णु प्रभाकर की लघुकथा 'फर्क, श्याम सुंदर अग्रवाल की 'माँ का कमरा', सुकेश साहनी की 'कम्प्यूटर', सुभाष नीरव की 'कमरा', स्नेह गोस्वामी की 'वह जो नहीं कहा', हरिशंकर परसाई की 'जाति' आदि लघुकथाएँ पाठक को कुछ सोचने के लिए मज़बूर कर देती हैं ।
स्तरीय रचनाओं के चयन के कारण भगीरथ परिहार का यह प्रयास लघुकथा के उत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करेगा ।
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भगीरथ परिहार (संपादक) 

जन्मतिथि : 01-07-1944

जन्मस्थान : राजस्थान

ISBN : 

प्रकाशन वर्ष : 2020

E-Mail :gyansindhu@gmail.com 

टिप्पणियाँ

  1. भगीरथ जी द्वारा संपादित उत्कृष्ट लघुकथाओं का महत्वपूर्ण संकलन है.

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