लघुकथा संग्रह 2013/असभ्य नगर एवं अन्य लघुकथाएँ
(डॉ उमेश महादोषी के सौजन्य से)
लघुकथा संग्रह : असभ्य नगर एवं अन्य लघुकथाएँ
कथाकार : रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
प्रथम संस्करण : अज्ञात
द्वितीय संस्करण : 2013
आई.एस.बी.एन.: 978-81-7408-665-5
प्रकाशक : अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई दिल्ली-110030
फोन 011-26645812/मो. 09818988613
ईमेल : ayan.prakashan@gmail.com
वेबसाइट : www.ayanprakashan.com
अनुक्रमणिका :
1. ऊँचाई
2. चट्टे-बट्टे
3. चक्रव्यूह
4. धर्म निरपेक्ष
5. क्रौंच-वध
6. मुखौटा
7. वक्त की कीमत
8. मसीहा
9. व्यवस्था
10. चक्र
11. उपचार
12. अश्लीलता
13. गंगा-स्नान
14. शाप
15. जहरीली हवा
16. संस्कार
17. विजय-जुलूस
18. प्रवेश-निषेध
19. सुबह हो गई
20. महात्मा और डाकू
21. चिरसंगिनी
22. दूसरा सरोवर
23. जाला
24. वफादारी
25. काग-भगोड़ा
26. खलनायक
27. आँख का तिल
28. विक्षिप्त
29. खुशबू
30. नई सीख
31. पुरस्कार
32. कट्टरपंथी
33. पिघलती हुई बर्फ
34. छोटे-बड़े सपने
35. सच्चाई
36. आत्महन्ता
37. अपने-अपने सन्दर्भ
38. छुपे हुए हाथ
39. ज़हर
40. प्रदूषण
41. टुकड़खोर
42. फिसलन
43. कालचिड़ी
44. स्नेह की डोर
45. चोट
46. उड़ान
47. राजनीति
48. स्क्रीन-टेस्ट
49. आरोप
50. स्त्री-पुरुष
51. शिक्षाकाल
52. अर्थ-परिवर्तन
53. तीसरी मौत
54. कटे हुए पंख
55. अच्छे पड़ोसी
56. परख
57. पागल
58. लौटते हुए
59. भग्नमूर्ति
60. धन्यवाद
61. न्याय
62. असभ्य नगर
63. कमीज
64. एजेण्डा
65. धारणा
66. खूबसूरत
67. नवजन्मा
संग्रह से एक प्रतिनिधि लघुकथा :
नवजन्मा
जिलेसिंह शहर से वापस आया तो आँगन में पैर रखते ही उसे अजीब-सा सन्नाटा पसरा हुआ लगा।
दादी ने ऐनक नाक पर ठीक से रखते हुई उदासी-भरी आवाज़ में कहा, ‘‘जिल्ले! तेरा तो इभी से सिर बँध ग्या रे। छोरी हुई है!’’
जिलेसिंह के माथे पर एक लकीर खिंच गई।
‘‘भाई लड़का होता तो ज्यादा नेग मिलता। मेरा भी नेग मारा गया।’’ बहन फूलमती ने मुँह बनाया, ‘‘पहला जापा था। सोचा था- खूब मिलेगा।’’
जिले सिंह का चेहरा तन गया। माथे पर दूसरी लकीर भी उभर आई।
माँ कुछ नहीं बोली। उसकी चुप्पी और अधिक बोल रही थी। जैसे कह रही हो- जूतियाँ घिस जाएँगी ढंग का लड़का ढूँढ़ने में। पता नहीं किस निकम्मे के पैरों में पगड़ी रखनी पड़ जाए।
तमतमाया जिलेसिंह मनदीप के कमरे में घुसा। बाहर की आवाज़ें वहाँ पहले ही पहुँच चुकी थीं। नवजात कन्या की आँखें मुँदी हुई थीं। पति को सामने देखकर मनदीप ने डबडबाई आँखें पोंछते हुए अपना मुँह अपराध भाव से दूसरी ओर घुमा लिया।
जिलेसिंह तीर की तरह लौटा और लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ चौपाल वाली गली की ओर मुड़ गया।
‘‘सुबह का गया अभी शहर से आया था। तुम दोनों को क्या ज़रूरत थी, इस तरह बोलने की?’’ माँ भुनभनाई। घर में और भी गहरी चुप्पी छा गई।
कुछ ही देर में जिलेसिंह लौट आया। उसके पीछे-पीछे सन्तु ढोलिया गले में ढोल लटकाए आँगन के बीचों-बीच आ खड़ा हुआ।
‘‘बजाओ!’’ जिलेसिंह की भारी भरकम आवाज़ गूँजी।
तिड़क-तिड़-तिड़-तिड़ धुम्म, तिड़क धुम्म्म! ढोल बजा।
मुहल्ले वाले एक साथ चौंक पड़े। जिलेसिंह ने अल्मारी से अपनी तुर्रेदार पगड़ी निकाली; जिसे वह शादी-ब्याह या बैसाखी जैसे मौके पर ही बाँधता था। ढोल की गिड़गिड़ी पर उसने पूरे जोश से नाचते हुए आँगन के तीन-चार चक्कर काटे। जेब से सौ का नोट निकाला और मनदीप के कमरे में जाकर नवजात के ऊपर वार-फेर की और उसकी अधमुँदी आँखों को हलके-से छुआ। पति के चेहरे पर नज़र पड़ते ही मनदीप की आँखों के सामने जैसे उजाले का सैलाब उमड़ पड़ा हो। उसने छलकते आँसुओं को इस बार नहीं पोंछा।
बाहर आकर जिलेसिंह ने वह नोट सन्तु ढोलिया को थमा दिया।
सन्तु और ज़ोर से ढोल बजाने लगा- तिड़-तिड़-तिड़ तिड़क-धुम्म, तिड़क धुम्म्म! तिड़क धुम्म्म! तिड़क धुम्म्म!
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
जन्मतिथि : 19.03.1949 (ग्राम हरिपुर, जिला सहारनपुर)।
उपलब्धियाँ : वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं साहित्यकार। कविता, हाइकु, तांका, चोका, व्यंग्य, लघुकथा, बाल साहित्य, उपन्यास एवं शैक्षणिक महत्व की दो दर्जन अधिक मौलिक पुस्तकों का सृजन तथा लगभग तीन दर्जन पुस्तकों का संपादन। लघुकथा एवं हाइकु विधाओं की विकास-यात्रा में विशेष योगदान। वरिष्ठ लघुकथाकार श्री सुकेश साहनी जी के साथ लघुकथा की सुप्रसिद्ध वेब पत्रिका ‘लघुकथा डॉट कॉम’ का वर्ष 2000 से निरंतर संपादन-प्रकाशन। हिन्दी हाइकु की बेव पत्रिका ‘हिन्दी हाइकु’ तथा तांका, चोका, माहिया आदि की वेब पत्रिका ‘त्रिवेणी’ का डॉ. हरदीप कौर सन्धू के साथ संपादन। कनाडा से प्रकाशित हिन्दी की अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ‘हिन्दी चेतना’ के दोनों- मुद्रित एवं वेब संस्करणों का संपादन। हिन्दी की लगभग सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं एवं वेब पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन एवं आकाशवाणी के कई प्रमुख केन्द्रों से रचनाओं का प्रसारण।
सम्प्रति : केन्द्रीय विद्यालय संगठन में प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति उपरांत साहित्य सेवा में समर्पित।
संपर्क : 1704-बी, जैन नगर, गली नं. 4/10, कश्मीरी ब्लॉक, रोहिनी सेक्टर-38, कराला, दिल्ली-81
मो. 09313727493
ईमेल : rdkamboj@gmail.com
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