अस्तित्व की यात्रा-2021/कान्ता रॉय
कथाकार : कान्ता रॉय
प्रकाशन वर्ष : 2021
ISBN: 978-81-936996-4-5
अपना प्रकाशन
21 / c सुभाष कॉलोनी नियर हाई टेंशन लाइन, गोविंदपुरा, भोपाल-462023
फोन : 9575465147
ई-मेल- roy.kanta69@gmail.com
अनुक्रमणिका
पुरोवाक् : अशोक भाटिया
अस्तित्व की यात्रा : डॉ. मोहन तिवारी 'आनन्द'
उद्देश्यपूर्ण अस्तित्व की यात्रा : मालती बसंत
अनुभव और अनुभूतियों से उपजी... / घनश्याम श्याम मैथिल 'अमृत'
लघुकथा संग्रह: अस्तित्व की यात्रा / सुभाष चंद्र लखेड़ा
लेखन के ये समस्त पुष्प पाठकों को अर्पित / कान्ता रॉय
लघुकथाएँ
सावन की झड़ी
कतरे हुए पंख
जमात
विभाजित सत्य
खटर-पटर
स्वभाववश
श्रम की कीमत
जीने के लिए
ओवरटेक
प्रबंधन गुरु
साख बच गई
तलब
परिमल तुम कहाँ गए
अहल्या का सौंदर्य
कमलिनी
'मेड' इन इंडिया
अटाले का प्रबंध
मिथ्याचार
बदनीयत
पैलेस ऑन व्हील
व्यक्तित्वहीन माँ
तनाव
जंगली फूल
कच्ची उम्र की....
संघर्ष की विरासत
रुढ़ियाँ
उलझे हुए लोग
मौलिक पहचान
विचार और भावना
भिखारी
इंजीनियर बबुआ
सफेदी का सौभाग्य
शगुनिया कौआ
सम्बंध
अस्तित्व की यात्रा
करम के ठाठ
कृत्य
धनुष का सामर्थ्य
अनियंत्रित गतिरोधक
डोनर चाहिए
असफल प्रयोग का बाजार
रौशनियों की प्रवंचना
आहूति
ग्रास
केंचुल
'सह' से 'योग'
तीसरा चित्र
लालसा की चोरी
विलासिता
नशे की बंदगी
चेतना
अभागा
तालियाँ
दोष - परिचय
आबदाना
मेरे हिस्से का चाँद
सिंड्रेला
बाढ़
रंडी
चीटियाँ
पगहा
अभागा रतन
भय
व्यक्तित्व का विकास
परवरिश
मन पर सीकर ( शुभविवाह - 1 )
जिंदगी की तलब (शुभविवाह - 2 )
प्यार और शादी (शुभविवाह - 3 )
कलाबाजियाँ
वादा
प्रकाश के मुहाने पर
सुगनी
परफॉरमेंस
लाचार आँखें
विचार विनियोजन
अक्स की सफेद धुँध
माँ की नजर
व्रती
बुड्ढा जिन्दा रहेगा
चेहरा
बैक ग्राउंड
विलुतप्ता
सुरंग
कागज का गाँव
अनपेक्षित
हड्डी
संग्रह से एक लघुकथा 'विभाजित सत्य'
बिकी हुई स्त्री का करुण विलाप सुन बिकी हुई जमीन विह्वल हो उठी। उसने स्त्री से स्नेह जताते हुए कहा, "मैं तुम्हारे दु:ख को समझ सकती हूँ।"
"नहीं, तुम नहीं समझ सकती।" स्त्री जमीन की ओर देख जोर से फफक फफक कर रो पड़ी ।
जमीन चुप कराने की कोशिश करते हुए उसे पुचकारते हुए बोली, "देखो... तुम्हारी तरह मैं भी अभी-अभी बेची गई हूँ। आज से मेरा मालिक भी बदल गया है। तुम्हारा और मेरा दुःख एक समान है। " आँसुओं में डूबी स्त्री ने जमीन को नजर भर कर फिर से देखा और कहा, "काश... मैं जमीन होती।"
जमीन ने अपने मालिकों को याद करते हुए कहा, “तुम और मैं दोनों ही आदम के लिए मात्र उपभोग की वस्तु हैं। हम जमीन हों या स्त्री, कोई फर्क नहीं पड़ता।"
"बहुत फर्क है स्त्री और जमीन में।" स्त्री ने जवाब दिया।
"कैसा फर्क... बताओ तो?" रोती हुई स्त्री अब उसकी बातों में अचानक चुप हो गई थी। यह देख जमीन ने उसे बातों में लगाया।
"जमीन बिकने के बाद भी अपना स्वभाव और स्थान नहीं बदलती है। जमीन का मालिक जमीन के उपभोग करने उसकी सेवा करता रहता है, लेकिन स्त्री को अपने मालिकों की सेवा के लिए उनके अनुसार बदलना पड़ता है।" कहते-कहते स्त्री फिर से सुबक पड़ी।
जन्म: 20 जुलाई, 1969, कोलकाता
शिक्षा : बी. ए., ग्राफिक्स डिजाइनर, डिप्लोमा इन डेस्कटॉप पब्लिशिंग
(MS Office, Quark Express, Page Maker, Coral Graphics)
लेखन की विधाएँ: लघुकथा, कहानी, गीत गज़ल-कविता और आलोचना।
सम्प्रति : प्रशासनिक अधिकारी, मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, हिंदी भवन, भोपाल।
निदेशक: लघुकथा शोध-केंद्र भोपाल, मध्यप्रदेश
प्रधान सम्पादक: लघुकथा वृत्त (मासिक)।
संस्थापक : अपना प्रकाशन
प्रकाशन : तीन लघुकथा संग्रह 'घाट पर ठहराव कहाँ', 'पथ का चुनाव', 'अस्तित्व की यात्रा' सात सम्पादित लघुकथा-संकलन 'चलें नीड़ की ओर', 'सहोदरी लघुकथा', 'सीप में समुद्र' (लघुकथा संकलन), 'बालमन की लघुकथा' (लघुकथा संकलन), 'दस्तावेज -2017-18', 'समय की दस्तक', 'रजत श्रृंखला '।
अन्य : 'दृष्टि' (अर्धवार्षिक के महिला लघुकथांक), 'साहित्य कलश'(पटियाला) और 'उर्वशी ' (भोपाल) लघुकथांक का संपादन।
सम्पर्क : मकान नम्बर-21, सेक्टर-सी, सुभाष कालोनी, नियर हाई टेंशन लाइन, गोविंदपुरा, भोपाल- 462023
फोन : 9575465147
ई मेल - roy.kanta69gmail.com
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें