लघुकथा वृत्तान्त / सूर्यकांत नागर

पुस्तक  : लघुकथा वृत्तान्त                  (लघुकथा के विविध पक्षों का विशद विवेचन)
लेखक : सूर्यकांत नागर 
ISBN: 978-81-19206-50-6

प्रथम संस्करण : 2023

प्रकाशक :
अद्विक पब्लिकेशन, 41, हसनपुर, आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली 110092

Tel: 011-43510732, 9560397075

ई मेल: advikpublication1@gmail.com

Web:www.advikpublication.com

© स्वत्वाधिकार : सूर्यकांत नागर
कवर डिज़ाइन : शाहाब ख़ान
प्रूफ़रीडिंग : व्योमा मिश्र
पुस्तक सज्जा : बिपिन राजभर
मूल्य : 190/- (एक सौ नब्बे रुपये मात्र)

प्राक्कथन

रफ़्ता-रफ़्ता ही सही, लघुकथा ने आज हिंदी साहित्य में मुक़म्मल मुक़ाम हासिल कर लिया है। न केवल लघुकथाएँ बड़ी संख्या में लिखी जा रही हैं बल्कि उसके सिद्धांत और सौंदर्य-शास्त्र पर भी काम हो रहा है। हाँ, विधा को गंभीरता से न लेनेवालों की वजह से विधा का चेहरा विरूपित लग सकता है। ऐसे में यदि श्रेष्ठ, प्रभावी लघुकथाएँ लिखी जाती रहेंगी तो कचरा स्वतः ही छँट जाएगा।

लंबे समय से विधा से जुड़ाव के कारण लघुकथा में क्रमशः आए बदलावों का साक्षी रहा हूँ कि कैसे मिथकीय, पौराणिक और बोध कथाओं से निकलकर लघुकथा ने स्वयं को समकाल और युगीन यथार्थ से जोड़ा। चरित्र की भीतरी परत को तलाशकर उसे कथा में उतारा। प्रयोग जारी हैं। परंपरा और प्रगति के बीच प्रयोगात्मकता महत्त्वपूर्ण कड़ी है। खिलौने टूटेंगे नहीं तो नए कैसे बनेंगे? प्रयोगात्मकता तो रचनात्मकता का ही एक रूप है। नवोन्मेषी साहित्य-सृजन आवश्यक है। कब तक पुरानी बातों को दोहराते रहेंगे! लघुकथा में हमें पूरी कहानी का एहसास होना चाहिए। लघुकथा घटना में नहीं, उसमें मौजूद विचार और अन्तर्विरोध में होती है। वह स्लाइस ऑफ़ लाइफ़ है। एक अंश में पूरा जीवन समाहित है।

ख़तरा उन बंधुओं से है जो लघुकथा को चाबी वाला खिलौना मानते हैं कि चाबी घुमाई और दौड़ पड़ेगा। दरअसल लघुकथा लेखन दुरूह और चुनौतीपूर्ण कार्य है। गागर में सागर भरने जैसा। पर सागर में विषैले सर्प, बिच्छू, मगरमच्छ, मछलियाँ और रत्न भी होते हैं। अतः भरते समय ध्यान रखें कि जल के साथ केवल रत्न (सीप) ही आएँ। यह भी कि गागर इतनी न भर जाए कि वज़न न न सँभाल सके। इधर लोग ऐप, इंस्टाग्राम, ट्विटर, ब्लॉग पर नित एक लघुकथा डालकर परस्पर प्रशंसा के पुल बाँधते हैं। इससे पाठक का जो होना है सो तो होता ही है, लेखक भी भ्रमित होता है। आत्ममुग्धता का शिकार हो स्वयं को श्रेष्ठ रचनाकार मानने लगता है। वस्तुतः स्वयं के प्रति असंतोष और पाठक की संतुष्टि महत्त्वपूर्ण है। धैर्य लेखक की बड़ी पूँजी है।

सृजन एक बेचैन क़वायद है। अपने ख़ालीपन को भरना आसान नहीं है। एक तरह से वह अपना ही अक्स होता है; एक प्रतिसंसार का रचाव। कई बार एक सही शब्द के लिये स्वयं से लड़ना होता है। गंभीर लेखक रचना में तोड़-फोड़ करता रहता है। लेखक की संवेदना का बहुसंख्य की संवेदना से जुड़ना ज़रूरी है। कभी लिखते हुए कथा का सोचा अंत ही बदल जाता है। पात्र रचना को चलाने लगते हैं। तब रचना रचनाकार से बड़ी हो जाती है। स्मरण रहे, लघुकथा न पत्रकार का यथार्थ है, न इतिहासकार का इतिहासबोध, न धर्माचार्य का धर्मोपदेश, न आदर्शवाद का यूटोपिया।

लघुकथा-आलोचना की बड़ी समस्या विश्वसनीयता की है। साहित्य की विभिन्न विधाओं में संभवतः लघुकथा-आलोचना ही सर्वाधिक अनुर्वर, विवादास्पद और अविश्वसनीय विधा है। आलोचक को निर्भीक, निर्लोभ और निष्पक्ष होना चाहिए; वैमनस्यता रहित। गुटपरस्त तथा शिविरबद्धता के कारण आलोचना पूर्वाग्रहों का विकृत चेहरा बन चुकी है। आलोचक को लेखक की भावना को समझ पात्रों में प्रवेश करना चाहिए। उसे कला और भाव पक्ष दोनों को देखना चाहिए, तभी न्याय हो सकेगा। गर्म वस्त्र पहना व्यक्ति ठंड में ठिठुरते व्यक्ति की फीलिंग को महसूस नहीं कर सकता। लघुकथा के आकार-प्रकार और कहानी तथा लघुकथा को लेकर प्रायः बहस छिड़ी रहती है। सही है कि सृजनात्मकता को किसी नियमावली या ढाँचे में नहीं बाँधा जा सकता, पर विधा विशेष की रचना है तो उस विधा के अनुशासन का यथासंभव पालन होना चाहिए। यदि लघुकथा है तो 'लघुता' उसका मूलाधार है। कहानी और लघुकथा में अंतर होना चाहिए। यदि लघुकथा तीन-चार पृष्ठों में फैली है तो वह लघु कहाँ रही? यदि किसी रचना का अनावश्यक विस्तार हुआ है तो उससे स्वयं लघुकथाकार के ही सामर्थ्य और समझ पर प्रश्नचिह्न लगता है। बात लघुकथा में व्यंग्य की उपस्थिति, अनुभूति की प्रामाणिकता, मूर्तता-अमूर्तता आदि की भी की जा सकती है, मगर फ़िलवक़्त केवल इतना ही।

प्रस्तुत पुस्तक तीन खंडों में विभाजित है; (1) आलेख (2) व्यक्तित्व (3) समीक्षा। आलेख खंड में लघुकथा की विकास-यात्रा, रचनात्मकता में आ रहे बदलाव, अलोचना-शास्त्र, अध्यात्म, शिल्प और शैली, पुरुष और स्त्रीवादी सोच तथा नवोन्मेषी साहित्य जैसे विषय शामिल हैं। द्वितीय खंड में कुछ वरिष्ठ लघुकथाकारों के व्यक्तित्व- कृतित्व पर प्रकाश डालने की कोशिश है। तीसरे खंड में कतिपय प्रतिष्ठित लघुकथाकारों की कृतियों की समीक्षाएँ हैं। कुल मिलाकर यह लघुकथा के विभिन्न पक्षों के विवेचन का प्रयास है। बौद्धिक विलाप और भाषा की पच्चीकारी की अपेक्षा मेरा विश्वास वस्तुनिष्ठता में है। चार दशकों की लंबी अवधि में अलग-अलग अवसरों पर लिखे आलेखों में कहीं-कहीं हल्का दोहराव नज़र आ सकता है जिसे नज़रअंदाज़ करने का आग्रह है।

सुधी पाठकों की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

सूर्यकांत नागर
मो. 98938-10050
अनुक्रम

खंड एक- आलेख।                       13-72

1. स्वाधीनता की भावभूमि और लघुकथा की विकास यात्रा

2. लेखकीय जागरूकता से लघुकथा का रचनात्मक पक्ष प्रबल हुआ है

3. रचनात्मकता में आए बदलाव ही सृजन की दिशा तय करते हैं

4. गत सदी के अंतिम दशक का लघुकथा परिदृश्य

5. ज़रूरी है नवोन्मेषी साहित्य-सृजन

6. लघुकथा आलोचना की सबसे बड़ी चुनौती विश्वसनीयता की है

7. लघुकथा में अध्यात्म

8. सवाल शिल्प और शैली का

9. लघुकथा में नारी-विमर्श

10. लघुकथाओं में पुरुषवादी सोच

11. प्रेमचंद की कथाओं में आधुनिक दृष्टि

खंड दो- व्यक्तित्व।                        75-106

12. लघुकथा के सिद्ध पुरुष : श्यामसुंदर व्यास

13. कथा कहे बलराम

14. समकालीन यथार्थ के सजग कथाकार : मधुदीप

15. विक्रम सोनी का रचना-संसार

16. यादों में रमेश बत्तरा और उनकी रचनात्मकता

17. लघुकथा के प्रखर व्याख्याकार : सतीश राठी

18. देव का दिव्य रूप : रूप देवगुण

खंड तीन- समीक्षा।                     109-120

19. ख़ास ख़लीश है अशोक भाटिया की रचनात्मकता में

20. रचनात्मक विधाएँ दायरों में नहीं बँधतीं- चैतन्य त्रिवेदी

21. शंबूक और तितली के बहाने

सूर्यकांत नागर 
जन्म : तीन फ़रवरी, 1933, शाजापुर (मध्य प्रदेश) 
शिक्षा : विज्ञान में स्नातकोत्तर तथा विधि स्नातक, जर्मन भाषा का अध्ययन ।
प्रकाशन : कुल 29 पुस्तकें। दस कहानी-संग्रह, दो उपन्यास, दो व्यंग्य-संग्रह, तीन निबंध-संग्रह, दो आत्मकथात्मक संस्मरण, एक लघुकथा-संग्रह। वरिष्ठ साहित्यकारों के साक्षात्कारों की कृति- 'शख़्स और अक्स', साहित्यकारों के पत्रों का संकलन- 'आईना', स्त्री-विमर्श- 'प्रेम और देह के बीच स्त्री', निबंध-संग्रह- 'अपने ही जाए दुःख', 'सड़क जो सेक्यूलर है', और 'सर्जना का मांगल्य'।

कहानियों एवं लघुकथाओं का मराठी, सिंधी और पंजाबी में तथा व्यंग्य का बांग्ला में अनुवाद। 'आदमी', 'मनस्वी', 'वीणा', 'हमारी आँखें', 'नई दुनिया' आदि का संपादन। मॉरीशस और जोहान्सबर्ग विश्व हिंदी सम्मेलन में भागीदारी। व्यक्तित्व-कृतित्व पर फ़िल्म 'जैसा हूँ मैं' निर्मित ।

सम्मान : 'सुभद्राकुमारी चौहान कथा पुरस्कार', 'नरेश मेहता राष्ट्रीय सम्मान', 'शैलेश मटियानी कथा सम्मान', 'भाषा भूषण सम्मान', 'अक्षर आदित्य सम्मान', 'अभिनव शब्द-शिल्पी सम्मान', 'लघुकथा शिखर सम्मान', 'नई धारा सृजन सम्मान' आदि। सम्प्रतिः सेवानिवृत्त सचिव, इंदौर नगर पालिक निगम। वर्तमान में निदेशक संपादक 'समावर्तन साहित्यिक पत्रिका', उपसभापति- 'म. प्र. हिंदी साहित्य समिति, इंदौर'। संपर्क: 81 बैराठी कॉलोनी नंबर-2, इंदौर-452014, मध्य प्रदेश

मोबाइल : 9893810050

ईमेल : suryakantnagar03@gmail.com

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