स्याह हाशिए / वेद हिमांशु-राजेंद्र निरंतर

(इस पुस्तक का विवरण साहित्यकार संतोष सुपेकर के सौजन्य से प्राप्त)

लघुकथा-संकलन  : स्याह हाशिए  

सम्पादक द्वय  : वेद हिमांशु-राजेंद्र निरंतर 

अतिरिक्त

'स्याह हाशिये' के इस सम्पादकीय पृष्ठ पर 'हिन्दी लघुकथा' की शास्त्रीय मीमांसा की अपेक्षा यकीनन आपने की होगी, जो कि स्वाभाविक भी है, क्योंकि अब तक सभी संकलनों में ऐसा ही होता आया है ! किन्तु इस मुद्दे को जानबूझकर हम टालना चाहते हैं, इसलिए कि समकालीन हिन्दी लघुकथा की विधागत सारी शास्त्रीय शर्तें तय हो चुकी हैं, और पिछले दो दशक में छपे सभी लघुकथा संग्रहों में इस पर अच्छा-खासा लिखा जा चुका है। 'स्याह हाशिये' में इसे दोहराने का कोई औचित्य नहीं है और न ही इसके माध्यम से लघुकथा जगत के लेखकों में धर्मोपदेशक अथवा साहित्यिक ईसा मसीह बनने की हमें कोई रुचि है ! बावजूद इसके यह कहना जरूरी जान पड़ता है कि 'स्याह हाशिये' की लघुकथाएँ इस विधा में नई सृजनशीलता का एक सबूत आपको दे रही हैं। इसमें अधिकांश नाम ऐसे हैं जो अमूमन नहीं पढ़े गए या कम पढ़े गए, दरअसल 'स्याह हाशिए' का मूल उद्देश्य यही था कि इस क्षेत्र में सृजनरत नए लेखक सामने आएँ और उन्हें प्रोत्साहन मिले; प्रोत्साहन हम दे रहे हैं, ऐसा भी बड़बोलापन हममें नहीं है। इस संकलन के बाद उनकी निरंतर सृजनशीलता और सक्रियता ही यह फैसला करेगी। हम केवल पुल का कार्य कर रहे हैं।

राष्ट्रीय चेतना के प्रखर काव्यशिल्पी स्व. बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' की पुण्य कर्मभूमि शुजालपुर मंडी (जिला शाजापुर) म. प्र. में कुछ निश्छल युवा मित्रों की रचनात्मक सक्रियता का नाम है 'काव्य पंक्ति', जो समय-समय पर साहित्यिक गतिविधियों को आकार देती आई है। इस दिशा में संगोष्ठियों के साथ ही कविता पोस्टरों का प्रकाशन एक सफल प्रयोग है जिसे अखिल भारतीय स्तर पर सराहा गया है; निश्चित ही यह श्रम और निष्ठा को रेखांकित किया जाना है। बहरहाल 'स्याह हाशिये' इस क्रम में एक विनम्र रचनात्मक प्रयास है जिसमें, त्रुटियाँ न रही हों, ऐसा कहना गलत होगा, लेकिन हम उन्हें चीन्ह पाए हों या नहीं, आप जरूर बताएं ताकि अगले प्रयासों में उन्हे दोहराया न जाए !

हम 'लघु आघात', 'क्षितिज' आदि पत्रिकाओं के आभारी हैं जिनसे कुछ रचनाएँ हमने ली हैं। सुप्रसिद्ध शिल्पी चित्रकार एवं लघुकथाकार श्री पारस दासोत जिन्होंने हमारे आग्रह पर तुरंत पुस्तक का मुखपृष्ठ का रेखांकन तैयार किया तथा 'नई दुनिया' इन्दौर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं, जिसके माध्यम से अधिकांश रचनाएँ हमें प्राप्त हो सकीं ।

अभिन्न भाई मुकेश जोशी, जिन्होंने इस कृति को यह आकार देने में अपना बहुमूल्य समय दिया, के हम आभारी हैं, कहना उनके श्रम, मित्रता और निष्ठा को बौना करना है। ये 'काव्य पंक्ति' परिवार के हैं और परिवार में आभार की परम्परा नहीं होती । समय-समय पर श्री शिवनारायण मिश्रा (अनुविभागीय अधिकारी), श्रो पारस चोपड़ा, श्री पी. एन. शर्मा तथा श्रीमती नागर, उपेन्द्र मिश्र,  प्रो. हरीश बाजपेयी (अनुविभागीय अधिकारी पुलिस), शैलेन्द्र पाराशर तथा ओम व्यास 'ओम' ने जो उत्साहवर्धन किया, हमारी स्थायी ऊर्जा और निधि है। प्रयाग प्रिंटर्स के श्री लालबहादुर शास्त्री एवं साथियों के श्रम को भी नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता जिनकी दिन-रात की मेहनत के कारण ही यह कृति आप तक पहुँच पाई है।

'काव्य पंक्ति' के इस विनम्र प्रयास पर आपकी राय अवश्य मिलेगी, इसी आशा के साथ - 

सम्पादक द्वय

सूत्र

स्वामीनाथ पांडेय ९, गिरधारी अकेला राठौड़ ९, हरि जोशी १०, विष्णु प्रभाकर ११, सचिन अमन १३, डॉ. सतीश दुबे १४, रजनीश जेन १६, अशोक आनन १७, सूर्यकांत नागर १८, वन्दना नागर १९, कमल चोपड़ा २०, अनिल चत्तर २२, सत्यनारायण पटेल २३, के. रंजीत रमन २४, ब्रजेश कानूनगो २५, प्रेम वर्मा २६. जयंत जोशी २७, ऐलक सम्यकत्व सागर २८, हरीश दुबे २९, सतीश राठी ३०, राजश्री हिमांशु ३१, विक्रम सिंह बुन्देला ३२, अशोक शर्मा भारती ३३, मणि खेड़ेकर ३४, दीप्ति नवल ३५, पारस दासोत ३६, प्यारेलाल श्रीमाल ३७, उपेन्द्र मिश्र ३८, अजय पालीवाल ३९, रमेशचन्द्र ४०, बी. एल. आच्छा ४१, डॉ. श्यामसुन्दर व्यास ४२, रमेश व्यास ४३, गजानन देशमुख ४४, जया शर्मा ४५, पुष्पा उपेन्द्र ४५, सत्यनारायण भटनागर ४६, डॉ. प्रभाकर शर्मा ४७, शीतल कुमार अक्षय ४८, आदर्श जामगड़े ४०, नरेन्द्रसिंह बैस 'अकेला' ४८, शैलेन्द्र पाराशर ५०, ओम व्यास 'ओम' ५१, शशांक दुबे ५२, हरीश कुमार सिह ५३, प्रिया तोमर ५३, रमेश चन्द्र शर्मा ५४, मुकेश जोशी ५५, राजेंद्र निरन्तर ५५, वेद हिमांशु ५६

सम्पादक संवाद 

वेद हिमांशु 

वेद हिमांशु
जन्म : १ जुलाई १९५४, सांवेर (जिला इंदौर) एम. ए. हिदी । सन् १९७४ से लघुकथा आंदोलन में सक्रिय और सृजनात्मक भूमिका । इंदौर, बेढ़न, (सीधी) मंदसौर और अब शुजालपुर, जहाँ भी होते हैं, चुप बैठना पसंद नहीं। शुरुआत अकेले करते हैं, फिर सब सहज ही साथ हो जाते हैं, विनीत स्वभाव और ठोस । तल्ख लेखन के लिए लोकप्रिय। कविता की सभी धाराओं में लेखन। मालवी बोली में नई कविता और जापानी शिल्प हाइकु मालवी में प्रयोग के लिए इन दिनों विशेष उल्लेख। रचनाओं के बंगला व पंजाबी में अनुवाद । कई राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय संकलनों में रचनाएं शामिल । 'काव्य पंक्ति' के सम्पादक संयोजक! सदस्य लोक मानस अकादमी एवं साहित्य मंथन उज्जैन ।
निधन : २१ अक्टूबर, २०२४

सम्पर्क - सम्पादक 'काव्य पंक्ति', शुजालपुर मंडी, (म. प्र.)

राजेंद्र निरंतर 

राजेन्द्र निरंतर 
जन्म : ७ जून १९६३, शाजापुर बी.एससी. गणित ग्रंथालय सूचना विज्ञान में डिग्री। लेखन की उम्र मात्र एक वर्ष, लेकिन समझ की उम्र परिपक्व । एक लम्बे अर्से से अपने हरफनमौला स्वभाव के कारण मित्रों में चर्चित ! वेद हिमांशु जी के प्रेरित करने पर व्यंग्य लेखन से शुरुआत की; लेकिन बाद में लघुकथा पर गम्भीर रूप से अनवरत लेखन ! साथ ही प्रकाशन भी ।

'स्याह हाशिये' राजेंद्र निरंतर की जिद का सार्थक प्रतिफल है।

सम्पर्क - ८६, बृजनगर, शुजालपुर मंडी (म. प्र.)

स्याह हाशिये : लघुकथाएँ

सम्पादक : वेद हिमांशु एवं राजेन्द्र निरंतर/ प्रकाशक : काव्यपंक्ति, ब्रजनगर, शुजालपुर मंडी (म.प्र.)। 

प्रथम संस्करण : अप्रैल १९९४  

रचनाधिकार : लेखकाधीन 

संकलनाधिकार : सम्पादक/आवरण सज्जा : पारस दासोत / अव्यावसायिक पहल ।

- सहयोग राशि : पन्द्रह रुपये मात्र 

मुद्रक-काशी मुद्रणालय ६, रविशंकर नगर, उज्जैन

SYAH HASHIYE (Laghukathayen) Edited by Ved Himanshu & Rajendra Nirantar

Rs 15.00 only

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