आयोजन / सुकेश साहनी-रामेश्वर काम्बोज हिमांशु(सं.)
आयोजन
(बरेली गोष्ठी, 11 व 12 फरवरी 1989/रचना पाठ एव॔ लघुकथा-विमर्श)
सम्पादक : सुकेश साहनी-रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
ISBN 978-81-951416-0-9
प्रकाशक:
अयन प्रकाशन
1/20, महरौली, नई दिल्ली 110030 दूरभाष : 9211312372 e-mail: ayanprakashan@gmail.com website: www.ayanprakashan.com
शाखा: जे- 19/39, राजापुरी, उत्तम नगर नई दिल्ली -110059
© : सभी रचनाकार
प्रथम संस्करण: 1989, द्वितीय संस्करण : 2021
अनुक्रम
परिक्रमा (संपादकद्वय द्वारा लिखित भूमिका)
प्रथम सत्र
(11 फरवरी 1989 / प्रातः 11:30)
स्वागतं व्याहरामि
(डॉ भगवानशरण भारद्वाज द्वारा स्वागत भाषण)
देश के कोने-कोने से पधारे लघुकथाकार, लघुकथा समीक्षक और लघुकथा प्रेमी प्रतिनिधिगण,
बरेली ऐतिहासिक भूमि है। यह विभिन्न सभ्यताओं, विचार प्रवाहों और संस्कृतियों की रंगस्थली रही है। आज भी मणि-निग्रह से क्षुब्ध अश्वत्थामा आँधी-तूफ़ान के बीच माथे पर रिसते हुए खून के साथ यहाँ दिखाई पड़ जाते हैं। यही वह अहिच्छत्र है जहाँ भगवान पार्श्वनाथ ने कठोर तपस्या की थी। चीनी यात्री ह्वेनसाङ् के समय यह बौद्ध चिन्तन का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था, जहाँ के संघाराम 'बुद्धं सरणं गच्छामि, धम्मं सरणं गच्छामि, संघं सरणं गच्छामि' के पावन घोषों से गुंजित रहते थे। यह पं. राधेश्याम कथावाचक, नम्र, पं. भोलानाथ शर्मा और स्वामी राघवाचार्य की गृहनगरी है। ऐसी भूमि पर अ. भा. लघुकथा मंच की द्विदिवसीय गोष्ठी के ऐतिहासिक अवसर पर मैं आप सबका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ।
हिन्दी की नवविकसित विधाओं में लघुकथा का स्वतंत्र व्यक्तित्व इतनी तेजी से उभरा है कि कोई भी सहृदय पाठक और प्रबुद्ध समीक्षक उसे अनदेखा नहीं कर सकता। हमारा युग नई सदी के द्वार पर दस्तक दे रहा है। संचार माध्यमों के त्वरित विकास ने समय को इतना क्षिप्रगामी बना दिया है कि साहित्य की विविध विधाओं के आकुंचन-विकुंचन में उसका दबाव स्पष्ट देखा जा सकता है। महाकाव्य, उपन्यास और नाटकों को पाठक और दर्शक दुर्लभ होता जा रहा है। 'तन्वंगी' विधाओं के प्रति पाठक का रुझान दिन-दिन बढ़ता जा रहा है। स्वाभाविक रूप से पाठक की निगाहें सबसे पहले लघुकथा को खोजती हैं।
लघुकथा में जुड़ा ('लघु') शब्द विशेषण की बजाय संज्ञा समझा जाए, तो समीचीन होगा। कोई महाकाव्य छोटा होकर खण्डकाव्य नहीं बन जाता, कोई उपन्यास संक्षिप्त होकर कहानी का रूप ग्रहण नहीं कर सकता, किसी नाटक का संक्षिप्त रूप एकांकी नहीं कहला सकता। ठीक इसी प्रकार कोई कहानी अगर सिमट और सिकुड़ जाए, तो लघुकथा नहीं कहला सकती। उसकी लघुता 'नावक के तीर' जैसी है, जिसका घाव गहरा होता है। वह एक समग्र स्वयं पूर्ण, मौलिक और स्वतंत्र साहित्य विधा है। वह एक सम्पूर्ण व्यंजना है, किसी की छाया, प्रकृति, कटा छँटा या बौना संस्करण नहीं। उसका आकार-लाघव हमें उस बीज की याद दिलाता है, जिसमें विराट सत्य जैसा विशाल पेड़ छिपा रहता है। वह सर्वतन्त्र, स्वतंत्र, स्वायत्त और पूर्ण विधा है।
पिछले कुम्भ में एक प्राध्यापक मित्र ने 'समग्र' के लघुकथा विशेषांक को बेचने के लिए स्टाल लगाया था। दूसरे दिन शाम को पता लगा कि मित्र सारी प्रतियाँ बिक जाने के कारण जा चुके हैं। पाठक पाना समस्या नहीं, जेन्युइन लघुकथाओं की रचना और ऐसे कथाकारों को मंच दे पाना ही मुख्य बात है।
• साहित्य की कई विधाएँ सम्प्रेषणीयता का संकट ढो रही है। कविता के नाम पर छपे पृष्ठों को उलटकर पाठक जल्दी से आगे बढ़ जाता है, किसी-किसी रचना को अपने स्रष्टा के अलावा पाठक ही मयस्सर नहीं होता। लघुकथा सौभाग्यशाली है। लोकप्रियता में उसका कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं है। यह अकारण नहीं है। लघुकथाकार अपनी भूमिका और दायित्व को शुरू से ही बखूबी पहचानता रहा है। उसका पक्ष, जनपक्ष है। सत्य उसका इष्ट है। वह कला के नाम पर सत्य को झुठलाने के लिए शब्दों का सम्मोहन नहीं बुनता, वह सच्चाइयों को निर्ममता से तराशता है। वह साहित्य और नारे का फ़र्क़ जानता है । वह रचना को एक ओर धकियाकर स्वयं भाषण नहीं करता, रचना को बोलने देता है।
मैं एक बार पुन: आप सबका हार्दिक स्वागत करता हूँ - स्वागतं व्याहरामि ।
लघुकथा - पाठ
1. भीतर का सच : राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी 'बन्धु'
2. सभ्य असभ्य : जगदीश बत्रा
3. काली बिल्ली : राजेन्द्र कृष्ण श्रीवास्तव
4. गोश्त की गंध : सुकेश साहनी
5. दण्ड : जगवीर सिंह वर्मा
6. जीत : डॉ. स्वर्णकिरण
7. मुखौटा : रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
8. रोबोट का कमाल: रामयतन प्रसाद यादव
9. बोफोर्स काण्ड : डॉ. सतीश पुष्करणा
10. तीर्थ और पीक : डॉ. शंकर पुणतांबेकर
विमर्श
1. डॉ. सतीशराज पुष्करणा
2. डॉ. स्वर्ण किरण
3. अशोक भाटिया
4. उमेश महादोषी
5. गम्भीर सिंह पालनी
6. डॉ. शंकर पुणतांबेकर
7. मनोहर सुगम
8. जगदीश कश्यप
द्वितीय सत्र
(11 फरवरी 1989 / दोपहर 3:30)
लघुकथा - पाठ
1. दृष्टि : गम्भीर सिंह पालनी
2. अनबन : डाॅ महाश्वेता चतुर्वेदी
3. रणकौशल के बावजूद : कुलदीप जैन
4. पलिसिए : विनोद कापड़ी 'शान्त'
5. नौकरी और नौकर : कन्हैया लाल विद्यार्थी
6. अच्छे बच्चे : एस. कालरा
7. चोला : रमेश गौतम
8. गौ भोजनम् कथा : बलराम अग्रवाल
9. रिश्ते : जगदीश कश्यप
10. रंग : अशोक भाटिया
विमर्श
1. डॉ. भगवानशरण भारद्वाज
2. डॉ. स्वर्ण किरण
3. बलराम अग्रवाल
4. डॉ. सतीशराज पुष्करणा
5. अशोक भाटिया
6. रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
7. रामयतन प्रसाद यादव
8. गम्भीर सिंह पालनी
9. उमेश महादोषी
10. जगदीश बत्रा
11. जगदीश कश्यप
12. डॉ. शंकर पुणतांबेकर
तृतीय सत्र
(11 फरवरी 1989 / रात्रि 7:00)
लघुकथा - पाठ
1. विनोद कापड़ी शान्त : ओवर टाइम
2. कन्हैया लाल विद्यार्थी : जानवर
3. कुलदीप जैन : रक्षा कवच
4. रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' : संस्कार
5. बलराम अग्रवाल : फुटबाल
6. सतीशराज पुष्करणा : ड्राइंगरूम
7. भगीरथ : गर्म हवाओं में नमी
8. जगदीश बत्रा : एहसान
9. जगदीश कश्यप : थर्मस
10. डा. शंकर पुणतांबेकर : मरियल और मांसल
11. अशोक भाटिया : सच्चा प्यार
12. रामयतन प्रसाद यादव : जैसी करनी
13. गम्भीर सिंह पालनी : फीस
14. सुकेश साहनी : गाजर घास
15. जगवीर सिंह वर्मा : पैसे का सत्य
16. राजेन्द्र कृष्ण श्रीवास्तव : समाज सेवक
17. राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी 'बन्धु' : आर्थिक हानि
सुकेश साहनी
कृतियाँ : डरे हुए लोग (1991). ठंडी रजाई (1998), साइबरमैन • (2019), प्रतिनिधि लघुकथाएँ (2020) (लघुकथा-संग्रह), लघुकथा: सृजन और रचना-कौशल (आलेख संग्रह 2019), मैग्मा और अन्य कहानियाँ (2004), अक्ल बड़ी या भैंस (2005, बालकथा संग्रह) अनुवाद : खलील जिब्रान की लघुकथाएँ (1995)
सम्पादन : रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' के साथ हिन्दी लघुकथा की पहली वेब साइट laghukatha.com का वर्ष 2000 से सम्पादन, लघुकथा विषयक अनेक पुस्तकों का संपादन
सम्मान : माता शरबती देवी पुरस्कार 1996, माधवराव सप्रे सम्मान 2008, वीरेन डंगवाल स्मृति साहित्य सम्मान-2018 के अलावा अन्य अनेक सम्मान
सम्प्रति : भूगर्भ जल विभाग उ.प्र. के निदेशक पद से सेवानिवृत्त
सम्पर्क : 185, उत्सव पार्ट 2, महानगर बरेली-243006
ई-मेल : sahnisukesh@gmail.com
दूरभाष: 0581-2583199, 9634258583
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
जन्म : 19 मार्च 1949, हरिपुर, जिला-सहारनपुर शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), बी. एड्.
प्रकाशित रचनाएँ: माटी, पानी और हवा (प्रौढ़ शिक्षा विभाग उ.प्र. द्वारा प्रकाशित) अँजुरी भर आसीस, कुकहूँ कूँ. हुआ सवेरा, मैं घर लौटा, तुम सर्दी की धूप, बनजारा मन (कविता संग्रह) मेरे सात जनम, माटी की नाव, बन्द कर लो द्वार (हाइकु संग्रह) तीसरा पहर (ताँका-सेदोका- चोका संग्रह), मिले किनारे (ताँका और चोका संग्रह संयुक्त रूप से डॉ. हरदीप सन्धु के साथ), झरे हरसिंगार (ताँका संग्रह), धरती के आँसू, (उपन्यास), दीपा, दूसरा सवेरा (लघु उपन्यास) असभ्य नगर (लघुकथा-संग्रह-दो संस्करण). खूँटी पर टंगी आत्मा (व्यंग्य संग्रह 3 संस्करण), बाल भाषा व्याकरण, नूतन भाषा-चन्द्रिका, (व्याकरण) लघुकथा का वर्तमान परिदृश्य (लघुकथा समालोचना), सह-अनुभूति एवं काव्य शिल्प काव्य समालोचना) हाइकु आदि काव्य-धारा (जापानी काव्यविधाओं को समालोचना), फुलिया और मुनिया (बालकथा हिन्दी और अंग्रेजी), राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा प्रकाशित हरियाली और पानी (बालकथा) का 'हो', 'असुरी', उड़िया, पंजाबी और गुजराती में अनुवाद, झरना, सोनमरिया, कुआँ (पोस्टर बाल कविताएँ), रोचक बाल कथाएँ।
सम्पादन : 37 पुस्तकें, विभिन्न पत्रिकाओं के 14 विशेषांकों का संपादन, अनूदित 2 पुस्तकें।
ई-मेल: rdkamboj@gmail.com
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