लघुकथा-संग्रह-2021/अशोक जैन

लघुकथा-संग्रह : जिंदा मैं

कथाकार : अशोक जैन

प्रकाशक : अमोघ प्रकाशन, 908, सैक्टर-7 एक्सटेंशन, अरबन एस्टेट, गुरुग्राम 122 001 (हरियाणा)

मो.: 9810374941

वितरण/विक्रय सहयोग : अपना प्रकाशन

म.नं. 21-सी, सुभाष कॉलोनी, गोविंदपुरा, भोपाल-462023 (म.प्र.) मो. : 9575465147

संस्करण : प्रथम (अगस्त 2021)

मूल्य : ₹80/

आवरण : सौजन्य- फेसबुक

भीतरी रेखाचित्र : मार्टिन जॉन, कोलकाता

अनुक्रम 

अशोक जैन की लघुकथाओं का समीक्षात्मक अध्ययन / वीरेंदर 'वीर' मेहता 

1. डर

2. मुक्ति मार्ग

3. गिरगिट

4. बुखार

5. बँटवारा

6. अपने अपने स्वार्थ

7. मजे

8. पोस्टर

9. बूढ़ा बरगद

10. ज़िंदा मैं

11. टूटने के बाद

12. आर-पार

13. और उसने कहा

14. क्वार्टर और हवेली के बीच ...

15. खाली पेट

16. अपराध बोध

17. निर्णय

18. खुसर-पुसर

19. पैंतरे

20. फिर भी

21. झुग्गियों की आग

22. जेबकतरा

23. दाना पानी

24. अकेलापन

25. मौकापरस्

26. प्रायवेसी

27. लौटते हुए

28. फैसला

29. सुनहरी चेन वाली घड़ी

30. संकल्प

31. माहौ

32. सन्नाटे और मुस्कान के बीच

33. मुआवजा

34. बोध

35. चेतना

36. मिसाल

37. हार का बोध

38. गुहार

39. अपने-अपने दुख

40. समाधान

41. आत्म-निर्णय

विरेंदर 'वीर' मेहता के आलेख से एक अंश :

अशोक जी की लघुकथाओं के विषय अधिकांशत: समाज के मध्यम वर्ग से जुड़े होते हैं। उनकी लघुकथाएँ पढ़ने में सरल और मर्म को छूने के साथ कहीं न कहीं सोचने के लिए विवश भी करती हैं। कहा जा सकता है कि वे अपनी लघुकथाओं का ताना-बाना अपने आसपास दिखाई देने वाले सामाजिक विसंगतियों के धागे से बुनते हैं। और यह पूरी तरह से स्वाभाविक भी है क्योंकि समाज से जुड़ा प्रत्येक व्यक्ति अपने आसपास के घटनाचक्र, सामाजिक क्रियाकलापों एवं प्राकृतिक परिदृश्यों से सहज ही प्रभावित होता है। और वह इस प्रभाव से मन में उत्पन्न भावों को दूसरों के साथ बाँटना भी चाहता है। यह एक अलग बास है कि वह अपने भावों को किस तरह से अभिव्यक्त करता है, अर्थात् उसकी अभिव्यक्ति का माध्यम क्या है? चाहे वह चित्रकार हो, मूर्तिकार हो या साहित्यकार, ये सभी लोग अपनी संवेदनशील और दृष्टि विशेष से समाज में घटित घटनाओं को देखते हैं और अपनी विशिष्ट-प्रतिभा से इसकी अभिव्यक्ति करते हैं। और साहित्यकार अशोक जैन जी इसका एक साक्षात उदाहरण हैं, जो अपने मन की अभिव्यक्ति को बड़े ही स्पष्ट भाव से लघुकथा के कथ्य में पिरोते रहे हैं। लघुकथा विधा में, वे हमेशा ही धीमे लेकिन सार्थक लेखन के पक्षधर रहे हैं।

संग्रह से एक लघुकथा 'मुआवजा' :

मोहल्ले-भर की औरतें जमा हो गई हैं।

सुमेर बाबू अपनी ससुराल से अपनी पत्नी व नवजात शिशु को लेकर लौटे हैं। साथ में नौकरानी भी है। नौकरानी का पति बुद्धू उन्हें रिक्शा में लिवा लाया है ।

"भगवान का शुक्र है। बारह वर्ष बाद बच्चा दिया, वह भी लड़का ... "

"हाँ, द्रौपदी बहन सुमेर की बहू को कभी खिड़की में भी खड़े नहीं देखा।" “कितनी सीधी है बेचारी! किसी को इत्तला तक नहीं की और वह मायके चली गई।'

'अरे, नहीं रे ! जाने से पहले मैंने देखा था। काफी कमज़ोर लग रही थी। मैं तो तभी भाँप गई थी कि कुछ ...।"

तभी शिशु हुटक-हुटक कर रोने लगा। मालकिन को परेशान होते देख नौकरानी आगे बढ़ी। उसने कहा, 'मालकिन, लाइये मुझे दे दीजिए। मैं चुप कराने की कोशिश करती हूँ।" और उसने आगे बढ़कर शिशु को अपनी बाँहों में ले लिया।

कमरे में पहुँचकर उसने शिशु को अपनी छाती से लगा लिया। शिशु चुसर-चुसर दूध पीने लगा था।

अगली दोपहर दिनेश ने मुझसे कहा :

"यार, बुद्धू की प्रमोशन हो गई है। सुबह से थ्री व्हीलर चला रहा है।

मूल नाम : अशोक कुमार जैन

साहित्यिक नाम : अशोक जैन

उपनाम : शांतिदूत

जन्मतिथि : 21-10-1954 

जन्मस्थान : कैथल (तत्कालीन पंजाब अब हरियाणा)

साहित्य लेखन : साहित्य की लगभग हर विधा में 400 से अधिक रचनायें

प्रकाशित कृतियाँ

हिन्दी :

■ सात कौड़ियों का राजमहल (बाल उपन्यास); 

■ टूटते बनते घर (उपन्यास) ;

■ फूलों की महक (बाल कविताएँ); 

■ राजा राममोहन राय (जीवनी प्रसंग) ;

■ चमकती धूप के साये (मुक्तक संग्रह); 

■ ज़िंदा मैं (चुनिंदा लघुकथाएँ)

■ कहे जैन कविराय (कुण्डलियाँ संग्रह प्रेस में)

अंग्रेजी :

■ ए टेक्स्ट बुक आन जनरल इंग्लिश (एन एन्साइक्लोपीडिया); ऑक्सफोर्ड इंग्लिश ग्रामर एण्ड कम्पोजिशन; ए कन्साइज बुक ऑन ट्रांसलेशन; 

■ करोड़पति क्विज़ मास्टर (तीन खण्डों में) (अंग्रेजी व हिन्दी में अलग-अलग); इंग्लिश रीडर (टेक्स्टबुक-कक्षा 1-5) विभिन्न शैक्षणिक प्रकाशकों के साथ करीब 6 सेट; और भी फुटकर पुस्तकें।

सम्प्राप्ति : : ठाकुर वेदराम राष्ट्रीय पुरस्कार (साहित्य - 2019 ) व पंकस अकादमी, जालंधर द्वारा लघुकथा श्रेष्ठि सम्मान (2019) सहित अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित/ पुरस्कृत।

विशेष : (1986-2003 तक) सन पब्लिकेशन, राजपाल एण्ड संस, अशोका पब्लिशिंग हाउस, आर्य बुक डिपो (सभी प्रमुख शैक्षणिक प्रकाशक) के यहाँ सहायक प्रमुख संपादक के रूप में कार्यरत और करीबत 160 पुस्तकें संपादित / संवर्धित पुन: लिखित। 

आकाशवाणी रोहतक व नजीबाबाद से 1984-86 के मध्य कहानी गीत व लघुकथाएँ निरन्तर प्रसारित उड़िया, अंग्रेजी, पंजाबी, नेपाली में लघुकथाएँ अनूदित। कुछ लघुकथाएँ मंगलौर विश्वविद्यालय के विभिन्न पाठ्यक्रमों में सम्मिलित।

वर्तमान परिदृश्य : वर्तमान में 'दृष्टि' अर्धवार्षिक पुस्तकाकार पत्रिका का संपादन प्रकाशन। 8 अंक प्रकाशित। सभी विशेषांक। लघुकथा को लेकर पूर्णतः समर्पित।

सम्पर्क सूत्र : 908 सेक्टर 1 एक्सटेंशन, अरबन एस्टेट, गुरुग्राम-122001 (हरियाणा) 

मोबाइल नं. : 9810374941 

ई-मेल : ashok jain908@gmail.com


टिप्पणियाँ

  1. Kamaal kar diya magazine ne. Poora profile hi de diya. Yah review ka naya tareeka hai. Yah prakashan pragati kare yahi dua hai. Wow!!!

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन और सुंदर प्रस्तुति। हार्दिक साधुवाद।
    अशोक जी को हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वसुधा करे पुकार / कपिल शास्त्री (संपादक)

लघुकथा ट्रेवल्स / प्रबोध कुमार गोविल (संपादक)

क्षितिज/सतीश राठी-दीपक गिरकर