लघुकथा-संग्रह-2021/पवन जैन

 

लघुकथा-संग्रह : फाउण्टेन पेन

कथाकार  : पवन जैन 

ISBN: 978-81-951152-2-8

प्रथम संस्करण  : 2021

प्रकाशक : अपना प्रकाशन

म.नं. 21, सी-सेक्टर, हाई टेंशन लाइन के पास, सुभाष कॉलोनी, गोविंदपुरा, भोपाल-462023 फोन : 9575465147

ई-मेल- roy.kanta69@gmail.com

अनुक्रम 

01. फाउण्टेन पेन

02. चैम्पियन

03. एक टोकरी सब्जी

04. हमीद की प्लेट

05. वैवाहिकी

06. पशोपेश

07. सोन चिरईया

08. गहाई

09. वर्धक

10. अन्नदाता

11. सृष्टि की रचना

12. वापसी

13. इंसाफ

14. नामर्द

15. पूजा के फूल

16. कश

17. शगल

18. सदयता

19. रोटी

20. मन के कांटे

21. बहेलिया

22. गिलहरी

23. गुटरगू

24. नाना का भाईं 

25. रिर्जवेशन

26. जमता हुआ शहद 

27. जवान कदम

28. सिम

29. कर्म

30. वैतरणी

31. प्रेम की लौ

32. नोटबंदी

33. शगुन

34. असली हकदार

35. सुबह

36. प्रीत की डोर

37. मैल

38. पिरेम

39. प्रकृति

40. पी.ओ.

41. भाभी

42. माथे की बिंदी

43. शनि

44. शादी

45. भट्टी

46. धड़कने

47. सुबह की सैर

48. सेमल के बीज 

49. रानी कुंइयाँ

50. रिश्तों का ब्याज

51. भावनाओं का बाजार

52. टेन एमएल

53. अजब तमाशा लकड़ी का

54. नई राह

55. रेत पर महल

56. मृत्य की छाँव

57. फाइल

58. प्रसाद

59. ड्रेस डिजाइनर

60. रंग

61. स्टेनो

62. मंजिल

63. पसीने की खुशबू

64. क्रकिट

65. उत्तराधिकारी

66. पास बुक

67. मिट्टी के घर

68. घुटने

69. देशी

70. मीठे फल

71. सामाजिक दूरी

72. भूख

73. पनबेसरी

74. खुली हवा

75. प्रेम बीज

76. ईंट भट्टा

77. सनसनाते बाण

और इस संग्रह से शीर्षक लघुकथा 'फाउण्टेन पेन':

उस जमाने में बी.ए. प्रथम श्रेणी से पास होने पर बाबूजी को कालेज के प्राचार्य ने यह पेन पारितोषिक स्वरूप दिया था। बाबूजी ने न जाने कितनी कहानियाँ, कविताएँ लिखी । हमेशा उनकी सामने की जेब में ऐसे शोभा बढ़ाये रखता जैसे कोई तमगा लगा हो।

मेरी पहली कहानी प्रकाशित होने पर बाबूजी ने प्रसन्न हो कर मेरी जेब में ऐसे लगाया जैसे कोई मेडल लगा रहे हों । आज बाबूजी की पुण्य तिथि पर उनकी तस्वीर पर माला चढ़ा कर, पेन साफ कर, स्याही भर के शर्ट के सामने की जेब में खोस कर एक सिपाही की तरह सीना तान कर कार्यालय पहुँचा।

लिखने के लिए एक दो बार पेन निकाला पर हाथ काँप गए, कुछ न लिख सका।

न जाने क्यों आज बाबूजी की हिदायत बार बार मेरे कानों में - गूँज रही थी - "बेटा, इस पेन से कभी झूठ नहीं लिखना और न ऐसा सच जिससे किसी का अहित हो ।"

मैं कचहरी का बड़ा बाबू दिन भर उस पेन को जेब में खोसे रहा । घर आकर पिता जी की फोटो के साथ टिका दिया, उनके नाम का दीपक जलाकर।

पवन जैन

जन्म दिनांक : 01-01-1954

जन्म स्थान : सागर (मध्य प्रदेश)

शिक्षा : बी. एस. सी., एम.ए., एल. एल. बी., आयुर्वेद रत्न

पंजाब नैशनल बैंक में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन, प्रमुखतः लघुकथा। लघुकथा शोध केन्द्र भोपाल एवं लघुकथा के परिंदे फेसबुक समूह से संबद्ध ।

सम्पर्क सूत्र :

593, संजीवनी नगर, जबलपुर (मध्य प्रदेश) 

मो. : 9425324978

ईमेल: jainpawan9954@gmail.com

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