लघुकथा-संग्रह-2021/अशोक लव
कथाकार : अशोक लव
प्रकाशन वर्ष : 1991/2021
पुन: प्रकाशन : योगराज प्रभाकर
53, 'उषा विला', रॉयल एनक्लेव एक्सटेंशन, डीलवाल, पटियाला 147002 (पंजाब)
चलभाष: 98725-68228
द्वितीय संस्करण के प्रकाशक :
देवशीला पब्लिकेशन
पटियाला- 147001 (पंजाब)
चलभाष: 98769-30229
Email: corellover@gmail.com
अनुक्रमणिका
मेरी बात मेरी बात (द्वितीय संस्करण)
लघुकथा के अनुपम शिल्पी : अशोक लव
दो शब्द
लघुकथाएँ
1. अपना घर
2. अपने-अपने सुख
3. अविश्वास
4. आग
5. उज्ज्वल भविष्य
6. उपदेश
7. एक हरिश्चंद्र और
8. एक ही थैली के चट्टे-बट्टे
9. कफ़नचोर
10. कर्फ्यू
11. कृष्ण की वापसी
12. गालियों की सार्थकता
13. घंटियाँ
14. चमेली की चाय
15. चेहरों के भीतर
16. छोटा भाई
17. जन सेवा
18, ठहाके
19. डरपोक
20. दरार
21. दलाल
22. दुम
23. धंधा
24. नई चेतना
25. नई दुकान
26. नए रास्ते
27. नया साक्षात्कार
28. नानी का घर
29. निखट्टू
30. पंडित की कथा
31. परिवर्तन
32. पहाड़ और जिंदगी
33. पादरी की बेटी
34. पार्टी
35. प्यार और इंतज़ार
36 प्रतिशोध
37. प्रेतों को चिंता
38. बलिदान
39. बहसें जारी हैं
40. बाप
41. बौने बनते हुए
42. भूख
43. मछुआरे का जाल
44. माँजी
45. मूल्यों के लिए
46. मृगतृष्णा
47. मृत्यु की आहट
48. मोड़
49. राजा साहब की बख्शीश
50. रामौतार की गाय
51 रिसते घावों का दर्द
52. रोटी का सपना
53 लुटेरे
54. विवशताएँ
55. वृक्ष ऊँचे रहेंगे
56. व्यापार
57. शालीनता की प्रतिमा
58. षड्यन्त्र
59. संस्कार
60. सलाम दिल्ली
61. सामनेवाला कमरा
62. स्वामी कमलानंद
63. हार या जीत
64. हिसाब किताब
सम्मतियाँ
सलाम दिल्ली: कमल चोपड़ा
सलाम दिल्ली: विक्रम सोनी
सलाम दिल्ली: सतीश राठी
अशोक लव द्वारा लिखित पहले संस्करण की भूमिका 'मेरी बात' से कुछ अंश :
साहित्य की धारा निरंतर प्रवाहित रहती है। समय-समय पर जन्म लेती विधाएँ इसके प्रवाह को गति देती हैं। इसके रूप को और भव्य बनाती हैं। देश की स्वतन्त्रता के पश्चात् साहित्य-धारा को नया रूप प्रदान करने के लिए लघुकथा विधा विशिष्ट रूप लेकर उभरी है। वर्ष सैंतालीस में देश स्वतंत्र हुआ। एक पीढ़ी ने स्वयं को होम कर स्वतंत्रता-यज्ञ को पूर्णाहुति दी। दूसरा महायज्ञ आरंभ हुआ-राष्ट्र को नव रूप प्रदान करने का। वर्ष सैतालीस और उसके आसपास जन्मी पीढ़ी ने आँखें खोली तो उसके समक्ष एक इतिहास था देश को स्वतंत्र करानेवाली पीढ़ी के बलिदान का। उसके समक्ष एक वर्तमान था- देश को नोच-नोचकर सभी सुख सुविधाओं को अपनी-अपनी चारदीवारियों में समेटने का प्रयास करनेवालों का। इस पीढ़ी ने जब क़लम उठाई तो उसने दूसरे महायज्ञ को दूषित करनेवालों के भ्रष्ट चेहरों को साहित्य के पृष्ठों पर अनावृत्त कर दिया। इस तरह एक नई विधा जन्मी। पनपी। यह थी लघुकथा ।
लघुकथा आज के जीवन की माँग है। भागमभाग भरे जीवन में आम पाठक इसके द्वारा पूर्ण साहित्यिक रसास्वादन कर लेता है। इसलिए लघुकथाएँ अत्यंत लोकप्रिय हैं। लघुकथा की विषय-वस्तु का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है। जीवन से संबद्ध सभी पक्षों की बात कहने की इसमें क्षमता है। जीवन के संवेदनात्मक पक्षों को छूकर यह मर्मस्पर्शी बन जाती है। व्यंग्य की धार से व्यक्तियों, कुरीतियों, व्यवस्थाओं-सभी पर तीखे प्रहार करती है। कम शब्दों में इसकी सामर्थ्य-शक्ति अद्वितीय है। यही लघुकथा विधा की विशेषता है। यह ऐसी सशक्त विधा है जो लघु आकार की होने पर भी अपना कथ्य और अभीष्ट प्रभावपूर्ण ढंग से संप्रेषित कर देती है।
दूसरे संस्करण की बाबत योगराज प्रभाकर की ओर से दो शब्द :
'सलाम दिल्ली' रवि प्रभाकर जी की प्रिय लघुकथाओं में से एक थी। वे इस लघुकथा से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने कहा था कि इस रचना पर एक विस्तृत शोधात्मक आलेख लिखेंगे। इसी उद्देश्य से उन्होंने श्री अशोक लव जी से 'सलाम दिल्ली' की प्रति मँगवाई थी। अशोक लव जी के पास केवल रिकॉर्ड हेतु रखीं केवल पाँच प्रतियाँ ही शेष थीं जो लगभग तीन दशकों से उन्होंने सँभालकर रखीं हुई थीं। यह बात रवि भाई ने ही मुझे बताई थी। तब मैंने ही उन्हें सलाह दी थी कि आप धन्यवादस्वरूप इस पुस्तक का दूसरा संस्करण अपने 'देवशीला पब्लिकेशन' से प्रकाशित करें। इससे आज की पीढ़ी को भी पुराने शिल्पियों की रचनाएँ पढ़ने का अवसर प्राप्त होगा।
इस संकलन की, 'सलाम दिल्ली', 'रामौतार की गाय', 'चमेली चाय', 'घंटियाँ', 'मृत्यु की आहट', 'गालियों की सार्थकता' आदि लघुकथाएँ शिल्प और शैली की दृष्टि से कालजयी बन पड़ी है। किंतु 'राजा साहब की बख़्शीश' और 'बाप', विषय के दृष्टिकोण से एक अति विशिष्ट कृतियाँ हैं, जिनमें कथानक की 'आउट ऑफ़ दि बॉक्स' ट्रीटमेंट देखते ही बनती है।
'सलाम दिल्ली' का दूसरा संस्करण स्मृतिशेष रवि प्रभाकर जी को समर्पित है, जो इसके प्रकाशन को लेकर बेहद उत्साहित थे।स्वतन्त्रता दिवस, वर्ष 2021 योगराज प्रभाकर
संपादक: 'लघुकथा कलश'
संग्रह से एक लघुकथा 'नानी का घर' :
संजीव पिछले पंद्रह दिनों से लापरवाह हो गया था। न कभी गृहकार्य करके लाता, न ढंग से कपड़े पहनकर आता। कभी कमीज़ के बटन टूटे हैं तो कभी बेल्ट ही नहीं बाँधी। कभी मोज़े पहनकर नहीं आया तो कभी पाठ्य-पुस्तकें ही घर छोड़ आया। अध्यापिका उसके इन परिवर्तनों से परेशान हो गई। उस दिन बुलाकर पूछ ही लिया, "संजीव! तुम गृह कार्य करके क्यों नहीं लाते?”
"मैडम! कोई कराता ही नहीं।”
"मम्मी-पापा क्या करते रहते हैं?”
“पापा तो दफ़्तर से देर में आते हैं। मम्मी नानी के घर चली गई हैं।"
“कब आएँगी?”
“दादी कहती हैं, तेरी मम्मी बहुत गंदी है। अब उसको कभी नहीं लाएँगे।”
“क्यों? क्या दादी से झगड़ा हो गया था?"
“हाँ! उस दिन मम्मी सबके कपड़े धो रही थीं। जब सारे कपड़े धो लिए तो दादी ने अपने कपड़े धोने के लिए रख दिए। मम्मी ने कहा, वह थक गई हैं। कल धो देंगी। दादी ने मम्मी के सिर पर ईंट मार दी। बहुत ख़ून बहा था। तब मम्मी ने कहा था कि वह कभी इस घर में नहीं आएगी। वे नानी के घर चली गई हैं।"
“तुम दादी से कहो, मम्मी को ले आएँ।”
“मैं तो रोज़ाना कहता हूँ। पर दादी डाँट देती हैं। कहती हैं, मम्मी का नाम मत लिया कर। मैडम! आपको पता है मेरी नानी के घर कौन-सी बस जाती है? मैं जाकर मम्मी को ले आऊँगा।” कहते-कहते उसकी आँखों से झर-झर अश्रु बहने लगे। अध्यापिका ने बढ़कर उसे गले लगा लिया।
डॉ. अशोक लव
वरिष्ठ साहित्यकार अशोक लव की साहित्यिक शैक्षिक लगभग 150 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और सौ से अधिक पुस्तकों में उनकी रचनाएँ संकलित हैं। 'शिखरों से आगे' उपन्यास और उनके साहित्य पर पीएच.डी. और एम. फिल. हुई हैं। उनकी चर्चित पुस्तकें हैं--'लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान', 'सलाम दिल्ली', 'पत्थरों से बँधे पंख', 'हिंदी के प्रतिनिधि साहित्यकारों से साक्षात्कार', 'सर्वजन हिताय श्रीमद्भागवदगीता’, ‘खिड़कियों पर टँगे लोग' आदि। उन्हें 'विद्यासागर', 'विद्यावाचस्पति', 'साहित्यलंकार' उपाधियों से अलंकृत किया गया है। उन्हें 70 से अधिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। प्रमुख सम्मान हैं-- 'कबीर सम्मान', 'भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान', 'सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान', गौरव सम्मान', 'याज्ञवल्क्य पत्रकारिता सम्मान', 'डॉ. विजयेंद्र स्मृति सम्मान' आदि। वे सर्वभाषा ट्रस्ट और अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति अमेरिका (दिल्ली-एन.सी. आर) के अध्यक्ष हैं।
संपर्क : 363, सूर्य अपार्टमेन्ट सेक्टर-6, द्वारका, नई दिल्ली- 110075
चलभाष: +91-8920608821
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें