लघुकथा-संग्रह-2018/सुधा भार्गव
कथाकार : सुधा भार्गव
प्रकाशक : वनिका पब्लिकेशन्स
ISBN 978-93-86436-33-7
संस्करण : प्रथम 2018
रजि. कार्यालय : एन ए-168, गली नं-6, विष्णु गार्डन, नई दिल्ली-110018
मुख्य कार्यालय: सरल कुटीर, आर्य नगर, नई बस्ती, बिजनौर- 246701, उ.प्र Website: www.vanikaapublications.com
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अनुक्रम
• माँ
● कीमत
बेड़ियों की जकड़न
• बंदर का तमाशा
• बंद ताले
• वह आयेगा
• कमाऊ पूत
नई पौध
• महोत्सव
• पुरुष सत्ता
• मैं चोर नहीं
• व्हील चेयर
• सन्नाटे की रेखाएँ
• मनपंछी
गोबर्द्धन ऑनलाइन
• असली हिन्दुस्तान
होलिका मंदिर
• पहले वाले पापा
• हवा हवाएँ
• सूरज निकला तो !
• सुख की परिभाषा
• जान के दुश्मन
• वात्सल्य के धागे
ससुर जी
• प्यारे बच्चे
• एक मुस्कराहट
दर्द का संगम
• करवाचौथ
• बुझता चिराग
आकांक्षाएँ
• मेरी तुम्हारी कमाई
देखेगा कौन!
• जनाजा
फैशनेबल दादी
पहली रात
परिवर्तन
• पटाखा गया छूट
इच्छा मृत्यु
मैडम का खेल
धर्मबेटा
द्रौपदी तो नहीं!
चुनावी गर्मागर्मी
• अपना अपना आकाश
• तीर कमान
• मसीहा
चाणक्य पुराण
• सपनों का हकदार
• टकराती रेत
• जीवन बाती
• छोटी बहू
• मेरी चुनौती
• नटखट मौसम
टेढ़ी उँगलियाँ
• व्यथा
● कोयलिया
• कलेजे का दर्द
• आदमजाद जानवर
• रंग पंखुरियों के
• झुलसता जबाब
• असली व्यापारी
• हरी साड़ी
• अधूरा कानून
• जाति भाई
● कितनी द्रौपदियाँ!
• घर बाहर का मौसम
• समाधान
• दुनियादारी
• दूध का कर्ज
• कटी पतंग
• पुत्रदान
• बारिश की बूंदें
• भिखारी
• लेन-देन
मुफ्त की सेवाएँ
• वह वृद्ध और वह वृद्धा
• माँ और माँ
• पेट की पुकार
• आदर्शों की गठरी
• अमृत अकेलेपन का दर्द
• अनुभूति
• जहरवाद
• सिसकती सांसें खिचड़ी का स्वाद
• अवतार
• जन्मपत्री
• तीन तलाक
• कायरता की छूत
• एक छुअन
• कटौती
• समय की पुकार
• बाल सुदामा घर
• देश की माटी
• दिमाग की खिड़कियाँ
• ऊँची नाक
• नकलची
लघुकथा-संग्रह 'टकराती रेत' से एक लघुकथा 'वह आएगा' :
"जीजी, जीजाजी कैसे हैं?"
"ठीक नहीं।"
"कनाडा से कमल को बुला लो उसे गए बहुत दिन हो गए। कोई तो चाहिए...। आप अकेले जीजाजी को कैसे संभालोगी?"
"हाँ, सोच तो रही हूँ।"
"पर वह आएगा नहीं। एक बार जो चला जाए वह आता है। क्या! फिर यहाँ इतना पैसा भी तो नहीं मिलता...पैसा ही तो सब कुछ है।" काशी मौन थी पर उसका विश्वास अटल था, वह आएगा। सुबह होते ही आदत के मुताबिक कम्प्यूटर पर जा बैठी, स्काईपी पर क्लिक कर दिया, आवाज़ गूँजी, "हैलो माँ! राम-राम, कैसी हो?"
"मैं तो ठीक हूँ पर तुम्हारे पापा अस्वस्थ हैं। अब तो भारत भी बहुत तरक्की कर रहा है यदि 1% भी तुम्हारा स्वदेश लौटने का इरादा हो तो देरी करो। पके फलों को टपकने में क्या देर लगे! "
"ओह माँ! चिंता न करो!" बेटा छोटा-सा उत्तर देकर खामोश हो गया। उसकी खामोशी तलवार की तरह उसकी गर्दन पर लटक गई। कहीं वह बच्चों से ज्यादा आशा तो नहीं कर रही।
वह दिन उसकी स्मृति में डोल गया जब बेटा एयरपोर्ट में घुसने से पहले बोला था, "माँ इतने चाव से मुझे विदेश भेज रही हो पर एक बार मैं गया तो लौटने की ज़्यादा उम्मीद मत करना। "
व्याकुलता ने कुछ क्षणों को अपना सिर अवश्य उठाया पर शीघ्र ही उसके विश्वास के आगे झुक गया। रोम-रोम पुकार उठा, "वह आएगा... वह आएगा।"
सूर्य की लाली फैलते ही एक हफ्ते बाद मोबाईल बज उठा, “माँ, मैं आ रहा हूँ, वह भी एक माह को...।"
"तू आ रहा है!" एक पल को दिवाली सी रौनक उसके मुख पर छा गई।
बेटा आया। पन्द्रह दिन कम्प्यूटर से चिपका बैठा रहा। फिर बैंगलौर हैदराबाद की उड़ान भरने चला गया।
लौटने पर माँ के आँचल की छाँह ढूँढने लगा, "माँ.. माँ... कहाँ हो ? मुझे बैंगलौर में नौकरी मिल गई है। दो माह बाद आना है।"
“इतनी जल्दी! 15 साल की तेरी गृहस्थी, बसा बसाया घर कैसे सब उठा सकेगा!"
"जब आना है तो बस आना है माँ! अब यह बताओ कि दिल्ली में मामा-मौसी, बुआ... सारी रिश्तेदारी है। इनका मोह छोड़ना सरल नहीं। अब आप कहाँ रहोगी-दिल्ली या बैंगलौर!"
काशी ने गहरी सांस खींची, गोया कमरे में भर गई आत्मीयता की समूची महक को फेंफड़ों में समा लेना चाहती हो। फिर भर निगाह बेटे के चेहरे को देखा और मुस्कुरा दी।
"पूछा तो ऐसे ही था माँ! पहले ही मालूम था कि आप 'यह' कहोगी।" बेटे ने भावुक स्वर में कहा।
"माँ की एक मुस्कान ने उसका दिल खोलकर रख दिया, “तू मेरे लिए कनाडा छोड़कर भारत आ सकता है बेटा, तो तेरे लिए क्या मैं दिल्ली छोड़कर बैंगलौर नहीं रह सकती!"
सुधा भार्गव
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