'सरोकार' (लघुकथा संकलन)
'सरोकार' (लघुकथा संकलन) लगभग उनतीस वर्ष पूर्व, अप्रैल 1996 में उज्जैन के डॉक्टर शैलेन्द्र पाराशर के संपादन और मुकेश जोशी जी के संयोजन में 'साहित्य मन्थन' साहित्यिक संस्था, उज्जैन द्वारा प्रकाशित किया गया था जिसमें उज्जैन और आसपास के 20 लघुकथाकारों की रचनाएँ सम्मिलित थीं | (प्रकाशकीय पृष्ठ और अनुक्रमणिका पुस्तक में नहीं है।)
सम्पादकीय
सरोकार
हमारे आसपास रोजमर्रा की जो घटनाएँ घटित होती हैं, उनका सीधा 'सरोकार' हमारी जीवन पद्धति से रहता है। हर छोटी या बड़ी घटना हमारे आन्तरिक व बाह्य चिन्तन का परिणाम होती हैं, जो इस बात की ओर इंगित करती है कि हम भौतिक और अभौतिक रूप में कैसी दुनिया बना रहे हैं।
'साहित्य मंथन' संस्था ने युवा सृजनशील साहित्यकारों की लघुकथा के संकलन 'सरोकार' के माध्यम से अपने आसपास के तेवर तलाशन के कोशिश की है।
'सरोकार' में जो लघुकथाएँ संकलित हैं उनमें 'त्याग' में मालिक और मजदूर का शाश्वत द्वन्द्व, 'चरित्रहीन' में चरित्र के व्यक्तिगत मापदण्ड, 'खेल' में बच्चे का पापी-पेट का संघर्ष, 'आमसभा' में शोक संवेदनहीनता भाव, 'अन्याय' में छोटे कर्मचारियों की पीड़ा, 'अन्तर' में वृद्धा और युवा स्त्री के आकर्षण अन्तर, 'पद' में सत्ता सुखानुभूति, 'आदमी और भूत' में भूत की मानवता व आदमी की क्रूरता, 'मुआवजा' में संवेदना के दोहरे मापदण्ड, 'विटिंग कार्ड औ सन्तुष्टि' में लोभ की प्रवृत्ति, 'मुर्दे' में मानवीय निष्ठुरता, 'कोहरे में ठिठुरता सूरज' में दोहरा चरित्र भाव, 'चोट' में बाल श्रमिक समस्या, 'तीसरा बेटा' में पराया अपनत्व, 'संवेदनहीनता' में मशीनीकृत भाव, 'प्रमाण-पत्र' में दिखावे की प्रवृत्ति, 'मानवीयता' में व्यवसायिक मानसिकता भाव तथा 'प्रगति' और 'आदर्श' में महाविद्यालयीन शैक्षिक अवमूल्यन को रेखांकित किया गया है।
इनके साथ अनेक कोण हैं, जो हमारे चिन्तन को उद्वेलितकर एक नवीन दृष्टि देते हैं ।
'सरोकार' को आकार देने में समस्त लेखकों का; आवरण शीर्षक और रेखांकन चित्र के लिए प्रसिद्ध चित्रकार डॉ. विष्णु भटनागर का एवं मुद्रण के लिए प्रयाग प्रिटिंग प्रेस के श्री लालबहादुर शास्त्री तथा खासकर मेसर्स माणक लाल एण्ड सन्स सहित उन सभी के हृदय से आभारी हैं जिनके सहयोग से यह लघुकथा संकलन पाठकों से 'सरोकार' कर पाया !
आपके सुझाव सदैव आमंत्रित हैं ।
नमन, 64, विद्यानगर, उज्जैन (म.प्र.) शैलेन्द्र पाराशर सम्पादक/अध्यक्ष साहित्य मंथन, उज्जैन (म.प्र.)
सचिव की ओर से
साहित्य मंथन—एक सफर
'मंथन' से 'सरोकार' तक
जनवरी 85 में जब के युवा साहित्यकारों की संस्था 'साहित्य-मंथन' के जन्म बाद आज संस्था अपनी सतत सक्रियता का 11 वां वर्ष पूरा कर रहा है। 11 वर्षों में संस्था ने अपने साहित्यजीवी सदस्यों के सहयोग से सर्वप्रथम साहित्यिक पत्रिका 'मंथन' का प्रकाशन किया इसके पश्चात् एक के बाद एक चार व्यंग्य संग्रह 'लोकतन्त्र के चूहे' (सम्पादक रमेशचन्द्र शर्मा और रमेशचन्द्र), 'यमराज का भैसा (लेखक रमेशचन्द्र) 'एडजस्टमेंट' (लेखक रमेशचन्द्र शर्मा) तथा फिर एक सामूहिक संग्रह 'आत्मा की कमीज' (सम्पादक-मुकेश जोशी-हरीश कुमार सिंह) को लेकर साहित्यिक समाज में आई ! 'साहित्य मंथन' लघुकथाओं के एक लघुसंग्रह 'सरोकार' के साथ फिर आपके समक्ष है। इन कृतियों के अतिरिक्त संस्था अपनी नियमित-गोष्ठियों, सम्मान समारोहों के कारण नगर के बुद्धिजीवियों में सदैव चर्चा में रही है। साहित्य मंथन की सक्रियता इस बात में भी है कि नगर की इस एकमात्र संस्था के सदस्य न सिर्फ नियमित लेखन करते हैं वरन देशभर की पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही / रहती है। इन दस वर्षों में संस्था के अबतक पाँच अध्यक्ष सर्वश्री रमेशचंद्र शर्मा, रमेशचंद्र, डाॅ. प्रभाकर शर्मा, स्वामीनाथ पाण्डेय तथा वर्तमान में प्रो. शैलेन्द्र पाराशर हैं ! सबकी अपनी-अपनी शैली है जिससे इन्होंने संस्था को इस मुकाम तक पहुँचाया। बहरहाल, साहित्य मंथन की छठी कृति 'सरोकार' आपके हाथों में है। इसमें जाने-पहचाने लेखकों की 20 लघुकथाएँ हैं। आशा है, आपको सामाजिक 'सरोकार' की ये लघुकथाएँ पसन्द आएँगी ! हमारी रचना प्रक्रिया पर अपनी प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत कराएँ....!
मुकेश जोशी सचिव, साहित्य मंथन
संकलित लघुकथाकार / लघुकथा
1- बी एल आच्छा / प्रगति
2- हरीश कुमार सिंह / त्याग
3- रमेशचन्द्र शर्मा / चरित्रहीन
4- स्वामीनाथन पाण्डेय / खेल
5- राजेन्द्र निरन्तर / आमसभा
6- अशोक भाटी / मानवीयता
7- प्रवीण देवलेकर / अन्याय
8- आदर्श कुमार जामगड़े / अन्तर
9- रमेशचन्द्र / पद
10- धर्मेन्द्र जोशी / आदर्श
11- डॉ॰ प्रभाकर शर्मा / आदमी और भूत
12- नरेन्द्रसिंह अकेला / मुआवजा
13- ललित उपमन्यु / सन्तुष्टि
14- शशांक दुबे / विजिटिंग कार्ड
15- प्रशांत अनजाना / पागल
16- मुकेश जोशी / मुर्दे
17- सूर्यकांत नागर / तीसरा बेटा
18- रमेश कर्नावट / चोट
19- वेद हिमांशु / कोहरे में ठिठुरता सूरज
20- ओम व्यास 'ओम' / प्रमाणपत्र
21- शलेन्द्र पाराशर / संवादहीनता
संकलन का परिचय :
कथाकार संतोष सुपेकर के सौजन्य से


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