चिलगोज़े वाली मुट्ठी / आभा अदीब राजदान

                 चिलगोज़े वाली मुट्ठी                 (लघुकथा-संग्रह)

कथाकार : आभा अदीब राजदान 

पहला संस्करण: 2022

सहयोग राशि : 200 रुपये

ISBN: 978-93-91326-13-5

प्रकाशक 

रश्मि प्रकाशन, महाराजापुरम, 

केसरीखेड़ा रेलवे क्रॉसिंग के पास, 

कृष्णा नगर, लखनऊ-226011

भाव-पुष्प

लघुकथा जगत का एक जाना-पहचाना नाम आभा अदीब राजदान जी, लम्बे समय से निरंतर रचना प्रक्रिया में सक्रिय हैं। आपके लेखन में न ही कोई अतिशयोक्ति, न ही कोई बनावटीपन, सीधी-सरल राह पर सच्चे मन से आप साहित्यसेवा में संलग्न हैं। आपका यही व्यक्तित्व आपकी रचनाओं में भी परिलक्षित होता है। बड़ी ही सहजता से आप अपने मन की बात को पाठक तक पहुँचा देती हैं। कोई भी पाठक आसानी से आपकी कथाओं में खुद को शामिल कर सकता है। आपकी इन्हीं बातों के कारण मैं आपकी कायल हूँ। हृदय से मैं आपको बधाई एवं शुभकामनाएँ देती हूँ, आपका यह गुण सदैव पल्लवित होता रहे और आपकी कलम नित नए आयाम स्थापित करे। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपके द्वारा रचित इस लघुकथा संग्रह के माध्यम से कथाएँ जनमानस के हृदय में उतर कर भीतर तक आलोड़ित करेंगी और उन्हें नई दिशा प्रदान करेंगी। पुनः बधाई एवं शुभकामनाओं के साथ।

प्रेरणा गुप्ता (कानपुर)

शुभेच्छा

मुझे यह जानकर खुशी हुई कि आभा अदीब राज़दान जी अपनी कथाओं को पुस्तकाकार दे रही हैं।

मैं 2015 से उनकी रचनाओं का पाठक रहा हूँ। सामाजिक विसंगतियों पर उन्होंने = प्रभावी तरीके से प्रहार किया है, जो पाठक को सोचने के लिए उद्वेलित करता है। भरे - पूरे घर में गृहिणी का उत्तरदायित्व निर्वहन करते हुए अपने लेखन द्वारा आप सामाजिक दायित्व का भी निर्वहन कर रही हैं। आपकी रचनाएँ व्यावहारिक संदेश लिए होती हैं, जिससे वे सहज ग्राह्य होती हैं।

आपकी रचनाएँ हर पाठक को अपनी-सी लगती हैं। उसमें या तो वह खुद होता है या उसके पास-पड़ोस की घटना होती है। आपकी भाषा सरल एवं सहज होती है, जिससे आपकी सभी रचना पूर्णतः संप्रेषित होती है।

मुझे विश्वास है, पाठकों को यह संग्रह अवश्य पसंद आएगा। मेरी शुभकामनाएँ हैं कि उनकी कलम निरंतर चलती रहे।

पवन जैन, जबलपुर

Jainpawan9954@gmail.com

मन की बात

मेरे माता-पिता श्रीमती किरन अदीब, श्री सूरज प्रकाश अदीब, परमपूज्य गुरू जी स्वामी शिवानंद जी महाराज, मेरी दादीजी श्रीमती क्षमाक्षरी अदीब, जिनकी सुंदर स्मृतियाँ सदा मेरे हृदय में वास करती हैं।

जीवन साथी प्रद्युम्न कृष्ण राज़दान जी, बच्चे अंबिका शिवपुरी, धीरज शिवपुरी, अपर्णा कौल, राकेश कौल, नाती विक्रमादित्य, राघव, अहान, सभी से जीवन में मैंने बहुत कुछ सीखा है।

मेरे जीवन में अति महत्वपूर्ण चार पैर वाले मेरे सभी बच्चे व्हिस्की, खट्टू, कोको, ट्विंकल, मिली और टिकलू बाबू जो अभी बैकुंठधाम में कृष्णा की कृपा में जिन्होंने मुझे सिखाया कि निस्वार्थ सच्चा सरल प्रेम क्या होता है और कैसा होता है।

इस जीवन यात्रा के मधुर व कटु अनुभव, कुछ अद्भुत पल, कुछ घटनाएँ, जिन्होंने मेरे हृदय को स्पर्श किया, मुझे आनंदित किया और कभी बहुत पीड़ा भी दी परन्तु सभी ने मुझको जीवन में बहुत कुछ सिखाया।

सबसे बढ़ के मेरी जिंदगी की यह किताब, जिसके हर पन्ने पर एक नया अनुभव, एक नया पाठ, एक नई जंग, एक नया सबक है, माने हर दिन इससे कुछ नया ही सीखने को मिलता है मुझको। हमारे आस-पास पसरी ढेरों विसंगतियाँ, जिन्होंने मेरे अंतस को झकझोर दिया और बहुत कुछ सोचने पर मुझे बाध्य भी किया, इन सभी बातों से ही मेरी इन रचनाओं का जन्म हुआ है। अपने मन की बातों को सहजता से, बहुत सरल शब्दों में पन्नों पर उतार दिया है। इन रचनाओं को आप सब पढ़ेंगे, स्नेह देंगे तो इस अकिंचन का लेखन भी सार्थक हो जाएगा।

अपने सभी सुधी पाठकों को मनःपूर्वक अग्रिम धन्यवाद और आप सभी का बहुत बहुत आभार।

आभा अदीब राजदान

तरतीब 

सहज पके सो मीठा होय/बलराम अग्रवाल 

भाव-पुष्प/प्रेरणा गुप्ता

शुभेच्छा/पवन जैन 

लघुकथाएँ

पहली पगार

सही की माँ

तुरपाई कौन करे

थीम पार्टी

माँ-पापा ने यही सिखाया है

तारा तुम आ गई

जीने की कला

सब्जी-भाजी

बेशर्म

सक्षम

पाँच स्त्रियों वाला घर

समभाव

यक़ीन का सफ़र

विशेष शिशु

सख्त मिज़ाज

चिलगोजे वाली मुट्ठी

गोरे-गोरे बाल

कोनेवाली बेंच

बहू और बेटी

गप्पू की नानी

मखमल तो अब सजी

चिटका कप

हिसाब की पक्की

उम्मीद की सब्जी

सबसे कठिन सवाल

पतिदेव की जय

सदा सुहागन

फैमिली फोटो

नीला स्वेटर

शोक संदेश

पर्चियाँ

और आँखें खुल गईं

मेरा राजा बेटा

पल्लवी

वंश

ऑनलाइन

सुपर डीलैक्स फ्लैट

बस बात ख़त्म

प्रैक्टिकल क्लास

बड़े लोग

घर

तुमसे क्या मतलब

जो सोचना है, सोचें

एहसानमंद

उस पार

उल्टी गंगा

क़म्फर्ट जोन

धूमधाम

डर

सूझ-बूझ

अभी जो है, वही अच्छा

स्नान

प्रेम कहानी

थरमस वाली चाय

सबसे ख़ास

जिंदा दीवारें

धुंधला अक़्स

कान के बुंदे

सत्य प्रत्यक्ष

माँ काम चला लेती थीं

मुझे पता है

तीन बिस्कुट

घर की इज़्ज़त

लकीर तो तोड़नी होगी

बलि

मदद

सफ़ेद साबुन की बट्टी 

दस में सिर्फ़ चार

कहाँ है मेरा घर अंततः

सीधे घर

आदर कमाना होता है 

हठ

जड़ों से जीवित

तर्जनी सदैव सामने 

अपराध का गर्व

विद्या माता की क़सम 

सुखद बदलाव 

पाँचवीं सीढ़ी 

माँ दरारें भरती थीं 

बेच नहीं दिया है 

दो भगवान हैं 

मानो न मानो

बूढ़ी ड्योढ़ी

ठंडे पैर

आभा अदीब राज़दान

शिक्षा : स्नातक कला संकाय, जीवन यात्रा के अनुभव।

लेखन विधा : लघुकथा, कहानी, कविता, बाल कथा, आलेख।

प्रकाशित पुस्तकें : कहानी संग्रह 'हवा बेगम', विभिन्न लघुकथा संकलन, पत्र-पत्रिकाओं, ई पत्रिकाओं में प्रकाशित एवं संगोष्ठियों में प्रसारित।

संप्रति : स्वतंत्र लेखन।

संपर्क : के-1 शालीमार कोर्ट यार्ड, सीतापुर रोड, लखनऊ-226021

मोबाइल : 9415087061

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