लघुकथा-आलोचना-2021/डॉ. उमेश महादोषी (सं.)

ग्रंथ का नाम  : मधुदीप:लघुकथा-सृजन के विविध आयाम

संपादक  : डॉ. उमेश महादोषी 

ISBN: 978-93-84713-66-9

प्रकाशक : दिशा प्रकाशन, 138/16, त्रिनगर,

दिल्ली-110035

प्रथम संस्करण : 2022 

कुल पृष्ठ संख्या : 728

मूल्य : एक हजार रुपये मात्र 

आवरण : बलराम अग्रवाल

क्रम

'लघुकथा की निरन्तरता का पथ वाया मधुदीप (सम्पादकीय) : डॉ. उमेश महादोषी 

परिचय मधुदीप 

खण्ड-1

1. वैचारिक संस्पर्श और प्रयोगशीलता की जुगलबन्दी / प्रो. बी. एल. आच्छा

2. मधुदीप की सार्वकालिक लघुकथाएँ / 

डॉ. पुरुषोत्तम दुबे

3. नए-नए प्रयोगों से सौन्दर्य ग्रहण करती लघुकथाएँ / डॉ. ध्रुवकुमार

4. अपने पात्रों के साथ कदमताल करते मधुदीप /  डॉ. जितेन्द्र 'जीतू'

5. अस्तित्वहीन के अस्तित्व की चिन्ता / 

डॉ. खेमकरण 'सोमन'

खण्ड - 2

1. जिन्दगीभर हारता इन्सान और जीतने की जिद

/ डॉ. बलराम अग्रवाल

2. जीवन में सोद्देश्यता खोजने और पाने का प्रखर प्रयास 'समय का पहिया...' / रवि प्रभाकर

खण्ड-3

1. मेरी चुनिन्दा लघुकथाएँ (मधुदीप) : एक अनुशीलन / रजनीश दीक्षित

2. मधुदीप और उनकी चुनिन्दा लघुकथाओं का सम्यक् विश्लेषण / चित्रा राणा राघव

खण्ड-4

1. मधुदीप की लघुकथाओं में प्रयोगधर्मी प्रवृत्तियाँ

/ डॉ. उमेश महादोषी

 2. मधुदीप की लघुकथाओं में दार्शनिकताबोध /डॉ. पुरुषोत्तम दुबे  

3. मधुदीप की लघुकथाओं में सूत्रधार की भूमिका / डॉ. अनीता राकेश 

4. मधुदीप की सुशिल्पित लघुकथाएँ / 

डॉ. ध्रुवकुमार

5. समकालीन यथार्थ के सजग रचनाकार मधुदीप/

सूर्यकान्त नागर 

6. मधुदीप का रचना- संसार /  डॉ. सतीश दुबे

7. अभावों के टीसते घाव यानी मधुदीप का रचना-संसार / भगीरथ

8. रूढ़ियों को तोड़ती लघुकथा /  डॉ. जितेन्द्र 'जीतू'

9. मधुदीपजी की लघुकथाओं का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण (पाठकों से संवाद करती लघुकथा) /  डॉ. लता अग्रवाल

10. मधुदीप की लघुकथाओं के पात्रों में द्वन्द्व 

और अन्तर्द्वन्द्व / डॉ. शोभा जैन 

11. मधुदीप की लघुकथाओं में बुजुर्ग-विमर्श / 

डॉ. शील कौशिक

12. राष्ट्रीय चेतना के स्वर को मुखरता से अभिव्यंजित करतीं लघुकथाएँ / रवि प्रभाकर

13. मानवमूल्यों के प्रति संचेतना जागृत करते

मधुदीप की लघुकथाओं के पात्र / सविता इन्द्र गुप्ता

14. मधुदीप की लघुकथाओं में निम्न और

निम्न-मध्यमवर्ग विमर्श / अनुराग शर्मा 'सेतु'

15. मधुदीप की लघुकथाओं में स्त्री-विमर्श / 

डॉ. सन्ध्या तिवारी  

16. मधुदीप की लघुकथाओं में मानवीय संवेदना /   शशि बंसल गोयल     

17. मधुदीप की लघुकथाओं में राजनीतिक विमर्श /  ज्योत्स्ना कपिल   

18. मधुदीप की लघुकथाओं के प्राण हैं 'बिम्ब व प्रतीक विधान' / दिव्या शर्मा

19. मधुदीप के सम्पादकीयों के माध्यम से

लघुकथा की बात / कल्पना भट्ट

20. मधुदीप का लघुकथा संसार विचार और मूल्यांकन / सबीना खान

21. मेरी लघुकथा - यात्रा / मधुदीप 

खण्ड-5

1. हिरणी नहीं शेरनी है नमिता सिंह / योगराज प्रभाकर

2. मधुदीप का स्वप्न साकार करती हुई नमिता सिंह / प्रो. रूप देवगुण

3. मूँछोंवाली नमिता सिंह / मधुकान्त

4. नमिता सिंह उर्फ नूरानी चेहरा / कुमार नरेन्द्र

5. श्रेष्ठता की सीमा तक पहुँचा चरित्र नमिता सिंह/विभारानी श्रीवास्तव

6. आज के युग की आधुनिका नमिता सिंह / अनघा जोगलेकर

7. नमिता सिंह के बहाने नारी-विमर्श / कपिल शास्त्री

खण्ड-6

1. लघुता में अर्थवत्ता की जमीन तलाशती कृति : 

लघुकथा के समीक्षा -बिन्दु / डॉ. शोभा जैन

2. लघुकथा के समीक्षा-बिन्दु एक महत्वपूर्ण कृति/शराफत अली खान

3. लघुकथा के समीक्षा -बिन्दु लघुकथा की समीक्षा से पूर्व एक अनिवार्य पुस्तक / ज्योत्स्ना कपिल

4. अनेक रंगों से सघन होता 'समीक्षा-बिन्दु' : लघुकथा के समीक्षा बिन्दु / सन्तोष सुपेकर

5. लघुकथा की समीक्षा का बिन्दुवार विश्लेषण व मापदण्डों पर विचार करती मार्गदर्शिका : लघुकथा के समीक्षा-बिन्दु / डॉ. कुमारसम्भव जोशी

6. अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग / मधुदीप

खण्ड-7

1. लघुकथा की विशिष्ट श्रृंखला

'पड़ाव और पड़ताल' : एक विश्लेषण 2. लघुकथा की एक महत्त्वपूर्ण श्रृंखला ‘पड़ाव और पड़ताल' के इकत्तीस खण्ड

खण्ड-8

सृजनपक्ष : मधुदीप की 71 चयनित लघुकथाएँ

1. हिस्से का दूध

2. तनी हुई मुट्ठियाँ

3. शासन

4. अस्तित्वहीन नहीं

5. नियति

6. नरभक्षी

7. ऐसे

8. भय

9. ऐलान-ए-बगावत

10. अबाउट टर्न

11. अवाक्

12. आधी सदी के बाद भी

13. ऑल आउट

14. उनकी अपनी जिन्दगी

15. उसके बाद...

16. एकतन्त्र

17. किस्सा इतना ही है

18. चिड़िया की आँख कहीं और थी

19. चैटकथा

20. छोटा, बहुत छोटा

21. टोपी

22. ठक-ठक... ठक-ठक

23. तुम इतना चुप क्यों हो दोस्त! 

24. तुम तो सड़कों पर नहीं थे

25. दौड़

26. पिंजरे में टाइगर

27. मजहब

28. महानगर का प्रेम-संवाद

29. मुआवजा

30. मुक्ति

31. मेड इन चायना

32. मेरा बयान

33. राजनीति

34. रात की परछाइयाँ 

35. वजूद की तलाश

36. विषपायी

37. सन्नाटों का प्रकाशपर्व

38. समय का पहिया घूम रहा है

39. साठ या सत्तर से नहीं

40. हड़कम्प

41. हाँ, मैं जीतना चाहता हूँ 

42. उजबक की कदमताल

43. जनपथ का चौराहा

44. तुम बहरे क्यों हो गए हो

45. धर्म

46. पागल

47. महानायक

48. संन्यास

49. हेकड़

50. नमिता सिंह

51. लौटा हुआ अतीत

52. वानप्रस्थ 

53. लौहद्वार

54. जागृति

55. अजन्मा लोकतन्त्र

56. टीस

57. हथियार

58. हथौड़ा

59. अन्तरात्मा

60. नजदीक, बहुत नजदीक

61. निदान

62. योद्धा पराजित नहीं होते।

63. निश्चय

64. पत्नी मुस्करा रही है

65. माया-मोह

66. अभी कुछ तो बाकी है

67. आलू के दाम

68. डायरी का एक पन्ना

69. पुत्रमोह

70. प्रेमी, पति और बीसवीं सदी का मर्द

71. बिना सिर का धड़

उपरोक्त संचयन से मधुदीप की दो सार्वकालिक लघुकथाएँ

।।एक।।

हिस्से का दूध

उनींदी आँखों को मलती हुई वह अपने पति के करीब आकर बैठ गई। वह दीवार का सहारा लिए बीड़ी के कश ले रहा था ।

“सो गया मुन्ना... ?”

“जी! लो दूध पी लो।” सिल्वर* का पुराना गिलास उसने बढ़ाया।

“नहीं, मुन्ना के लिए रख दो । उठेगा तो... ।” वह गिलास को माप रहा था। 

“मैं उसे अपना दूध पिला दूँगी ।" वह आश्वस्त थी।

“पगली, बीड़ी के ऊपर चाय- दूध नहीं पीते । तू पी ले।” उसने बहाना बनाकर दूध को उसके और करीब कर दिया । 

तभी बाहर से हवा के साथ एक स्वर उसके कानों से टकराया। 

उसकी आँखें कुर्ते की खाली जेब में घुस गईं ।

“सुनो, जरा चाय रख देना।"

पत्नी से कहते हुए उसका गला बैठ गया । •

(*अनपढ़ लोगों के बीच एल्युमीनियम के बर्तनों को सिल्वर का बर्तन कहा जाता था।)

।।दो।।

अस्तित्वहीन नहीं

उस रात कड़ाके की सर्दी थी। सड़क के दोनों ओर की बत्तियों के आसपास कोहरा पसर गया था।

रोज-क्लब के निकास द्वार को पाँव से धकेलते हुए वह लड़खड़ाता हुआ बाहर निकला। झट दोनों हाथ गर्म पतलून की जेबों के अस्तर छूने लगे।

बरामदे में रिक्शा खड़ी थी। उसकी डबल सीट पर पतली-सी चादर मुँह तक ढाँपे, चालक गठरी-सा बना लेटा था। घुटने पेट में घुसे थे। रिक्शा देखकर उसका चेहरा चमक उठा।

“खारी बावली चलेगा..." वह रिक्शावाले के समीप पहुँचा। 

उधर से चुप्पी रही ।

“चल, दो रुपए दे देंगे।” युवक ने उसके अन्तस् को कुरेदा । 

“दो रुपैया से जियादा आराम की जरूरत है हमका।”

“साले! पेट भर गया लगता है... ।” नशे में बुदबुदाता हुआ जैसे वह युवक आगे बढ़ा...

...तड़ाकऽऽऽ... रिक्शावाले का भारी हाथ उसके गाल पर पड़ा। क्षणभर को युवक का नशा हिरन हो गया। वह अवाक्-सा खड़ा उसके मुँह की ओर देख रहा था।

रिक्शावाला छाती फुलाए उसके सामने खड़ा था। •

डॉ. उमेश महादोषी


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