लघुकथा संग्रह 2019/डॉ संध्या तिवारी

(डॉ उमेश महादोषी के सौजन्य से)
लघुकथा संग्रह : अंधेरा उबालना है

कथाकार : संध्या तिवारी

प्रथम संस्करण : 2020

आई.एस.बी.एन.: 978-81-946706-3-6

प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, सी-46, सुदर्शनपुरा इंड. एरिया एक्सटेंशन, नाला रोड, 22 गोदाम, जयपुर-302006

फोन : 0141-2213700/09829018087

ईमेल : bodhiprakashan@gmail.com



अनुक्रमणिका  : 


अंधेरा उबालना है

क्योंकि सबके सच एक नहीं होते

ग्रे शेड

सिलवट

254 रुपए मात्र

अरूप रूप

जुल्मी कौन?

ब्रह्मराक्षस

सम्मोहित

ठुमका

कविता

सीलन 

किसी भी कीमत पर

फांँस

कठिना

ठेंगा

बेताल प्रश्न

सपनों का दरवाजा

उठ पुत्तू पूर... पूर...

उफ्फ़!

थूक 

आधी आबादी

हूटर 

काला फागुन

मैं तो कूता राम का

स्वपरिचय

हूक

लड़कियांँ

पति पत्नी और वह

स्टेचू एन ओवर

आखेट

एनेस्थीसिया

नई सुबह

शर्मिंदा हूंँ

लेकिन मैं शिव कहांँ...

उगता सूरज

जन्म-जन्मांतर

जल्पना

राजा नंगा है

छिन्नमस्ता

साँकल

सावित्री

कौआ हड़उनी

श्मशान वैराग्य

चिड़िया उड़

बोल मेरी मछली कित्ता पानी

अल्प-विराम

मैं तो नाचूँगी गूलर तले

बिना सिर वाली लड़की

और वह मरी नहीं...

चिमटी



संग्रह से एक प्रतिनिधि लघुकथा : 


क्योंकि सबके सच एक नहीं होते...

      ‘‘देखिए, आपके पापा को अल्जाइमर की शुरुआत हो चुकी है। इसे डीमेंसिया भी कहते हैं। मरीज़ अपने रोजमर्रा के कामों में दिक्कत महसूस करता है। शब्द भूल जाता है। उल्टे सीधे कपड़े पहनता है। चीजें इधर-उधर रख देता है। बहुत अधिक सोना या टीवी देखते रहना भी ऐसे मरीज का लक्षण है। दवा मैंने लिख दी है, लेकिन आप इन्हें ज्यादा से ज्यादा एक्टिव रखने की कोशिश कीजिए, इन्हें प्यार दीजिए। वैसे इस बीमारी का अभी कोई विशेष इलाज नहीं है।’’

      धुँधली-गीली आँखों की कोर पोंछकर मैं पापा के साथ कार में गलबहियाँ डाल सटकर बैठ गई। मैंने पापा के कंधे पर अपना सिर टिका दिया। मुझे यों लगा जैसे दुनिया के सारे कंधे मेरे पापा के कंधे में समा गये।

      उनका अक्षर-अक्षर जोड़कर मेरा नाम लेना, मुझे बेटा कहकर मेरा सिर सहलाना, पुलक से भर गया। उस अलौकिक स्नेह से बावरा मेरा मन पुलिनों, विहँसते फूलों, रेतीले कछार की करवटों, काँस की सफ़ेद लहरों के बीच मलयानिल-सा मचल ही रहा था, कि कहीं से दुर्गंधयुक्त हवा का झोंका अन्तरमन में उतर गया-

      कल वह कह रही थी, ‘‘अंकल जी की तबीयत ठीक नहीं लगती। एक बात कहूँ दीदी, आप बुरा न मानना। आप तो जानती ही हो कि हम औरतों को भगवान की ओर से छठी इंद्रिय मिलती है... इस बार अंकलजी ने जब मेरा हाथ पकड़ा तो उनके छूने में बैड टच...’’

      घिन की एक माहुरी लहरिया पूरे अस्तित्व पर तारी हो गई। निमिष भर में पुलिन, कछार, फूल, पुलक सब धरती-डोल की भेंट चढ़ गये। बिजली की तड़पती कौंध के मानिंद मैं पापा से छिटककर कार के कोने में सिमट गई।

      बेजुबान पापा मुझे निरीह आँखों से देख रहे थे और मैं कार के बाहर। कार के शीशों पर पड़ती बादलों की छाईं और घाम-सा मन संदेह और श्रद्धा की आँख-मिचौनी खेल रहा था। अचानक पापा ने हाथ बढ़ाकर मेरा चेहरा और सिर सहलाकर माथा चूमा। लगा, जैसे- उन्होंने मेरा मन मस्तिष्क पढ़ लिया हो और अपने वात्सल्य रस पगे स्पर्श से सारे का सारा संदेह रगड़-रगड़ कर धो डाला हो।

      मैं उनकी आँखों में टुकुर-टुकुर देखती सोच रही थी कि सबके सच एक से नहीं होते।



डॉ. संध्या तिवारी

जन्मतिथि : 15 अक्टूबर 1970।

उपलब्धियाँ : कविता, रेखाचित्र, संस्मरण, रिपोर्ताज, कहानी एवं लघुकथा विधाओं में सृजन। दो लघुकथा संग्रह तथा एक भावनात्मक-संस्मरणात्मक रचनाओं का संग्रह प्रकाशित। विभिन्न विधाओं का एक मिश्रित संकलन संपादित। हिन्दी की अनेक प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं एवं वेब पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन एवं आकाशवाणी के बरेली केन्द्र से रचनाओं का प्रसारण। 

सम्प्राप्ति : युवा लघुकथाकारों को देय दिशा प्रकाशन के ‘युवा दिशा सम्मान’ से सम्मानित। उ.प्र. के माननीय राज्यपाल के कर-कमलों द्वारा ‘ततः किम्’ नघुकथा संग्रह का लोकार्पण।

संपर्क : 41, बेनी चौधरी, पीलीभीत-262001, उ.प्र.

मो. 09410464495

ईमेल : sandhyat70@gmail.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वसुधा करे पुकार / कपिल शास्त्री (संपादक)

लघुकथा ट्रेवल्स / प्रबोध कुमार गोविल (संपादक)

क्षितिज/सतीश राठी-दीपक गिरकर