लघुकथा-संग्रह-2021 / कनक हरलालका
कथाकार : कनक हरलालका
ISBN: 978-93-84713-67-6
मूल्य : तीन सौ रुपये
© : लेखिका
प्रथम संस्करण : 2021
प्रकाशक : दिशा प्रकाशन, 138 / 16, त्रिनगर, दिल्ली- 110035
'प्रिय पाठको!' शीर्षक से कनक जी द्वारा लिखित भूमिका के अंश :
जब व्यक्ति व समाज की विसंगतियों से भरी कोई समस्या हृदय पर आघात कर उसका समाधान खोजने के लिए विवश कर देती है तो कलम स्वतः ही अपने उद्गार प्रकट करने के लिए विवश हो उठती है।
'आवरण में छिपी मनुष्य की कलुषित मानसिकता', 'प्राचीन काल से चली आ रही नारी-विमर्श की पीड़ा', 'आर्थिक वैमनस्य की आड़ में विभाजित मानव जाति', 'राजनैतिक क्षेत्र में व्याप्त कालिमा', 'बड़े सपनों की आड़ में सिसकता बालमन'–समाज में चारों तरफ तेजी से पनपती हुई इन विसंगतियों के कारण जब मन बेचैन हो उठा, तब वर्तमान समय में विचाराभिव्यक्ति के सबसे सशक्त माध्यम (विधा) लघुकथा पर मेरी नजर पड़ी। तब स्पष्ट हुआ कि साहित्य का सबसे बड़ा उद्देश्य इन परिस्थितियों के प्रति समाज को जाग्रत कर उसकी चेतना का विकास करना है। किसी ने कहा है :
“आओ साथियो!
आसमान को सेंध लगाएँ!
और खुदा का बहिश्त
रस्सियों से बाँधकर
धरती पर लाएँ!"
लघुकथारूपी रस्सियों से आसमान को बाँधकर जमीन पर लाने का यह मेरा एक प्रयासमात्र है। फिर चाहे वह विदेश में बसने की ख्वाहिश में बिना जाँच-पड़ताल किए लड़कियों का विवाह विदेश में बसे वर के साथ करना हो या जचगी में अस्पताल के बेड पर लेटी साबितरी का पति और पुत्र के लिए अपना स्वाथ्यवर्धक आहार देना, ऑटोरिक्शावाले की पुत्रवियोग की घुटन हो या फिर मन्दिर के भेड़ियों द्वारा गरीब किसान की लड़की का भोग। साथ ही इन सब बन्दिशों से समाज को मुक्त करती रस्सियों की सीढ़ियाँ बनाकर आकाशतक पहुँचने की ख्वाहिश लिए एक नन्हा बच्चा जिसने इन्द्रधनुष के सतरंगी रंग अपने गुलाब में उतार लिए हैं।
विसंगतियाँ मुझे हमेशा से व्यथित करती रही हैं, इसीलिए मैंने विभिन्न विषयों को अपनी लघुकथाओं का माध्यम बनाया है। धरती के प्राय: सभी रंगो को मैंने इन लघुकथाओं में उतारने की कोशिश की है।
मैं लघुकथा के सभी वरिष्ठ लघुकथाकारों की हृदय से आभारी हूँ जिनकी लघुकथाओं के निरन्तर पठन से मैं लघुकथा की गहराइयों व सामर्थ्य से परिचित हुई।
अनुक्रम
1. प्यास
2. जानवर
3. घुटन
4. भीड़
5. जंगली
6. बन्द ताले
7. भूख
8. सुख
9. एकलव्य
10. राह
11. दो घण्टे का राजा
12. कूड़ा-करकट
13. बेताल का ताल
14. गांधी को किसने मारा
15. बन्धुआ
16. बन्धनमुक्ति
17. वयसन्धि
18. जीवन का सत्य
19. रंगीन मौसम
20. प्रतिदान
21. अनकही
22. कीचड़
23. कठपुतलियाँ
24. वापसी
25. धड़कनों का सफर
26. चित्र प्रतियोगिता
27. गरीब
28. दरकन
29. कामचोर
30. अलग-अलग जाड़ा
31. बोन्साई
32. चलो पार्टी चलें
33. चौकीदार
34. ख्वाहिशें
35. खुला आकाश
36. मौसम
37. बालकनी
38. सगाई की अंगूठी
39. जरूरी सामान
40. ऑक्सीजन
41. लॉकर
42. पुनर्जीवी
43. बदलते सुर
44. निशानदेही
45. स्वतन्त्रता दिवस
46. असूर्यम्पश्या
47. रफ कॉपी
48. प्राण-प्रतिष्ठा
49. शहादत
50. सड़क और पुल
51. अनुदान
52. प्रस्फुटन
53. समय सीमा
54. प्रतिफलन
55. रोशनी
56. गहरे पानी पैठ
57. गीतांजलि
58. नक्शे कदम
59. खो गई छाँव
60. क्लासिक
61. गुणवत्ता
62. अन्दर... बाहर...
63. दोषी कौन
64. बरसती आँखें
65. मिट्टी
66. कैरियर
67. कैक्टस के फूल
68. नया इन्कलाब
69. दुर्गा अष्टमी
70. जीवनस्रोत
71. बड़ा कौन
72. चुटकीभर सिन्दूर
73. खबर
74. आवरण
75. अधूरा सच
76. अस्तित्व
77. जनानी जात
78. छुट्टियाँ
79. गूँज
80. परिवर्तन
81. उड़ान
82. आँचल
83. ठण्डी हवा का झोंका
84. इनसोर
85. जीवनशक्ति
86. उन्होंने कहा था
87. भेड़िया आया
संग्रह से एक लघुकथा 'इनसोर'
वह सुबह से काम में लगा था मगर उसका मन अस्थिर था। कान फैक्ट्री की छुट्टी की घण्टी पर लगे थे। कब छुट्टी की घण्टी बजे, कब वह अपनी मजदूरी लेकर घर जाए। घर की परेशानियाँ काम पर भी उसके साथ-साथ थीं। पत्नी की तबीयत ठीक नहीं थी, बेटी का बुखार उतरने का नाम नहीं ले रहा था। और बेटे की स्कूल की फीस देनी थी। ऊपर से माँ- बापू का बुढ़ापा...। आज झुग्गी का मालिक भी भाड़ा न देने पर धमकी दे गया था। आज तो यह हालत थी कि मजदूरी के पैसे मिलें तो पेट की आग बुझे। फैक्ट्री का बँधा मजदूर होने से क्या होता है, रोज की पगार तो दिहाड़ी की तरह रोज ही मिलती थी। घण्टी बजने पर लाइन में लगकर उसने इन्हीं परेशानियों के साथ अँगूठा लगाकर जब पैसे लिए तो देखा कि पैसे कम थे।
उसकी प्रश्नवाचक निगाहों के जवाब में मैनेजर साहब ने कहा, "हाँ-हाँ, आज से पैसे कम मिलेंगे । कम्पनी के बड़े साहब ने मजदूरों का इनश्योरेंस करवा दिया है। कभी हाथ कटवा लेते हो, कभी पाँव तोड़ लेते हो । कम्पनी कितनी भी सहायता कर ले मगर फिर भी तुम लोगों को तकलीफ में रुपयों की जरूरत तो पड़ती ही है। इसीलिए अब से तुम्हारे रुपये थोड़े-थोड़े कटकर जमा होते रहेंगे।"
"साहब इनसोर का रुपया तो मरने पर मिलता है, तब तक की तकलीफ...! "
“अबे, मरने पर तो एक साथ रुपये मिल जाएँगे ताकि पीछे परिवार को तकलीफ न हो...।" साहब ने हँसते हुए कहा ।
"साहब... भूख से मरने पर भी इनसोर का रुपिया मिलेगा क्या...?"
"अरे चल चल... भूख से मरने पर कोई रुपया नहीं मिलता। यह तो तुम लोगों का रोज का मरना है। इस तरह तो कम्पनी का दिवाला ही निकाल दोगे तुम लोग...। चलो हटो... दूसरे लोग भी लाइन में हैं... नेक्स्ट... "
कनक हरलालका
जन्मतिथि : 15 अगस्त 1955
जन्मस्थान : कोलकाता (पश्चिम बंगाल)
शिक्षा : स्नातकोत्तर हिन्दी श्री शिक्षायतन कॉलेज, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)
प्रकाशित साहित्य : कई पत्र-पत्रिकाओं में यथा पड़ाव और पड़ताल खण्ड- 29, 30, 32, 33, परिन्दों के दरमियाँ, कारवाँ, काफिला, लघुकथा कलश भाग-1, भाग- 2 भाग-3, भाग - 4, भाग - 5, अविराम साहित्यिकी, अट्टहास, आधुनिक साहित्य, ऊषा ज्योति, क्षितिज, दृष्टि, किस्सा कोताह आदि में लघुकथाएँ प्रकाशित। सम्पादित लघुकथा - संकलन 'सफर संवेदनाओं का' में, साँझा - संग्रह बालमन की लघुकथा, किन्नर समाज की लघुकथा, दलित सन्दर्भ की लघुकथाएँ, पुरुस्कृत कथा संग्रह स्वाभिमान में प्रकाशन । कलम की कसौटी में द्वितीय पुरस्कार।
सम्प्रति : पठन पाठन एवं स्वतन्त्र लेखन । सम्प्राप्ति : पाठकों का प्यार
सम्पर्क : हरलालका बिल्डिंग, एच. एन. रोड, धूबरी- 783301 (असम) मो. : 9706265667
E-Mail : harlalkakanak@gmail.com
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