शोध दिशा (लघुकथा-विशेषांक-2016)/रामेश्वर काम्बोज हिमांशु (अ.सं.)
शोध दिशा (अक्टूबर - दिसंबर 2016)
लघुकथा अंक
संपादक
डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल
अतिथि संपादक
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
प्रबंध संपादक
डॉ. मीना अग्रवाल
संयुक्त संपादक
मनोज अबोध
सत्यराज
कला संपादक
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डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल लिखित संपादकीय 'आपसे कुछ बातें...'
इराक़ का शहर बसरा लोगों ने देखा कि एक अर्द्धविक्षिप्त महिला अपने एक हाथ में पानी की बाल्टी और दूसरे हाथ में जलती हुई आग की अंगीठी लिए हुए बढ़ती चली जा रही है। अभी सवेरा था और धरती पर सूरज की धूप अभी नहीं फैली थी महिला कुछ दूर आगे बढ़ी थी कि सामने से बसरा के एक विद्वान आ गए। उन्होंने महिला का रास्ता रोका और पूछा 'माई, तुम यह आग और पानी एक साथ कहाँ लिए जा रही हो?"
महिला चुप रही विद्वान ने अपना प्रश्न फिर से दोहराया। महिला ने कहा, 'मैं इस पानी से नरक की आग बुझाऊँगी और इस आग से स्वर्ग को फेंक दूंगी।'
महिला की बात सुनकर विद्वान के होंठों पर व्यंग्य-भरी हँसी उभर आई। वह बोले, 'माई, तुम ऐसा क्यों करना चाहती हो?' विद्वान का प्रश्न सुनते ही महिला ने उत्तर दिया- ताकि लोग ईश्वर की पूजा स्वर्ग की लालसा और नरक के भय से न करें। उनकी पूजा में श्रद्धा हो, निष्ठा हो; भय और लालसा का अंश न हो।'
यह केवल एक उदाहरण है। आपने देखा कि लघुकथा किसी विशेष क्षण में उपजे भाव, घटना या विचार की संक्षिप्त और शिल्प से तराशी गई प्रभावशाली अभिव्यक्ति है। लघुकथा संक्षिप्त होती हैं और सांकेतिकता से परिपूर्ण। वह जीवन की व्याख्या लाक्षणिक रूप से करती है। उसमें वर्णन और विवरण का अवकाश नहीं होता। वहाँ संकेत और व्यंजना से काम चलाया जाता है।
इसी प्रकार प्राचीनकाल की बोधकथाओं को तब की लघुकथाओं के रूप में देखा जा सकता है। यद्यपि इन बोधकथाओं का स्वरूप आधुनिक लघुकथाओं से नितांत भिन्न था, फिर भी दोनों के कतिपय मूलभूत तत्त्वों में साम्य था। यह साम्य उद्देश्य की दृष्टि से है। प्राचीन बोधकथाएँ एक निश्चित उद्देश्य को दृष्टिपथ में रखकर लिखी जाती थीं। तब उनका उद्देश्य आदर्श प्रधान या नीतिगत होता था ये बोधकथाएँ जीवन से उदाहरण प्रस्तुत करते हुए मानव समाज को उपयुक्त मार्ग चुनने का अवसर प्रदान करती थीं।
आज परिस्थितियाँ बिल्कुल बदल गई हैं। जैसे-जैसे सुख-संपन्नता और सुविधाओं में वृद्धि हुई है, जीवन की भगदौड़ बहुत बढ़ गई है। परिणामत: लोगों के पास उतना समय नहीं रहा है कि वे आराम से बैठकर लंबे-लंबे उपन्यास या कहानियाँ पढ़ सकें। ऐसी स्थिति में छोटे आकार की रचनाएँ ही पाठक को संतुष्ट करने का विकल्प बनती हैं। पाठक कुछ ऐसी रचनाएँ चाहते हैं, जिन्हें चलते-फिरते, उठते बैठते, बातचीत करते हुए भी बीच-बीच के अंतराल में पढ़ा जा सके। हाँ, ये रचनाएँ ही छोटी किंतु जीवन की माँग को पूर्ण करने में समर्थ और सक्षम हों। जैसा कि हम जानते हैं कि प्राचीनकाल में लघुकथाएँ या कहें बोधकथाएँ ही एकमात्र संप्रेषण का माध्यम थीं। उस काल की लघुकथाएँ पौराणिक साहित्य को समृद्ध करती हैं। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि लघुकथा का जन्म तो वैदिकयुग में ही हो चुका था, किंतु समय और परिस्थितियों के बदलाव में लघुकथा के स्वरूप में भी व्यापक परिवर्तन परिवर्तन आया है। लघुकथा परंपरागत, निरर्थक और खोखले जीवनमूल्यों पर प्रहार करती है और नवीन एवं सार्थक जीवनमूल्यों की पृष्ठभूमि तैयार करती है। लघुकथा प्रायः समस्या की ओर संकेत करती है और शेष कार्य अपने पाठक पर छोड़ देती है। वह अप्रत्यक्ष रूप में समाधान के लिए प्रेरित करती है। अच्छी लघुकथा में स्थितियों का निदान लेखक नहीं सुझाता। उसमें यह निदान पाठक द्वारा अधिक होता है।
यदि हम लघुकथा के इतिहास पर विचार करें तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि लघुकथा कोई आज की नई विधा खोजा गया नहीं है। प्राचीनकाल से ही इसका अस्तित्व था। प्राचीन संस्कृत साहित्य में लघुकथाएँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती हैं। लघुकथा का प्रारंभिक रूप ऋग्वेद की उन कथाओं में प्राप्त है, जिन्हें हम यम यमी, पुरुरवा उर्वशी, पितर पूजा आदि नामों से जानते हैं। इसके अतिरिक्त पंचतंत्र हितोपदेश तथा जातक कथाओं में लघुकथा का प्ररंभिक रूप प्राप्त होता है। वैदिक काल की लघुकथाएँ बौद्ध, जैन तथा महाभारत की लघुकथाएँ भी इसकी उत्पत्ति के आदिस्रोत हैं।
जैसा कि पहले कहा गया है कि आज हमारे जीवन में उतना अवकाश नहीं है कि हम लंबी-लंबी रचनाएँ पढ़ सकें। ऐसी स्थिति में छोटे आकार की रचनाएँ ही पाठक को संतुष्ट कर पाती हैं। इसी वस्तुस्थिति को सामने रखते हुए इस अंक की योजना तैयार की गई है। इस अंक का संपादन- भार श्री रामेश्वर काम्बोज जी ने सहर्ष स्वीकार किया, इसके लिए शोध दिशा परिवार उनका विशेष आभारी है।
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु द्वारा लिखित 'संपादकीय'
आश्रय लिया गया है, जो रचनाओं की विशिष्टता है। सकारात्मक जीवनमूल्यों की छवि फ़र्क पड़ेगा, खुशबू, साड़ी, कर्जदार, मजहब, फूल, छू लिया में देख सकते हैं। 'छू लिया' झटके से नहीं, वरन धीरे से संकीर्ण सोच पर कारगर प्रहार करती है। नए विषयों के संधान में स्थापित लेखकों के साथ-साथ नए लेखक भी सजग हैं। अनुयायी, डिस्चार्ज, बीमार आदमी, नशा, अजनबी जैसे हमसफ़र, तीन संकल्प, मुखौटे, चूहे पाठकों को प्रभावित करेंगी। पारिवारिक परिवेश की लघुकथाओं की संख्या अधिक है। इनमें झूठा अहम्, अनमोल खजाना, गहना, रस्म, भूकंप, ध्यान पूजा परिवार का एक पक्ष हैं, तो इतनी दूर, दूसरा जल्लाद, दूरी बाहरवाला कमरा, मुखौटे, करवाचौथ का कड़वा सच, ए.टी.एम. में दूसरा पक्ष है, जो परिवार और समाज की दुर्बलताओं को रेखांकित करता है। दूसरा जल्लाद एक अलग तरह की लघुकथा है, जिस पर खाप के क्रूर निर्णय की भयातुर धको पूरा परिवार महसूस करता है।
लघुकथाकारों की सूक्ष्म दृष्टि जीवन के विविध पक्षों पर गई है। 'थर्ड जेंडर' भी लघुकथाओं का विषय बना है। पारस दासोत को 2013 में प्रकाशित किन्नर केंद्रित लघुकथाएँ उनकी मानवीय संवेदना की आँसू भीगी करुण कथाएँ हैं। अप्रत्याशित, 'किन्नर ही तो था' कथाओं में उनके अछूते दर्द की मार्मिक प्रस्तुति है। शरीर के 'बौनेपन' के कारण अनुभूतियाँ तो बौनी नहीं हो सकतीं। 'पापा के मजबूत कंधे' का बौना पिता खुद अपने रोते हुए बच्चे को कंधे पर बिठाकर आतिशबाजी दिखाने का प्रयास करता है। मल्लिका के फूल, बाजरे की रोटी, माटी कहे और अस्तित्व लघुकथाएँ कम-से-कम शब्दों में जीवन की गहन पीड़ा की व्याख्या हैं।
'शोध दिशा' लघुकथा को निरंतर बढ़ावा देती रही है। आदरणीय डॉ० गिरिराजशरण अग्रवाल जी ने विगत वर्षों की भाँति लघुकथा को एक सशक्त मंच दिया है। सीमित समय में जैसा संभव था, छोटा-सा प्रयास किया है। जिनकी रचनाएँ इस अंक में शामिल की गई हैं, मैं उन सबका आभारी हूँ। 25 दिसंबर को लघुकथा के वरिष्ठ हस्ताक्षर डॉ० सतीश दुबे का देहावसान सबको व्यथित कर गया। सभी रचनाकारों की ओर से डॉ० दुबे जी को विनम्र श्रद्धांजलि! इस अंक में उनकी लघुकथा 'श्रद्धांजलि' का भी समावेश किया गया।
अनुक्रम
मेढकों के बीच / सुकेश साहनी
हत्यारे/ छाया सक्सेना 'प्रभु'
झूठा अहं / सतीशराज पुष्करणा
कलियाँ गुलाब की / बलराम अग्रवाल
फर्क पड़ेगा / मुरलीधर वैष्णव
रात की परछाइयाँ / मधुदीप
माटी कहे / आभा सिंह
लगा हुआ स्कूल/ अशोक भाटिया
अनमोल खजाना / श्यामसुंदर अग्रवाल
रोबोट / ज्योत्स्ना सिंह
जानवर / सुभाष नीरव
रस्म / अनिता ललित
अनुयायी / राजेश उत्साही
किसान की रोटी /डॉ० उपेंद्रप्रसाद राय
बाबू जी का श्राद्ध/ रेणु चंद्रा माथुर
डिस्चार्ज मार्टिन जॉन
भ्रष्टाचार / कुमार गौरव अजितेंदु
उत्सव / सीमा स्मृति
फेसबुक / जगदीशराय कुलरियाँ
वन महोत्सव /अंकु श्री
ध्यान- पूजा/अनिता मंडा
हरी बिल्ली/डॉ० संध्या तिवारी
बड़ी लूट/प्रभात दुबे
कलयुगी विक्रमादित्य/डॉ० श्यामसखा श्याम
एक और जाल/ डॉ० गोपालबाबू शर्मा
धंधा/ अशोक अंजुम
उपहार/ डॉ० मंजुश्री गुप्ता
अफवाह / प्रेम गुप्ता 'मानी'
कॉक्रोच / भावना सक्सेना
भूत/सीमा सिंह
इतनी दूर/कमल चोपड़ा
करवा चौथ का कडुआ सच / अरुणकुमार गौड़
बाजरे की रोटी/डॉ० पूरनसिंह
नीयत / सोनी धवन
हर शाख पे.../मिथिलेशकुमारी मिश्र
इक्कीसवीं सदी की बेटी / आकांक्षा यादव
मुखौटे/डॉ० भावना कुँअर
बिग बॉस / माधव नागदा
अजनबी जैसे हमसफर/गौतमकुमार सागर
घर/ऋता शेखर 'मधु'
संस्कार/ डॉ० हरीश नवल
बहुवचन का सुख/ संतोष सुपेकर
इनाम या घूस?/महेशचंद्र द्विवेदी
लिहाफ/ डॉ० छवि निगम
दूसरा जल्लाद / रामकुमार आत्रेय
सजा / श्यामसुंदर 'दीप्ति'
दीवार/माला झा
दुनिया का सबसे सुंदर गुलाब/ कमल कपूर
दूरी / राधेश्याम भारतीय
साड़ी / मंजूषा दोषी
कुंभ का मेला / अर्चना चतुर्वेदी
अस्तित्व/बी.एल. आच्छा
कर्ज दार/ डॉ० पूर्णिमा राय
दंगा युग/ डॉ० मीना अग्रवाल
बीमार आदमी / रणजीत टाडा
पापा के मजबूत कंधे /वाणी दवे
खुशबू/सुदर्शन रत्नाकर
मल्लिका के फूल/सुधा गुप्ता
भूख के जींस/ वंदना सहाय
ए०टी०एम०/रोचिका शर्मा
फटी चुन्नी / सत्या शर्मा 'कीर्ति'
अपनी-अपनी सोच / शशि पाघा
भूख / रश्मि तरीका
आदमी के बच्चे / प्रेम जनमेजय
शादी का शगुन / रामनिवास 'मानव'
भूकंप / प्रियंका गुप्ता
किन्नर ही तो था / नीलिमा शर्मा
सूद समेत / दीपक मशाल
बाहर वाला कमरा/ डॉ० शील कौशिक
अप्रत्याशित/ डॉ० नीरज सुधांशु
ब्रेकिंग न्यूज/सविता मिश्रा
नशा / सारिका भूषण
बयार/पवित्रा अग्रवाल
स्वर्ग के एजेंट/डॉ० श्याम बाबू
श्रद्धांजलि / डॉ. सतीश दुबे
मजहब / कृष्णा वर्मा
चक्कर/डॉ० शैल चंद्रा
दस्तूर/ कविता वर्मा
टकराती रेत/सुधा भार्गव
बाबा का चरणामृत/विनोद ध्रब्याल राही
तीन संकल्प / चंद्रेशकुमार छतलानी
अवमूल्यन / विभा रश्मि
फूल / डॉ० पद्मजा शर्मा
लरजते पेड़ / रामकुमार घोटड़
सम्मोहन / रश्मि शर्मा
ऑनलाइन बॉयफ्रेंड / सुधीर मौर्य 'सुधीर'
मुखौटे / रीता गुप्ता
योग्यता/कृष्णकुमार यादव
चूहे / सुधीर द्विवेदी
परंपरा /सुबोध श्रीवास्तव
जबान का रस / शोभना दरबारी
छू लिया/जानकी बिष्ट वाही
एजेण्डा/रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
गहना / माला वर्मा
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